Thursday, September 30, 2010

ye yugm shikarये युग्म शिखर

सागर की लहरों का योवन,सरिता का कल कल स्पंदन
ये उन्नत उन्नत युग्म शिखर,जिनमे हर पल हर क्षण कम्पन
जैसे पुष्पों में बिकसे फल,फल में भी पुष्पों का सौरभ
योवन के उपवन की बहार, माता की ममता के गौरव
इन में अपरिमित वात्सल्य ,ममता से भी ज्यादा ममत्व,
है घनीभूत इन पुंजों में,सुन्दरता का सारा रहस्य
ये मादकता से भी मादक,ये कोमलता भी कोमल
कितने सुंदर चंचल मनहर ,ये स्नेहिल ममता के निर्झर
जैसे की क्षीर सरोवर में ,हो खिले हुए दो श्वेत कमल
या एक साथ हो चमक रहे,ज्यों भुवनभास्कर ,रजनीकर
या सुधा भरे ये युगल कलश,ममता मादकता का संगम
कितना स्निग्ध कितना कोमल,ये गंगा जमुना का उदगम
इनके स्पंदन कम्पन में,मुखरित होते जीवन के स्वर
ये ज्योतिर्पुंज कर रहे है ,आलोकित प्रणय विभा सुंदर
जब खुद अपना ही ह्रदय भेद,कर प्रकटे है ये युग्म शिखर
तो औरों के उर भेदन में,इनको लगता केवल पल भर
मन को चुभ चुभसा जाता है,स्वछंद मचलता सा योवन
पर आलिंगन के बंधन में बढता है इनका तीखापन
सुन्दरता का रस छिपा हुआ है,इन्ही वक्र रेखाओ में
नारी तन का सारा सोश्तव, सिमटा है इनकी बाँहों में
कटी कंचन कट विधि ने जब,ममता की माटी में घोला
अपनी सम्पूर्ण कलाओं को ,पहनाया यह जीवित चोला
गढ़ डाले ये स्तूप युगल, तो अमर हो गयी सुन्दरता
रह गया देखता खुद अपनी ,रचना को वह सृष्टिकर्ता
लख मूर्त रूप सुन्दरता का,यदि दोल गया आराधक मन
कोमल कगार पर फिसल गयी,चंचल दृग की चंचल चितवन
ये दोष नहीं है चितवन का,ये मौन निमंत्रण देते है
ये दो उभरे नवनीत शिखर ,जब खुद आमंत्रण देते है
पुष्पों का सौरभ पाने को,सबका ही मन ललचाता है
इनका आलिंगन पाने को,जी किसका नहीं चाहता है
वह नजर नजर ही नहीं अगर,इनको देखे और न फिसले
वह जिगर जिगर ही नहीं अगर,इनको देखे और न मचले
वह रूप रूप ही नहीं अगर,उसमे कोई आव्हान न हो
सौन्दर्य सार्थक न तब तक,जब तक उसका रसपान न हो

These two hillocks (breasts)

Like tidal waves of oscean
And gentle flowing of river
These two beautiful hillocks
Are vibrant always, ever
Like fruits have grown on flowers
And having the fragrance of flowers
Blooming in the garden of youth
And proud possession of mother
They are full of love for child
And are symbols of motherhood’s pride
All the secrets of women’s beauty
Are concentrated on this hill site
They are more exciting then excitement
And are softer than softness
These fountains of love for child
Are beautiful and full of goodness
Like two lotus are blooming
In a poand that is milky white
Or sun and moon are shining
Both together in the night
Or these two pots full of nector
Combination of excitement and motherhood
These origins of river ganga jamuna
Are so soft lovely and good
The vibrations of these hillocks
Are singing the song of life
These two objects of light
Are brightening lovers night
These two hillocks have come out
By piercing their own heart
It heardly takes a moment
To pierce any boady’s heart
These bubbling symbols of youth
Pricks hearts of all with grace
But their sharpness increases
Manyfold when you embrace
All the secrets of women’s beauty
Is hidden in these beautifull curves
The built up of women’s boady
Is concentrated in these hemispheres
After cutting gold from body’s waist
God mixed it with motherhood’s charm
With all His artistic talents
Gave the mixture this beautifull form
He made these two lovely hillocks
And immortal beauty blazed
So beautifull was His creation
That He gazed and gazed and gazed
By seening these symbols of beauty
If your heart get perplexed
On the peaks of these beautifull mountains
Your eyes remain stayed
This is not the fault of eyes
They silently call for attention
These two lovely hills of butter
Are giving you an invitation
Who will not like to enjoy
The soothing fragrance of flowers
Who will not like to embrace
These two beautifull towers
That eye is not an eye
Which does not look when they are sited
That heart is not a heart
Who sees them and is not excited
That beauty is not a beauty
If does not have attraction
The real meaning fullness of beauty
Is when it is enjoyed with passion

