Thursday, December 14, 2017

उत्तेजना 

उत्तेजना ,
शरीर की वो अवस्था है 
जिसमे शरीर के ज्वालामुखी का ठंडा पड़ा खून ,
लावे सा पिघलता है 
तन मन में होने लगता है कम्पन 
कितनी ही बार और कितने तरीकों से ,
जीवन में आते है ऐसे क्षण 
जैसे जब गरीब की सहनशीलता ,
जब अपनी सीमाएं पार कर जाती है 
तो उसके मन में ,
विद्रोह की उत्तेजना भर जाती है 
इसका कारण होता है उसकी मजबूरी और बेबसी 
समाज की उपेक्षा,व्यंग और हँसी 
आदमी खुद को और अपनी किस्मत को कोसता है 
फिर कैसे भी बदला लेने की सोचता है 
ऐसेलोगों की उत्तेजित भीड़ के स्वर 
देते है सत्ताएं बदल  
या फिर कोई ऊंचा पद पाकर 
और अपनी प्रतिष्ठा पर इतराकर 
जब आदमी में भर जाता है अहंकार 
तो थोड़ी सी अवहेलना होने पर ,
उत्तेजना पूर्ण हो जाता है उसका व्यवहार 
अपने अहम की संतुष्टी न होने पर ,
वह क्रोध से भर जाता है 
उसका विवेक मर जाता है 
वह अपमानित महसूस कर अंटशंट बकता है 
और उसमे भर जाता है आक्रोश 
और इसका बदला लेकर ही उसे मिलता है संतोष 
इतिहास गवाह है 
ऐसी उत्तेजना करते अफसर,नेता और शहंशाह है 
तीसरा छोटी छोटी बातों पर बिना मतलब 
कोई बिगड़ जाता है जब तब 
गुस्से में नाराज हो वार्तालाप करने लगता है 
अनर्गल प्रलाप करने लगता है 
लड़ने को आतुर हो जाता है 
अपनी औकात  से बाहर निकल जाता है 
ऐसी तुनकमिजाजी भी होती है एक बीमारी 
कम कूवत ,गुस्सा भारी 
और उत्तेजना का चौथा रूप 
होता है बड़ा प्यारा और अनूप 
जब यौवन की चपलता और रूप की सुगढ़ता,
देती है प्यार का आव्हान 
तो आदमी की शिराओं में ,
उमड़ता है भावनाओं का तूफ़ान 
जो तोड़ देता है सारे बंधन 
और उत्तेजित कर देता है तन मन 
उत्तेजना के ये क्षण 
होते है विलक्षण 
आदमी भाव विभोर हो जाता है 
एक दूसरे में खो जाता है 
ये उत्तेजना बड़ी मतवाली होती है 
बड़ी सुखकर और प्यारी होती है 

मदन मोहन बहती]घोटू]

Tuesday, December 12, 2017

हुस्न की मार से बचना 

नजाकत से,नफासत से ,अदाओं से करे घायल 
और उनकी मुस्कराहट भी ,बड़ी ही कातिलाना है 
बड़ी मासूम सी सूरत ,बड़ी चंचल  निगाहें है 
काम इन हुस्न वालों का,कयामत सब पे ढाना है 
जरूरी ये नहीं होता ,कि हर एक फूल कोमल हो,
टहनियों पर गुलाबों की ,लगा करते है कांटे भी 
हथेली फूल सी नाजुक,सम्भल कर इनको सहलाना ,
ख़फ़ा जो हो गए ,इनसे,लगा करते है चांटे  भी 
बड़ी ही खूबसूरत सी ,उँगलियाँ उनकी कोमल है ,
नजाकत देख कर इनकी ,आप क्या सोच सकते है 
सिरे पर उँगलियों के जो, दिए नाख़ून कुदरत ने,
कभी हथियार बन ये आपका मुंह नोच सकते है 
गुलाबी होठ उनके देख कर मत चूमने बढ़ना,
ये गुस्से में फड़क कर के ,तुम्हे है डाट भी सकते 
छिपे है दांत तीखे  इन गुलाबी पखुड़ियों पीछे ,
हिफ़ाजत अपनी करने को ,तुम्हे है काट भी सकते 
रंगे हो नेल पोलिश से  ,निखारे रूप नारी का ,
प्रेम में बावले होकर ,ये नख है  क्षत किया करते 
पराकाष्ठा हो गुस्से की ,तो ये हथियार बन जाते ,
बड़ी आसानी से दुश्मन ,को ये आहत किया करते 
ये कटते ,खून ना आता ,तभी  नाखून कहलाते,
बड़ी राहत ये देते है ,बदन को जब खुजाते  है 
हमारे जिस्म पर एक बाल है और एक नाखून है ,
कोई चाहे या ना चाहे,दिन ब दिन बढ़ते जाते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
ले गयी दिल है उसका 
मिल गयी उसे अनुष्का
सेन्चुरी मारी लव  ने  
बना दी जोड़ी रब ने 
रनो सी खुशियां बरसे 
जिंदगी उनकी हरषे 
दुआ है ये हम सबकी 
मेहर हो उन पर रब की
 प्यार में डूबे रह कर 
रहे ये खुश  जीवन भर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू 
मैं गधे का गधा ही रहा 

प्रियतमे तुम बनी ,जब से अर्धांगिनी ,
      मैं हुआ आधा ,तुम चौगुनी बन  गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी बन  गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं दिये  की तरह टिमटिमाता रहा,
     तुम शीतल ,चटक चांदनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन  गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
किशोर अवस्था का अधकचरा कस्बाई इश्क़ 

बीत जाती है जब बचपन की उम्र सुहानी 
और थोड़ी दूर होती है जवानी 
ये उमर का वो दौर होता है 
जब आदमी किशोर होता है 
जवानी की आहट ,आपकी  मसें भिगोने लगती है
और  आपकी  बातें प्रायवेट होने लगती है  
जब आप फ़िल्मी हीरो की तरह ,
खुद को संवारने लगते है 
और आईने के सामने खड़े होकर ,
खुद को निहारने लगते है 
जब आप अपनी लुक्स के प्रति ,
थोड़े जागरूक  होकर बोलने लगते है 
और  अपनी बाहुओं को दबा,
अपनी मसल्स टटोलने लगते है 
जब आप अपने होठों को गोल करके ,
बजाने लगते व्हिसिल है 
हर सुंदरी पर ,आ जाता आपका दिल है 
जी हाँ ,हम सबकी जिंदगी 
उमर के इस दौर से गुजरी है 
आज भी जब कभी कभी ,
वो बीती यादें होती हरी है 
तो याद आ जाते है वो दिन ,
जब हम नौसिखिये आशिक़ हुआ करते थे 
गाँव की हर सुन्दर लड़की पर मरते थे 
उन दिनों हमारा इश्क़ कस्बाई होता था 
अलग अलग तरीकों से ट्राई होता था 
क्योंकि तब  न  व्हाट्सएप था ,
न वाई फाई होता था 
न फेसबुक न ई  मेल होता था 
बस आँखों ही आँखों में सारा खेल होता था 
जिसमे कोई पास और कोई फ़ैल होता था 
कोई लड़का ,किसी लड़की को ,
टकटकी लगा कर देखता तो उसे ताड़ना कहते थे 
और दोनों आंख्यों में से एक आँख को,
किसी को देख कर ,क्षणिक रूप से बंद कर खोलने को 
आँख मारना कहते थे 
कोई चीज ,प्रत्यक्ष रूप से किसी पर फेंकी नहीं जाती ,
फिर भी लोग फेंकते हुए नज़र आते है 
ऐसे लोग ,दिलफेंक लोग कहलाते है 
तो  लड़की को पटाने के लिए ,
पहले हम लड़की को ताड़ते थे 
फिर आँख मारते थे 
फिर सामने वाली का रिएक्शन देखते थे 
फिर उस पर दिल फेंकते थे 
ये सब क्रियाये मौन रूप से होती थी 
प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ती थी 
पर उन दिनों दोस्ती ऐसे ही बढ़ती थी 
 हमारा पार्ट टाइम शगल होता था ,
येन केन प्रकारेण लड़की को पटाना 
और बात नहीं बने तो छटपटाना 
जब किसी की किसी से आँख लड़ती थी 
तो थोड़ी बात आगे बढ़ती थी 
और हम यार दोस्तों में डींगे मारते थे 
'आज वो हमको देख कर मुस्कराई थी'
शेखी बघारते थे 
अपने छोटे छोटे अचीवमेंट,
 दोस्तों से शेयर करते थे 
और माशूका का नाम लेकर आहें भरते थे 
हमारा एक मित्र जिसका बाप मंदिर का था पुजारी
और आरती के बाद ,
जब आती थी प्रसाद बांटने की बारी  
तो वो अपनी मनपसंद लड़की को ,
प्रसाद देने के बहाने उसका हाथ दबा देता था ,
थोड़ा ज्यादा प्रसाद पकड़ा देता था 
और इस तरह बात आगे बढ़ा देता था 
एक दोस्त लाला का लड़का था ,
जो सौदा लेने आई लड़की को ,
एक दो टॉफी मुफ्त में पकड़ा ,
उसके हाथ सहला लेता था 
और इस तरह अपना मन बहला लेता था 
कितने ही क्षणभंगुर अफेयर ,
कितनो के ही साथ हुए और टूटे 
इस चक्कर में कितने ही यार दोस्त रूठे 
और कई बार तो ऐसी नौबत भी आई 
कि अपनी ही प्रेमिका की हमने बिदाई करवाई 
आज की जनरेशन को ,
पुराने जमाने के ये तरीके,
 बड़े ओल्ड फैशन के लगते होंगे ,
पर उन दिनों ये ही चलते थे 
क्योंकि हम माँ बाप और जमाने से बहुत डरते थे 
पर हम सब ने कभी न कभी इन्हे ट्राय किया  है
और सच ,बहुत एन्जॉय किया है 
कच्ची उमर के उस अधकचरे कस्बाई इश्क़ की,
वो बाते आज भी जब याद आती है 
हमें अपनी उन बचकानी हरकतों पर ,
बहुत हंसी आती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Friday, December 8, 2017

MY DEAR BELOVED

Dear beloved,

How are you today and your family, I am a citizen of Sudan but currently staying in Burkina Faso. My name is Miss Mariam Dim Deng,25years old originated from Sudan. I got your E-mail address/profile through my internet search from your country when I was searching for a good and trust worthy person who will be my friend and I believe that it is better we get to know each other better and trust each other because I believe any good relationship will only last if it is built on truth and real love.My father Dr. Dominic Dim Deng was the former Minister for SPLA Affair sand Special Adviser to President Salva Kiir of South Sudan for Decentralization.

My father Dr. Dominic Dim Deng and my mother including other top Military officers and top government officials had been on board when the plane crashed on Friday May 02, 2008. You can read more about the crash through the below site:http://news.bbc.co.uk/2/hi/africa/7380412.stm) After the burial of my father, my uncles conspired and sold my father's properties to a Chinese Expatriate and live nothing for me. On a faithful morning, I opened my fathers briefcase and found out the documents which he have deposited huge amount of money in one bank in Burkina Faso with my name as the next of kin. I traveled to Burkina Faso to withdraw the money so that I can start a better life and take care of myself.

On my arrival, the Branch manager of the Bank whom I met in person told me that my fathers instruction to the bank was the money is release to me only when I am married or present a trustee who will help me and invest the money overseas. I have chosen to contact you after my prayers and I believe that you will not betray my trust. But rather take me as your own sister. Though you may wonder why I am so soon revealing myself to you without knowing you, well, I will say that my mind convinced me that you are the true person to help me.

More so, I will like to disclose much to you if you can help me to relocate to your country because my uncle has threatened to assassinate me. The amount is $10.4 Million with some kilo of gold and I have confirmed from the finance security bank in Burkina Faso. You will also help me to place the money in a more profitable business venture in your Country. However, you will help by recommending a nice University in your country so that I can complete my studies.


