कबूतर कथा
जोड़ा एक कबूतर का ,कल ,दिखा ,देरहा मुझको गाली
क्यों कर मेरी 'इश्कगाह ' पर ,तुमने लगवा दी है जाली
प्रेम कर रहे दो प्रेमी पर ,काहे को प्रतिबंध लगाया
मिलनराह में वाधा डाली ,युगल प्रेमियों को तडफाया
बालकनी के एक कोने में , बैठ गुटर गूँ कर लेते थे
कभी फड़फड़ा पंख,प्यार करते,तुम्हारा क्या लेते थे
मैंने कहा कबूतर भाई ,मैं भी हूँ एक प्रेम पुजारी
मुझको भी अच्छी लगती थी ,सदा प्रेम लीला तुम्हारी
लेकिन जब तुम,हर चौथे दिन ,नयी संगिनी ले आते थे
उसके संग तुम मौज मनाते ,पर मेरा दिल तड़फाते थे
क्योंकि युगों से मेरे जीवन में बस एक कबूतरनी है
जिसके साथ जिंदगी सारी ,मुझको यूं ही बसर करनी है
तुम्हे देखता मज़ा उठाते,अपना साथी बदल बदल कर
मेरे दिल पर सांप लौटते,तुम्हारी किस्मत से जल कर
मुझको बड़ा रश्क़ होता था ,देख देख किस्मत तुम्हारी
रोज रोज की घुटन ,जलन ये देख न मुझसे गयी संभाली
और फिर धीरे धीरे तुमने ,जमा लिया कुछ अड्डा ऐसा
तुमने मेरी बालकनी को ,बना दिया प्रसूतिगृह जैसा
रोज गंदगी इतनी करते ,परेशान होती घरवाली
इसीलिए इनसे बचने को ,मैंने लगवा ली है जाली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'