Monday, September 27, 2010

मैंने पंखुड़ी में गुलाब की,हंसती बिजली ना देखी थी

मैंने पंखुड़ी में गुलाब की,हंसती बिजली ना देखी थी
बारह मास रहे जो छाई ,ऐसी बदली ना देखी थी
ना देखे थे क्षीर सरोवर,उनमे मछली ना देखी थी
सारी चीजे नज़र आ गई मैंने तुझको देख लिया है
तीर छोड़ फिर तने रहे वो तीर कमान नहीं देखे थे
पियो उम्र भर पर ना खाली हो वो जाम नहीं देखे थे
गालों की लाली में सिमटे वो तूफ़ान नहीं देखे थे
सारी चीजें नज़र आगई मैंने तुझको देख लिया हैं
चमके पूनम और अमावास ऐसा चाँद नहीं देखा था
गंगा जमुना के उदगम का ये उन्माद नहीं देखा थाi
जहाँ फूल में फल विकसे हों ऐसा बाग नहीं देखा था
सारी चीजें नज़र आगई मैंने तुझको देख लिया हैं
ढूंढा घट घट ,घट पर पनघट ,घट पनघट पर ना देखे थे
सरिता की लहरों में मैंने भरे समंदर ना देखे थे
कदली के स्तंभों ऊपर लगे आम्र फल ना देखे थे
सारी चीजें नज़र आगई मैंने तुझको देख लिया है

I HAVE SEEN YOU DEAR

I had never seen a spark
Of lighting in a rose petal
I had never seen a cloud
That remains for the whole year
I had never seen milk ponds
And fished swimming here and there
But now I have seen everything
Because I have seen you dear
After throwing the arrow
The bow remains always tight
The glass that remains full of juice
Though you drink day and night
Never seen such storms
In the blushing of cheeks so right
But I have seen every thing
Because I have seen you dear
I never seen such a moon
That shines day and night
The orgin of Ganga and Jamuna
So exciting and so bright
Where fruits bloom in flowers
Such garden was never in sight
But I have seen everything
Because I have seen you dear
Pot on a pot on a pot
I have not seen here and there
Tidal waves of ocean
In the gentle flowing of River
On a smooth banana tree
The mangos have grown ever
But I have seen every thing
Because I have seen you dear

Sunday, September 26, 2010

जीवन के मधुरिम बसंत में

जीवन के मधुरिम बसंत में लगता फूला जग का उपवन
रस की लोभी मधुमख्खी सी चंचल दृग की चंचल चितवन
महक रहे कलियों फूलो का नित रसपान किया करती है
मधु संचय हित उर में छत्ते का निर्माण किया करती है
किन्तु एक ऐसा भी मोका आता है मानव जीवन में
जब संचित रस का अधिकारी कोई छा जाता है मन में
कर लेती है रसिक प्रियतमे जब रसपान मधु संचय का
तो केवल छत्ता बचता है होता ह्रदय मोम मानव का
जो थोड़ी सी गर्मी पाकर झट से पिघल फिघल जाता है
जब ये छत्ता गल जाता है समझो योवन ढल जाता है
तो ओ मोम ह्रदय दिलवालों,घोटू यही कहा करता है
रस तो थोड़े ही दिन रहता फिर तो मोम रहा करता है
इसीलिए यदि सुन्दरता का दृग रसपान करे करने दो
रस संचय में कभी न चूको;छत्ते को रस से भरने दो

JEEVAN KE MADHURIM BASANT MEIN

IN THE PRIME OF OUR YOUTH
THE WORLD LOOKS BLOOMING WITH FLOWER
AND EYES LIKE GREEDY BEES
WANDER HERE AND THERE
AND KISSESAND SUCKS THE JUICE
FROM FLOWERS BEAUTIFUL AND NICE
AND MAKES A HONEYCOMB IN HEART
TO COLLECT THE NECTOR OF LIFE
BUT THEN COMES IN YOUR LIFE
SOME CHARMING,LOVELY DEAR
WHO STARTS LIVING IN YOUR HEART
AND OWNS THE STOCK OF NECTOR
ANDSLOWLY SLOWLY AND SLOWLY
THAT DARLING BEAUTIFUL WIFE
WITH ALL THE LOVE AND AFFECTION
SUCKS ALL THE NECTOR OF LIFE
AND EMPTY BECOMES THE COMB
A LUMP OF WAX ,IT IS FELT
WITH A VERY LITTLE OF WARMTH
THE WAX STARTS GETTING MELT
THAT’SWHY WE BECOME SOFT HEARTED
WHEN OLDER AND OLDER WE GROW
THE JUICE IS ONLY IN YOUTH
IT IS WAX LATER THAT FLOW
HENCE WHENEVER YOU SEE ABEAUTY
LET BEES OF YOUR EYES FLY
AND KEEP THE HONERCOMB REFILLING
DO’NT MISS JUST TRY AND TRY