It is my intention to compensate you with 30% of the total money for your services and the balance shall be my capital in your establishment. As soon as I receive your interest in helping me, I will put things into action immediately. In the light of the above,shall appreciate an urgent message indicating your ability and willingness to handle this transaction sincerely.
PLEASE REPLY ME TO {missmariamdimdeng_71@yahoo.com}  

Sincerely yours,
Miss Mariam Dim Deng

Thursday, December 7, 2017

श्रीमती उषा जी,और उपस्तिथ सभी संगीत प्रेमियों और नन्हे कलाकारों ,
सर्व प्रथम मैं उषाजी को धन्यवाद देना चाहता हूँ कि इस सुरीले कार्यक्रम में 
हमें बुला कर यह सन्मान दिया 
संगीत सुरों का संगम है -सुर याने कि देवता -देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए 
आपको साधना करनी होती है वैसे ही संगीत का  ज्ञान पाने के लिए आपको साधना 
करनी पड़ती है और यही साधना  स्वर्गिक आनंद की अनुभूति कराती है 
गीतकार गीत लिखता है संगीतकार उस गीत में जीवन भर देता है -संगीत के स्वर गीतों को 
साँसे प्रदान करते है ,अमृत भरते है और वो गीत अमर हो जाता है  -लाखो होठों पर 
चढ़ जाता है -यह होता है संगीत का जादू 
संगीत सीखना एक तपस्या है -हम ताड़ी सोचे की महीने दो महीने में या साल दो साल में 
हम संगीत के मर्मज्ञ हो जाएंगे तो ये हमारी गलत फहमी है -बच्चों को यदि शुरू से ही सुरों का ज्ञान आ जाए 
तो जिंदगी लय मय हो जाती है ,
हम ऑरेंज काउंटी वाले खुशनसीब है कि उषाजी जैसी कुशल ज्ञानी संगीत शिक्षिका 
यहाँ मौजूद है और हमारे बच्चे इनसे ये ज्ञान प्राप्त कर सकते है क्योंकि 
अगर सुरों का ज्ञान आ गया ,मानव की पहचान आगयी 
इस जीवन की खींचतान में ,सुर आये तो तान आगयी 
किन्तु लग्न और सच्चे मन से ,करो साधना है आवश्यक 
समय लगेगा ,पर रियाज ही तुम्हे बनाती अच्छा गायक 
हर बेटी कोयल सी कूके ,हर बेटा मुकेश सा गाये 
सरस्वती की अगर कृपा हो ,अच्छा शिक्षक तुम्हे सिखाये 
तो आप सब ,खास कर मेरे नन्हे संगीत सीखने वाले कलाकार ,बधाई के पात्र है 
इतना सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए -आपका बहुत बहुत धन्यवाद 
जब उषाजी का निमंत्रण मिला तो समझ में नहीं आ रहा था की क्या बोलूं 
तभी एक कल्पना आयी जिसने एक कविता का रूप ले लिया है ,मैं 
आपको सुनाना चाहूंगा -आशा है अच्छी लगेगी 
गृहस्थी का संगीत 

जीवन के पल पल में साँसों की हलचल में ,
संगीत का होता वास है 
संगीत की सरगम ,सारेगम भुला देती है ,
और जीवन में  भरती मिठास है 
शादी के बाद जब ,
आपको मिल जाता है अपना मनमीत 
तो आपके जीवन में ,
गूंजने लगता है ,गृहस्थी का संगीत 
मेरी ये मान्यता है 
कि सुरो के संगीत और गृहस्थी के संगीत में ,
काफी समानता है 
ससुराल में ,पति के अलावा ,
होते दो प्राणी खास है 
और वो ,एक आपके ससुर ,
और दूसरी आपकी सास है 
देखिये ,गृहस्थी के संगीत में भी सुर आ गया 
ससुराल का मुख्य सुर,ससुर आ गया 
यदि आपके सुर मिल जाते है ,
ससुर के सुर के संग 
तो समझलो,आपने जीत ली आधी जंग 
और जहाँ तक है सास की बात 
तो यहाँ भी संगीत जैसे होते है हालात 
संगीत के स्वर 'सा रे ग  प ध नी स '
'सा 'से शुरू होकर 'स'पर होते है समाप्त 
याने' सा स 'के बीच ही सारे सुर है व्याप्त 
इसमें जेठ,जिठानी भुवा देवर और ननद 
जैसे सभी स्वर समाहित है 
और इन सबको साधने में ही आपका हित है 
 आपको इन सबके साथ सामंजस्य बिठाना होता है 
उनकी ताल पर गाना होता है 
इन सभी के साथ यदि मिलाली अपनी तान 
तो ससुराली जीवन में ,कभी नहीं होगी खींचतान 
सुर मय हो जाएगा आपका जीवन ,
 सुहाने दिन होंगे,सुरमयी शाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 24, 2017

सर्व सुलभ तू मुझे बनाना 

हे प्रभु यदि दो पुनर्जन्म और मुझे पड़े धरती पर आना 
सर्वसुलभ और बहुउपयोगी ,मिलनसार तू मुझे बनाना 
प्यार करे सब ,हर मौसम में ,रहूँ जमीन से ,जुड़ा हमेशा 
अगर बनाओ यदि जो सब्जी  ,मुझे बनाना आलू   जैसा 
बेंगन हो या मेथी,पालक ,फली मटर की ,या फिर गोभी 
रंग ना देखूं ,स्वाद बढ़ाऊं मिले साथ में ,मुझसे जो भी 
समा समोसे में मन भाऊ ,भरा रहूँ मै ,वड़ा पाव  में 
मुझे परांठे में भर कर के ,लोग नाश्ता ,करें चाव  में 
कभी चाट आलू टिक्की में ,या डोसे का बनू मसाला 
या फिर गरम पकोड़े में तल,निखरे मेरा ,स्वाद निराला 
'क्रिस्पी 'कभी बनू 'वेफर'सा ,या फिर 'फ्रेंच फ़्राय'सा प्यारा 
हे भगवान ,बनाना मुझको ,आलू जैसा सर्व दुलारा 
या फिर जनजन का मन प्रिय बन शक्ति का मै बनू खजाना 
प्रभु जो मुझको अन्न बनाओ तो मुझको तुम चना बनाना 
ताकत मिले ,भिगो खाने में ,खाओ भून कर ,भूख मिटाओ 
छोले चांवल ,चना भठूरे ,लेकर स्वाद,,प्रेम से खाओ 
दाल बना ,खाओ रोटी संग ,या तल कर नमकीन बनाओ 
और पीसो तो ,बेसन बन कर ,कई ढंग से स्वाद बढ़ाओ 
कभी पकोड़ी जैसा तल लो ,कभी भुजिया ,सेव बनालो 
कभी बना ,बेसन के लड्डू या बूंदी परशाद  चढ़ा लो 
बेसन की प्यारी सी बरफी ,या फिर मोतीचूर  सुहाना 
या हल्दी और तैल मिलाकर ,उबटन बना ,रूप निखराना 
मीठा या नमकीन सभी कुछ ,बनकर सबका मन ललचाना 
सर्वसुलभ और बहु उपयोगी ,हे भगवन ,तू मुझे बनाना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 21, 2017

पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 

राजवश का कोई राजा ,पब्लिक का सर्वन्ट हो गया  
कल तक था जो मिटटी गारा ,आज वही सीमेन्ट हो गया  
सत्ता सिमट रही अपनों में,देखो कैसा ट्रेन्ड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
जबसे मंदिर मंदिर जाकर ,उसने अपना शीश झुकाया 
जबसे उसने अपने मस्तक पर चन्दन का तिलक लगाया 
तबसे कम बकवास कर रहा ,वो थोड़ा डिसेन्ट  हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
उसकी जयजयकार कर रहा ,है उसके चमचों का जत्था 
मम्मी  खुश है , यही तसल्ली, पास रही  पुश्तैनी  सत्ता 
अब तक उसका राज टेम्पररी था अब परमानेन्ट हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
राजनीति में ,कुर्सी की हसरत ,क्या क्या करवा देती है 
पिज़ा ,पास्ता खाने वाले को, खिचड़ी  खिलवा देती है 
एक पुदीने का पत्ता था, अब वो पिपरमेंट  हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
प्रौढ़ खून में आयी जवानी ,अब कोतवाल बन गए सैया 
नाव डुबोने वाला मांझी ,ही अब देखो बना खिवैया 
अध्यादेश फाड़ने वाला ,कितना ओबीडियन्ट हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
बांह चढाने का अफलातूनी अंदाज बदल जाएगा 
आज चढ़ा है कुर्सी पर तो कल घोड़ी भी चढ़ जाएगा 
हाथ मिला ,सेल्फी खिचवाता ,अब वो सबका फ्रेन्ड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 
अब जितने बेरोजगार है ,सबको जॉब दिला देगा वो 
जितना करजा है किसान पर ,सबको माफ़ करा देगा वो 
वादे कर सबको भरमाना ,राजनीति का ट्रेंड हो गया 
पप्पू प्रेसिडेंट हो गया 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, November 13, 2017

अच्छा लगे कहाना अंकल 

हुए रिटायर ,बाल न सर पर ,दुःख मन में हर पल रहता है 
इसीलिये  अच्छा लगता जब ,कोई मुझे अंकल  कहता है 
अंकल के इस  सम्बोधन  में ,बोध  बड़प्पन का होता है ,
क्योंकि इसमें सखा भाव  संग ,श्रद्धा भाव  छुपा  रहता  है 
कल की सोच सोच कर अक्सर ,ये मन बेकल सा हो जाता,
अंकल के कल में यादों का ,सरिता जल, कल कल बहता है 
कभी जवानी जोर मारती ,कभी  बुढ़ापा  टांग  खींचता ,
प्रौढ़ावस्था  में  जीवन की  ,चलता  ये दंगल  रहता  है 
भाई साहब कहे जाने से ,अच्छा है अंकल कहलाना ,
और बूढा कहलाने से तो  ,निश्चित  यह  बेहतर  रहता है 
दिन दिन है हम बढे हो रहे,उमर हुई दादा ,नाना की,
चन्द्रबदनी  बाबा ना कहती,मन में यह संबल रहता है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Monday, November 6, 2017


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madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com>
Nov 1 (5 days ago)

to baheti.mm.t., baheti.mm.tara2, baheti.mm.tara4 
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
जाल में जुल्फ के ,ऐसे उलझे नयन ,
        मैं उलझता,उलझता उलझता गया 
ऐसा बाँधा मुझे,रूप के जाल में ,
        होके खुश बावरा ,मैं तो फंसता  गया 
उबली सी सब्जी सा ,मैं तो फीका रहा ,
          और प्रिये दाल तुम,माखनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
             गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'


भाव नहीं देती है 

ऐसा है स्वभाव ,करती सबसे है मोलभाव ,
सब्जी हो या साड़ी सब ,सस्ती लेकर आती है 
मन में है उसके न दुराव न छुपाव कहीं,
सज के संवर  ,हाव भाव  दिखलाती  है 
रीझा पति पास जाय ,भाव नहीं देती है ,
मन में लगाव पर बहुत भाव खाती है  
रूप के गरूर में सरूर इतना आ जाता ,
पिया के जिया के भाव ,समझ नहीं पाती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नींद क्यों नहीं आती 

कभी चिंता पढाई की ,थी जो नींदें उड़ाती थी 
फंसे जब प्यार चक्कर में ,हमे ना नींद आती थी 
हुई शादी तो बीबीजी,हमें  अक्सर  जगाती थी 
करा बिजनेस तो चिंतायें ,हमे रातों सताती थी 
फ़िक्र बच्चो की शादी की,कभी परिवार का झंझट 
रात भर सो न पाते बस ,बदलते रहते हम करवट 
किन्तु अब इस बुढ़ापे में,नहीं जब कोई चिंतायें 
मगर फिर भी ,न जाने क्यों ,मुई ये नींद न आये 
न लेना कुछ भी ऊधो से ,न देना कुछ भी माधो का 
ठीक से सो नहीं पाते ,चैन गायब है रातों का 
जरा सी होती है आहट ,उचट ये नींद जाती है 
बदलते रहते हम करवट,बड़ा हमको सताती है 
एक दिन मिल गयी निंदिया ,तो हमने पूछा उससे यों 
बुढ़ापे में ,हमारे साथ,करती बदसलूकी क्यों 
लाख कोशिश हम करते ,बुलाते ,तुम न आती हो 
बड़ी हो बेरहम ,संगदिल,मेरे दिल को दुखाती हो
कहा ये निंदिया ने हंस कर,जवां थे तुम ,मैं आती थी 
भगा देते थे तुम मुझको,मैं यूं ही लौट जाती थी 
नहीं तब मेरी जरूरत थी ,तो था व्यवहार भी बदला 
है अब जरूरत ,मैं ना आकर ,ले रही तुमसे हूँ बदला 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 

आलस तन में बसा ,रहे ना अब फुर्तीले 
खाना वर्जित हुए ,सभी पकवान रसीले 
मीठा खाना मना,तले पर पाबंदी  है 
भूख न लगती,पाचनशक्ति भी मंदी है
खा दवाई की रोज गोलियां ,हम जीते है 
चाट पकोड़ी मना ,चाय फीकी पीते है 
दांत गिर गए ,चबा ठीक से ना पाते हम 
पुच्ची भर में बदल गया हो जैसे चुंबन 
यूं ही मन समझाने वाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली उमर आ गयी 
'आर्थराइटिस 'है घुटनो में रहती जकड़न 
थोड़ी सी मेहनत से बढ़ती दिल की धड़कन 
'डाइबिटीज 'के मारे सब अंग खफा हो गए 
मिलन और अवगुंठन के दिन ,दफा हो गए 
वो उस करवट हम इस करवट ,सो लेते है 
आई लव यू आई लव यू ,कह खुश हो लेते है 
कभी यहां पीड़ा है ,कभी वहां दुखता है 
फिर भी दिल का दीवानापन ,कब रुकता है 
अब तो बस ,सहलानेवाली  ,उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर  आगयी 
 कहने,सुनने की क्षमता भी क्षीण हो चली 
अंत साफ़ दिखता पर आँखें धुंधली धुंधली 
छूटी मौज मस्तियाँ ,मोह माया ना छूटी 
देते रहते खुद को यूं ही तसल्ली ,झूठी 
कोसों दूर बुढ़ापा ,हम अब भी जवान है 
मन ही मन ,अंदर से रहते परेशान है 
बात बात पर अब हमको गुस्सा आता है 
बीती यादों में मन अक्सर खो जाता है 
यूं ही मन बहलानेवाली उमर आ गयी 
अब तो खिचड़ी खानेवाली ,उमर आ गयी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
दिल मगर दिल ही तो है 

हरएक सीने में धड़कता ,है छुपा बैठा कहीं,
चाह पूरी जब न होती,मसोसना भी पड़ता है 
कभी अनजाने ही जब ,जुड़ जाता ये है किसी से,
नहीं चाहते हुए उसको ,तोडना भी पड़ता  है 
कभी चोंट खाकर जब ,पीता है वो खूं के आंसू,
उसकी मासूमियत को ,कोसना भी पड़ता है 
कभी देख कर किसी को,जब मचल जाता है,
तो किसी के साथ उसको ,जोड़ना भी पड़ता है 
बात दिल की है ,कोई दिलदार कोई दिलपसंद,
तो कोई है दिलरुबाँ ,दिलचस्प है और दिलनशीं 
कोई दिलवर है कोई दिलसाज कोई दिलफरेब ,
दिल दीवाने को सुहाती है किसी की दिलकशी 
कोई होता संगदिल तो कोई होता दरियादिल ,
जब किसी पे आता तो देता ये मुश्किल ही तो है 
इसकी आशिक़ मिजाजी का ओर है ना छोर है,
कुछ भी हो,कैसा भी हो,ये दिल मगर दिल ही तो है 


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

थोड़े बड़े भी बन जाइये 

सवेरे सवेरे चार यार ,मिलो,घूमो फिरो,
नींद खुले औरों की ना जोर से चिल्लाइये 
भंडारा परसाद खूब खाओ लेके स्वाद मगर ,
डब्बे भर लाद लाद ,घर न ले जाइये 
औरतें और बच्चे सब ,घूम रहे आसपास ,
अपनी जुबान को शालीन तुम  बनाइये 
सर की सफेदी का लिहाज करोऔर डरो
बूढ़े हो गए हो यार,बड़े भी बन जाइये 

घोटू 

Wednesday, November 1, 2017

तुम रहो हमेशा सावधान 

वह कलकल करती हुई नदी 
तट  की  मर्यादा बीच   बंधी 
उसकी सुन्दरता ,अतुलनीय 
वह सुन्दर,सबको बहुत प्रिय 
मैं था सरिता को सराह रहा 
एक वृक्ष किनारे ,कराह रहा 
बोला ,तुम देख रहे कल कल 
पर मैंने देखा है बीता  कल 
जब इसमें आता है उफान 
मर्यादाओं का छोड़  भान 
जब उग्र रूप है यह धरती 
सब कुछ है तहस नहस करती  
जैसे शीतल और मंद पवन 
मोहा करती है सबका  मन 
पर जब तूफ़ान बन जाती है 
तो कहर गजब का ढाती है 
है मौन  शांत  धरती माता 
पर जब उसमे  कम्पन आता 
तब  आ जाती ऐसी तबाही 
सब कुछ हो जाता धराशायी 
सुंदर,सज धज कर मुस्काती 
पत्नी सबके ही मन भाती 
जीवन में खुशियां भरती है 
पर उग्र रूप जब धरती है 
तो फिर वह कुपित केकैयी बन 
जिद मनवाती ,जा कोप भवन 
पति असहाय हो दशरथ सा 
लाचार बहुत और बेबस सा 
माने पत्नी की जिद हरेक 
बनवास बने ,राज्याभिषेक 
ये नदी,हवा,धरती,नारी 
जिद पर आती ,पड़ती भारी 
कब बिगड़ जाय ,ना रहे ज्ञान 
तुम रहो हमेशा  सावधान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, October 28, 2017

वो ऊपर वाला 

आप हम करते अच्छे बुरे जो करम 
कोई ना देखता,मन में रहता भरम 
है मगर देखता ,ऊपरवाला  सभी,
उसकी नजरें सदा ,है सभी पर रही 
उसको बोलो खुदा,गॉड या ईश्वर ,
सबका मालिक है वो,हाँ वही बस वही 
तुमने किसी को सताया,हुई एंट्री 
खाना भूखे को खिलाया,हुई एंट्री 
सब तुम्हारे भले और बुरे कर्म का ,
है रखती हिसाब उसकी खाता बही 
उसको बोलो खुदा,गॉड या ईश्वर ,
सबका मालिक है वो,हाँ वही बस वही 
जर्रे जर्रे में उसकी हुकूमत कायम 
 जैसे नचवाता वो,नाचा करते है हम 
कोने कोने में दुनिया के मौजूद है ,
वो यहाँ है वहां है ,कहाँ वो नहीं 
उसको बोलो खुदा ,गॉड या ईश्वर,
सबका मालिक है वो ,हाँ वही बस वही 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
लड़कियां 

लड़कियां,लड़कियां,लड़कियां लड़कियां 
ऐसा लगता है फैशन की हो पुतलियां 
रूप है मदभरा ,सबमे जादू भरा 
स्वर्ग की ये तो लगती कोई अप्सरा 
और दिखाने को अपने बदन की झलक ,
अपने वस्त्रों  में रखती ,खुली खिड़कियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 
नाज़ नखरे दिखा कर लुभाती हमें 
अपने जलवे दिखाकर ,रिझाती हमें 
आगे पीछे अगर इनके हम डोलते ,
प्यार मांगे,तो देती ,हमें  झिड़कियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 
सज संवर रूप अपना सुहाना बना 
ये नचाती है हमको ,दीवाना बना 
हम जरा छेड़ भी दें तो चप्पल पड़े,
माफ़ होती है इनकी सभी गलतियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 

घोटू 
दो सवैये 
१ 
लुगाई 

बेटी पराई ,मुस्काई ,मनभायी ऐसी 
नैनों के द्वारे आई ,दिल में समाई है 
रूप छलकाई ,शरमाई ,मन लुभाई अरु,
नखरे दिखाई आग तन में लगाईं है 
प्यार दरशाई ले कमाई की पाई पाई ,
पति को पटाई ऐसो जादू सीख आई है 
नज़रें झुकाई ,करे नाहीं जामे छुपी हाँइ ,
सबसे सवाई होत , घर में लुगाई है 
२ 
बेचारा आदमी 

एक बिचारो प्यारो,मुश्किल को मारो ,हारो,
हार वरमाला को ,गले जबसे  डारो है 
बाहर जो शेर ,हुयो ढेर ,फेर बीबी के ,
पालतू बंदरिया सो ,नाचे पा इशारो है 
लॉलीपॉप लालच को मारो वो बिचारो ऐसो ,
दौड़ दौड़ काम करे ,घरभर को सारो है 
मूछन को ताव गयो ,मारयो बेभाव गयो ,
ऐसो सात फेरन ने ,फेरा में डारो  है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, October 24, 2017

नारी ,तुझमे ऐसा क्या है 

नारी तुझमे ऐसा क्या है 
जिसकी दीवानी दुनिया है 

क्या वह तेरी कोमलता है ,
या फिर तेरा कमनीय बदन 
या फिर तेरी सुंदरता है ,
या मांसल और गदराया तन 
या फिर ये नयन कटीले  है,
या चाल हिरणियों  वाली है 
रेखाएं वक्र,बदन की है ,
या फिर होठों को लाली है 
या अमृत कलश सजे तन पर ,
या मीठी बोली कोयल सी 
या लहराते कुन्तल तेरे ,
मन में करते कुछ हलचल सी 
पर शायद ये सब नहीं सिरफ ,
ये तो बस एक दिखावा है 
तेरी माँ बनने की क्षमता 
ने  देवी तुझे बनाया है 
ईश्वर ने कोख तुझे दी है ,
तुझमे प्रजनन की शक्ति है 
नवजीवन का इस दुनिया में ,
संचार तू ही कर सकती है 
तू माँ है,तुझमे ममता है ,
लालन ,पालन और पोषण है 
कोमल तन से ज्यादा कोमल ,
होता हर नारी का मन है 
तू अन्नपूर्णा है देवी ,
गृहणी,घर की संचालक है 
तू लक्ष्मी तू ही सरस्वती ,
तू दुर्गा ,शक्तिदायक है 
संगम है रूप गुणों का तू,
तू गंगा है तू यमुना है 
तू जीवनदात्री  देवी है ,
जिससे चलती ये दुनिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
परेशानियां -पति पत्नी की 

हर पत्नी से पति परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
फिर भी एकदूजे पर आश्रित ,
एक दूजे बिन ना चले काम 
पत्नी कहती ये ऐसे है 
मत पूछो ये कि कैसे है 
घर में ही सदा घुसे रहते,
कुवे के मेंढ़क जैसे  है 
रत्ती भर काम नहीं करते ,
बस ऑर्डर देते रहते है 
मैं एक जान,सौ करू काम,
ये मुझे छेड़ते रहते है 
मैं इनसे कहूँ चलो पिक्चर ,
ये सो जाते है खूँटी तान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 
पति कहता है पत्नी ऐसी 
कर दी मेरी ऐसी तैसी 
खुद को ऐश्वर्या समझे है 
और फूल रही टुनटुन जैसी 
है खीर बहुत ये टेढ़ी सी,
दिखने में सीधी  दिखती है 
तितली जैसी उड़ती फिरती ,
घर पर मुश्किल से टिकती है 
है चीज बहुत ये बातूनी,
कैंची जैसी चलती जुबान 
हर पत्नी से पति परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
पति होते लापरवाह बड़े ,
अपना कुछ ख्याल नहीं रखते 
पैसे  कपड़े, खाने पीने की 
साजसँभाल नहीं रखते 
अपनी हर गलती का जिम्मा ,
सौंपा करते है पत्नी पर 
पति कुछ बोले एक कान सुने ,
और दूजे से कर दे बाहर 
चीजे रख जाते भूल स्वयं,
घरभर को करते परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 
पत्नी खुद पर खर्चा करती ,
 बाकी सब पर कंजूसी है 
शक्की मिजाज इतनी होती ,
पति पर करती जासूसी है 
पति सेवक सास ससुर का है,
करता जो पत्नी की मरजी 
पत्नी को अपने सास ससुर ,
से हरदम रहती एलर्जी 
पत्नी को देवर ,ननद चुभे,
पति सालीजी पर मेहरबान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कमियां 

शादी के बाद 
बेटी और दामाद 
पहुंचे पहली बार ,ससुराल 
बाप ने पूछा बेटी खुश है ना,
कैसा है तेरा हाल 
बेटी ने शरमा कर कहा ,
पापा,मैं बहुत खुश हूँ '
आपके दामाद ,
मेरा बड़ा ख्याल रखते है 
बड़े 'रिस्पॉन्सीबल 'है 
मेरी पूरी साज संभाल रखते है 
बस एक ही शिकायत है ,
ये मुझे छेड़ते रहते है 
और हमेशा मुझमे कमियां ढूंढते रहते है 
पिताजी बोले बेटा ,
ये तो बड़ी प्रसन्नता की बात है 
अपने दिए हुए संस्कारों पर हमें नाज़ है 
वरना मोबाईल में डूबी हुई ,
आज की जनरेशन 
बस इनसे करवा लो फैशन 
पर गृहस्थी चलाने में होती है अनाड़ी 
इतनी कमिया होती है कि ,
मुश्किल से खिसकती है गृहस्थी की गाडी 
शादी के बाद हर पति,
 अपनी पत्नी में ,अपनी माँ की तरह,
 कुशल गृहणी देखना चाहता है 
और जब उसकी उम्मीद के विपरीत ,
निकलती उसकी ब्याहता है 
उसमे इतनी कमियां होती है अक्सर 
जो स्पष्ट आती है नज़र 
तो बात बात में टोका टाकी से ,
उनका अहम टकराने लगता है 
चार दिनों की चांदनी के बाद,
अँधियारा छाने लगता है 
मुझे ख़ुशी है कि तेरी माँ ने ,
तुझे ट्रेंड कर दिया है इतना 
कि तुझमे इतनी कम कमियां है कि ,
दामादजी को पड़ती है ढूंढना 
पत्नी अगर कुशल गृहणी हो तो,
 तो बड़े मजे की गुजरती है  
 और जिंदगी की गाडी ,
बड़े आनंद से आगे बढ़ती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
घर का खाना 

चाट से अच्छी तो बीबी की डाट है ,
और मीठी ,मिठाई से ,तक़रार है 
पेट इनसे हमारा बिगड़ता नहीं ,
बाद में मिलता जी भर हमें प्यार है 
ना शुगर और न बढ़ना क्लोस्ट्रोल का 
है असर ऐसा बीबी के कंट्रोल का 
जेब भी अपनी ढीली है होती नहीं,
खर्च होता नहीं कोई बेकार है 
जिद नहीं करती बीबी कि होटल चलें 
क्योंकि वेज़ नॉनवेज संग जाते तले 
सब्जी दो सौ की ,रोटी मिले तीस की ,
यूं न पैसे लुटाते समझदार है 
चाट ठेले पर खाने का मन ना करे 
धुल मिटटी से सब है सने से पड़े 
गोलगप्पे का पानी ,भरोसा नहीं ,
कितना 'इंफेक्शियस 'और बेकार है 
इसलिए छोड़ होटल के सब चोंचले 
घर में बीबी के हाथों के फुलके भले 
मिलती तृप्ति है सच्ची इसी खाने से,
क्योंकि खाने में घर के बसा प्यार है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

Friday, October 20, 2017

क्या बात है उस घरवाली की 

रंगीन दशहरे मेले सी ,
       जो चमक दमक दीवाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की, 
       क्या बात है उस घरवाली की 
नवरात्री के गरबे जैसी ,
       ज्योतिर्मय दीपक जो घर का 
जिसमे फूलों की खुशबू है,
          जिसमे गहनों की सुंदरता 
जो रंगोली सी सजीधजी ,
          मीठी ,मिठाई से ज्यादा है 
जो फूलझड़ी ,रंग बरसाती,
          जो लगती कभी पटाखा है 
जो चकरी सी खाती चक्कर,
         आतिशबाजी ,खुशिहाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की ,
          क्या बात है उस घरवाली की 
जो करवाचौथ वरत करती ,
          भूखी प्यासी रहकर ,दिनभर 
जो मांगे पति की दीर्घ उमर ,
             और उसे मानती परमेश्वर 
जो शरदपूर्णिमा का चंदा ,
            माथे बिंदिया सी सजी हुई 
सिन्दूरी मांग भरी घर की ,
             हाथों की मेंहदी ,रची हुई 
है  अन्नकूट सी मिलीजुली,
         वह  खनक चूड़ियों वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 
वह जो गुलाल है होली की,
            उड़ता गुबार जो रंग का है 
जीवनभर जो रखता मस्त हमें,
             उसमे वो नशा भंग का है 
मावे की प्यार भरी गुझिया ,
           वह दहीबड़े सी स्वाद  भरी 
रस डूबी गरम जलेबी सी ,
            रसगुल्ले सी ,आल्हाद भरी 
मुंह लगी फिलम के गीतों सी,
             और ताली है कव्वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
ऐसा टॉफी का लालच मुझे दे दिया ,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
तुम इशारों पर अपने नचाती रही,
    आज तक भी थमा ना है वो सिलसिला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी 

छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
              हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते 
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
             सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के 
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
            लगी कहने  पटाखा मैं  नहीं ,तुम हो डीयर 
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
           काटते रहते हो,चकरी  की तरह,तुम चक्कर  
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
           ज़रा सी छूती  मेरे प्यार की जो चिनगारी 
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
            हुई  हालत हमारी ,वो ही  पटाखे वाली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, October 14, 2017

दिवाली मन गयी 
१ 
कल गया घूमने को मैं तो बाज़ार था 
कोना कोना वहां लगता गुलजार था 
हर तरफ रौशनी ,जगमगाहट दिखी 
नाज़नीनों के मुख,मुस्कराहट दिखी 
चूड़ियां ,रंगबिरंगी ,खनकती  दिखी 
कोई बरफी ,जलेबी,इमरती   दिखी 
फूलझड़ियां दिखी और पटाखे दिखे 
सब ही त्योंहार ,खुशियां,मनाते दिखे 
खुशबुओं के महकते नज़ारे  दिखे 
आँखों आँखों में होते इशारे   दिखे 
कोई हमको मिली,और बात बन गयी 
यार,अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
२ 
कल गया पार्क में यार मैं घूमने 
देख करके नज़ारा, लगा झूमने 
जर्रा जर्रा महक से सरोबार था 
यूं लगा ,खुशबूओं का वो बाज़ार था
 थे खिले फूल और कलियाँ भी कई
रंगबिरंगी दिखी ,तितलियाँ भी कई 
कहीं चम्पा ,कहीं पर चमेली दिखी 
बेल जूही की ,झाड़ी पर फैली दिखी 
थे कहीं पर गुलाबों के गुच्छे खिले 
और भ्रमर उनका रसपान करते मिले 
एक गुलाबी कली ,बस मेरे मन गयी 
यार अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
३ 
 मूड छुट्टी का था,बैठ आराम से 
देखता था मैं टी वी ,बड़े ध्यान से 
आयी आवाज बीबी की,'सुनिए जरा 
कुछ भी लाये ना,सूना रहा दशहरा 
व्रत रखा चौथ का,दिन भर भूखी रही 
तुम जियो सौ बरस,कामना थी यही 
और बदले में तुमने मुझे क्या दिया 
घर की करने सफाई में उलझा दिया 
आज तेरस है धन की ,मुहूरत भी है 
सेट के सोने की,मुझको जरुरत भी है 
अब न छोडूंगी ,जिद पे थी वो ठन गयी 
यार अपनी तो ऐसे दिवाली मन गयी 

घोटू  



मेहमान 

उमर के एक अंतराल के बाद 
 एक कोख के जाये ,
और पले बढे जो एक साथ,
उन भाई बहनो के रिश्ते भी ,
इस तरह बदल जाते है 
कि जब वो कभी ,
 एक दूसरे के घर जाते है ,
तो मेहमान कहलाते है 
जिंदगी में  परिभाषाएं ,
इस तरह बदलती है 
अपनी ही जायी बेटी भी ,
शादी के बाद ,
हमे मेहमान लगती है 

घोटू 
बंटवारा 

जब हम छोटे होते है 
और घर में कोई चीज लाई जाती है 
तो सभी भाई बहनो में ,
बराबर बाँट कर खाई जाती है 
कोई झटपट का लेता है 
कोई बाद मे,सबको टुंगा टुंगा,
खाकर के  मजे लेता है 
बस इस तरह ,हँसते खेलते ,
जब हम बड़े होते है 
तब फिर होना शुरू झगड़े होते है  
एक दूसरे के छोटे हुए,
उतरे कपडे पहनने वाले ,अक्सर 
उतर आते है इतने निम्न स्तर पर 
कि समान 'डी एन ए 'के होते हुए भी ,
अपने अपने स्वार्थ में सिमट जाते है 
और बचपन में लाइ हुई चीजों की तरह ,
आपस में बंट जाते है 

घोटू 
रिश्ते 

जीवन के आरम्भ में ,
किसी के बेटे होते है आप 
और बढ़ते समय के साथ,
बन जाते है किसी के पति ,
और फिर किसी के बाप 
उमर जब बढ़ती है और ज्यादा 
तो आप बन जाते है ,
किसीके ससुर और किसी के दादा 
और इस तरह,
तरह तरह के रिश्ते निभाते हुए,
आप इतने थक जाते है 
कि तस्वीर बन कर ,
दीवार पर लटक कर ,
अपना अंतिम रिश्ता निभाते है 
 
 घोटू                             

Thursday, October 12, 2017

मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी 
अपने पीतम का ' पी 'तुमने ऐसा पिया ,
     रह गया 'तम' मैं, तुम रौशनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम'मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी           

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, October 11, 2017

अहमियत आपकी क्या है 

हमारी जिंदगानी में ,अहमियत आपकी क्या है 
खुदा की ये नियामत है,मोहब्बत आपकी क्या है 
कभी चंदा सी चमकीली ,कभी फूलों सी मुस्काती ,
आपसे मिल समझ आया कि दौलत प्यार की क्या है 
मेरे जीवन का हर मौसम,भरा है प्यार से हरदम,
बनाती लोहे को कुंदन,ये संगत  आपकी क्या  है 
अपनी तारीफ़ सुन कर के ,आपका मुस्कराना ये,
बिना बोले ,बता देता ,कि नीयत  आपकी क्या है 
सुहाना रूप मतवाला ,मुझे पागल बना डाला ,
गुलाबी ओठों को चूमूँ ,इजाजत आपकी क्या है 
कभी आँचल हटा देती,कभी बिजली गिरा देती,
इशारे बतला देते है कि हालत  आपकी  क्या है 
हो देवी तुम मोहब्बत की ,या फिर हो हूर जन्नत की,
बतादो हमको चुपके से, असलियत आपकी क्या है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मुक्ती 

मैं जनम पत्रिकायें   दिखाता रहा ,
और ग्रहों की दशाएं बदलती रही 
पर दशा मेरी कुछ भी तो बदली नहीं ,
जिंदगी चलती ,वैसे ही चलती रही 
कोई ज्योतिष कहे ,दोष मंगल का है,
कोई पंडित कहे ,साढ़ेसाती चढ़ी 
कोई बोले चंदरमा ,तेरा नीच का,
उसपे राहु की दृष्टी है टेढ़ी पड़ी 
तो किसी ने कहा ,कालसर्प दोष है,
ठीक कर देंगे हम ,पूजा करवाइये 
कोई बोलै तेरा बुध कमजोर है ,
रोज पीपल पे जल जाके चढ़वाईये 
कोई बोलै कि लकड़ी का ले कोयला ,
बहते जल में बहा दो,हो जितना बजन 
दो लिटर तैल में ,देख अपनी शकल ,
दान छाया करो,मुश्किलें होगी कम 
मैं शुरू में  ग्रहों से था घबरा गया ,
पंडितों  था  इतना  डराया  मुझे 
मंहगे मंहगे नगों की अंगूठी दिला ,
सभी ने मन मुताबिक़ नचाया मुझे 
और होनी जो होना लिखा भाग्य में ,
वो समय पर सदाअपने घटता गया 
होता अच्छा जो कुछ तो उसे मुर्ख मैं ,
सब अंगूठी बदौलत ,समझता रहा 
रोज पूजा ,हवन और करम कांड  में ,
व्यर्थ दौलत मैं अपनी लुटाता रहा 
जब अकल आई तो ,अपनी नादानी पे,
खुद पे गुस्सा बहुत ,मुझको आता रहा 
उँगलियों की अंगूठी ,सभी फेंक दी ,
और करमकांड ,पूजा भी छोड़े सभी 
भ्रांतियों से हुआ ,मुक्त मानस मेरा ,
हाथ दूरी से पंडित से  जोड़े तभी 
और तबसे बहुत,हल्का महसूस मैं ,
कर रहा हूँ और सोता हूँ मैं चैन से 
रोक सकता न कोई विधि का लिखा,
जो भी घटता है,लेता उसे प्रेम से 
जबसे ज्योतिष और पंडित का चक्कर हटा ,
मन की शंकाये सारी निकलती गयी 
दूर मन के मेरे ,भ्रम सभी हो गए ,
जिंदगी जैसे चलनी थी,चलती रही 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कज़िन मैं लैला की 

