Wednesday, February 19, 2014

सबके अपने अपने किस्से

    सबके अपने अपने किस्से

अपने गम ,अपनी पीडायें
कोई छुपाये,कोई बताये
किसका दिल है कितना टूटा
किस को है किस किस ने लूटा
खुशियां आयी ,किसके हिस्से
सबके अपने अपने किस्से
एक बुजुर्ग से लाला जी थे
रोज घूमने में थे मिलते 
कुछ दिन से वो नज़र न आये
एक दिन अकस्मात् टकराए
हमने हाल चाल जब पूछा
उनके मन का धीरज टूटा
बोले दिल की बात कहूँ मैं
घर से दिया निकाल बहू ने
बहुत चढ़ गयी थी वो सर पे
बोली निकलो मेरे  घर से
वरना फोन करू थाने  में
करी रेप की कोशिश तुमने
मुझ  संग करने को  मुंह काला
सीधे जेल जाओगे लाला
अगर छोड़ घर ना जाओगे
बहुत दुखी हो, पछताओगे
बेटा मौन,नहीं कुछ बोला
मैंने बाँधा  बिस्तर,झोला
मैं इस घर से चला गया हूँ
बुरी तरह पर छला गया हूँ
अपनों का संग छूट गया है
अब मेरा दिल टूट गया है
और छा गयी बदली गम की
मैंने देखा आँखे नम थी
पर अब करें शिकायत किस से
सब के अपने अपने किस्से
एक हमारी और परिचित
हंसती,गाती और प्रसन्नचित
लगता तो था,बहुत सुखी थी
नज़र एक दिन आयी दुखी थी
हम पूछ लिया कुछ , ऐसे
आज चाँद पर बादल कैसे
पहले तो वो कुछ सकुचाई
फिर मन की पीड़ा बतलाई
 तुमको बात बताऊँ सच्ची     
बेटे की कमाई है अच्छी
रखे हमारा सदा ख्याल वो
हर महीने पंद्रह  हज़ार वो
भेज दिया करता था हमको
पता लगी जब बात बहू को
बोली अब न चलेगा ऐसा
पकड़ाउंगी अब  मैं  पैसा
अपने हाथों ,सासूजी को
बोलो क्या मिल गया बहू को
मुझको था नीचा दिखलाना
था मुझ पर अहसान जताना
रूतबा बढे ,सास पर जिस से
सबके अपने अपने  किस्से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्रकृति और पर्यावरण

         प्रकृति और पर्यावरण

क्या तुमने आवाज सुनी है कभी हवा की ,
                     आप कभी क्या तूफ़ानो से भी खेलें है
तपती धूप भरी गर्मी की दोपहरी में,
                      कभी थपेड़े तुमने क्या लू के झेले है
क्या उद्वेलित सागर की ऊंची लहरों में ,
                     कभी आपकी नैया ,डगमग कर डोली है 
अन्ध तमसमय निशा,अकेले वीराने में ,
                      दिलकी धड़कन क्या डर कर धक् धक् बोली है   
क्या तुमने त्रासदी बाढ़ वाली झेली है,
                       आसपास की नदियां जब उफनाई होगी
क्या अग्नी की लपटों का प्रकोप देखा है ,
                        उसकी झुलस कभी तुम तक भी आयी होगी
ये प्रकृति जो तुम्हे प्यार से पाल रही है ,
                       देती अन्न ,नीर,वायु तुमको   दुलरा के
यदि ना  जो तुम उसका पूरा ख्याल रखोगे ,
                         तो वो तुम्हे ख़तम कर देगी ,प्रलय मचा के
इसीलिए ये आवश्यक है तुमको,हमको,
                          पर्यावरण  बचाना है  ,कर दूर प्रदूषण
वृक्ष बचाओ,हवा और जल शुद्ध रखो तुम,
                           वरना दूभर हो जाएगा,जीना जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

मैं अनुशासित

        मैं अनुशासित

           मैं अनुशासित ,पत्नी शासित
          पत्नी पीड़ित ,क्यों परिभाषित
पत्नी प्रेम,पल्लवित पोषित
पत्नी शोषित ,क्यों उदघोषित 
           तन ,मन और जीवन आनंदित
           मैं अनुशासित,पत्नी शासित
नवग्रह रहते सभी शांत है
गृह की गृहणी अगर शांत है
            यह आग्रह है,गृह शांति  हित
             मैं अनुशासित ,पत्नी  शासित
खुश है अगर आपकी बेगम
घर में आता नहीं कोई गम
                सदा रहेगी ,खुशियां संचित
                मैं अनुशासित ,पत्नी शासित
मौज मनाओगे जीवन भर
तुम पत्नी के चमचे बन कर
             होठों से लग,होंगे हर्षित
              मैं अनुशासित  ,पत्नी शासित
उनकी ना में ना ,हाँ में हाँ
मिले जहाँ की सारी खुशियां
                सुन्दर भोजन,प्रेम प्रदर्शित
                 मैं   अनुशासित ,पत्नी शासित
है सच्चा सामिप्य ,समर्पण
सुख पाओगे ,हर पल,हर क्षण
                 पत्नी को कर जीवन अर्पित
                 मै अनुशासित  ,पत्नी शासित
भले दहाडो ,तुम दफ्तर में
पर भीगी बिल्ली बन घर में
                रहने में ही ,है पति का  हित
                 मै अनुशासित,पत्नी शासित
यदि पत्नी को दोगे  आदर
खुशियों से भर जाएगा घर
               प्रेम सुरभिं से ,सदा सुगन्धित
               मै अनुशासित ,पत्नी शासित

मदन मोहन बाहेती'घोटू'