chaya ka pyala

चाय का प्याला

एक बार जब नीलगिरी में
पहुँच गया मैं मतवाला
हरी ओदनी में बेठी थी
एक सलोनी सी बाला
बोली मुझको देख रहे क्यों
प्यार भरी नज़रों से तुम
मुझको पाना हो तो पीलो
गरम चाय का एक प्याला

रोज़ लगा कराती होठों से
रंग गुलाबी है प्यारा
जिसके रगरग में गर्मी है
रातों हमें जगा डाला
यदि बिस्तर पर मिल जाये तो
कितनी प्यारी लगती है
पत्नी के सब गुण हैं जिसमे
वो है चाय भरा प्याला

भला बताओ किसके मन में
नहीं चाह की है ज्वाला
बोलो जग में कौन नहीं है
किसी चाह में मतवाला
टेडी मंदी चाह रह है,
मुश्किल राहत चाहत में
चाह राह में आह मिले तो
पीयो चाय भरा प्याला

रूप जल भ्रमजाल कठिन है
खोया मई भोलाभाला
श्वेत रंग में मन उलझा कर
भटक रहा था मतवाला
लेकिन एक सलोनी बाला
मुझे रास्ता दिखा गयी
कला तन रस रंग गुलाबी
मिला चाय का एक प्याला

भेद भाव को दूर भगाने,
होटल है मंदिर आला
जिस प्याले से भंगी पीता,
उससे ही पीता लाला
मेरा अगर चले बस तो
हर मंदिर में होटल खोलू
चरणामृत के बदले बाटू
सबको चाय भरा प्याला

दूध दही की नदिया बहती,
है यह बात बड़ी आला
लेकिन इस पर नहीं भरोसा
करता कोई समझ वाला
अरे दूध काभी क्या पीना,
वो तो बच्चे पीते है
समझदार की परिभाषा है,
पीये चाय भरा प्याला

गंगा जैसी बहती आई,
उजली दूध भरी धरा
सरस्वती सी शकर गुप्त थी,
जमना जैसी जल धारा
रेती ने रंग किया गुलाबी,
जब ये तीनो धर मिली
ये ही संगम,ये ही त्रिवेणी
ये है चाय भरा प्याला

कभी कंही कोई उपवन में,
हरी भरी थी एक बाला
प्रेमी ने दिल जला दिया तो,
जल कर रंग हुआ कला
अरमानो का खून जमा है
पर उस काली काया में
जो आंसू से घुलमिल बनता,
गर्म चाय जा एक प्याला

रोज सुबह जलती है लाखों
के मन में किसकी ज्वाला
रोज सुबह लाखों होठों को
कौन चूमता मतवाला
रोज सुबह किसका आना सुन
आँखों में आती रौनक
कई करोड़ों प्रेमी जिसके
वह है एक चाय प्याला


अगर प्रियतमा पास नहीं हो
और समा हो मतवाला
तारे गिन गिन रात गुजारा
करता था प्रिय दिलवाला
विरही दिल की विरह वेदना
कम करने आया जग में
आँखों में ही रात कटे यदि
पियो चाय का एक प्याला


जिन होठों को चूमा करता
रोज रोज ही जो प्याला
उस प्याले को चूम रहा मैं
खुशनसीब हूँ मतवाला
इसका मतलब किसी तरह भी
मैंने उनको चूम लिया
प्रेमी दिल की प्यास बुझाने
आया चाय भरा प्याला


देखी होगी मधुबाला भी
देखी होगी मधुशाला
छलक जाए जो जाम अगर तो
बिखर जाए सारी हाला
पर यदि छलके तो नीचे
आस लगाये प्लेट पड़ी
हाला से ज्यादा प्यारा है
सबको चाय भरा प्याला

