Thursday, July 28, 2016

जाने क्या क्या बातें आती

मेरे मन में जाने क्यों क्यों,जाने क्या क्या बातें आती
कोई मुदित कर देती मन को,कोई चुभन देती,तड़फाती

कुछ यादें रंगीन पलों की,कुछ यादें संगीन पलों की
कुछ ऐसी ही,इधर उधर की,कुछ गम्भीर हुए मसलों की
कुछ बचपन की नादानी की ,कुछ उस यौवन तूफानी की
कुछ शादी वाले बन्धन की ,और कुछ अपनी मनमानी की
कुछ मस्ती की,कुछ पत्नी के साथ बिताये मधुर क्षणों की
कुछ अपने से बेगानो की ,कुछ बेगाने से अपनों की
कभी हृदय प्रमुदित होता है ,कभी आँख ,आंसू बरसाती
मेरे मन में जाने क्यों क्यों ,जाने क्या क्या बातें आती

कभी गाँव वाले उस घर की ,कुछ उसकी छत,कुछ आंगन की
कुछ बारिश में ,छप छप करते,नाव तैराते ,उस बचपन की
कुछ अ ,आ  इ ई से लेकर ए बी सी डी  पढ़ने तक की
कुछ कॉलेज की,कुछ दफ्तर में ,इतना ऊपर बढ़ने तक की
वाह वाह करते चमचों की ,कुछ गाली देते निंदक की
चलचित्रों सी ,आँखों आगे ,घटनाएं आती अब तक की
कोई हंसाती,कोई रुलाती,और कोई दिल को तड़फाती
मेरे मन में ,जाने क्यों क्यों,जाने क्या क्या,बातें आती

जीवन के इस ढलते पल मे ,कौन हमारा ,कौन तुम्हारा
सभी व्यस्त ,अपने अपने में ,यादें ही है एक सहारा
यूं ही बस  यादों में डूबे ,कितना वक़्त गुजर जाता है
कभी नींद सी आ जाती है,मन सपनो से भर जाता है
वो दिन भी अब दूर नहीं है  ,थोड़े दिन के बाद एक दिन
यादों में खोये हम तुम भी ,बन जाएंगे  याद एक दिन
सबकी यही नियति होनी है ,पर ये बात समझ ना आती
मेरे मन में ,जाने क्यों क्यों ,जाने क्या क्या बातें आती

मदनमोहन बाहेती'घोटू'
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
क्या सिर्फ इसलिए कि बूढ़े ,जितने बुजुर्ग थे तुम्हारे
बरसों  से  करते  आये  है , ये  आडम्बर  सारे  सारे
ये पारिवारिक परम्परा ,निभने की आवश्यकता है
आस्था से नहीं निभाया तो ,कोई अनिष्ट हो सकता है
तार्किक बुद्धि से सोचो तो ,ये सब लगते है  बचकाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम अगर कहीं जाने को है और बिल्ली रस्ता काट गयी
तुम कहते हो कि रुक जाओ ,यह शकुन हुआ है सही नहीं
जो पड़ा सामने  एकाक्षी  या दिया किसी ने अगर  छींक
तुमको वापस रुकना  होगा ,ये शकुन हुआ है नहीं ठीक
ये तो नित की घटनाएं है ,होती  रहती  है  अनजाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
तुम कहते मन्दिर जाओ पर,यदि सच्ची श्रद्धा ना मन में
तो फिर ढकोसला होता है ,क्या रख्खा है उस पूजन में
ये कृपा  उसी परमेश्वर    की  ,सबके भंडार भर रहे  है
हम उस  पर चढ़ा चंद रूपये ,उसका अपमान कर रहे है
कुछ करते हम दिनचर्या सा ,और कुछ करते है दिखलाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?
हम बात तुम्हारी ना सुनते ,टोका करते तुम नित्य हमें
हर बात तुम्हारी मानेंगे ,बस बतला दो  औचित्य  हमें
हम तर्क करें तो बहसबाज ,जो तुम कहते हो वही सही
पर दिल,दिमाग जो ना माने ,वो बात हमे मंजूर नहीं
हम वो सब करने को राजी ,जो सत्य  हमारा दिल जाने
हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'