Wednesday, June 28, 2017

एक दिन तुम ना रहोगे 


कब तलक यूं ही घुटोगे और आंसूं बन बहोगे 
एक दिन मै ना रहूँगा ,एक दिन तुम ना रहोगे 

हर इमारत की बुलंदी ,चार दिन की चांदनी है 
जहाँ पर रौनक कभी थी ,आज स्मारक बनी है 
पुराने महलों ,किलों से ,खंडहर बन कर ढ़होगे 
एक दिन मै ना रहूँगा,एक दिन तुम ना रहोगे 

तुमने तिनका तिनका चुन कर ,घोंसला था जो बनाया 
तिनका तिनका हो गया वो ,चार दिन बस  काम आया 
जाएंगे उड़ सब परिंदे ,  तुम बिलखते ही रहोगे 
एक दिन मै ना रहूंगा ,एक दिन तुम ना रहोगे 

वक़्त किसके पास है,कर कोई रहता व्यस्त हरदम 
सभी पीड़ित,व्यथित ,चिंतित,कोई ज्यादा तो कोई कम 
नहीं कोई भी सुनेगा ,वेदना किससे  कहोगे 
एक दिन मै ना रहूँगा,एक दिन तुम ना रहोगे 

बहुत गर्वित हो रहे हो,कर कमाई ढेर सारी 
लाख तुम करलो जतन पर जाओगे बस हाथ खाली 
बन के एक तस्वीर,कुछ दिन,दीवारों पर ,टंग रहोगे 
एक दिन मै ना रहूँगा,एक दिन तुम ना रहोगे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खोट 

खोट थोड़ी हवाओं में है ,खोट कुछ मौसम में है 
खोट थोड़ी तुम में भी है, खोट थोड़ी हम में है 

दूसरों की कमियां ही हम सदा रहते  आंकते 
फटे अपने  गरेबाँ में ,कभी भी ना झांकते 
नाच ना आता ,बताते ,खोट कुछ आंगन में है 
खोट थोड़ी तुम में हैं और खोट थोड़ी हम में है 

खोट आयी दूध में तो ,फट गया ,छेना बना 
विचारों में खोट आयी ,हो गया मन अनमना 
घटा घिर यदि ना बरसती ,खोट क्या सावन में है 
खोट थोड़ी तुम में है और खोट थोड़ी हम में है 

जिंदगी में कुछ गलत हो और बुरे हो हाल गर 
दोष मढ़ते कुंडली पर ,और ग्रहों की चाल पर 
जो दहेज़ लाइ नहीं तो ,खोट क्या दुल्हन में है 
खोट थोड़ी तुम में है और खोट थोड़ी हम में है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पियक्कड़ 


नहीं अप्सरा   बूढ़ी  होती ,   हूरें  रहे  जवान 
वृद्ध देवता कभी न होते ,करे सोमरस पान 
दवा और दारू से होते ,सारे मर्ज  सही है 
कभी कभी दो घूँट चढालो,इसमें हर्ज नहीं है 
भूलो दुनिया भर के सब गम और चिंताएं सारी 
डूब जाओ मस्ती में शामे हो गुलजार तुम्हारी 
कोई इसको मदिरा कहता ,कोई कहता हाला 
कोई घर के अंदर पीता  ,कोई जा मधुशाला 
चाहे देशी हो कि विदेशी ,मज़ा सभी में आता 
हम अपने पैसे की पीते ,कोई का क्या जाता  
हम दारू के सच्चे प्रेमी ,कोई से न डरे है 
फिर क्यों हमें पियक्कड़ कह कर सब बदनाम करे है 

घोटू