Saturday, March 15, 2014

जिंदगी की दास्तान

          जिंदगी की दास्तान

जाने किस किस दौर से ,गुजरी हमारी जिंदगी
ठोकरों से पाठ सीखा , और निखारी जिंदगी
मगर उनकी बेरुखी ने ,टुकड़े टुकड़े दिल किया ,
भर रही है सिसकियाँ,अब तक बिचारी जिंदगी
वो किसी दिन तो मिलेंगे,गले से लग जायेंगे,
 काट दी इस आस में ही ,हमने  सारी  जिंदगी
आँखों से तो ,आंसुओं की ,गंगा जमुनाये बही,
मगर फिर भी प्यास की ,अब तक है मारी जिंदगी
जिस्म पीला पड़ गया पर हाथ ना पीले हुए ,
कब तलक तनहा रहेगी ,ये कुंवारी  जिंदगी
स्वाद क्या है जिंदगी का समझ हम पाये नहीं ,
कभी मीठी ,चरपरी फिर ,कभी खारी जिंदगी
हमने तुझको सर नमाया ,पूजा की,की बंदगी,
पर खुदा तूने नहीं ,अब तक संवारी जिंदगी 
चैन से अपने लिए,दो पल भी जी पाते  नहीं ,
मारा मारी लगी ही रहती है सारी  जिंदगी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

बदलता मौसम

        बदलता मौसम

बदलते मौसम ने कितनी है बदल दी जिंदगी ,
       या उमर का ये असर है ,समझ ना पाते है हम
सर्दी के मौसममे जब भी सर्दी लगती है हमें ,
       लिपट कर के ,तेरी बाहों में समा जाते है हम
गर्मियों के दिनों में यूं बदलते हालात है,
        लिपटते है तुमसे जब हम ,झट झिटक देती हो तुम,
क्योंकि तुमको गर्मी लगती है हमारे प्यार मे ,
        चिपचिपे पन से बचाने,लिफ्ट ना देती हो  तुम
हम भी चुम्बक तुम भी चुम्बक पर 'अपोजिट पोल 'है
       हम में आकर्षण बहुत आता ,जब आती सर्दियाँ
गर्मियों में ,एक जैसे 'पोल'बन जाते है हम ,
        एक दूजे से छिटकते , वक़्त की  बेदर्दियां
जवानी जो सर्दियाँ है ,तो बुढ़ापा ग्रीष्म है,
         उमर के संग ,मौसमो सा ,बदलता  है आदमी  
सख्त से भी  सख्त दिल इंसान, बनता मोम है,
          प्यार से पुचकार भी लो,तो पिघलता  ,आदमी
लुभाती थी जो गरम साँसे तुम्हारे प्यार की ,
           लगती खर्राटे हमें है, आजकल ये हाल है
पहले तकिया था सिरहाने,फिर सिरहाना तुम बनी ,
            आजकल तकिया हमारे बीच की दीवार  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

होली के मूड में -दो कवितायें

    होली   के मूड  में -दो कवितायें
                        १
आयी होली ,आ लगा दूं,तेरे गालों पर गुलाल,
                       रंग गालों का गुलाबी और भी खिल जाएगा
मगर मुझ पर आहिस्ते से ही लगाना रंग तुम,
                       बढ़ी दाढ़ी ,हाथ नाज़ुक ,तुम्हारा छिल जाएगा
बात सुन ये, कहा उनने ,नज़र तिरछी डाल कर,
                       चुभाते ही रहते  दाढ़ी,तुम  हमारे   गाल  पर    
  खुरदरेपन की चुभन का ,मज़ा ही कुछ और है,
                       मर्द हो तुम ,मज़ा तुमको ये नहीं  मिल पायेगा 

                           २
अबकी होली में कुछ ऐसा ,प्यारा  हुआ प्रसंग ,सजन
यूं ही बावरे हम,ऊपर से ,हमने पी ली  भंग ,सजन
ऐसी ऐसी जगहों पर है,तुमने डाला   रंग ,  सजन
अपने रंगमे भिगो भिगो कर,खूब किया है तंग ,सजन
रंग गया ,रंग में तुम्हारे ,है मेरा हर  अंग  ,सजन
जी करता ,जीवन भर होली,खेलूँ तेरे  संग ,सजन 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'