मजनू शहर के सारे 
लाइन मुझ पर  मारे 
मौका मिले है जब भी ,
नज़रें बचा के  ताड़े 
सारे के सारे बिचारे ,करे है ताकाझांकी 
मैं नार बड़ी अलबेली,कज़िन मैं लैला की 
मेरा रूप है सबसे निराला 
मेरे ओठों पर तिल काला 
मेरे जलवे और अदा ने ,
सबके दिल पर जादू डाला 
सारे  प्रोड्यूसर,फाइनेंसर ,
फिरते मेरे पीछे ,आगे 
सारे हीरो और एक्टर ,
मुझसे भीख प्यार की मांगे 
बैठे सब है आस लगाए 
कैसे  ये लड़की पट जाए 
मैं सबसे शोख हसीना हूँ फ़िल्मी दुनिया की 
हूँ  नार बड़ी अलबेली,कज़िन मैं  लैला की 
मुझको प्यार करे बच्चनजी 
मुझको धर्मेंदर जी घूरे 
बूढ़े होते सारे हीरो,
चाहे करना अरमां पूरे 
पीछे अभिषेक जी भागे,
संग संग सन्नी देवल दौड़े 
अरे पप्पा जी तो पप्पा, 
बेटे भी पीछा ना छोड़े 
सल्लू मियां और शाहरुख़ 
हसरत भर देखे मेरा मुख 
मैं सबको नाच नचाऊं ,बचा न कोई बाकी 
हूँ नार बड़ी अलबेली ,कज़िन  मैं लैला की 
मुझसे ऐश्वर्या है जलती 
कंगना राणावत भी जलती 
फिल्मो की सारी  हीरोइन ,
मेरे आगे हाथ है मलती 
कटरीना हो चाहे करीना ,
मुझ से रखती है सब द्वेष 
मेरा डंका देख प्रियंका ,
डर कर भागी ,गयी विदेश 
मुझको चाहत भरी नज़र से 
देखे सब विलेन,डर डर  के 
मैं डालूं न किसी को घास ,कसम है अम्मा की 
हूँ नार बड़ी अलबेली ,कज़िन मैं लैला की 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, October 8, 2017

मजबूरी 

नींद तो अब लगने का ,नाम नहीं लेती है 
आशिक़ी दूर भगने का,नाम नहीं लेती है 
जी तो करता है ,सेकना अलाव में तन को,
लकड़ियां पर सुलगने का नाम नहीं लेती है 

घोटू 
बदलाव-शादी के बाद 

शिकायत तुमको रहती है,
बदलता जा रहा हूँ मैं ,
रहा हूँ अब न पहले सा,
बना कर तुमसे नाता हूँ 
मैं बदला तो हूँ ,पर डीयर,
हुआ हूँ ,दिन बदिन ,बेहतर 
मैं क्या था ,अब हुआ हूँ क्या ,
हक़ीक़त  ये   बताता  हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
मैं फूला हूँ पूरी जैसा ,
मैं आटा था,छुआ तुमने ,
बना अब मैं परांठा हूँ 
मैं तो था दाल ,पर तुमने,
गला,पीसा,तला मुझको ,
दही में प्यार के डूबा ,
बड़ा अब मैं कहाता हूँ 
मैं खाली गोलगप्पे सा ,
हो खट्टा मीठा पानी तुम,
तुम मेरे साथ होती तब ,
सभी के मन को भाता हूँ 
फटा सा दूध था मैं पर ,
प्यार की चासनी डूबा ,
चौगुना स्वाद भर लाया ,
मैं रसगुल्ला  कहाता हूँ 
भले ही टेढ़ामेढ़ा सा ,
दिया था जिस्म कुदरत ने ,
तुम्हारे प्यार का रस पी,
जलेबी बन लुभाता हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
हुआ है हाल  ये मेरा ,
तुम तबियत से उड़ा देती,
मैं मेहनत से कमाता हूँ 
तुम्हारे मन मुताबिक जब ,
नहीं कुछ काम कर पाता ,
सुधरने की प्रक्रिया में ,
हमेशा जाता डाटा हूँ 
भले कलतक मैं था पत्थर,
बन गया मोम हूँ अब पर,
मिले जब प्यार की गरमी ,
पिघल मैं झट से जाता हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं एक पेड़ हूँ 

मैं सुदृढ़ सा पेड़ ,जड़े है मेरी गहरी 
इसीलिए तूफानों में भी रहती ठहरी 
भले हवा का वेग ,हिला दे मेरी डालें 
पके अधपके ,पत्ते तोड़ ,उड़ादे सारे  
पर मैं ये सब,झेला करता ,हँसते हँसते 
कभी हवा से ,मैंने नहीं बिगाड़े  रिश्ते 
क्योंकि हवा से ही मेरी गरिमा है कायम 
मैं न बदलता,लाख बदलते रहते मौसम 
तेज सूर्य का,जब मुझसे,करता टकराया 
धुप प्रचंड भले कितनी,बन जाती छाया 
छोटे बड़े सभी पत्ते ,संग संग लहराते 
मेरी डालों पर विहंग  सब  नीड बनाते 
मुझे बहुतआनंदित करता,उनका कलरव 
थके पथिक ,छाया में करते,शांति अनुभव 
जड़ से लेकर ,पान पान से ,मेरा रिश्ता 
सेवा भाव,दोस्ती देती ,मुझे अडिगता 

मदन मोहन बाहेती;घोटू'

भगवान का कम्पनसेशन 

भगवान ,
जब तूने रचे नर और नारी 
औरतों के गालों को बालविहीन चिकना बनाया,
और मर्दों के गालों पर उगा दी दाढ़ी 
पर जो एक्स्ट्रा बाल दिए मर्दों के गालों पर 
तो क्षतिपूर्ति के लिए   ,
विशेष कृपा बरसा दी ,नारी के बालों पर 
उन्हें दे दिए ,घने,रेशमी और काले कुंतल 
जिनके जाल में फंस कर ,
आदमी मुश्किल से ही सकता है निकल 
आपने देखा होगा कि बढ़ती हुई उम्र के साथ 
आदमी के सर के बाल उड़ जाते है 
वो कभी आगे से गंजे ,
या कभी पीछे से खल्वाट नज़र आते है 
पर ईश्वर की अनुकम्पा से औरतों के सर पर ,
बालों की छटा ,हरदम रहती छाई है 
क्या आपको कभी कोई औरत ,
आदमी की तरह गंजी नज़र आयी है 
भगवान ,तू बड़ा ग्रेट है 
तेरी नज़र में सब बराबर है,
तू किसी में न रखता भेद है 
अगर तेरी रचना में,
 कहीं कुछ असमानता आयी है 
तो तूने किसी न किसी तरह,
किया 'कम्पनसेट'है 

घोटू 
नकलची औरतें 

औरतें,
अपने अपने पति के ,
हृदय की स्वामिनी होती है 
फिर भी उनकी अनुगामिनी होती है 
उनके पदचिन्हो पर चलती है 
हमेशा उनका अनुसरण करती है 
जब कि आदमी ,
जो कि उन पर रीझा करता है 
उनकी तारीफों के पुल बाँध ,
उनपर मरता है 
पर कभी भी उनके,
 परिधानों की नकल नहीं करता है 
और न ही उनकी तरह ,
पहनता है कोई गहने 
क्या आपने किसी पुरुष को देखा है 
हीरे का नेकलेस या लटकते इयररिंग ,
और  हाथों में कंगन पहने 
हिंदुस्थानी औरतों का लिबास 
जो होता है साड़ी या चोली ख़ास 
क्या किसी पुरुष ने अपनाया है 
क्या कोई मर्द,
 पेटीकोट पहने नज़र आया है 
जबकि औरतें ,
पहन कर मर्दों वाले परिधान 
दिखाती है अपनी शान 
आदमी ने जीन्स पहनी,
औरतें भी पहनने लग गयी 
मर्दों जैसा ही टीशर्ट ,
जिस पर जाने क्या क्या लिखा रहता है ,
पहन कर टहलने लग गयी 
और आदमी ,
जब उस पर क्या लिखा है ,
पढ़ने  को नज़र डालता  है 
तो औरतें शिकायत करती है ,
कि वो उन पर लाइन मारता है 
आदमी का कुरता और पायजामा ,
औरतों ने पूरी तरह हथिया लिया है 
चूड़ीदार पायजामे को 'लेगिंग',
और ढीले पायजामे को'प्लाज़ो'बना लिया है 
मर्दों की हर चीज पर ,
नकलची औरतें दिखाती अपना हक़ है 
और ये एक हक़ीक़त है ,इसमें क्या शक है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, September 27, 2017

विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

Tuesday, September 26, 2017

विराट कोहली 

क्रिकेट का जो धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना 
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले 
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
तिल 

दिखने में अदना होता पर ,बहुत बड़ा इसका दिल होता 
यूं तो तेल ,तिलों से निकले,बिना तेल का भी  तिल होता 
इसकी लघुता मत देखो ,यह ,होता बड़ा असरकारक है 
ख़ास  जगह पर तिल शरीर में ,हो तो वो लाता 'गुडलक'है 
गालों पर तिल ,जालिम होता ,होठों पर तिल ,कातिल होता 
किस्मतवाला वो होता है ,जिसके हाथों में तिल  होता 
तिल मस्तक पर ,बुद्धिदायक,अच्छी बुद्धि,सद्विचार दे
तिल कलाई में ,देता कंगना,तिल गर्दन में,कंठहार दे 
तिल 'ब्यूटीस्पॉट'कहाता ,सबके मन को प्यारा लगता 
चन्द्रमुखी के चेहरे का भी,दूना रूप निखारा करता 
तिल में भी तो रंगभेद है ,कुछ सफ़ेद तिल ,कुछ तिल काले 
कर्मकांड और यज्ञ हवन में , काले तिल ही  जाते  डाले 
तिल सफ़ेद,मोती के जैसा ,कभी रेवड़ी पर है चढ़ता 
स्वाद बढ़ाता है चिक्की का,और गजक को खस्ता करता 
विरह पीर में तिलतिल जल कर ,दिन गुजारना खेल नहीं है 
बात बना, कुछ कर ना पाते ,उन तिल में कुछ तेल  नहीं है  
छोटी सी हो बात लोग कुछ ,इतनी उसे हवा देते है 
अपनी बातों के तिलिस्म से,तिल का  ताड़ बना देते है 
तिल भर होती जगह नहीं पर ,फिर भी लोग समा सकते है 
तिलतिल कर ,हम आगे बढ़ कर,अपनी मंजिल पा सकते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
विरह विरह बहु अंतरा 

शादी के बाद 
जब आती है अपने मम्मी पापा की याद 
और बीबियां मइके चली जाती है 
पर सच,दिल को बड़ा तड़फाती है 
रह रह कर आता है याद 
वो मधुर मिलन का स्वाद 
जो वो हमे चखा जाती है 
रातों की नींद उड़ा जाती है 
उचटा उचटा रहता है मन 
याद आतें है मधुर मिलन के वो क्षण 
दिन भर जी रहता है अनमना 
और जीवन में पहली बार ,
हमें सताती है विरह की वेदना 
फिर नौकरी के चक्कर में 
कईबार आदमी नहीं रह पाता है घर में 
और क्योंकि बच्चों के स्कूल चलते रहते है 
पत्नी घर पर रहती है और हम ,
मजबूरी वश बाहर रहते है 
बीबी बच्चों को अकेला छोड़ते है 
और सटरडे ,सन्डे की छुट्टी में ,
सीधे घर दौड़ते है 
मजबूरी ,हमे वीकएंड हसबैंड देती है बना 
और जीवन में दूसरी बार ,
हमे झेलनी पड़ती है विरह की वेदना 
और फिर जब कोई बच्चा बड़ा हो जाता है 
पढ़लिख अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है 
विदेश में नौकरी कर ,अच्छा कमाता है 
हमारा सीना गर्व से फूल जाता है 
तो मन में भर कर बड़ा उत्साह 
हम कर देतें है उसका विवाह 
वो बसा लेते है विदेश में अपना घरबार 
और मिलने आजाते है कभी कभार 
पर जब हो जाते है बहू के पैर  भारी 
तब उसका ख्याल रखने
 और करने जजकी की तैयारी 
बहूबेटे को अम्मा की याद आती है 
और हमारी बीबीजी ,विदेश बुलवाई जाती है 
तब हमे जीवन में तीसरी बार 
विरह की पीड़ा का होता है साक्षात्कार 
क्योंकि हम होते है कई परिस्तिथियों पर निर्भर 
दोनों एकसाथ नहीं छोड़ सकते है घर 
कभी नौकरी में छुट्टी नहीं मिलती है 
कभी दुसरे बच्चों की पढाई चलती है 
रिटायर हो तो भी ढेर सारी 
आदमी पर होती है जिम्मेदारी 
तो भले ही मन पर लगती है ठेस 
पत्नी को अकेले भेजना पड़ता है विदेश 
बढ़ती उमर में उसकी इतनी आदत पड़ जाती है 
कि हरपल ,हरक्षण वो याद आती है 
वो उधर पूरा करती है अपना दादी बनने का चाव 
इधर हम सहते है विरह की पीड़ा के घाव 
फोन पर बात कर मन को बहला लेते है 
अपने दुखते दिल को सहला लेते है 
जवानी की विरह पीड़ाएँ तो जैसे तैसे सहली जाती है 
पर बुढ़ापे में बीबी से जुदाई,बड़ा जुलम ढाती है 
क्योंकि इस उमर में आदमी ,
पत्नी पर इतना निर्भर हो जाता है 
कि उसके बिना जिंदगी जीना दुर्भर हो जाता है 
एक दुसरे की कमी हमेशा खलती रहती है 
पर जीवन की गाडी,ऐसे ही चलती रहती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में 

