Saturday, June 1, 2013

बुढ़ापे ने है निकम्मा कर दिया ...

     

आशिकी का वो ज़माना याद है ,
                       हम रसीले,स्वाद,मीठे  आम थे 
रोज मियां ,मारते थे ,फ़ाक़्ता ,
                       बड़े ही दिलफेंक  और बदनाम थे 
थी जवानी की महक और ताजगी ,
                       जिन्दगी गुलज़ार थी,गुलफाम थे 
बुढापे ने है निकम्मा कर दिया ,
                        वरना हम भी  आदमी थे काम के 
'घोटू '

घोटू की घंटी

         घोटू की घंटी 
       
जब होती पूजा मंदिर में ,बजती घंटी 
जब होती छुट्टी स्कूल में ,बजती घंटी 
जब घर में है कोई आता,  बजती घंटी 
फोन किसी का जब भी आता,बजती घंटी 
चपरासी को साहब बुलाते,  बजती घंटी 
आग बुझाने ,दमकल आते ,बजती घंटी 
जग जाते हम,जब अलार्म की,बजती घंटी 
सुलझे उलझन ,जब दिमाग की,बजती घंटी
जब कोई दिल में जाता बस, बजती घंटी 
शादी करते और गले में  ,बंधती  घंटी 
इसकी टनटन ,करे टनाटन ,बजती घंटी 
और बाद में,जब जाती ठन  ,बजती घंटी 
बिल्ली गले ,बाँधना है जो ,तुमको घंटी 
एक बार,देखो पढ़ कर ,'घोटू की घंटी'
घोटू