Tuesday, August 5, 2014

आम और आम आदमी

         आम और आम आदमी

जो कच्ची केरियां होती,तो खट्टी,चटपटी होती,
उनका अचार या बनता मुरब्बा, जाम , खाते  है
और जब पकने लगती है ,तो खिलने लगती है रंगत ,
महक,मिठास आता है ,मज़ा सब ही उठाते है
सही जब तक पकी हो तो ,तभी तक स्वाद देती है,
अधिक पकने पे सड़ जाती ,लोग खा भी न पाते  है
ये किस्सा केरियों का ही नहीं,सबका ही होता है ,
आम के गुण ,हरेक आम आदमी मे पाये जाते है

घोटू 

बादल और धरती

            बादल और धरती

बड़े सांवले से ,बड़े प्यारे प्यारे
ये बादल नहीं ,ये सजन है हमारे
कराते प्रतीक्षा ,बहुत, फिर ये आते
मगर प्रेम का नीर इतना  बहाते
मेरे दग्ध दिल को ,ये देतें है ठंडक
बरसते है तब तक ,नहीं जाती मैं थक
ये  रहते है जब तक,सताते है अक्सर
कभी सिलसिला ये ,नहीं थमता दिनभर
मेरी गोद भरते ,चले जातें है फिर
भूले ही भटके,नज़र आते है फिर
शुरू होती नौ माह की इंतजारी
पिया मेरे बादल,धरा हूँ मैं प्यारी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैया,चल अब अपने देश

      घोटू के पद

मैया,चल अब अपने देश
रोज रोज की माथाफोड़ी ,रोज रोज का क्लेश
कल के चमचे,आज कोसते,हँसता सारा देश
बहुत हो गयी छीछालेदर ,बदल गया परिवेश
बहुत जमा अपना पैसा है, वहां  करेंगे  ऐश
माँ बोली सुन मेरे बेटे,मत खा ज्यादा तेश
मुझे पता है तेरे दिल को ,लगी बहुत है ठेस
अगर गए तो ,गलत जाएगा,लोगों में सन्देश
नहीं हाथ से जाने देंगे, पर हम  ये  कांग्रेस 
सही समय है ,शादी करले,कर थोड़े दिन ऐश
दिन बदलेंगे ,बुरे आज के,दिन न रहेंगे शेष

घोटू