बड़ी ही रंगत थी तेरे हुस्न में ,तुम्हे देखा लाल चेहरा हो गया 
बड़ा तीखापन था तेरे हुस्न में,दिल में मेरे घाव गहरा हो गया 
बड़ी ही गर्मी थी तेरे हुस्न में,देख मन में आग सी कुछ लग गयी 
बड़ा आकर्षण था तेरे हुस्न में ,चाह मन में मिलन की थी जग गयी 
बड़ी मादकता थी तेरे हुस्न में ,देख कर के नशा हम पर छा गया 
बड़ी ही दिलकश अदाएं थी तेरी,देख करके,दिल था तुझ पर आ गया 
बड़ी चंचलता थी तेरे हुस्न में ,देख कर मन डोलने सा लग गया 
बावरा सा मन पपीहा बन गया ,पीयू पीयू बोलने सा लग गया 
बड़ा भोलापन था तेरे हुस्न में ,प्यार के दो बोल बोले,पट गयी 
बड़ी शीतलता थी तेरे हुस्न में ,मिल के तुझसे,मन में ठंडक ,पड़ गयी 
ताजगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर के ताजगी सी आ गयी 
सादगी से भरा तेरा हुस्न था,देख कर दीवानगी सी छा गयी 
देख ये सब इतने हम पागल हुए,हमने तुझ संग सात फेरे ले लिए 
लगा हमको ,चाँद हमने पा लिया,क्या पता था ,संग अँधेरे ले लिए 
क्या बने शौहर कि नौकर बन गए,इशारों पर है तुम्हारे नाचते 
क्या पता था ये तुम्हारी चाल थी,हमारा दिल रिझाने के वास्ते 
लुभाया था गर्मी ने जिस जिस्म की,आजकल है वो जलाने लग गयी 
तेरी कोयल सी कुहुक गायब हुई,ताने दे दे ,अब सताने लग गयी 
नज़र तीखी कटारी जो थी चुभी,बन गयी है धार अब तलवार की 
पति बन, हम पर विपत्ति आ गयी,ऐसी तैसी हो गयी सब प्यार की 
पड़ी वरमाला ,बनी जंजीर अब ,पालतू से पशु बन कर रह गए 
ऐसा बाँधा तुमने बाहुपाश में, उमर भर को बन के कैदी रह गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, September 20, 2017

मन बहला लिया करता 

मैं अपने मन को बस इस तरह से ,बहला लिया करता 
तुम्हारे हाथ, कोमल उँगलियाँ ,सहला  लिया करता 
कभी कोशिश ना की,पकड़ ऊँगली,पहुँचू ,पोंची तक,
मैं अपनी मोहब्बत को ,इस तरह  रुसवा नहीं करता 
जी करता है बढ़ूँ आगे ,शराफत रोक लेती  पर ,
जबरजस्ती कभी ना, तुमसे 'हाँ' कहला लिया करता 
भावना की नदी में जब उमड़ कर बाढ़ आती है,
मैं उसका रुख ,किसी और रास्ते ,टहला लिया करता 
जाम हो सामने ,पीने की पर जुर्रत न कर पाता ,
सब्र का घूँट पीकर ,खुद को मैं बहला लिया करता 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
छोड़े न मगर गुलगुले गए 

कुछ आयेगें और खायेगें ,कुछ आये ,आकर चले गये 
हम तो वो पकोड़े है हरदम, जो गर्म तेल में तले गये 
झूठें वादों से सबने ही ,बस अपना उल्लू सीधा किया,
और सीधेसादे लोग सदा,उनकी बातों से  छले  गये 
हल नहीं हुआ कोई मसला,हालत जैसी थी,वैसी रही ,
सांडों की लड़ाई में हमतुम ,बस यूं ही बीच में दले गये 
इस तरह हुई छीछालेदर ,हम इधर जायें या उधर जायें ,
दुश्मनी मोल ले ली उससे ,यदि लग जो इसके गले गये 
कुछ इस दल में ,कुछ उस दल में,सब फसें हुए है दलदल में ,
इस राजनीती के दंगल में ,कितनो के ही दल बदले गये 
सिद्धांतों की बातें करते ,ऐसे परहेजी लोग मिले ,
कहने को तो गुड़ छोड़ दिया ,छोड़े न मगर गुलगुले गये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सर्वपितृ अमावस -नमन पुरखों को 

हम अपने पुरखों को ,कोटि कोटि करें नमन  ,
दौड़ रहा रग रग में ,अंश उनका अब भी है 
उनकी ही कृपा और आशीषों का फल है,
विकसित,फलफूल रहा वंश उनका अब भी है 
उनके ही भले करम और दिया दान धरम ,
का ही ये  परिणाम ,आज नाम और यश है 
आओ हम श्रद्धा से ,उनको दें श्रद्धांजलि ,
श्राद्ध करें ,क्योंकि आज ,सर्वपितृ मावस है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, September 19, 2017

हम साथ साथ है 

बहुत उछाला, इक दूजे पर हमने कीचड़ 
बहुत गालियां दी आपस में आगे बढ़ बढ़ 
जो भड़ास थी मन में ,सारी निकल गयी है 
ये जुबान भी अब चुप है,कुछ संभल गयी है 
भाई भाई में ,खटपट तो चलती रहती  है 
जाने अनजाने  होती  गलती   रहती   है 
अहम और दुर्भाव हृदय से सभी निकाले 
बिखर न जाए,ये घर अपना ,इसे  संभाले 
छोड़ दुश्मनी,चलो मिला ले,हाथआज हम 
कल भी थे और सदा रहेंगे ,साथ साथ हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Monday, September 11, 2017

अकेले जिंदगी जीना 

     किसी को क्या पता है कब ,
     बुलावा किसका  आ जाये 
     अकेले जिंदगी  जीना ,
     चलो अब सीख हम जाये 
अकेला था कभी मैं भी,
अकेली ही कभी थी तुम 
मिलाया हमको किस्मत ने ,
हमारा बंध गया  बंधन 
मिलन के पुष्प जब विकसे,
हमारी बगिया मुस्काई 
बढ़ा परिवार फिर अपना ,
और जीवन में बहार आई 
हुए बच्चे, बड़े होकर 
निकल आये जब उनके पर 
हमारा घोसला छोड़ा ,
बसाया उनने अपना घर 
        अकेले रह गए हमतुम ,
        मगर फिर भी न घबराये 
        अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जाये 
हुआ चालू सफर फिर से,
अकेले जिंदगी पथ पर 
सहारे एक दूजे  के ,
आश्रित एक दूजे पर 
बड़ा सूना सा था रस्ता ,
बहुत विपदा थी राहों में 
गुजारी जिंदगी हमने ,
एक दूजे की बाहों में 
गिरा कोई जब थक कर ,
दूसरे ने उसे थामा  
कोई मुश्किल अगर आई 
कभी सीखा न घबराना 
       परेशानी में हम ,हरदम,
        एक दूजे के  काम आयें 
        अकेले जिंदगी जीना ,
        चलो अब सीख हम जाये 
ये तय है कोई हम में से,
जियेगा ,ले, जुदाई  गम 
मानसिक रूप से खुद को,
चलो तैयार कर ले हम 
तुम्हारी आँख में आंसूं ,
देख सकता कभी मैं ना  
अगर मैं जाऊं पहले तो ,
कसम है तुमको मत रोना 
रखूंगा खुद पे मैं काबू,
अगर पहले गयी जो तुम 
तुम्हारी याद में जीवन ,
काट लूँगा,यूं ही गुमसुम 
        मिलेंगे उस जहाँ में हम ,
        रखूंगा ,मन को समझाये 
       अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जाये 
भले ही यूं अकेले में ,
लगेगा ना ,किसी का जी 
काटना वक़्त पर होगा ,
बड़ी मुश्किल से ,कैसे भी 
साथ में रहने की आदत ,
बड़ा हमको सतायेगी 
तुम्हारा ख्याल रखना ,
प्यार,झिड़की ,याद आयेगी 
सवेरे शाम पीना चाय 
तनहा ,बहुत अखरेगा 
दरद  तेरी जुदाई का ,
कभी आँखों से छलकेगा 
        पुरानी यादें आ आ कर ,
       भले ही दिल को तड़फाये 
       अकेले जिंदगी जीना ,
       चलो अब सीख हम जायें 

मदन मोहन बहती'घोटू'
उचकते है 

कुछ पैसे पा उचकते है 
कुछ कुर्सी पा उचकते है 
मिले जो सुंदरी  बीबी ,
कुछ खुश होकर उचकते है 
 कोई सुन्दर ,जवां लड़की ,
गुजरती जो नज़र आती 
झलक हलकी सी पाने को,
वो पागल से उचकते है 
किसी बेगानी शादी में ,
बने अब्दुल्ला दीवाने ,
उनकी फोटो भी आ जाए 
वो रह रह कर उचकते है 
ये पंजों से गले तक की,
उचकना एक कसरत है ,
कई व्यायाम के प्रेमी,
सवेरे से उचकते है
जहाँ कुछ देना होता है ,
वो चुपके से खिसक जाते,
हो लेना तो मुझे दे दो,
ये कह कह कर उचकते है 

घोटू  
क्या मैं न्याय कर पारहा हूँ?

मुझे मेरे माँ बाप ने मिल कर जन्म दिया 
बड़े ही प्यार से मेरा पालन पोषण  किया 
माँ ने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया 
पिताजी ने जीवनपथ में संभलना सिखाया 
माँ ने उमड़ उमड़ कर बहुत सारा लाड़ लुटाया 
पिताजी ने डाट डाट कर अनुशासन सिखलाया 
उन्होंने पढ़ालिखा कर जिंदगी में 'सेटल'किया 
हर मुश्किल में  हाथ  थाम कर ,मुझे संबल दिया 
एक दिन पिताजी ना रहे ,एक दिन माँ भी ना रही  
उनके बिना जीवन में कुछ दिनों बड़ी बेचैनी रही
मैंने उनकी तस्वीर दीवार पर टांगी ,पर इंटीरियर 
डेकोरेटर की सलाह पर पत्नी ने उसे हटा दिया 
फिर पूजागृह में रखी पर मृत व्यक्तियों की तस्वीर 
पूजागृह में रखने से  ,वास्तुशास्त्री ने मना किया 
औरआजकल माताऔर पिताजी मेरी यादो में बंद है  
और उन दोनों की तस्वीरें ,कबाड़ के बक्से में बंद है 
पिताजी का नाम तो जब तक मैं जिन्दा हूँ ,जिंदा रहेगा 
क्योकि मेरे नाम के साथ वल्दियत में वो लिखा जा रहा है 
पर मेरी माँ ,जिसने मुझे नौ महीने तक  कोख में रखा ,
उनका नाम कभी भी,कहीं भी ,नज़र नहीं आ रहा है 
मैं वर्ष में दो बार ,एक उनकी पुण्यतिथि पर और एक श्राद्ध में ,
ब्राह्मण को भोजन करवा कर ,अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ 
पर रह रह कर मेरा दिल मुझ से एक सवाल पूछता है  
कि क्या मैं सचमुच ,उनके साथ न्याय कर पा रहा हूँ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, September 9, 2017

कोई मगरूर हो जाये 

किसी नादान की बीबी,अगर जो हूर हो जाए 
पा माला मोतियों की ,बावला,लंगूर हो जाए 
मिले चूहे को चिन्दी ,और वो बजाज बन बैठे ,
बड़ा समझे बहुत खुदको,नशे में चूर हो जाए 
संभाले न संभल पाए ,खुदा की मेहरबानी जब ,
मिले तक़दीर से कुर्सी तो वो मगरूर हो जाए 
मेंढकी मारी ना जाती और तीरंदाज बन बैठे,
दिखाए खोखली ताक़त ,बड़ा ही शूर हो जाए 
करे वो बेतुकी बातें और हरकत पागलों जैसी ,
इसतरहअपनीआदत से जो वो मजबूर हो जाए 
जरूरी है दवाई और मलहम उसके घावों पर ,
कहीं ऐसा न हो एकदिन ,वो बढ़ नासूर हो जाए 
अगर लगाम जो उस पर,समय पर ना लगाईं तो,
बहुत मुमकिन हैअपनों से,वो इकदिन दूर हो जाए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, September 7, 2017

न जाने कौन,कब किस दिन.... 

किसी से भी कभी यारों 
न  कोई  दुश्मनी पालो 
न जाने कौन,कब किस दिन ,तुम्हारे काम आ जाये  
मिटा दो मैल सब मन का 
भरोसा क्या है जीवन का ,
न जाने किस घडी ,इस जिंदगी की शाम आ जाये 
वही वो काम कर सकता ,
है  जिसका काम जो होता 
नहीं तलवार कर सकती,
सुई का काम  जो   होता 
दवा जब बेअसर होती,
टोटके काम कर जाते 
जो शेरो से नहीं डरते,
वो मच्छर से भी डर जाते 
करे कोई, भरे कोई 
दोष किसका,मरे कोई 
खतावार दूसरा हो पर ,तुम्हारा नाम आ जाये 
न जाने कौन कब किस दिन तुम्हारे काम आजाये 
कभी ये हो नहीं सकता 
कि सबसे दोस्ताना हो 
समझकर सोच कर परखो,
हाथ जिससे मिलाना  हो 
दोस्ती  गर न कर पाओ ,
करो ना दुश्मनी भी तुम 
बना कर जो नहीं रख्खो ,
करो ना अनबनी भी तुम 
मिलो तुम मुस्करा सबसे 
बुरा  सोचो  नहीं अब से 
बुराई करने वाले का ,बुरा अन्जाम  आ  जाये 
न जाने कौन कब किस दिन ,तुम्हारे काम आजाये  
कभी अनजान भी कोई ,
फरिश्ता बन के आता है 
मुसीबत में  ,मदद  देता 
सभी बिगड़ी बनाता  है 
ख़ुशी में होते सब शामिल,
कभी गम में सहारा दो 
किसी भी डूबते को तुम,
बचाओ और ,किनारा दो 
किसी के श्राप से तुम गर,
अहिल्या से बनो ,पत्थर ,
करे उद्धार तुम्हारा ,कोई बन राम आ जाये 
न जाने कौन कब किस दिन ,तुम्हारे काम आजाये 
ख़ुशी बांटो तो दूनी है ,
जो गम बांटो तो आधे है 
सफलताएं चरण छूती ,
अगर अच्छे इरादे है 
दुखाओ मत किसीका दिल,
कोई की बददुआ मत लो 
रखो विश्वास तुम खुद पर,
हौसला और हिम्मत लो 
आशीषें हो बुजुर्गों की 
फतह करवाती दुर्गों की 
तुम्हारी जीत निश्चित गर,कभी संग्राम आ जाये 
न जाने कौन कब किस दिन तुम्हारे काम आजाये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, September 6, 2017

अध्याय नहीं ,परिशिष्ट सही 

तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम ,परिशिष्ट ही,अगर बना ,आभार करूंगा 
तुम्हारी जीवनगाथा का ,नहीं पात्र जो  अगर बन सका ,
फिर भी प्यार किया था तुमसे ,और जीवनभर प्यार करूंगा 
मेरा तो ये मन दीवाना ,पागल ,सदा रहेगा  पागल ,
चाह रहा था चाँद चूमना ,मालुम था ,पाना मुश्किल है 
लेकिन इसे चकोर समझ कर ,लेना जोड़ नाम संग अपने ,
बहुत चाहता तुम्हे हृदय से ,नहीं मानता ,दिल तो दिल है 
थाली में जल भर कर मैंने ,तुम्हारी छवि बहुत निहारी ,
कम से कम बस इसी तरह से ,तुम्हे पास पाया है अपने  
छूता तो लहरों में छवि ,हिल ,लगता जैसे ना  ना कहती ,
कर न सका महसूस तुम्हे मैं ,रहे अधूरे मेरे सपने 
कभी दूज में तुम्हे निहारा ,घूंघट में आहट चेहरे की , 
देखा अपलक ,पूरा मुखड़ा ,कभी पूर्णिमा की रातों में 
कभीअमावस को जब बिलकुल,नहीं नज़र आती तो लगता ,
निकली शायद मुझसे मिलने ,मैं खो जाता,जज्बातों में 
मिलन हमारा नहीं हुआ पर,यही लिखा शायद नियति ने ,
किन्तु चांदनी जब छिटकेगी,मैं तुमसे अभिसार करूंगा 
तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम परिशिष्ट ही ,अगर बना,आभार करूंगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गणपति बाप्पा से 

बरस भर में ,सिरफ दस दिन,
यहां आते हो तुम बाप्पा 
जमाने भर की सब खुशियां ,
लुटा जाते हो तुम बाप्पा 
तुम्हारे मात्र दर्शन से ,
कामना पूर्ण हो मन से 
भावना ,भक्ति की गंगा,
बहा जाते हो तुम बाप्पा 
लगा कर रोली और चंदन ,
करें तुम्हारा सब वंदन
सभी को रहना मिलजुल कर ,
सिखा जाते हो ,तुम बाप्पा 
भगत सब हो के श्रद्धानत,
चढ़ाते आपको मोदक ,
समृद्धि ,सुख की परसादी ,
खिला जाते हो तुम बाप्पा 
गजानन ,विघ्नहर्ता हो 
सदा आनन्दकर्ता हो 
विनायक हो,हमे लायक ,
बना जाते हो तुम बाप्पा 
साथ दस दिन, लगे प्यारा
विसर्जन होता तुम्हारा 
समाये दिल में पर रहते,
कहाँ जाते हो,तुम बाप्पा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Tuesday, September 5, 2017

बिमारी गरदन की 

बड़ी कम्बख्त है, बिमारी यार गरदन की,
जो कि 'स्पेडलाइटिस 'पुकारी जाती है 
इसमें  ना तो गरदन उठाई  जा  सकती,
इसमें  ना  गरदन  झुकाई जाती   है 
पहले वो गैलरी में जब खड़ी हो मुस्काती,
उठा के गरदन  हम दीदार किया करते थे 
दिल में तस्वीरें यार छुपा, जब भी जी करता ,
झुका के गरदन उनको देख लिया करते थे 
अब तो ना इस तरफ ही देख पाते ना ही उधर ,
दर्द जब होता है तो तड़फ तड़फ जाते है 
हुई है जब से निगोड़ी ये बिमारी हमको,
उनके दीदार को हम तरस तरस  जाते है 

घोटू 

Monday, September 4, 2017

तृण से मख्खन 

एक सूखा हुआ सा तृण 
भी निखर कर बने मख्खन 
किन्तु यह सम्भव तभी है,
पूर्णता से हो समर्पण 
घास खाती ,गाय भैंसे ,
और फिर करती जुगाली 
बदलती सम्पूर्ण काया ,
इस तरह से है निराली 
भावना मातृत्व की ,
उसमे मिलाती स्निघ्ता है,
चमत्कारी इस प्रक्रिया  
में बड़ी विशिष्टता  है 
और उमड़कर के थनो से ,
बहा करती दुग्धधारा 
जो है पोषक और जमकर ,
ले दधि का रूप प्यारा 
बिलो कर के जिसे मख्खन ,
तैर कर आता निकल है 
किस तरह हर बार उसका ,
रूप ये जाता बदल है 
कौनसा विज्ञान है ये ,
कौनसी है प्रकृति लीला 
शुष्क तृण का एक टुकड़ा ,
इस तरह बनता रसीला 
दूध हो या दही ,मख्खन ,
सभी देते हमें पोषण 
एक सूखा हुआ सा तृण 
किस तरह से बने मख्खन 

घोटू 
बुढ़ापे की दवा 

वो पागलपन ,वो दीवानगी ,वो जूनून अब हुआ हवा है 
मैं बूढा हो गया ,पुरानी यादें ,दिल में  मगर जवां  है 
जब सूनी सूनी रातों में,तन्हाई  मुझको डसती  है ,
याद पुराने सुखद पलों की,दुखते दिल की एक दवा है
 
घोटू 
तूने तो बस पूत जना था 

तूने तो बीएस पूत जना था ,लायक मैंने उसे बनाया 
तूने लाड़प्यार से   पाला ,नायक  मैने  उसे  बनाया 
संस्कार की पूँजी उसको ,कुछ तूने दी,कुछ मैंने दी,
इसीलिए करआज तरक्की,उसने इतना नाम कमाया 
उसमे आये कुछ गुण  तेरे,उसमे आये कुछ गुण  मेरे,
तुझसा कोमलऔर मुझसा दृढ़,आज निखरकर है वोआया
पर जब से की उसकी शादी प्रीत रह गयी उसकी आधी ,
मात पिता प्रति ममता आदर ,धीरे धीरे हुआ सफाया 
कुछ ना कुछ तो,कहीं ना कही, भूलचूक या कमी रह गयी ,
बहुत गर्व था जिसपर ,उसने ,संस्कार वो सब बिसराया 
भूल गया बस दो दिन में ही ,त्याग तपस्या ,लालनपालन ,
उनका ही दिल तोडा उसने ,जिनने दिल में उसे बसाया 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कंस-एक चितन 

कल सुना आकाशवाणी पर 
जानलेवा होता है डेंगू का मच्छर 
इसके पहले कि वो आपको मारे,
आप उसे मार दें 
उसे पनपने न दें,
कर उसका संहार दें 
मैं घबराया 
पूरे घर में ,कछुवा छाप अगरबत्ती 
का धुवाँ फैलाया 
फिर भी कोई चांस न लिया 
घर के कोने कोने में ,
काला 'हिट' स्प्रे किया 
घर से जब भी निकलता था 
शरीर के खुले हिस्सों पर ,
'आडोमास' मलता था 
ये एक शाश्वत सत्य है कि ,
मौत से सब डरते है 
और अपनी मौत के संभावित कारणों का,
पहले अंत करते है 
ऐसी ही एक भविष्यवाणी सुनी थी कंस ने 
जब वो अपनी बहन देवकी को ,
शादी के बाद बिदा कर रहा था हर्ष में 
आकाशवाणी थी कि देवकी का 
आठवां पुत्र ,उसका काल होगा 
अब आप ही सोचिये ,यह सुन कर ,
उसका क्या हुआ हाल होगा 
अपनी मृत्यु के संभावित कारण का हनन 
एक सहज मानव  प्रवृत्ति है ,
इसमें कंस को क्यों दोष दे हम 
वह चाहता तो अपनी बहन 
और बहनोई को मार सकता था 
ना रहेगा बांस,ना बजेगी बांसुरी 
ऐसा विचार सकता था 
पर शायद उसमे मानवता शेष थी  ,
इसलिए उसने अपनी बहन और बहनोई को 
कारावास दिया 
और उनकी सन्तानो को ,
जन्म होते ही मार दिया 
पर जब उसे मालूम हुआ ,
कि उसका संभावित काल,
आठवीं संतान बच गयी 
तो उसके दिल में खलबली मच गयी 
उसके मन में इतना डर समाया 
कि उसने सभी नवजातों को मरवाया 
और जब उसे कृष्ण का पता लगा ,
तो भयाकुल हो कर काँपा उसका कलेजा 
और उसने कृष्ण को मारने ,
पूतना,वकासुर आदि कितने ही.
 राक्षसों  को भेजा 
पर जब अपने प्रयासों में सफल न हो पाया 
तो उसने कृष्ण को मथुरा बुलवाया 
पर अंत में उसका अहंकार सारा गया 
और वो कृष्ण के हाथों मारा गया 
हम कंस के ,कृष्ण के मारने के ,
सारे राक्षसी प्रयासों की,
कितनी ही करें आलोचना 
पर अपने मृत्यु के संभावित कारणों से 
बचने का प्रयत्न ,करता है हर जना 
पर यह भी एक शाश्वत सत्य है कि ,
किस्मत के आगे इंसान बौना है 
चाहे आकाशवाणी हो या न हो,
जो जन्मा है ,उसका अंत होना है 
नियति के आगे आदमी एक खिलौना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलते रहते है मौसम,कभी गर्मी, कभी पतझड़ ,
किसी का भी समय हरदम ,एक जैसा नहीं रहता
कभी किसलय बने पत्ता ,साथ लहराता हवा के ,
सूख जाता कभी झड़ कर ,जुदाई का दर्द सहता
झड़े पतझड़ में जो पत्ते,पड़े देखो जो जमीं पर,
भूल कर भी नहीं चलना कभी भी उनको कुचल तुम
क्योंकि इन पत्तों ने ही तो,तुम्हे शीतल छाँव दी थी,
धूप की जब जब तपन से,परेशां थे हुए जल तुम
समय का ही फेर है ये,डाल से टूटे पड़े ये ,
नहीं तो एक दिन निराली,कभी इनकी शान रहती
नहीं पत्ता कोई हरदम ,डाल से रहता चिपक कर ,
सूख झड़ जाना हवा से ,है हरेक पत्ते की नियति
तुम्हारे माता पिता भी,इन्ही पत्तों की तरह है ,
बचाया हर मुसीबत से,हमेशा थी छाँव जिनकी
हो गए जो आज बूढ़े ,उम्र पतझड़ में गए झड़ ,
कर अनादर,कुचलना मत ,भावनाएं कभी इनकी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

