Friday, March 29, 2013

आम आदमी

               आम  आदमी

एक दिन हमारी प्यारी पत्नी जी ,
आम खाते खाते बोली ,
मेरी समझ में ये  नहीं आता है
मुझे ये बतलाओ ,आम आदमी ,
आम आदमी क्यों कहलाता है 
हमने बोला ,क्योंकि वो बिचारा ,
सीधासादा,आम की तरह ,
हरदम काम आता है
कच्चा हो तो चटखारे ले लेकर खालो
चटनी और अचार बनालो
या फिर उबाल कर पना बना लो
या अमचूर बना कर सुखालो
और पकने पर चूसो ,या काट कर खाओ
या मानगो शेक बनाओ
या पापड बना कर सुखालो ,
या बना लो जाम
हमेशा,हर रूप में आता है काम
वो जीवन भी आम की तरह ही बिताता है
जवानी में हरा रहता है ,
पकने पर पीला हो जाता है
कच्ची उम्र में खट्टा और चटपटा ,
और बुढापे में मीठा, रसीला हो जाता है
जवानी में सख्त रहता है ,
बुढापे में थोडा ढीला हो जाता है
और लुनाई भी गुम हो जाती,
वो झुर्रीला  हो जाता है
अब तो समझ में आ गया होगा ,
आम आदमी ,आम आदमी क्यों कहलाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बाली

                 बाली

सुबह उठा ,बोली घरवाली ,क्या मुश्किल कर डाली
ढूंढो ढूंढो ,नहीं मिल रही  ,मेरे कान   की   बाली
हम बोले ,आ गया  बुढापा,उमर नहीं अब बाली
और  कान की बाली तक भी ,जाती नहीं संभाली
पत्नी  बोली मुझे डाटते ,ये है बात निराली 
शैतानी तो तुम करते हो, खोती मेरी  बाली
मै बोला सुग्रीव सरल मै ,महाबली तुम  बाली
मेरी आधी शक्ति तुम्हारे सन्मुख होती खाली
सुन नाराज हुई बीबीजी ,ना वो बोली  चाली
उसे मनाने ,चार दिवस को ,जाते है हम बाली
घोटू
( हम अगले सप्ताह के लिए बाली भ्रमण पर
 ले जा रहे है अपनी पत्नी को मनाने -अत :एक
सप्ताह की ब्लोगिंग की छुट्टी -----घोटू  )

Thursday, March 28, 2013

तलाश

            तलाश

मै तो दर दर भटक रहा था
गिरता पड़ता अटक रहा था
इधर झांकता,उधर  झांकता
सड़कों पर था धूल  फांकता 
गाँव गाँव द्वारे द्वारे   में
मंदिर  मस्जिद , गुरद्वारे में
फूलों में  ,कलियों,में ढूँढा
पगडण्डी,गलियों में ढूंढा
मित्रों में ,अपने प्यारों में
कितने ही रिश्तेदारों में
कुछ जानो में ,अनजानो में 
सभी वर्ण  के इंसानों में
भजन,कीर्तन के गानों में
युवा हो रही संतानों में
इस तलाश ने बहुत सताया
लेकिन फिर भी ढूंढ न पाया
नहीं कहीं भी ,लगा पता था
मै  'अपनापन 'ढूंढ रहा था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मज़ा होली का

       मज़ा होली का

सुघड  पड़ोसन ,कितनी सुन्दर ,आती जाती,मुस्काती है
भले तुम्हारे ,मन को भाती ,पर भाभीजी ,कहलाती है
लेकिन जब होली आती है ,मिट जाता ,मन का मलाल है
उनके कोमल से गालों पर ,जब हम मल सकते गुलाल है
एक साल में,एक बार ही ,मिट सकती ,मन की भड़ास है
होली का यह पर्व इसलिये ,मन को भाता ,बड़ा  ख़ास है
घोटू

Tuesday, March 26, 2013

संध्या

               संध्या

तुम संध्या ,मै सूरज ढलता ,
                       तुम पर जी भर प्यार लुटाता 
तुम्हारे कोमल कपोल पर ,
                        लाज भरी मै  लाली लाता
फिर उतार तुम्हारे तन से ,
                         तारों भरी तुम्हारी चूनर
फैला देता आसमान में ,
                           और तुम्हे निज बाहों में भर
क्षितिज सेज पर मै ले जाता,
                            रत होते हम अभिसार में
हम तुम दोनों खो  जाते है,
                            एक दूजे संग मधुर प्यार में
प्राची आती ,हमें जगाती,
                              चूनर ओढ़ ,सिमिट तुम जाती
मै दिन भर तपता रहता हूँ,
                               याद तुम्हारी ,बहुत सताती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, March 24, 2013

होली मनाइये -मुंह तो मीठा करते जाइये

      होली मनाइये -मुंह तो मीठा करते जाइये

देसी घी में गुलाबी गुलाबी तले ,
भुने हुये खोवा और मेवे से भरे ,
खस्ता और चासनी से पगे
स्वादिष्ट होली के गूंझिये आपने चखे
बतलाइये आपको कैसे लगे?
चंद्रकला,लवंगलता और बालूशाही ,
क्या आपने खायी?
सुन्दर स्वादिष्ट रबड़ी के लच्छे 
कभी ऊँगली से चाट कर तो देखो,
लगेंगे बड़े अच्छे
अमृत की तरह इमरती ,या जलेबी का जलवा
मूंग की दाल का या गाजर का हलवा
रसीले रसगुल्ले या गरम गरम गुलाबजामुन
सब के सब मोह लेंगे आपका मन
इन सब देसी मिठाइयों का स्वाद
एक बार खा कर तो देखो,
रहेगा उमर भर याद
कहाँ आप मैदे की बेक की गयी जालीदार , 
और फुसफुसे क्रीम से सजाई हुई,
केक को देख ,मुग्ध हो रहे हो
इन विदेशी मिठाइयों के मोह में खो रहे हो
पता नहीं ,कुछ लोगों को ,
ये क्यों इतना भाती  है
ज़रा सा हाथ से पकड़ो ,पिचक जाती है
थोड़ी सी भी गर्मी हो,पिघल जाती है
इतनी नाजुक है कि दूकान से घर लाने में ही ,
इनका हुलिया बिगड़ जाता  है  
अलग अलग रंग और खुशबू की बनती है ,
पर स्वाद हमेशा एक सा ही आता है
और देशी मिठाइयों का,
अलग अलग स्वाद और अलग अलग लज्जत
बस एक बार प्यार से खाओगे ,
तो कर बैठोगे  मोहब्बत
बस पहले 'क्लोरोस्ट्रल 'और'डायिबिटीज'के,
भूत के डर को भगाना होगा
और चटकारे ले ले कर खाना  होगा
बस एक बार चखोगे
उमर भर याद रखोगे 
क्योंकि देसी हो या विदेशी ,
बिना घी और शक्कर के ,
मिठाई,मिठाई नहीं बनती
और खाने में ,मिठाई खाये बिना,
 तृप्ति नहीं मिलती   
इन देसी मिठाइयों का तो नाम सुन कर ही,
मुंह में भर जाता है पानी
अरे भाई  साहेब ,होली का त्योंहार है,
आज तो आपको ,मिठाई पड़ेगी ही खानी
होली मुबारक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, March 23, 2013

ससुर और साला

                   ससुर और साला 

शादी के बाद ,
पत्नी के परिवार के ,चार रिश्ते हो जाते है ख़ास 
साला,साली,ससुर और सास
जो अपने दामाद पर ,
अपने बेटे से भी ज्यादा प्यार लुटाती है ,
वो सास कहलाती है 
ये ही तो वो गंगोत्री है जहाँ से ,
गंगा जैसी पत्नी आती है
इसीलिए सास का अहसास ,
होता है सबसे ख़ास
और दूसरा रिश्ता जो बड़ा प्यारा ,
रसीला और मन को भाता  है 
वो साली का रिश्ता कहलाता है
बड़ी प्यारी,रसीली और चुलबुली होती साली
इसीलिये उसे कहते है आधी घरवाली
पर साली छोटी हो या बड़ी,पराई होती है
फिर भी मन को भाई होती है
अब  तीसरा नंबर ससुर जी  का आता है
ये वो  प्राणी है जिससे दामाद थोडा घबराता है
ये थोडा कड़क और रोबीला लगता है
और शायद मन ही मन,
दामाद से खुंदक रखता है
क्योंकि दामाद के चक्कर में ,
दहेज़ और बिदा देते देते ,
उसको जेब ढीला करना पड़ता है
अक्सर दामाद ,ससुर के संग ,
थोड़े फॉर्मल ही रहते है ,घबराते है
होते है बेसुर ,पर ससुर कहलाते है
और लोग ,दर्दनीय स्थिति  में ,अक्सर ,
ससुर का नाम, काम में लाते है 
 जैसे 'ससुरा मारे भी ,और रोने न दे
ससुरे मच्छर ,रात  भर सोने न दे 
या ये ससुरा कहाँ बीच में कहाँ से आ गया
घर में दो ही लड्डू थे,ससुर चूहा खा गया
अक्सर ऐसी  स्थिति   में ससुर ही याद आता है ,
लोग सास का नाम कभी नहीं लेते है
हां कुछ विशेष परिस्तिथि में ,
सास के बदले ससुरी कहते है
जैसे बीबी जब मइके जाती है
ससुरी नींद नहीं आती है
अब चौथा सम्बन्धी ,जो सबसे निराला होता है
वो आपका साला  होता है 
लोग कहते है ,सारी  खुदाई एक तरफ,
जोरू का भाई एक तरफ ,
और ये सच भी है ,
क्योंकि वो आपकी पत्नी को प्यारा होता है
इसलिए मन चाही बकबक करता  है
पत्नी से ज्यादा ,आपकी चीजों पर ,
अपना हक़ रखता है
वो जब कभी भी आता है
तो समझलो आपका सारा बजट बिगड़ गया
इसीलिए लोग,किसी अनचाहे के आने पर ,
कहते है'साला कहाँ से आ गया '
किसी अवांछित काम को या अनचाहे इंसान को ,
जब हम मीठी सी गाली देते है 
तो उसे साला कहते है
'साला'बोलचाल का ,एक ऐसा शब्द बन गया है
की सबकी जुबान पर चढ़ गया है
हम साले बेवकूफ है  जो लाइन में खड़े है
और वो साला चुगलखोर है
तुम साले बहुत उस्ताद हो ,
और ये नेता साले सब चोर है 
नया बॉस साला  कड़क है 
ऐसे कितने ही वाक्यों में हम,
साले का प्रयोग ,करते बेधडक है
वैसे   कभी कभी साली का नाम भी ले लेते है 
जैसे हमारी साली किस्मत ही ऐसी है या ,
ये साली सरकार निकम्मी है,कह लेते है
पर ये सच है कि ससुराल पक्ष के ये दो रिश्ते ,
जो रोज की बोलचाल की भाषा को,
अलंकृत करते रहते है ,बड़े ख़ास है
वो ससुर और साला  है,जिनका नाम लेकर ,
हम निकालते अपने मन की भड़ास है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'




Thursday, March 21, 2013

दुनिया -मिठाई की दूकान

    दुनिया -मिठाई की दूकान

दुनिया क्या है ,मै तो कह्ता,यह दूकान मिठाई की ,
ले कढाई  ,तल रहा जलेबी, हलवाई ,ऊपरवाला
हर  इंसान,जलेबी जैसा ,अलग अलग आकारों का,
जीवन रस की ,मधुर चासनी में ,डूबा है,मतवाला
गरम गरम ,रस भरी ,कुरकुरी,मन करता है खाने को ,
मगर रोकता 'डाईबिटिज'का डर ,कहता ,मत खा ,मत खा
कल जो होना है देखेंगे,मगर आज हम क्यों तरसें,
मन मसोस कर ,क्यों जीता है,जी भर इसका मज़ा उठा
जीवन रस से भरा हुआ है,राजभोग,रसगुल्ला है ,
बर्फी,कलाकंद सा मीठा ,या फिर फीनी घेवर सा 
इसका कोई छोर नहीं है ,ये तो है लड्डू जैसा ,
खालो,वरना लुढ़क जाएगा ,ये प्रसाद है,इश्वर का
बूंदी बूंदी मिल कर जैसे,बनता लड्डू बूंदी का ,
वैसे ही बनता समाज है,हम सब बूंदी के दाने
रबड़ी ,मोह माया जैसी है ,लच्छेदार ,स्वाद वाली,
उंगली डूबा डूबा जो  चाटे ,इसका  स्वाद वही जाने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   मै  बूढा हूँ

नाना रूप धरे है मैंने ,मामा था अब नाना हूँ
कभी द्वारकाधीश कृष्ण था,अब तो विप्र  सुदामा हूँ
दादागिरी जवानी में की ,अब असली में दादा हूँ
घोड़े जैसा चला ढाई घर ,अब छोटा सा प्यादा हूँ
फेंका गया किसी कोने में ,मै तो करकट कूड़ा हूँ
बहुत अवांछित और उपेक्षित,मै बुजुर्ग हूँ,बूढा हूँ
जीवन भर के उपकारों का,यही मिला प्रतिफल मुझको
तुम भी शायद ,भोगोगे ये,बूढा होना कल तुमको

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

      उम्र बुढापे की कमाल है

 बचपन में मन  होता निश्छल
हंसता एक पल,रोता एक पल
जब अबोध बालक मुस्काता
उस पर प्यार सभी को आता
फिर  किशोर वय  में भी  अक्सर 
बोझ पढाई का  है मन पर
और जवानी है जब आती
जीवन में खुशिया छा जाती
कैसे खायें  और   कमायें
मन में रहती है चिंतायें
ऐसे ही कट जाता यौवन
बहुत तरंगित तन,चिंतित मन
करते हम प्रयास है जी भर
बस जाए संतानों के घर
हमें बुढ़ापा आते आते
सबके अपने  घर बस जाते
घर में छा जाता सूनापन
खाली खाली लगता जीवन
तन पड़ने लगता है ढीला
हो जाता मन बहुत रंगीला
उम्र बुढ़ापे की जब आती
असली तभी  जवानी छाती
मन चाहे करना धमाल है
उम्र बुढ़ापे की भी कमाल है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'






काहे बखेड़ा करते है

     काहे बखेड़ा करते है 

मोह माया के चक्कर में हम,मन को मैला करते है
खुश भी होते,परेशान भी,मुश्किल झेला करते है
ऊपर चढ़ते है इठला कर,झटके से नीचे गिरते ,
खेल सांप का  और सीडी का ,हरदम खेला करते है
कोई जरा बुराई करदे ,तो उतरा करता चेहरा ,
कोई जब   तारीफ़ कर देता,खुश हो फैला करते है
सब से आगे बढ़ने की है जिद हममे  इतनी रहती,
सभी परायों और अपनों को,पीछे ठेला करते है
बिना सही रस्ता पहचाने ,पतन गर्द में गिर जाते,
बिना अर्थ जीवन का जाने,व्यर्थ झमेला करते है
खाली हाथों आये थे और खाली हाथों जायेंगे,
कुछ भी साथ नहीं जाता पर तेरा मेरा करते है
'घोटू'जितना भी जीवन है,हंसी ख़ुशी जी भर जी लें ,
उठक पटक में उलझा खुद को,काहे  बखेड़ा  करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अविरल जीवन

        अविरल जीवन

जल से बादल,बादल से जल
मेरा जीवन चलता अविरल
सुख आते है,मन भाते है
संकट आते,टल जाते है 
कभी गरजना भी पड़ता है
कभी कड़कना भी पड़ता  है
कभी हवा में उड़ता चंचल
जल से बादल ,बादल से जल
कभी रुई सा उजला,छिछला
विचरण  करता हूँ मै  पगला
कभी प्रसव पीड़ा में काला
होता जल बरसाने वाला
घुमड़ घुमड़ छाता धरती पर
जल से बादल,बादल से जल
उष्मा से निज रूप बदलता
तप्त धरा को शीतल करता
उसे हरी चूनर पहराता
विकसा बीज,खेत लहराता
बहती नदिया,भरे सरोवर
जल से बादल,बादल से जल

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

Wednesday, March 20, 2013

जीवन तो है चाट चटपटी

      जीवन तो है चाट चटपटी  

जीवन तो है तला पकोड़ा ,मस्त चटपटा ,गरम गरम ,
                       कोई चेप चेप चटनी से,इसके मज़े  उठाता है
है परहेज किसी को मिर्ची से या तली वस्तुओं से ,
                        'क्लोस्ट्राल 'नहीं बढ़ जाए ,खाने में घबराता है
आलू की टिक्की सा यौवन,गरम गरम ,सौंधी खुशबू,
                         जैसे लगता चाट चटपटी,मुंह में आता है पानी
कोई 'टोन्सिल 'से डरता है तो कोई 'इन्फेक्शन 'से,
                           मन ललचाता फिर भी खाने में करता आना कानी
एक गोलगप्पे से जैसा ,जब हो खाली ये जीवन,
                          इसमें भरो चटपटा पानी ,मुंह में  रख्खो ,खा जाओ
 तीन समोसे के कोनो में ,तीन लोक दर्शन कर लो ,
                            जी भर इनका मज़ा उठाओ, निज मन को मत तरसाओ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

माँ की मेहरबानियाँ

      माँ की मेहरबानियाँ

दूध ,दही,खोया पनीर या 'चीज 'नाम  कुछ भी दे दो,
               लेकिन अपने मूल रूप में,सिर्फ घास  का था तिनका
गौ माता ने मुझको अपना प्यार दिया और अपनाया ,
                निज स्तन की धारा से ,निर्माण किया है इस तन का
मुझ से ज्यादा ,क्या जानेगा ,कोई महिमा माता की ,
                 मै क्या था,माँ की ममता ने,क्या से क्या है बना दिया
दिये  पौष्टिक  गुण इतने ,भरकर मिठास का मधुर स्वाद ,
                   मै तो था एक जर्रा केवल,मुझे आसमां   बना दिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Sunday, March 17, 2013

सपने सपने -कब है अपने

सपने सपने -कब है अपने

सपने सपने
कब है अपने
ये अपने ही जाये  होते 
खुलती आँख,पराये होते
बचपन में ,राजा ,रानी के
किस्सों से ,दादी,नानी के
और वैभव के ,किशोर मन में
खो जाते ,जीवन उलझन में
कुछ सच होते,कुछ तडफाते
सपने तो है ,आते जाते
आये ,बिना बुलाये होते
खुलती आँख,पराये होते
जब यौवन की ऋतू मुस्काती
फूल विकसते,कोकिल  गाती 
कोई मन में बस जाता है
तो वो सपनो में आता   है
फिर शादी और जिम्मेदारी
रोज रोज की मारामारी
हरदम मुश्किल,ढाये होते
खुलती आँख ,पराये होते
फिर जब होती है संताने 
सपने फिर लगते है आने
बच्चे जो लिख पढ़ जायेंगे
काम बुढापे में आयेंगे  
बेटा बेटी ,अपने जाये
शादी होते,हुये पराये
बस यादों के साये  होते 
खुलती आँख,पराये होते  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई डॉक्टर बताये - मुझे क्या हुआ है?

     कोई डॉक्टर  बताये - मुझे क्या हुआ है?

घनीभूत कुछ तरल ,नासिका  छिद्रों में है जमा हुआ
हुआ मार्ग अवरुद्ध ,श्वास का गमन,आगम थमा हुआ
कंठ मार्ग भी वाधित है ,कुछ भी गटको तो करे पीर
शिथिल हुआ तन,आलस छाया ,है परेशान ,ये मन अधीर
जलन चक्षुओं में होती है,मस्तक थोडा भारी है
उष्मित है तन,सुनो चिकित्सक,मुझको कौन बिमारी है
है उपचार कौनसा इस ,व्याधि का मुझको बतलाओ 
शीध्र स्वस्थ हो  जाऊं मै भेषज कुछ ऐसी दिलवाओ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, March 16, 2013

लेपटोप पर

        लेपटोप पर

मै तुम्हे like  करूं और तुम मुझे like करो,
                      Facebook  पर ,ये परस्पर ,दोस्ती अच्छी लगे
अपने दिल के फोटो पर है,Tag मैंने कर लिया ,
                          नाम जबसे तुम्हारा है ,जिंदगी अच्छी    लगे 
तुम भी चीं चीं Twit करो और मै भी चीं चीं Twit करूं ,
                            ये हमारी चहचहाहट ,सभी को अच्छी लगे
Laptop गोद में ले ,देखता तुमको रहूँ ,
                            Chat हम तुम रहें करते,गुफ्तगू अच्छी लगे

घोटू  

sale

SALE ! SALE ! SALE ! SALE !

दिल मेरा ऊनी गरम है ,स्वेटर सा मुलायम ,
                     60 परसेंट  डिस्काउंट लगा है ,सेल पर
गयी सर्दी ,बसंती  मौसम सुहाना ,आगया ,
               फाग के मौसम की मस्ती ले लो होली खेल कर    

घोटू

नशा -बुढ़ापे का

       नशा -बुढ़ापे का

आदमी पर जब नशा छाता है
वो ठीक से चल भी नहीं सकता ,
डगमगाता है
उसे कुछ भी याद नहीं रहता ,
सब कुछ भूल जाता है
मेरी माँ भी ठीक से चल नहीं सकती ,
डगमगाती है
और मिनिट मिनिट में ,
सारी  बातें भूल जाती है  ,
नशे के सारे निशां उसमे नज़र आते है,
उमर नब्बे की में भी ऐसा भला होता है
मुझे तो ऐसा कुछ लगता है कि मेरे यारों ,
बुढापे का भी कोई ,अपना नशा होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



आभार प्रदर्शन

                     आभार प्रदर्शन 

मै उस पत्थर का शुक्रिया अदा कर रहा था ,
जिसकी ठोकरों ने ,
मुझे सही रास्ता दिखलाया था
मै उस पत्थर का भी अहसानमंद था ,
जिसने मेरे सर पर लग ,
भीड़ में ,मेरे दुश्मन का पता बतलाया था
मै  शुक्रगुजार था उन पत्थरों का भी,
जिन्होंने दीवारों में चुन कर,
मुझे रहने के लिए ,आशियाना दिया था 
मै बहुत आभारी था उन मील के पत्थरों का,
जिन्होंने ,जिंदगी के सफ़र में ,
मुझे मेरी मंजिल का पता दिया  था 
मै उन्हें धन्यवाद दे ही रहा था कि ,
एक पत्थर मुझसे ये बोला ,
'ऐ इंसान तेरा बहुत बहुत शुक्रिया है
तेरी आस्था ने भर दियें है प्राण मुझमे ,
और तूने पूज पूज कर,
मुझे एक पत्थर से देवता बना दिया है '

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, March 15, 2013

अंगो का जंग

              अंगो का जंग

छिड़ी अंग में जंग ,कौन है सबसे बेहतर
सब बतलाते श्रेष्ट ,स्वयं को आगे बढ़ बढ़
आँखे बोली ,हम चंचल और सबसे सुन्दर
मानव को हम ही दिखलाते है दुनिया भर
पलकें हरदम करती रहती  पहरेदारी
तुम्ही समझ लो,कितनी ऊंची शान हमारी
कहा नाक ने, मै शरीर में सबसे ऊंची
मुझसे ,तन में आती जाती,श्वास समूची
जब तक चलती श्वास ,तभी तक ही जीवन है
मुझसे ही इज्जत है ,मुख पर आकर्षण है
बोले होंठ ,गुलाब पंखुड़ियों से हम लगते
हम मुस्काते,और हमी है चुम्बन करते
नरम,मुलायम,सुन्दर,मुख का मुख्य द्वार है
खाना ,पीना,हंसना ,करते  हमी  प्यार है
दांतों ने बोला खाना सब ,हमी  चबाते
हम ही है वो अंग ,जो कि दोबारा  आते
हम होते बत्तीस ,अन्य  अंग दो या एक है
हम बहुमत में ,इसीलिये हम बड़े श्रेष्ट है
बोली जिव्हा ,मै हूँ,तभी बोल पाते हो
सभी चीज का स्वाद ,मुझी से तुम पाते हो
बोले कान,हमें मत करना 'साइड लाइन '
हमसे ही तुम बातें,गाने सकते हो सुन
कहा हाथ ने ,सार काम हमी है करते
लिखते,पढ़ते,कमा ,पेट तुम्हारा भरते
बोले पैर कि हम आधारस्तंभ तुम्हारे 
हम बिन एक कदम भी बढ़ न सकोगे प्यारे
कहा पेट ने ,मै जीवन में ऊर्जा  भरता
मुझको भरने ,काम आदमी,हरदम करता
खाना पीना सब कुछ  मेरे अन्दर जाता 
मै ही  उसे  पचाता हूँ और  रक्त बनाता 
दिल बोला मै खुद की तारीफ़ ना करता हूँ
तुम जीवित हो ,जब तक मै धडका करता हूँ
करो किसी से प्यार ,तभी वो दिल में बसता
तो मष्तिष्क लगा बतलाने ,हँसता हँसता
मेरे हाथो ,तुम सब अंगों की लगाम है
मेरे आदेशों पर करते  सभी   काम है
पर आपस में झगड़ रहे क्यों परेशान हो
अपनी अपनी जगह ,आप सब ही महान हो
साथ तुम्हारा  ,जीवन की आवश्यकता  है
एक दूसरे के   बिन  काम  नहीं चलता है 
मिलजुल कर रहने से जीवन में सुख आता
इश्वर की सर्वोच्च कृती ,मानव कहलाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हिंदी के मुहावरे

        हिंदी के मुहावरे

हिंदी के मुहावरे ,बड़े ही बावरे है
खाने पीने की चीजों से भरे है
कहीं पर फल है तो कहीं आटा दालें  है  
कहीं  पर मिठाई है,कहीं पर मसाले है 
फलों की ही बात लेलो ,
आम के आम,गुठलियों के भी दाम मिलते है
कभी अंगूर खट्टे हैं,
कभी खरबूजे,खरबूजे को देख कर रंग बदलते है
कहीं दाल में काला है,
कोई डेड़ चांवल की खिचड़ी  पकाता है
कहीं किसी की दाल नहीं गलती,
कोई लोहे के चने चबाता है
कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है,
कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है 
मुफलिसी में जब आटा  गीला होता है ,
तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है
सफलता के लिए  बेलना पड़ते  है कई पापड
आटे  में नमक तो जाता है चल
,पर गेंहू के साथ,घुन भी पिस जाता है
अपना हाल तो बेहाल है
ये मुंह और मसूर की दाल है
गुड खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते है
और गुड का गोबर कर बैठते है 
कभी तिल का ताड़,कभी राई का पर्वत बनता है
कभी ऊँट के मुंह में जीरा है ,
कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है
किसी के दांत दूध के है ,
किसी को छटी  का दूध याद आ जाता है 
दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है ,
और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है
शादी बूरे  के लड्डू है ,जिनने खाए वो भी पछताए,
और जिनने नहीं खाए ,वो भी पछताते  है
पर शादी की बात सुन ,मन में लड्डू फूटते है ,
और शादी के बाद ,दोनों हाथों  में लड्डू आते है 
कोई जलेबी की तरह सीधा है ,कोई टेढ़ी खीर है
किसी के मुंह में घी शक्कर है ,
सबकी अपनी अपनी तकदीर है
कभी कोई चाय पानी करवाता है ,
कोई मख्खन लगाता है
और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है ,
तो सभी के मुंह में पानी आता है
भाई साहब अब कुछ भी हो ,
घी तो खिचड़ी में ही जाता है
जितने मुंह है,उतनी बातें है
सब अपनी अपनी बीन बजाते है
पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है ,
सभी बहरे है,बावरें है
ये सब हिंदी के मुहावरें है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, March 14, 2013

ओ पाकिस्तानियों सुनलो

ओ पाकिस्तानियों सुनलो ,हमारी तो है ये आदत
जो मेहमां बन के आओगे ,तो देंगे हम तुम्हे दावत
अगर घुसपेठिये बन कर ,जो आओगे जेहादी बन ,
तो  नेस्तनाबूत  कर  देंगे,  बना देंगे  बुरी हालत  
घोटू

Wednesday, March 13, 2013

लीन्हो वोटर मोल

     घोटू के पद
 लीन्हो वोटर  मोल

माई री  मै  तो,लीन्हो वोटर मोल
सस्तो महंगो ,कछु नहीं देख्यो,दीन  तिजोरी खोल 
आश्वासन को शरबत पिलवा ,मुंह में मिसरी घोल
वादों की रबड़ी  चटवाई ,  मीठो    मीठो     बोल 
मगर विरोधी ,दल वाले सब ,पोल रहे है खोल
टी वी पेपर वाले भी सब,रहे उडाय  मखौल 
चमचे सारे ,खनक रहे है,मेरी तारीफ़ बोल
'घोटू' अब वोटर की मर्जी ,जब होवेगा 'पोल '
ऊँट कौन करवट बैठेगा ,कोई सकत ना बोल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कितना सुख होता बंधन का


           सुख बंधन का

कितना सुख होता बंधन का
एक दूजे के प्रति समर्पण ,प्रीत,प्यार और अपनेपन का
पानी में घिस घिस घुल कर के,लगे ईश सर,उस चन्दन का
लिपटी हुई लता से पूछो ,तरु संग कितना ,सुख जीवन का
कितना मादक ,उन्मादक सुख,भ्रमर ,पुष्प के अवगुंठन का
बादल बन ,मिल अम्बर से, फिर ,बरसे भू पर,उस जल कण का
एक बंधन को छोड़ दूसरे बंधन में बंधती दुल्हन का 
कान्हा की बंसी की धुन पर ,रास रचाते  ,बृन्दावन   का
बृज की गली गली में अब भी,बसा प्यार राधा मोहन का
संतानों के सुख में हँसते ,दुःख में रोते ,माँ के मन का
कभी किसी से बंध कर देखो ,सुख पाओगे ,पागलपन का
कितना सुख होता बंधन का 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, March 11, 2013

शिवरात्रि व्रत

                  घोटू के पद
                  शिवरात्रि  व्रत

मैंने शिवरात्रि  व्रत राख्यो
सुबह चाय  के संग बिस्कुट ना,ड्राई फ्रूट ही चाख्यो
फलाहार में भोग लगायो,रबड़ी और  हलवा को 
संग कुट्टू की तली पूरियां,और आलू टिकिया को
शाम करयो  सेवन बस पेड़ा ,मावे की गुझिया को
सिर्फ चाय पी या फल को रस,बाकी दिन भर फांको  
फ्रूट क्रीम,श्रीखंड रात में ,मन पर काबू  राख्यो 
और रात को दूध पियो बस ,केसर और पिस्ता को
'घोटू'बहुत कठिन व्रत  करना ,खायो बहुत ज़रा सो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, March 10, 2013

शिवरात्री-एक जिज्ञासा

      शिवरात्री-एक जिज्ञासा

ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश,हमारे तीन देवता ,
                                    कर्ता ,भर्ता और हर्ता ये देव कहाते 
 कब जन्मे,कैसे जन्मे ,कुछ पता नहीं है,
                                     ये तीनो तो आदि पुरुष है ,पूजे जाते
ब्रह्मा जी के संग ,सरस्वती जी है दिखती,
                                  मगर कहीं इनके रिश्ते का  जिक्र नहीं है
और विष्णु जी है लक्ष्मी- रमना कहलाते,
                                  पत्नीवत लक्ष्मी जी इनके संग रही है
वो भी तब,समुन्द्रमंथन से थी वो प्रकटी ,
                                    उसके पहले शायद विष्णु ,रहे अकेले
एक केवल शंकर जी है जिनकी शादी का ,
                                     जिक्र किताबों में मिलता है सबसे पहले
ब्रह्मा जी,शंकर जी दोनों 'परमानेन्ट' है,
                                      'डेपुटेशन'  पर केवल विष्णु जी हैं जाते
लेते है अवतार धरा पर ,कई रूप धर ,
                                       जन्मदिवस उन अवतारों का सभी मनाते 
ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश  ,देव तीनो महान है,
                                       इनका जन्म दिवस पर दुनिया नहीं मनाती
ब्रह्मा,विष्णु की शादी का दिवस पता ना,
                                      शिव रात्रि है पर्व ,हुई जब शिव की शादी
मै मूरख,अज्ञानी तो बस इतना जानू,
                                      आदि पुरुष ये ,इनका जन्म दिवस ना मनता 
ब्रह्मा विष्णु की शादी भी अगर हुई है ,
                                       तो फिर उनका परिणय दिवस क्यों नहीं मनता?


मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  

Saturday, March 9, 2013

स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम

     घोटू के दोहे
स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
           1
धन और पोजीशन करे,देखो कैसे काम
कल तक 'परस्या'कहाता ,'परशराम 'अब नाम 
                      स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
            2
काजल जो लागे कहीं,तो कालिख कहलाय
गौरी  की आँखों  अंजे,दूनो रूप   बढ़ाय
                       स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
              3
बीस तीस की माखनी ,दाल मिले जो आम
पहुँची होटल मौर्या ,हुए  आठ सौ   दाम
                       स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
                  4
गौरी की गोदी  रहे ,श्वान लिपट इतराय
देख गली के कूतरे ,भौंक भौंक चिल्लाय
                        स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
                    5
गूदे संग जब तक बंधा ,कहलाता है आम 
गूदा खा फेंका गया ,अब गुठली है नाम
                         स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
                   6
रोड़ा पत्थर राह का,हर कोई देय  हटाय
मंदिर में सिन्दूर लग,निशदिन पूजा जाय
                         स्थानम प्रधानम न बलं प्रधानम
                  7
गति बदले हर चीज की,जगह बदल जब जाय
पहुँच प्लेट से पेट में ,क्या से क्या बन जाय़

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

Friday, March 8, 2013

बिन घूँघरू ,नारी नाची रे

        घोटू के पद 
महिला दिवस पर विशेष

बिन घूँघरू ,नारी नाची रे

घरवाले सब नाच नचायें,फिरती भागी भागी रे
रही रात भर ,नींद उचटती ,सो ना पायी जागी रे
ससुर साहब ,खर्राटे भरते,सास रात भर खांसी रे
सुबह हुई ,जुट गयी काम में ,ले ना पायी उबासी रे
 चूल्हा चौका,झाड़ू पोंछा,बन गयी घर की दासी रे 
शाम पड़े तक ,पस्त होगई ,मुख पर छाई उदासी रे
सोते ही बस ,आँख लग गयी,पिया मिलन की प्यासी रे 
'घोटू'कठिन,नारी का जीवन ,खेल नहीं ना हांसी रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सभी जगह छाई है महिला

            महिला दिवस पर विशेष 
                             
               सभी जगह छाई है महिला
   
विद्या देवी सरस्वती जी
धन की देवी श्री लक्ष्मी जी
शक्ति की देवी दुर्गा  है
इस जग की जननी ,महिला है
कांग्रेस में सोनिया गाँधी
दिल्ली की शासक  शीला जी 
तमिलनाडु में जय ललिता
तो फिर कोलकता में ममता
सभी जगह छाई है महिला
उनका नंबर सबसे पहला
हम सब ही नारी के बस है
अपना हर दिन,नारी दिवस है
                      
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, March 7, 2013

कत्था-चूना

       कत्था-चूना

देश को चूना लगाने वाले इन पनवाडियों  ने  
सत्ताधारियों ने
जनता के (खान)पान में ,इतना चूना लगाया है
कि  सारा का सारा मुख उपड आया है
और छाले पड  गए है जबान में
अब तो बस आएगा वो ही काम में
जो फटे हुए मुंह पर लगाएगा कत्था
अगली बार,वो ही पायेगा सत्ता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


बहुत तुम जुल्म ढाती हो

          बहुत तुम जुल्म ढाती हो

जो बोसा लूं,चुभे खंजर,
                    लूं चुम्बन काट खाती हो 
जो मै लूं हाथ हाथों में,
                     मुझे नाख़ून चुभाती  हो
जो फेरूँ हाथ जुल्फों पर ,
                      तो हेयरपिन मुझे चुभते,
बहुत तुम जुल्म ढाती हो,
                       जब मेरे पास आती हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अबकी होली ऐसे खेलो

         अबकी होली ऐसे खेलो

घर के बुजुर्ग भी इन्सां है
उनके भी मन में अरमां है
एकाकीपन उन्हें खटकता है
मुश्किल से वक़्त  गुजरता है
तुम जान तभी ये पाओगे
जब तुम बूढ़े हो जाओगे
वे जीवनदाता  तुम्हारे
तुम लगते हो जिनको प्यारे
ये बात बहुत चुभती मन को 
कर रहे उपेक्षित तुम उनको
वे यह अहसान चाहते है
थोडा सा ध्यान चाहते है
मेरा तुमसे ये कहना है
वे बड़े दुखी है,तनहा है
उनका मन जरा टटोलो तुम
दो शब्द प्यार के बोलो तुम
मुट्ठी भर प्यार उन्हें दे दो
सुख का संसार उन्हें दे दो
अबकी होली में ले गुलाल
उनका मुंह रंग दो,लाल लाल
पग छुवो,करो प्रणाम उन्हें
दे दो थोडा सन्मान उन्हें
उनके झुर्राये  से मुख पर
उमड़ेंगे ,खुशियों के बादल
आँखों से बह कर प्रेमनीर
कर देगा तुमको भी अधीर
बस इतना सा कर देने पर
जायेंगे वो खुशियों से भर
वो दिल से तुम्हे दुआ देंगे  
और आशिषे बरसा देंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

होली का त्योंहार

        घोटू के पद
                1
      होली का त्योंहार 

आया होली का त्योंहार
साजन कहे ,न मलना गौरी ,मेरे गाल गुलाल
दो दिन नहीं हजामत किन्ही ,बढे हुए है बाल
कमल दलों से ,नाज़ुक,कोमल,हाथ तुम्हारे लाल
चुभ तुमको घायल ना करदे ,बालों का जंजाल
'घोटू'विहंस ,नायिका बोली,मोहे नहीं मलाल
कितनी बार चुभा  तुम दाढ़ी ,घायल किन्हें गाल
इस होली मै ,तुमको रंग कर,बरसा दूँगी प्यार
                     2
ऐसी, ऋतू बसंत की आई
स्वेटर ,शाल ढके दुबके थे,वो तन पड़े दिखाई
सूखे,फटे कपोलन पर ,अब आने लगी लुनाई 
बैठ गेलरी ,चाय पिवत ,बोली राधा ,अलसाई
तुम जल्दी घर पर आ जाना ,आज शाम कन्हाई
बहुत दिनों से  ,चाट पकोड़ी ,ना है हमने खायी 
देख मूड अच्छा राधा का,कान्हा मन मुस्काई
'घोटू'छुट्टी ले ,पूरे दिन  ,महिला दिवस मनाई

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, March 6, 2013

घोटू के दोहे

           घोटू के दोहे 
                1
नए  नए हम सीरियल ,देखा करते नित्य
किसको फुर्सत है भला ,पढ़े नया सहित्य 
                 2
ना तो  मीठे बोल है,ना सुर है ना तान
चार दिनों तक गूंजते ,फिर खो जाते गान
                    3
वो गजलों का ज़माना,मन भावन संगीत 
अब भी है मन में बसे ,वो प्यारे से गीत
                     4
साप्ताहिक था धर्मयुग ,या वो हिन्दुस्थान
गीत,लेख और कहानी,भर देते थे ज्ञान
                      5
कवि सम्मलेन रात भर,श्रोता सुनते मुग्ध
प्रहसन ,सस्ते लाफ्टर ,कर देते है क्षुब्ध
                        6
अंगरेजी का गार्डन ,फूल रहा है फ़ैल
एक बरस में एक दिन,बोते हिंदी बेल
                      7
छोटे छोटे दल बने,सब में है बिखराव
तो फिर कैसे आयेगा ,भारत में बदलाव

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेरो दरद न जाने कोई

              घोटू के पद
       मेरो दरद न जाने कोई 

हे री मै तो ,अति पछताती ,मेरो दरद न जाने कोई
घायल की गति,घायल जाने ,और न जाने   कोई
मंहगाई काटन को दौड़त,निसदिन जनता रोई
खानपान के दाम बढ़ गए ,मंहगी गेस रसोई 
रेल किराया ,बहुत बढ़ गया ,पिया मिलन कब होई
सत्ता में जिनको बैठाया ,फिकर  क़ा रे नहीं कोई
'घोटू'अब तो तब निपटेंगे ,फीर चुनाव जब होई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मेरो दरद न जाने कोई

              घोटू के पद
       मेरो दरद न जाने कोई 

हे री मै तो ,अति पछताती ,मेरो दरद न जाने कोई
घायल की गति,घायल जाने ,और न जाने   कोई
मंहगाई काटन को दौड़त,निसदिन जनता रोई
खानपान के दाम बढ़ गए ,मंहगी गेस रसोई 
रेल किराया ,बहुत बढ़ गया ,पिया मिलन कब होई
सत्ता में जिनको बैठाया ,फिकर  क़ा रे नहीं कोई
'घोटू'अब तो तब निपटेंगे ,नफीर चुनाव जब होई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

प्रियतम ,मैंने बाल रंग लिये

                घोटू के पद
       प्रियतम,मैंने बाल रंग लिये

प्रियतम ,मैंने बाल रंग लिये
तुम काले बालों की रमणी ,बाल हमारे ,श्वेत रंग लिए
कतराती हो ,तुम जाने में,कहीं घूमने ,मुझे संग लिए
मै पागल प्रेमी तुम्हारा ,प्रीत जताता ,मन उमंग लिए
तुम मुझको समझो हो बूढा बहुत दिन हुए ,मुझे अंग लिए 
छोड़ पाजामा ,कुरता ढीला,पहन आधुनिक,वसन तंग लिए
अब मै भी ,जवान दिखता हूँ,चलो घूमने ,मुझे संग लिए
'घोटू'देख ,प्रीत प्रीतम की ,पत्नी लिपटी,प्रीत रंग लिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मन,तू ,क्यों कूतर सा भागे

         घोटू के पद
  मन,तू ,क्यों कूतर सा भागे

मन तू,क्यों कूतर सा भागे
मै तेरे पीछे दौडत हूँ,और तू आगे आगे
भोर भये तू शोर मचावत ,घर की देहरी लांघे
तेरी डोर ,हाथ मेरे पर, सधे  नहीं तू साधे
इत  उत सूँघत ,पीर निवारे,इधर उधर भटकाके 
रहत सदा  चोकन्ना पर तू,रखे मोहे उलझाके
'घोटू'स्वामिभक्त कहाये,निस दिन नाच नचाके

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

घोटू के सवैये-रसखान का अंदाज

       घोटू के सवैये-रसखान का अंदाज
                  1
काँपे क्लर्क और चपरासी,बाबू, और अफसर घबराये
व्यापारी,सप्लायर ,ठेकेदार ,रोज ही शीश  नमाये 
जा की एक डांट से थर थर ,काँपे लोग,सहम सब जाये 
ताहे ससुर की छोहरिया ,अपनी उंगली पर नाच नचाये
                     2
माल में ढून्ढयो,बजारन , गलियन ,बाग़ बगीचे सब बिचरायन
कालिज को ले नाम गयो पर पहुँचो न ,प्रिंसिपल  बतलायन
ढूँढत  ढूँढत हार गयो ,'घोटू'  बतलायो न   ,लोग,  लुगायन 
देख्यो दुरयो  वह पीज़ा हट में,गर्ल फ्रेंड संग मौज उडायन 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै नहीं माखन खायो

               घोटू के पद 
      मै नहीं माखन खायो

बीबीजी मोरी ,मै नहीं माखन खायो
आध किलो माखन को टिक्को,कल ही तो थो आयो
आज तोहे वो कम लागत है,शक है मैंने  खायो
मोहे तो माखन वर्जित है,क्लोरोस्टाल  बढायो
होय  सकत है ,चूहा खायो,या गर्मी पिघलायो 
तेरे माखन से गालन से ,अब तो मन बहलायो
'घोटू'यह सुन बीबीजी खुश,ले उर कंठ लगायो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर ऊपर उठाना है

 सर ऊपर उठाना है

अगर आवाज को अपनी ,बुलंदी से सुनाना है
अगर सोये हुओ को जो,तुम्हे फिर से  जगाना है
बिना गर्दन किये ऊंची,न मुर्गा बांग दे सकता ,
तुम्हे भी आगे बढ  कर ,अपना सर ऊपर उठाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

होली के रंग-बुजुर्गों के संग

      होली के रंग-बुजुर्गों के संग


हम बुजुर्ग है ,एकाकी है

पर अब भी उमंग बाकी है

हंसी खुशी से हम जियेंगे,

जब तक ये जीवन बाकी है

अपनों ने दिल तोडा तो क्या ,

हमउम्रों का संग बाकी है

बहुत लड़ लिए हम जीवन में,

 अब ना कोई जंग बाकी है

मस्ती में बाकी का जीवन,

जी लेने के ढंग बाकी है

आओ मौज मनाये मिलकर ,

होली वाले रंग बाकी है

ऐसे होली रंग में भीजें,

सूखा कोई न अंग बाकी है


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, March 4, 2013

व्यथा कथा

          घोटू के पद             
          व्यथा कथा 
प्रीतम,तुम जागो मै सोऊँ 
अपनी प्रीत गजब की ऐसी  ,खुश होऊँ या रोऊँ
तुम खर खर खर्राटे भरती ,मै सपनो में खोऊँ
थकी रात को तुम जब आती,काम काज निपटा कर
इधर लिपटती ,निंदिया मुझसे ,मुझे अकेला पाकर
तुम भी सोता देख चैन से ,मुझको नहीं सताती
अपना पस्त शरीर लिए तुम,करवट ले सो जाती
और सुबह चालू  हो जाता,रोज रोज  का चक्कर
काम काज में तुम लग जाती,और मै जाता दफ्तर
कोई न कोई आये सन्डे को,मै कैसे खुश होऊँ
प्रीतम ,तुम जागो मै सोऊँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, March 2, 2013

मै और मेरी मुनिया

        मै और मेरी मुनिया

तुम कहते हो बड़े गर्व से ,
                         मै  अच्छा और मेरी मुनिया
कोई की परवाह नहीं है ,
                         कैसे,क्या कर लेगी दुनिया 
पैसा नहीं सभी कुछ जग में ,
                       ना आटा ,या मिर्ची ,धनिया
सबका अपना अपना जीवन,
                       राजा ,रंक ,पुजारी,बनिया  
कोई भीड़ में  नहीं सुनेगा,
                       रहो बजाते,तुम  टुनटुनिया 
उतने दिन अंधियारा रहता ,
                        जितने दिन रहती चांदनियां
तन रुई फोहे सा बिखरे ,
                        धुनकी जब धुनकेगा  धुनिया  
ये मुनिया भी साथ न देगी,
                         जिस दिन तुम छोड़ोगे दुनिया

मदन मोहन बहेती'घोटू'

छलनी छलनी बदन

        छलनी छलनी बदन

थे नवद्वार,घाव  अब इतने ,मेरे मन को भेद हो गये
रोम रोम हो गया छिद्रमय ,तन पर इतने छेद हो गये
कुछ अपनों कुछ बेगानों ने ,
                                 बार बार और बात बात पर
मुझ पर बहुत चुभोये खंजर,
                                 कभी घात और प्रतिघात कर
क्या बतलाएं,इन घावों ने ,
                                 कितनी पीड़ा पहुंचाई है
अपनों के ही तीर झेलना ,
                                  होता कितना दुखदायी है
भीष्म पितामह से ,शरशैया ,
                                  पर लेटे है ,दर्द छिपाये 
अब तो बस ये इन्तजार है,
                                 ऋतू बदले,उत्तरायण आये
  अपना वचन निभाने खातिर ,हम तो मटियामेट  हो गये
 रोम रोम होगया छिद्रमय  ,तन पर इतने छेद   हो गये
शायद परेशान वो होगा ,
                                जब उसने तकदीर लिखी थी
सुख लिखना ही भूल गया वो ,
                                बात बात पर पीर लिखी थी
लेकिन हम भी धीरे धीरे ,
                                पीड़ा के अभ्यस्त  हो गये
जैसा जीवन दिया विधि ने,
                                 वो जीने में व्यस्त हो गये
लेकिन लोग बाज ना आये ,
                              बदन कर दिया ,छलनी छलनी 
पता न कैसे पार करेंगे ,
                              हम ये जीवन की बेतरणी 
डर है नैया डूब न जाये ,इसमें इतने छेद  हो गये
रोम रोम हो गया छिद्रमय,तन पर इतने छेद हो गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, March 1, 2013

हर दिन होली

                हर दिन होली

खाना पीना ,मौज मनाना,मस्ती और ठिठौली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
रोज सुबह जब आँखें खुलती,तो लगता है जनम हुआ
 रात बंद जब होती आँखें,तो लगता है मरण हुआ 
यादों के जब पत्ते खिरते,लगता है सावन आया
अपनों से मिलना होने पर ,ज्यों बसंत हो मुस्काया
ऐसा लगता फूल खिल रहे ,जैसे कोयल  बोली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है
दुःख के शीत भरे झोंकों से,ठिठुर ठिठुर जाता तन है
और जब सुख की उष्मा मिलती ,पुलकित हो जाता मन है
जब आनंद फुहार बरसती,लगता है सावन आया
दीप प्रेम के जला किसी ने,होली का रंग बरसाया
लगता जीवन के आँगन में,जैसे सजी रंगोली है
अपनी तो हर रात दिवाली,और हर एक दिन होली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सबसे बड़ा सत्संग -पति के संग

   सबसे बड़ा सत्संग -पति के संग 

मै तो चाहूं ,संग  तुम्हारा ,और तुम डूबी हो सत्संग में
तुम्हारे इस धरम करम से ,बहुत हो  गया हूँ अब तंग मै 
जब देखो तुम ,भाग भाग कर ,
                                कथा भागवत  सुनने  जाती 
सात दिनों का लंबा चक्कर ,
                                पर फिर भी तुम नहीं अघाती
सोचा करती,स्वर्ग मिलेगा,
                              
    व्यासपीठ पर  दान चढ़ा कर 
और रहती हो,भूखी दिन भर,
                                   एक वक़्त बस खाना खाकर
पत्नी के कर्तव्य भुला कर,
                                   घर गृहस्थ की जिम्मेदारी
पुण्य कमाने के चक्कर में ,
                                   भटक रही हो ,मारी मारी
एक बार सुनना काफी है ,
                                  वही भागवत ,वही कथा है
बार बार तुम सुनने जाती ,
                                   मे्रे मन में यही व्यथा है 
चन्द भजनियों ने खोली है,  
                                   कथा भागवत की दूकाने 
दे जनता को पुण्य प्रलोभन ,
                                       लगे हुए है भीड़ जुटाने 
सुनो भागवत,मोक्ष मिलेगा ,
                                       टिकिट स्वर्ग का बाँट रहे है
भोली जनता को फुसला  कर ,
                                    अपनी चाँदी  काट रहे  है
कुछ बूढी,अधेड़ सी सासें ,
                                 बचने घर की रोज  कलह से
कथा भागवत के चक्कर में ,
                                 घर से जाती,निकल सुबह से
कुछ बूढ़े ,बेकार निठल्ले,
                                  आ जाते है ,समय  काटने
अपने ही हमउम्र साथियों ,
                                   से अपना दुःख दर्द बांटने
कुछ परसादी भगत और कुछ,
                                  श्रोता ,देखा देखी  वाले
यही सोच कर ,आ जुटते है ,
                                    हम भी थोड़ा ,पुण्य कमालें
और कथा वाचक पंडितजी ,
                                     पहले हैं ,खुद को  पुजवाते
कुछ पढ़ते,कुछ गढ़ते और कुछ,
                                     प्रहसन और  प्रसंग सुनाते
लगता श्रोता ,लगे ऊंघने ,
                                   भजन कीर्तन ,चालू करते
दान दक्षिणा ,हर प्रसंग पर ,
                                    चढवा  अपनी झोली भरते 
ये    आयोजन ,लाखों के है ,
                                     अब ये सब ,दुकानदारी है
ये सब चक्कर ,छोड़ो मेडम ,
                                     इसमें  बड़ी समझदारी है
ध्यान लगाओ ,परमेश्वर में ,
                                    और पति परमेश्वर होता है
पत्नी के कर्तव्य निभाना ,
                                   सब से बड़ा  धरम  होता है
अपने ढंग से जीवन  जी लें,तुम रंग जाओ ,मेरे रंग में
मै तो चाहूं ,संग तुम्हारा ,और तुम डूबी हो सत्संग में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'