रजाई-मन भायी -सर्दी आयी
अभी तक हम ओढ़ते थे चादरें
आयी सर्दी,चादरें ,उससे डरें
कुछ दिनों कम्बल का ही सम्बल रहा
पर नहीं अब कम्बलों में बल रहा
पड़ी जबसे ,सर्दियों की ग़ाज है
आजकल बस रजाई का राज है
नरम ,सुन्दर,मुलायम और मखमली
ओढ़ने में बहुत लगती है भली
उष्मा का संचार ये तन में करे
सदा जिसमे दुबकने को मन करे
कितनी है नरमाई इसके तन भरी
सर्दियों में रात की ये सहचरी
मज़ा आता इसे तन पर ओढ़ कर
जी नहीं करता है जाओ छोड़ कर
पहलू में निज बाँध ये लेती हमें
शयन का भरपूर सुख देती हमें
सर्दियों की होती खुश नसीबी है
एक रजाई और संग में बीबी है
जब भी आते इनके हम आगोश में
सच बता दें,नहीं रहते होंश में
इस तरह से ,रजाई मन भाई है
आजकल गरमाई ही गरमाई है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अभी तक हम ओढ़ते थे चादरें
आयी सर्दी,चादरें ,उससे डरें
कुछ दिनों कम्बल का ही सम्बल रहा
पर नहीं अब कम्बलों में बल रहा
पड़ी जबसे ,सर्दियों की ग़ाज है
आजकल बस रजाई का राज है
नरम ,सुन्दर,मुलायम और मखमली
ओढ़ने में बहुत लगती है भली
उष्मा का संचार ये तन में करे
सदा जिसमे दुबकने को मन करे
कितनी है नरमाई इसके तन भरी
सर्दियों में रात की ये सहचरी
मज़ा आता इसे तन पर ओढ़ कर
जी नहीं करता है जाओ छोड़ कर
पहलू में निज बाँध ये लेती हमें
शयन का भरपूर सुख देती हमें
सर्दियों की होती खुश नसीबी है
एक रजाई और संग में बीबी है
जब भी आते इनके हम आगोश में
सच बता दें,नहीं रहते होंश में
इस तरह से ,रजाई मन भाई है
आजकल गरमाई ही गरमाई है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'