नेताजी से
परेशानी बढ़ , गयी अब चौगुना है
कर रहे हर शिकायत को अनसुना है
वोट पाकर , नोट के बस फेर में हो ,
क्या इसी के वास्ते तुमको चुना है
दूध चट कर हमें कह कर चाय है ,
पिलाते तुम सिर्फ पानी गुनगुना है
मुंह हमारा बंद रहे इस वास्ते
आश्वासन देते पकड़ा झुनझुना है
रजाई की तपिश पाने के लिए ,
रुई जैसा आपने हमको धुना है
चाह कर भी हम निकल पाते नहीं ,
इस तरह से जाल वादों का बुना है
अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मार कर ,
मन हमारा ,बहुत जल जल कर भुना है
ज्यादा उड़ने वाले अक्सर अर्श से ,
फर्श पर गिर जाते ,देखा और सुना है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '