Tuesday, December 10, 2019

जब बूढ़े होते भाई बहन ,मिल बैठ किया करते बातें

आँखों आगे जीवित होती ,बचपन की कितनी हीयादें


हम सात बहन और भाई थे दिन भर करते रहते मस्ती 

तबकितनी रौनक़ रहती थी घरमें थी चहलपहलबसती

इक दूजे संग लड़ना झगड़ा करना शिकायतें मारपीट

वो ग्रूपबाज़ी ,क़ट्टीबट्टी,वो प्रेमभाव वो हारजीत

पर करे लड़ाई कोई अन्य तो सब मिलकरकरते प्रहार

दिवाली की आतिशबाज़ी वो रक्षाबंधन त्योहार

वो ताश खेलना छुपछुप कर छतपर सोनेवाली रातें

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें



गर्मी की छुट्टी होते ही वो नानी के घर पर जाना 

वो आम चूसना जी भर कर जामुन खाना खिरनीखाना

नानी डब्बे से चुपके से लड्डू मठरी चोरी करना 

वो देर रात स्टोव जला छतपर चुपके हलवा बनना

मामा को मक्खनमार मार वो उनके संग पिक्चर जाना 

और चाटपकोड़ी ठेले पर दस दस पानीपूरी खाना 

वो स्वाद यादकर कभीकभी हम अब भीहँसतेमुसकाते

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें


बड़े भाई और दीदी में हरदम ही रहती थी खटपट

मझली चमची थी भैया के सबकाम किया करती झटपट

छोटी भोली बन मँझले की चुग़ली लगवाया करती थी 

और आँसू बहा पिताजी से उसको पिटवाया करतीथी  

वो रोज़ सवेरे भैया का लाना जलेबियाँ गरम गरम 

वो स्वाद रसीला प्यारासा क्या कभी भूल पायेंगे हम 

बस यूँ ही शिकायत शिकवे में बीता बचपन हँसते गाते 

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें


जब बड़ी बड़ी हो जाती थी पड़ जाते थे छोटे कपड़े 

उनके सुंदर कपड़े लेने , होते थे छोटों में झगड़े 

स्कूल की किताबें भाई की छोटे सब काम में लाते थे 

पढ़ने की दिक्कत होमवर्क चोटों का बड़े कराते थे 

ना था मोटा स्कूल बेग नस मँहगीमँहगी ट्यूशन थी 

कक्षा में प्रथम कौन आये आपस में कंपीटिशन थी 

खाने को कलाकंद मिलता जब थे अच्छे नम्बरआते 

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ कभी करते बातें


जैसे जैसे हम बड़े हुये परिवार हो गया तितर बितर 

पढ़ने को भाई गये बाहर शादी की गये नौकरी पर

धीरे धीरे सब बहने भी शादी करवा हो गयी बिदा

वीरान हो गया वो आँगन रहती थी रौनक़ जहाँ सदा

रह गये अकेले माँ बापू सूनाहो गया चहकता घर 

आजाते लेने ख़ैर ख़बर भाई मिलने त्योहारों पर 

ये क़िस्सा नहीं हमारा है ये तो है घर घर की बातें

जब बूढ़े होते भाई बहन मिल बैठ किया करते बातें

चस्का चुनाव का


एक नवधनाढ्य से ,जब सम्भल नहीं पायी उसकी माया

तो उसे चुनाव लड़ कर नेता बनने का शौक चर्राया

वो मेरे पास आया

और बोला ,मैं अपनी जयजयकार सदा देखना चाहता हूँ

खुद को फूलों की मालाओं से लदा देखना चाहता हूँ

इसलिए मन कर रहा है नेता बनू और चुनाव  लड़ूँ

आप बताइये कौनसी पार्टी ज्वाइन करूँ

मैंने कहा कई पार्टियों के प्रमुख होते है बड़े विकट

करोड़ों में बेचते है चुनाव का टिकिट

तुम उनके चक्कर में मत  पड़ो

इससे बेहतर है कि इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ो  

कई बार चुनाव के बाद नतीजों की ऐसी स्तिथि आती है

जब किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता,

तब इंडिपेंडेंट केंडिडेट की वेल्यू बहुत बढ़ जाती है

ऐसे में उसके भाग्य  का कमल ऐसा खिलता है

कि धन के साथ साथ ,उसे मंत्री पद भी मिलता है

वो ललचाया और बोलै ठीक है मैं इंडिपेंडेंट चुनाव लडूंगा

पर इस राह पर आगे कैसे बढूंगा

हमने कहा  इसके लिए आपको ,सबको सर झुका कर ,

प्रणाम करने की आदत डालनी होगी

और अपना गुणगान करनेवाले चमचों की

एक फ़ौज पालनी होगी

गरीब जनता के वोट पाने के लिए उन्हें लुभाना पड़ता है

पैसा और दारू ,पानी की तरह बहाना पड़ता है

पर ये काम आसान नहीं है ,

अन्य पार्टियों की नज़र से बचना पड़ता है

और जब आचार संहिता लग जाती है ,

तो बहुत संभल कर चलना पड़ता है

आप अपने चमचों से अलग अलग संस्थाएं

जैसे ' महिला उत्थान समिति 'बनवाये

और उनसे 'मातृशक्ति महिमा मंडन 'जैसे ,

समारोहों का आयोजन करवाए

अपने आपको ऐसे समारोहों का मुख्य अतिथि बनवाएं

और वो आपके हाथों हर महिला को ,

साडी ,सिलाई मशीन या अन्य गृह उपयोगी

उपकरण भेंट करवाये  

इसीतरह युवा विकास केंद्र 'स्थापित करवा ,

युवाओं को टेबलेट लेपटॉप का आपके हाथों वितरण होगा

और आपका प्रभावशाली भाषण होगा

वरिष्ठ नागरिक सेवा केंद्र '

