Thursday, December 5, 2013

शब्दों का जमावड़ा

      शब्दों का जमावड़ा

भावों को प्रकट करता ,शब्दों का जमावड़ा
कविता के रूप में है सबके  सामने  खड़ा
कह देता गहरी बात ये थोड़े से शब्द में ,
लगता सुहाना है ये अलंकार से जड़ा
दो पंक्तियों के दोहे में रहीम ने कहा ,
रसखान ने रस से है भरा ,अपने छंद में
मीरा ने भजन,सूर ने पद में इसे कहा , ,
तुलसी ने समेटा इसे ,मानस के ग्रन्थ में
ग़ालिब ने ग़ज़ल,मीर  ने शेरों  में उकेरा ,
बिलकुल सपाट शब्दों में बोला कबीर ने
केशव ने गहरी बात कही अपने ढंग से,
बिहारी ने सतसैया के ,नाविक के तीर में
वेदों में संजोया था इसे वेद  व्यास ने,
 गीता में बात ज्ञान की है श्लोक में कही,
 कोई ने यमक में कहा ,कोई ने श्लेष में ,
हर रूप में पर ज्ञान की गंगा सदा बही
कोई ने विरह गीत में आंसू से भिगोया,
कोई ने इसे रंग दिया होली के रंग में
कोई ने इसे व्यंग के तीरों सा चुभोया ,
कोई ने भरा वीर रस ,मैदाने जंग में 
भावों का झरना जब झरा ,शब्दों में स्वर बहे,
प्रेमी का प्रेम उभरा है गीतों में प्यार के
कुछ हास और परिहास में ,कुछ लोकगीत में,
कुछ सज के सुरों में किसी नगमा निगार के
गीतों का रूप धर के जब भी गाया  गया है ,
लोगों के मन को भाया है,जुबान पर चढ़ा
जिस पर भी ,जब भी ,सरस्वती जी कृपा हुई,
शब्दों की माला गूंथ कर,माता पे दी चढ़ा
  भावों को प्रकट करता ,शब्दों का जमावड़ा
कविता के रूप में है सबके सामने खड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुफतखोर

    मुफतखोर

कुदरत ने है बिगाड़ दी,इंसां की आदतें
फ़ोकट में बाँट बाँट कर,सारी इनायतें
सूरज ने खुल्ले हाथ से बांटी है रोशनी
चन्दा ने लुटा रातों को ,जी भर के चांदनी
सर्दी में गरम धूप हमको मुफ्त में मिली
गर्मी में ठंडी हवाओं से ताज़गी मिली
नदियों से,तालाबों से है पीने को जल मिला
कितना ही कुछ जो हमको मिला,मुफ्त में मिला
हम मुफतखोर बन गये और बिगड़ी आदतें
फ़ोकट में थी जो हमको मिली ,ये इनायतें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'