Sunday, August 9, 2020

देवी वंदन

मैंने जब जब भी कहा तुम्हे ,लक्ष्मी ,तुम दौड़ी आयी और ,
श्रद्धा से सेवाभाव लिए ,तुम लगी दबाने पैर  मेरे
जब तुम्हे पुकारा सरस्वती ,तुम आ जिव्हा पर बैठ गयी ,
अपनी तारीफ़ में लिखवाये ,कविता और गीत बहुतेरे
जब अन्नपूर्णा मैं बोला ,मुझको स्वादिष्ट मिला भोजन ,
हो गयी  तृप्त  मेरी काया ,ढेरों मिठाई ,पकवान मिले
गलती से दुर्गा कभी कहा ,तुमने दिखलाये निज तेवर ,
हो गयी खफा और कह डाले ,मन के सब शिकवे और गिले
तुम सती साध्वी सीता सी ,मेरे संग संग ,भटको  वन वन ,
तुमको न अकेली मैं छोड़ूँ ,मुझको लगता डर रावण का
लेकिन मेरे मन को भाता ,वह रूप राधिका का ज्यादा ,
वह प्यार ,समर्पण ,छेड़छाड़ ,वह मधुर रास वृन्दावन का
मैं गया भूल गोकुल गलियां ,माखन की मटकी गोपी की ,
जब से रुक्मणि के संग बंधा ,रहना पड़ता अनुशासन में
तुम ही लक्ष्मी ,तुम सरस्वती ,मेरी अन्नपूर्णा  देवी तुम ,
तुम प्यार लुटाती सच्चे मन ,और सुख सरसाती जीवन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम मेरी प्रियतम

तुम पूनम के चंदा जैसी ,अमृत बरसाती चंद्र किरण
प्राची की लाली से प्रकटी ,सूरज की रश्मि, प्रथम प्रथम
तुम्हारा प्रेम प्रकाश पुंज ,आलोकित करता है जीवन
मनभावन और मनोहर तुम ,सुन्दर ,सुंदरतर ,सुन्दरतम

है गाल गुलाब पंखुड़ियों से ,रस भरे अधर, रक्तिम रक्तिम
है कमलकली अधखुले नयन ,मदमाता सा चम्पई बदन
है पूरा तन रेशम रेशम ,और महक रहा चन्दन चन्दन
हो रही पल्ल्वित पुष्पों सी ,कोमल ,कोमलतर ,कोमलतम

 उर में है युगल कलश अमृत ,संचित पूँजी यौवन धन की
पतली डाली,कमनीय कमर,निखरी निखरी छवि है तन की
हिरणी सी चपल चाल ,मनहर ,और चंचल चंचल सी चितवन
मन के कण कण में बसी हुई ,तुम मेरी प्रिय ,प्रियतर,प्रियतम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '