Friday, October 23, 2015

ऐसा क्यूँ होता है ?

        ऐसा क्यूँ होता है ?

मिलन के रात हो ,नींद नहीं आती है
पिया जब साथ हो,,नींद नहीं  आती है
खुशी की बात हो,नींद  नहीं   आती है
दुःख ,अवसाद हो ,नींद नहीं   आती है
पेट जब भूखा हो, नींद नहीं आती है
अधिक लिया खा हो,नींद नहीं आती है
हाल ,बदहाल  हो,नींद नहीं आती है
जमा खूब माल हो,नींद नहीं  आती है
आप परेशान हो,नींद नहीं आती है
सर्दी या जुकाम हो,नींद नहीं आती है 
बहुत अधिक गर्मी हो,नींद नहीं आती है
बहुत अधिक सर्दी हो ,नींद नहीं आती है
यदि निर्मल काया है,जी भर के सोता है
घर में ना माया है ,जी भर के सोता है
मेहनतकश थक जाता ,जी भी के सोता है
जब घोडा बिक जाता ,जी भर के सोता है
निपट जाती जब शादी,जी भर के सोता है
बिदा बेटी हो जाती ,जी भर के सोता  है
चिंता ना करता है,जी भर के  सोता है
या फिर जब मरता है,जी भर के सोता है
कई बार सोच सोच,'घोटू ' ना सोता है
 नींद नहीं आती है,ऐसा क्यूँ   होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संगत का असर

          संगत का असर

एक कथा ,आपने सुनी हो या ना सुनी,
फिर से सुनाता हूँ
संगत का असर कैसा होता है,
बतलाता हूँ
समुद्र मंथन के बाद जब अमृत निकला
उसे पाने को,
देवता और दानव में,आरम्भ हो गया झगड़ा
तब भगवान विष्णु ने ,मोहिनी रूप धार ,
अमृत बांटने का कार्य किया
तो एक असुर ने ,देवता की पंक्ती में घुस,
थोड़ा अमृत चख लिया
विष्णु जी को पता लगा तो,
सुदर्शन चक्र से काट दिया उसका सर
तब उसके गले में अटकी ,
अमृत की कुछ बूँदें ,गिर गई थी धरती पर
और जहां वो बूंदे गिरी थी,
वहां पर दो पौधे थे उग आये
जो बाद में लहसुन और प्याज कहलाये
दोनों में ही ,अमृत के गुण पाये जाते है,
और सबके लिए फायदेमंद है
पर क्योंकि ,राक्षस के साथ ,
 उनका सम्पर्क हो गया था ,
इसलिए आती उनमे दुर्गन्ध है
सम्पर्क का असर ,आदमी में,
गुण या अवगुण भर देता है,
अपना असर दिखलाता है
भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आकर ,
डाकू अंगुलिमाल भी ,साधू बन जाता है
और 'रॉल्सरॉयल'भी ,
जब कीचड़ से गुजरती है
तो उसके पहियों में भी गंदगी लगती है
मिट्टीके ढेले पर भी ,जब गुलाब गिरता है ,
उसमे गुलाब की खुशबू आ जाती है
सज्जन की संगत ,
हमेशा आपको अच्छा बनाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रंग भेद

          रंग भेद

        मैं गेंहूँ वर्ण ,तुम हो सफेद
         हम   दोनों  में है  रंग भेद
मैं गेंहूँ सा ,तुम अक्षत सी ,
मैं पीसा जाता,तुम अक्षत
मैं रहता दबा कलश नीचे,
तुम रहती हो मस्तक पर सज
कुमकुम टीका लगता मस्तक
  उसपर  लगते अक्षत  दाने
 प्रभु की पूजा में अक्षत की 
 महिमा को हम सब पहचाने
चावल उबाल सब खा लेते ,
गेंहू को पिसना  पड़ता है
या फिर खाने में तब आता ,
जब उसका दलिया बनता है
गेंहू बनता हलवा प्रसाद,
चावल से खीर बना करती
जो हवन यज्ञ में,पूजन में ,
डिवॉन का भोग बना करती
चावल का स्वाद बढे दिन दिन,
जितनी है उसकी बढे उमर
 और साथ उमर के गेंहू में ,
पड़ने लगते है घुन अक्सर
चावल होते है देव भोज ,
गेंहू  गरीब  का  खाना है
दो रोटी खा कर भूख मिटे  ,
और पेट तभी भर जाना है
गेंहूँ  के ऊपर है दरार ,
वो इसिलिये क्षत होते है
तुम से सुंदर और चमकीले ,
चावल ही अक्षत होते है
पुत्रेष्ठी यज्ञ हुआ था और
परशाद खीर का खाया था
तब ही तो कौशल्या माँ ने ,
भगवान राम को जाया  था
चावल प्रतीक है समृद्धि का ,
धन धान्य इसलिए कहते है
है मिलनसार ,खिचड़ी बनते,
इडली , डोसे  में रहते है 
      चाहे बिरयानी या पुलाव,
      सब खुश हो जाते तुम्हे देख
      मैं गेंहूँ वर्ण,तम हो सफेद
       हम दोनों में है रंग भेद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'