badlte mausm

बदलते रहते है मौसम,कभी गर्मी, कभी पतझड़ ,
किसी का भी समय हरदम ,एक जैसा नहीं रहता
कभी किसलय बने पत्ता ,साथ लहराता हवा के ,
सूख जाता कभी झड़ कर ,जुदाई का दर्द सहता
झड़े पतझड़ में जो पत्ते,पड़े देखो जो जमीं पर,
भूल कर भी नहीं चलना कभी भी उनको कुचल तुम
क्योंकि इन पत्तों ने ही तो,तुम्हे शीतल छाँव दी थी,
धूप की जब जब तपन से,परेशां थे हुए जल तुम
समय का ही फेर है ये,डाल से टूटे पड़े ये ,
नहीं तो एक दिन निराली,कभी इनकी शान रहती
नहीं पत्ता कोई हरदम ,डाल से रहता चिपक कर ,
सूख झड़ जाना हवा से ,है हरेक पत्ते की नियति
तुम्हारे माता पिता भी,इन्ही पत्तों की तरह है ,
बचाया हर मुसीबत से,हमेशा थी छाँव जिनकी
हो गए जो आज बूढ़े ,उम्र पतझड़ में गए झड़ ,
कर अनादर,कुचलना मत ,भावनाएं कभी इनकी
मदन मोहन बाहेती ‘घोटू’
मैं क्यों बोलूं ?

मैं क्या बोलूं,? मैं क्यों बोलूं?
सब चुप,मैं ही ,क्यों मुख  खोलूं ?
चीरहरण हो रहा द्रोपदी का सबकी आँखों के आगे 
कुछ अंधे है,कुछ सोये है,मज़ा ले रहे है कुछ जागे  
और कुछ की लाचारी इतनी,मुख पर लगे हुए है ताले 
कुछ चुप बैठे ,डर  के मारे, अपने को रख रहे संभाले 
चीख चीख गुहार कर रही ,त्रसित द्रौपदी,मुझे बचाओ 
मैं ,असमंजस में व्याकुल हूँ ,कोई मुझको राह दिखाओ 
कुटिलों की इस भरी सभा में,मैं सर पर यह आफत क्यों लू 
मैं क्या बोलूं? मैं क्यों बोलूं?
मेरा मन विद्रोह कर रहा ,शशोपज है,उथलपुथल  है
एक तरफ तो मर्यादा है ,एक तरफ शासन का बल है 
मेरा अंतःकरण कह रहा ,गलत हो रहा,सही नहीं है 
लेकिन मैं विद्रोह कर सकूं,हिम्मत मुझमे अभी नहीं है 
मेरा मौन ,स्वकृति लक्षण बन ,मुझे कर रहा है उद्वेलित
किसे पता है ,महासमर का ,बीजारोपण ,है ये किंचित 
मेरा ही जमीर गायब है ,औरों की क्या नब्ज  टटोलूं 
मैं क्या बोलूं?मैं क्यों बोलूं?
होनी को जब होना होता,तारतम्य  वैसा बनता है 
संस्कार सब लोग भुलाते ,बैरभाव मन में ठनता है 
धीरे धीरे ,ये घटनाये ,बन जाती है ,विप्लव मिलकर 
छोटी छोटी कुछ भूलों के ,होते है परिणाम ,भयंकर 
क्या मेरे तटस्थ रहने से ,यह माहौल ,सुधर पायेगा 
दुष्ट और प्रोत्साहित होंगे ,महासमर ना टल पायेगा 
इस विध्वंशक गतिविधि का,करूं विरोधऔर मुंह खोलूं 
मैं क्या बोलूं ?मैं क्यों बोलूं?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, August 27, 2017

पूजन और रिटर्न गिफ्ट 

क्या आपने कभी गौर किया है ,
कि हमारी सोच है कितनी संकुचित 
भगवान को करते है बस पत्र पुष्प अर्पित
गणेशजी को दूर्वा 
शंकरजी को बेलपत्र और अकउवा 
और अन्य देवताओं को पान 
फिर पानी के चंद छींटों से कराते है स्नान 
और फिर ' वस्त्रम समर्पयामि 'कह कर ,
कलावे के धागे  का एक टुकड़ा तोड़ कर ,
उन्हें चढ़ा देते है 
और फिर 'पुंगी फल समर्पयामि 'कह कर ,
एक छोटी सी सुपारी ,
जो खाने योग्य नहीं होती ,
उनकी ओर बढ़ा देते है 
ये वही पूजा की सुपारी होती है ,
जो हर बार,हर पूजा में ,
फिर फिर चढ़ाई जाती है 
क्योकि भगवान इसे खा नहीं सकते ,
और पंडतांइन भी इसे नहीं खाती है
एक जटाधारी सूखा नारियल ,
जो किसी के काम नहीं आता है 
हर पूजा में भगवन को चढ़ाया जाता है 
'गजानन भूत गणादि सेवकं ,
कपित्थ जम्बूफल चारु भक्षणम '
मंत्र वाले गणेशजी को ,
उनका प्रिय कपित्थ या जम्बूफल ,
कभी नहीं चढ़ाया जाता है 
बल्कि उन्हें मोदक चढ़ाते है ,
जो उनका' ब्लड शुगर 'बढ़ाता है 
उन्हें एक किलो का डिब्बा दिखाते है 
एकाध लड्डू चढ़ा कर  ,
बाकि सब घर ले आते है 
सच ,हम है कितने सूरमा 
खुद तो खाते है बाटी और चूरमा 
और प्रभु को खिलाते घासफूस है 
देखलो,हम कितने कंजूस है 
इस तरह की सस्ती चीजों को ,
प्रतीक बना कर चढाने के बाद 
हम प्रभु से करते है फ़रियाद 
'हमें अच्छी बुद्धि दो 
रिद्धि और सिद्धि दो '
ये जानते हुए भी कि ,
रिद्धि सिद्धि उनकी वाईफ है 
एक पति से उसकी पत्नियां माँगना ,
कितना नाजाईश है 
ये आप,हम सब अच्छी तरह जानते है 
फिर भी रिटर्न गिफ्ट में ,
रिद्धि सिद्धि ही मांगते है 
और फिर पांच या दस दिन के बाद ,
जब थक जाते है रोज रोज कर अर्चन 
कर देते है उनका जल में विसर्जन 
जैसे विदेशों में बसे बच्चे ,
अपने बूढ़े  माता पिता को,
वर्ष में एक बार ,
आठ दस दिन के लिए बुलाते है ,
करते है सत्कार 
और फिर उन्हें बिदा कर देते है ,
बाँध कर उनका बिस्तर बोरिया 
यह कह कर कि 'बाप्पा मोरिया 
अगले बरस तू फिर से आ' 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
          क्या करें 

आदतें  बिगड़ी  पड़ी है ,क्या करें 
आशिक़ी सर पर चढ़ी है ,क्या करें 
बीबी हम पर रखती हरदम चौकसी ,
मुसीबत बन कर  खड़ी है,क्या करें 
कहीं नेता ,कहीं बाबा  लूटते,
अस्मतें ,सूली चढ़ी है  ,क्या करें 
काटने को दौड़ती है हर नज़र,
हरतरफ मुश्किल बड़ी है,क्या करें 
जिधर देखो उधर घोटाले मिले ,
हर तरफ ही गड़बड़ी है ,क्या करें 
किसी को भी ,किसी की चिंता नहीं,
सभी को अपनी पड़ी है ,क्या करें 
चैन से ,पल भर कोई रहता नहीं,
सबको रहती हड़बड़ी है ,क्या करें 
'घोटू'करना चाहते है बहुत कुछ ,
जिंदगी पर, दो घड़ी है,क्या करें 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
   पूरी-पंचतत्व से भरी  

गेंहू,'पृथ्वी तत्व 'से युक्त होता है ,
क्योंकि पृथ्वी से उपजता है 
और इसी गेंहू से आटा बनता है 
यह आटा 'जल तत्व' मिला कर ,
जब गूंथा जाता है 
और  खुले वातावरण में ,
जब पूरी सा बेला जाता है 
तो उसमे 'वायु तत्व' मिल जाता है 
ये पूरियां जब 'अग्नि तत्व'से गर्म ,
घी में तली जाती है 
तो फूल कर 
'आकाश तत्व'से भर जाती है 
इसलिए फूली फूली पूरियों का,
ये जो बनता  भोजन है 
इसमें सभी पंचतत्वों का समायोजन है 

घोटू 

Saturday, August 26, 2017

    हृदयाभिनन्दन 

तुम राजा राजेश ह्रदय के ,
और शालीन ,शालिनी जैसे 
पंख लगाये है  ईश्वर  ने ,
तुमको हंस ,हंसिनी  जैसे 
खग से उड़ो और इस जग में ,
जगमग जगमग हरदम चमको 
पाकर पुत्र पायलट तुमसा ,
बहुत  गर्व होता है हमको 
जीवन के इस विस्तृत नभ में ,
रहे तुम्हारी शान हमेशा 
वायुयान से पंख तुम्हारे 
भरते रहे  उड़ान हमेशा 
बन कर रहो विशाल ह्रदय तुम,
सदा 'हनी' सा हो मीठापन 
सदा सुखी ,समृद्ध रहो तुम ,
हृदय तुम्हारा है अभिनंदन 

तुम्हे ढेर सा प्यार करनेवाले 
       मम्मी और पापा 

Tuesday, August 22, 2017

हे देवी,पत्नी-परमेश्वरी 

हे  देवी,  पत्नी-परमेश्वरी 
हृदयवासिनी,तू हृदयेश्वरी 

शांतिदायिनी,सुखप्रदायिनी 
अंकशायिनी ,मन लुभावनी 
नवरस भोजन ,स्वाददायिनी 
सब घरभर का बोझ वाहिनी 
मैं तुम्हारा ,दास  अकिंचन ,
सुख दुःख की तुम ,मीत सहचरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 

विधि ने तुमको स्वयं बनाया 
खिले कमल सी,कोमलकाया 
महक पुष्प सी,चहक खगों की 
चंचलता और चाल  मृगों  की 
रक्तिम अधर,नयन कजरारे,
कंचन तन की छवि सुनहरी 
हे  देवी - पत्नी परमेश्वरी 

तेरी पूजा ,तेरा  अर्चन 
कर पुलकित होता मेरा मन 
अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी है तू 
मैं श्रद्धानत ,तुझको पूजूं 
खुशियां बरसाती जीवन में,
बन कर प्यार भरी तू बदरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 

कनकछड़ी सी सुंदर मूरत 
प्रेम घटों से छलके  अमृत 
मैं तुम्हारा ,दास अकिंचन 
निशदिन करू,तुम्हारा वंदन 
रूप गर्विता ,प्रेम अर्पिता 
प्यारी सुन्दर ,छवि नित निखरी 
हे  देवी  पत्नी -परमेश्वरी 
मन को भाता ,मुख मुस्काता 
देख हृदय प्रमुदित हो जाता 
तेरे एक इशारे भर पर 
मैं चकरी सा,खाता चक्कर 
तेरे आगे ,उठ ना पाती ,
नजर हमारी ,डरी डरी 
हे  देवी  पत्नी-परमेश्वरी 

आस लगाए बैठा ये मन 
दे दो मधुर ,अधर का चुंबन 
बाँध मुझे बाहु बंधन में 
उद्वेलन भरदो तन मन में 
पा ये प्रेम प्रसाद आस्था ,
दिन दिन बढे और भी गहरी 
हे  देवी  पत्नी-परमेश्वरी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '