Friday, September 30, 2011

रात मै कैसे काटूं

रात मै कैसे काटूं
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तुम बिस्तर लेटे ही थे,नींद तुम्हे आ गयी
कितनी ही बातें करनी थी,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ
क्या बतलाऊं ,क्या क्या होता ,दिन भर मेरे संग
सास ससुर की सेवा और फिर बच्चे करते तंग
ननदें रहती नाक सिकोड़े,फरमाइश देवर की
कपडे,बर्तन,झाड़ू पोंछा,और सफाई घर की
तुम आते दफ्तर से थक कर,व्यस्त ,पस्त बेचारे
खाना खाते और सो जाते,झट से पाँव पसारे
दो मीठी बातें करने का,समय तुम्हे है नहीं
कितनी ही बातें करनी है,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ
शादी अपनी नयी नयी थी,वो क्या दिन होते थे
एक दूजे की बाहों में हम,जगते थे,सोते थे
बातें इतनी होती थी की जिनका अंत नहीं था
वैवाहिक जीवन का तो असली आनंद वही था
अब मन कुछ मांगे भी तो तुम,मुश्किल से जग पाते
बस अपना कर्तव्य निभा कर,फिर झट से सो जाते
 सभी कामनायें दब कर के,मन में ही रह गयी
कितनी ही बातें करनी है,कही और अनकही
रात मै कैसे काटूं
दर्द मै किससे बाटूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

महाभारत-आठ दोहे

महाभारत-आठ दोहे
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मै हूँ प्यासा युधिष्ठिर,तुम जल भरा तलाब
यक्ष प्रश्न का तुम्हारे,दूंगा सभी जबाब

तुम हो मछली घूमती,रहा तुम्हे मै ताक
प्रेम तीर एसा चले,कि बिंध जाए  आँख

मुझ पर रीझी उर्वशी,मांगे प्रेम प्रसाद
श्राप मिले ,पर ना रमण,करूं और के साथ

कुरुक्षेत्र कि तरह है,घर,गृहस्थ,मैदान
तुम कहती सब से लड़ो,ये गीता का ज्ञान

इस विराट के महल में,सबके अपने कृत्य
अर्जुन जैसे योद्धा,सिखलाते हैं नृत्य

चक्रव्यूह तुमने रचा,पहन आवरण  सात
सातों वाधाएं हटे, अभिमन्यु के हाथ

राह दिखाओ पति को,यदि पति है जन्मांध
गांधारी सी मत रहो,आँख पट्टियां  बाँध

प्रेम गली सकड़ी नहीं,कृष्ण कहे मुसकाय
आठ लें कि सड़क है,आठ रानियाँ आय

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नवरात्रि

नवरात्रि
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दूध  जैसी धवल शीतल हो छिटकती चांदनी
पवन मादक,गुनगुनाये,प्रीत की मधु रागिनी
तारिकायें,गुनगुनायें,ऋतू मधुर हो प्यार की
रात हो मधुचंद्रिका सी,मिलन के त्योंहार की
गगन से ले धरा तक हो,पुष्प की बरसात सी
सेज जैसे सज रही,पहले मिलन के रात की
मदभरी सी हो निराली,रात वह अभिसार की
महक हो वातावरण में,प्यार की बस प्यार की
लाज के,संकोच के,हो आवरण सारे  खुले
प्यास युग युग की बुझे,जब बहकते तन मन मिले
तुम शरद के चाँद की  आभा  लिये सुखदात्री हो
संग तुम्हारे बितायी,रात्रि हर, नवरात्रि हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'