सीनियर सिटिज़न सन्मान समारोह का आयोजन करवा

आपके हाथों बुजुर्गों को शाल अर्पित करवाएंगे

और आपके वोट सुनिश्चित हो जाएंगे  

इसमें पैसा तो आपका लगेगा पर कोई और दिखायेगा खर्चा

मुख्य अतिथि के रूप में आपका होगा चर्चा

लोग आपको पहचानने लग जाएंगे

और जब ये इन्वेस्टमेंट वोट में परिवर्तित होगा ,

आपके भाग्य जग जाएंगे

ये चुनाव का खेल बड़ा कॉम्प्लिकेटेड है ,आसान नहीं है

कई हथकंडे अपनाने पड़ते है ,आपको ज्ञान नहीं है

पर जब एक बार आप पूरे उत्साह और लगन के साथ

खेल के मैदान में उतरेंगे

तो  अपनी बुद्धि और धन के बल पर ,

नैया पार लगा ही लेंगे


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये भूलने की बिमारी


कल पत्नीजी ने फ़रमाया

 कि बढ़ती हुई उमर के साथ

कमजोर होती जारही है उनकी याददाश्त

आजकल वो कई बार ,

कई लोगों के नाम भूल जाती है

किसी काम के लिये  निकलती है

पर वो काम भूल जाती है

कोई चीज कहीं पर रख कर ,

ऐसी दिमाग से उतरती है

कि उसकी तलाश ,

उसे दिन भर परेशान  करती है

कई बार दूध  गैस पर चढ़ा देती है

पर ध्यान नहीं रहता है

पता तब लगता है जब दूध ,

उफन कर गैस स्टोव पर बहता है

ये बुढ़ापे के आने की निशानी है

ये याददाश्त का  इस तरह होना कम  

लगता है अब धीरे धीरे ,

बूढ़े होते जा  रहे है हम

मैंने कहा सच कहती हो उस दिन ,

जब पार्टी में मैंने तुम्हे 'हनी 'कह कर पुकारा था

आश्चर्य और शर्म से चेहरा लाल हो गया तुम्हारा था

तुम शर्माती हुई मेरे पास आयी थी

बड़ी अदा से मुस्कराई थी

और बोली थी की जवानी में ,

जब आप मुझ पर मरते थे

तब मुझे 'हनी 'पुकारा करते थे

आज अचानक मुझ पर ,

इतना प्यार कैसे उमड़ आया है

 मुझे हनी कह कर बुलाया है

मैंने उसे तो बहला  दिया यह कहकर

तुम्हारा रूप लग रहा था जवानी से भी बेहतर

पर हक़ीक़त को  मै कैसे करता उसके आगे कबूल

दरअसल मै नाम ही उसका गया था भूल

जब बहुत सोचने पर भी नाम याद नहीं आया

मैंने 'उनको हनी 'कह कर था बुलाया

पर ये सच है कि जैसे जैसे ,

उमर आगे की और दौड़ती है

आदमी की याददाश्त घट जाती है ,

पर पुरानी यादें पीछा नहीं छोड़ती है

एक तरफ ताज़ी बाते भूलने लगती है

दूसरी तरफ पुरानी यादों की फाइल खुलने लगती है

ये भूलने की बिमारी

पड़ती है सब पर भारी

पर ये भूलने का रोग बड़ा अलबेला है

इसे हमने बुढ़ापे में ही नहीं ,जवानी में भी झेला है

मुझे याद है जब  हमें प्यार हुआ था

जिंदगी में पहली पहली बार हुआ था

हम तुम्हारे प्यार में इतना मशगूल हुए थे

यादो में खोये रहते,,खानापीना भूल गए थे

तुम्हे प्रेमपत्र लिख कर पोस्टबॉक्स में डाल आते थे

पर उस पर टिकिट लगाना भूल जाते थे

तुमने पहली नज़र में ,मेरा दिल चुरा लिया था

बदले में मैंने अपना दिल तुमको दिया था

और फिर हम दोनों प्यार में इस कदर खोगये थे

कि ताउम्र एक दुसरे के हो गए थे

और हमारे इश्क़ की भूल की ,

ये दास्ताँ इसलिए ख़ास है

कि आज भी मेरा दिल तुम्हारे पास और

तुम्हारा दिल मेरे पास है

एक दुसरे के दिल में धड़कता है

बिना मिले चैन नहीं पड़ता है

आजकल जवानी में भूलने का,

 एक और अंदाज नज़र आने लगा है

जो बुजुर्गों को सताने लगा है

जब माँ बाप बूढ़े और लाचार हो जाते है

जवान बच्चे उन्हें तिरस्कृत कर भुलाते है

वो ये भूल जाते है कि जवानी की इस भूल के

परिणाम उन्हें भी भुगतने पड़ेंगे

जब वो बूढ़े होंगे तो उनके बच्चे भी ,

उनकी और ध्यान नहीं देंगे

इसलिए भूल कर भी अपने बूढ़े माबाप को मत भूलना ,

वर्ना ये होगी आपके जीवन की सबसे बड़ी भूल  

उनके आशीर्वाद आपके लिए वरदान है ,

और चन्दन होती है उनके पांवों की धूल  

उस धूल को अपने सर पर चढ़ाओ

और सदा सुखी रहने का आशीर्वाद पाओ


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 


मेरे प्यार का दुश्मन


ये कान लगा कर सुनती है जब वो इनसे कुछ कहता है

ये उससे चिपकी रहती है ,वो इनसे चिपका रहता है

ये मेरी ओर देखती ना ,बस उससे नज़र मिलाती है

और एक हाथ से पकड़ उसे ,फिर दूजे से सहलाती है

वो थोड़ी सी हरकत करता तो उसके पास दौड़ती है

हद तो तब होती बिस्तर पर भी ,उसको नहीं छोड़ती है

वो नाजुक नाजुक हाथ कभी ,सहलाया करते थे हमको

बालों में फंसा नरम ऊँगली,बहलाया करते थे हमको

वो ऊँगली हाथ सलाई ले ,सर्दी में बुनती थी स्वेटर

सर दुखता था तो बाम लगा ,जो सहलाती थी मेरा सर

वो ऊँगली जिसमे  चमक रहा अब भी सगाई का है छल्ला

हो गयी आज बेगानी सी ,है छुड़ा लिया मुझसे पल्ला

ऐसी फंस गयी मोहब्बत में ,उस स्लिम बॉडी के चिकने की

करती रहती है चार्ज उसे ,और  मेरे पास न टिकने की

वो इन्हे संदेशे देता है ,घंटों तक इनको तकता है

अपने सीने में खुले आम ,इनकी तस्वीरें रखता है

उससे इनने दिल  लगा लिया ,और तोड़ दिया है मेरा दिल

मेरी जान का दुश्मन मोबाईल ,मेरे प्यार का दुश्मन मोबाईल


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

प्यार करो तुम 'स्टाइल 'से


इश्क़ नहीं आसान जरा भी ,

ये तो है एक आग का दरिया

इसमें डूबो ,तब जानोगे ,

तकलीफें होती है क्या क्या

मुश्किल बहुत पटाना लड़की ,

कई बेलने पड़ते पापड़

उसके  घर के और गलियों के ,

कई लगाने पड़ते चक्कर

अपनी चाह प्रकट करने का

कोई खोजना होगा रस्ता

,प्रेम प्रदर्शन करना होगा ,

लेकिन आहिस्ताआहिस्ता

उसके मन को मोहित करने ,

के उपाय अपनाने होंगे

प्रेम नीर से सींचों उपवन  

तब ही पुष्प सुहाने होंगे

कई जतन करने पड़ते है ,

यार मिला करता मुश्किल से

इसीलिये यदि प्यार करो तो ,

प्यार करो तुम स्टाइल से


लड़की होती है शरमीली ,

धीरे धीरे हाथ आएगी  

जल्दी जल्दी अगर करोगे ,

तो वो शायद भड़क जायेगी

जैसी तड़फ तुम्हारे दिल में ,

उतनी उसमे भी जगने दो

थोड़ी थोड़ी आग मिलन की

उसके दिल में भी लगने दो

उसका हृदय जीतना होगा ,

धीरे धीरे ,नहीं एकदम

मत बरसो घनघोर घटा से ,

बरसो तुम सावन से रिमझिम

अगर प्यार के मीठे फल का ,

सच्चा स्वाद तुम्हे है चखना

तो फिर उसके पक जाने तक ,

तुम्हे पड़ेगा धीरज रखना

समय लगेगा ,किन्तु लगेगी ,

तुम्हे चाहने ,सच्चे दिल से

इसीलिये यदि प्यार करो तो ,

प्यार करो तुम स्टाइल से


टाइम लगता ,आसानी से ,

नहीं कोई लड़की पटती है

उसके मन की झिझक हमेशा ,

धीरे धीरे ही घटती है

तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी ,

झटपट की मत करना गलती

तुम उतावले हो जाते हो ,

वो न पिघलती इतनी जल्दी

दे उपहार ,उसे बहलाओ ,

उसकी जुल्फों को सहलाओ

दिल में घुसो ,नयन द्वारे से ,

'आई लव यू 'उससे कहलाओ

इतनी मन में आग लगा दो ,

कि वह भी हो जाय दीवानी

मिलन प्रेमियों का हो जाए ,

हो सुखांत यह प्रेमकहानी

लाये दिवाली फिर जीवन में ,

प्रेम दीप ,अपनी झिलमिल से

अगर प्यार करना है तुमको ,

प्यार करो तुम स्टाइल से


मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

,

 पैसे की दास्तान    

कल  बज रहा था एक गाना 
बहुत पुराना 
ओ जाने वाले बाबू ,एक पैसा दे दे 
तेरी जेब रहे ना खाली 
तेरी रोज मने दीवाली 
तू  हरदम मौज उड़ाए
कभी न दुःख पाए -एक पैसा दे दे 
एक पैसे का नाम सुन 
मेरी आँखों के आगे लौट आया बचपन 
जब था एक पैसे के मोटे से सिक्के का चलन
माँ  के पैर दबाने पर
या दादी की पीठ खुजाने पर 
हमें कई बार पारितोषिक के रूप में मिलता था ,
उगते सूरज की ताम्र आभा लिए 
एक पैसे का सिक्का ,
जब हाथ में आता था 
बड़ा मन भाता था 
हमें अमीर बना देता था 
ककड़ी वाला लम्बा गुब्बारा दिला देता था 
या नारंगी वाली मीठी गोली खिला देता था 
हमारे बड़े ठाठ हो जाते थे 
हम कभी आग लगा हुआ चूरन ,
या कभी चने की चाट खाते थे 
बचपन का वह बड़ा हसीन दौर होता था 
खुद खरीद कर खाने का ,
मजा ही कुछ और होता था 
वो एक पैसे का ताम्बे का सिक्का ,
हमें थोड़ी देर के लिए रईस बना देता था 
और उस दिन उत्सव मना देता था 
जैसे जैसे मैं बड़ा होता गया ,
पैसा छोटा होता गया 
और एक दिन किसी ने उसकी आत्मा ही छीन ली 
उसका दिल कहीं खो गया 
और वो एक छेद वाला पैसा हो गया   
जैसे जैसे उसकी क्रयशक्ति क्षीण होती गयी 
उसकी काया जीर्ण होती गयी 
और एक दिन वो इतना घट गया 
कि  माँ की बिंदिया जितना ,
एक नया पैसा बन कर सिमट गया 
पता नहीं जेब के किस कोने में खिसक जाता था 
गिर भी जाता तो नज़र नहीं आता था 
न उसमे खनक थी ,न रौनक थी,
और उसकी क्रयशक्ति भी हो गया था खात्मा  
ऐसा लगता था की बीते दिनों की याद कर ,
आंसू बहाती हुई है कोई दुखी आत्मा  
उसके भाई बहन भी आये जो 
दो,पांच और दस पैसे के चमकीले सिक्के थे 
पर मंहगाई की हवा में सब उड़ गए ,
क्योंकि वो बड़े हलके थे 
फिर चवन्नी गयी ,अठन्नी गयी ,
रूपये का सिक्का नाम मात्र को अस्तित्व में है ,
पर गरीब दुखी और कंगाल  है
अगर जमीन पर पड़ा भी मिल जाए 
तो लोग झुक कर उठाने की मेहनत नहीं करते ,
इतना बदहाल है 
अब तो भिखारी भी उसे लेने से मना कर देता है ,
उसे पांच या दस रूपये चाहिये 
बस एक भगवान के मंदिर में कोई छोटा बड़ा नहीं होता 
आप जो जी में आये वो चढ़ाइये
पैसे की हालत ये हो गयी है कि 
उसका अस्तित्व लोप हो गया है ,बस नाम ही कायम है 
कई बार यह सोच कर होता बड़ा गम है 
लोग कितने ही अमीर लखपति करोड़पति बन ,
पैसेवाले तो कहलायेंगे 
पर आप अगर उनके घर जाएंगे
तो शायद ही एक पैसे का कोई सिक्का पाएंगे 
उनके बच्चों ने कदाचित ही ,एक पैसे के
 ताम्बे के सिक्के की देखी  होगी शकल  
क्योंकि अपने पुरखों को कौन पूजता है आजकल
बस उनका 'सरनेम 'अपने नाम के साथ लगाते है 
वैसे ही लोग पैसा तो नहीं रखते ,
पर पैसेवाले कहलाते है 
वाह रे पैसे 
तूने भी बुजुर्गों की तरह ,
दिन देख लिए है कैसे कैसे 

मदन मोहन बाहेती ' घोटू '
आदरणीय  माताजी की प्रथम पुण्यतिथि पर

आज तुम्हारा मृत्यु पर्व माँ ,जब तुमने जग छोड़ा था
चली गयी तुम,रोता और विलखता ये दिल तोडा था
तुम बिन कितना सूनापन सा व्याप्त हो गया जीवन में
जब भी याद तुम्हारी आती  ,आँखें भरती  अंसुवन में
तुम थी तो घर में रौनक थी ,हलचल थी,उजियारा था
हम पर ममता की छाया थी ,संबल और  सहारा था
तेरे आँचल में खुशियां थी ,हम सब हँसते गाते थे
तेरे ही निर्देश हमेशा , सही दिशा  दिखलाते थे  
तूने हरदम हमें संभाला ,सुख दुःख में ढाढ़स बाँधा
रहे संतुलित ,रखी सुरक्षित,परिवार की मर्यादा
माता ,तेरी आशीषें ही ,जीवन सफल बनायेंगी
दुर्गम पथ कोआलोकित कर राह हमें दिखलायेगी  
तेरे आदर्शों पर चल कर ,हम जीवन निर्वाह करें
हिलमिल कर परिवार हमेशा ,सुखी रहे,यह चाह करें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '