Thursday, January 26, 2012

सोना बाथ और स्टीम बाथ

सोना बाथ और स्टीम बाथ
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सोनी,तेरी सुन्दरता ने,मुझको इतना उष्ण किया है
एसा लगता गरम कक्ष में,मैंने 'सोना बाथ 'लिया है
सर्दी में तेरे होठों ने,मुंह से ऐसी भाप निकाली,
मेरे अलसाये होठों को,जैसे 'स्टीम बाथ' दिया हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

उन्मुक्त विहंग

उन्मुक्त विहंग
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नहीं चाहता बंधू किसी प्रतिबन्ध में
नील गगन में उड़ता हुआ विहंग मै
साथ  पवन की लहरों के मै डोलता
सूरज की किरणों से हँसता,बोलता
बिना डोर के उडती हुई पतंग मै
नील गगन में उड़ता हुआ विहंग मै
पंख पसारे पंछी सा चहका चहका
खुशबू के झोकों जैसा महका महका
सागर के सीने में भरी तरंग मै
नील गगन में उड़ता हुआ विहंग मै
गौरी की आँखों  से बहते कजरे सा
मंडराता फूलों पर प्रेमी भँवरे  सा
होली की उडती गुलाल का रंग मै
नील गगन में उड़ता हुआ विहंग मै
सरिता की लहरों जैसा कल कल बहता
रंग  बिरंगी तितली सा उड़ता रहता
मतवाला,मनमौजी और मलंग मै
नील गगन में उड़ता हुआ विहंग मै

मदन मोहन बाहेती'घोटू'