दृश्य अभी भी बसा हुआ है
मन में प्रथम मिलन वाला
शरमा सकुचाती आई तुम
नजरें झुका लिए प्याला
मैंने भी झुक तेरी पहली
छवि देखी थी प्याले में
फिर होठों से लगा लिया था
तेरा चाय भरा प्याला

श्राद्ध

श्राद्ध
एक दिन बाद
बहू को आया याद
अरे कल था ससुरजी का श्राद्ध
आधुनिका बहू ने क्या किया
डोमिनोस को फोन किया
और एक पिज़ा पंडितजी के यहाँ भिजवादिया
ब्राहमण भोजन का ये मोडर्न स्टाइल था
दक्षिणा के नाम पर कोक मोबाइल था
रातससुरजी सपने में आये
थोड़े से मुस्कराए
बोले शुक्रिया
मरने के बाद ही सही,याद तो किया
पिज़ा अच्छा था,भले ही लेट आया
मैंने मेनका और रम्भा के साथ खाया
उन्हें भी पसंद आया
बहू बोली,अच्छा तो आप अप्सराओं के साथ खेल रहे है
और हम यहाँ कितनी मुसीबतें झेल रहे है
महगाई का दोर बड़ता ही जाता है
पिज़ा भी चार सो रुपयों में आता है
ससुरजी बोले हमें सब खबर है भले ही दूर बैठें है
लेट हो जाने पर डोमिनो वाले भी पिज़ा फ्री में देते है

shradha

श्राद्ध
जीते जी तीर्थ न करवाए मरने पर संगम जाओगे
भर पेट खिलाया कभी नहीं पंडित को श्राद्ध खिलाओगे
बस एक काम ही ऐसा है जो तब भी किया और अब भी किया
जीते जी बहुत जलाया था मरने पर भी तो जलाओगे

Tuesday, September 21, 2010

पो फटी

पो फटी
कलियाँ चटकी
भ्रमरों के गुंजन स्वर महके
डाल डाल पर पंची कहके
गों रामभाई
मंदिर से घंटा ध्वनि आई
शंखनाद भी दिया सुनाई
मंद समीरण के झोंको ने आ थपकाया
प्रकृति ने कितने ही स्वर से मुझे जगाया
लेकिन मेरी नींद न टूटी
किन्तु फ़ोन की एक घंटी से मैं जग बैठा
कितना भौतिक
मुझको है धिक्

Sunday, September 19, 2010

व्यथा कथा

व्यथा कथा - 1

सपनो के कपडे ,सब के सब सिल गए
और बची रह गयी ,कतरन सी यादें
इन्ही चिंदियों की ,गुदड़ी को ओड ओड
करता हू प्रयास,बचने की ठिठुरन से
मैं एकाकीपन की

_________________

व्यथा कथा - 2

पौधों को सींच सींच
रीत गए सब कूएँ
सागर में जल भरते
सूख गयीं सरिताएं
सूरज की ऊष्मा से
जाने कब उमड़ेंगे
घुमड़ घुमड़ घने मेघ
फिर से जल बरसाने

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व्यथा कथा - 3

समय की हांडी में
पाक गया सब कुछ
सबने मिल बाँट लिया
बची रह गयी बस
हांडी की कोने में थोड़ी सी खुरचन
चाहत है बस यही, ऐसा कुछ बन जाए
मेरी यह हांडी फिर से
द्रौपदी के अक्षय पात्र की तरह
लबालब भर जाए

व्यथा कथा

सपनो के कपडे ,सब के सब सिल गए
और बची रह गयी ,कतरन सी यादें
इन्ही चिंदियों की ,गुदड़ी को ओड ओड
करता हू प्रयास,बचने की ठिठुरन से
मैं एकाकीपन की

कौन कहता है की हम बूढ़े हुए हैं

आँख में इतने अनुभव बस गए हैं इसलिए कुछ धुंधलका सा छा गया है.
बाल में यूँ चांदनी बिखरी हुई है ज्यों तिमिर छट कर उजेला आ गया है.
बदन पर ये झुर्रियों के साल नहीं हैं ये कथाएँ हमारे संघर्ष की हैं.
खाई ठोकर, गिरे, संभले फिर बढे, यही गाथा हमारे उत्कर्ष की है.
हम झुके थे तुम्हें ऊंचा उठाने को इसलिए ये कमर थोड़ी झुक गयी है.
चाहते थे हमसे भी आगे बढ़ो तुम इसलिए ये गति थोड़ी रुक गयी है.
अगर ढलने लग गए तो क्या हुआ, चमकते हैं आज भी, आफ़ताब हैं.
कौन कहता है की हम बूढ़े हुए हैं, आज भी हम जवानो के बाप हैं.