Wednesday, December 29, 2010

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
चीनी तेल सब्जिया दाले
लेते सबके भाव उछाले
क्या क्या छोड़े,क्या क्या खा ले
कैसे अपना बजट संभाले
महगाई बढती जाती है,
हल्का होता पर्स हमारा
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
घोटालो में उलझे नेता
कोई किसी पर ध्यान न देता
पनप रहे है भ्रष्टाचारी,
वो ही पाता जो कुछ देता
ये सब काबू में आ जाये
एसा हो स्पर्श तुम्हारा
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
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Tuesday, December 28, 2010

आओ चैन से नींद ले

आओ चैन से नींद ले
रात के हर प्रहार
बढ़ता ही जा रहा है
कोहरे का कहर
कोहरा बे इमानी का ,
भ्रष्टाचार का
कोहरा आतंक का ,नक्सलवाद का
कोहरा महगाई का छा रहा है
सबको रुला रहा है
हम ये करेगे, हम वो करेगे
करेगे खाख, सिर्फ भाषण देंगे
सारे नेता आँख बंद किये बैठे है
हम भी आँखे मीन्द ले
आओ चैन से नींद ले
प्याज के छिल्को की तरह,
परत दर परत
खुलता ही जा रहा है,
भ्रष्टाचार का पिटारा
क्या करे आम आदमी बिचारा
होगा वो ही जो होना है
फिर काहे का रोना है
हमको कोई नहीं देख रहा है
यही सोच कर हम भी
रेत में मुह छुपा
शतुरमुर्ग के मानिंद ले
आओ चैन से नींद ले

ऐसे आओ तुम सन ग्यारह

ऐसे आओ तुम सन ग्यारह
भ्रष्टाचार खड़ा मुह बाये
महगाई ने पग पसराए
लूटपाट और रिश्वतखोरी
आज कर रहे है मुह्जोरी
बेईमानी इतनी फैली
लगती है हर गंगा मैली
ये हो जाये नो दो ग्यारह
ऐसे आओ तुम सन ग्यारह
उठा रहे है सर आतंकी
वर्षा होती काले धन की
पग पग पर जनता का शोषण
बढता ही जा रहा प्रदूषण
एसा सूरज बन कर चमको
दूर हटादो सारे तम को
दो हज़ार बारह आने तक
हो जाये सबकी पोबारह
ऐसे आओ तुम सन ग्यारह

Sunday, December 26, 2010

मै भारत का जन मन गण हूँ

   मै भारत का जन मन गण हूँ
जो चुनाव में दिया गया था ,निभा नहीं वो आश्वाशन हूँ
या फिर किसी भ्रष्ट नेता का ,स्विस खाते में संचित धन हूँ
कई करोडो के घपले का ,मै टू जी का स्पेक्ट्रम हूँ
कामन वेल्थ ,कमाया सब ने ,उन खेलो का आयोजन हूँ
खुल कर खेल रहा सत्ता का भ्रष्टाचारी गठबंधन हूँ
हर दिन जो बढ़ती जाती है,महगाई की मार, चुभन हूँ
सोसायटी आदर्श जहाँ पर ,आदर्शों का हुआ हनन हूँ
दुशाशन के कारण होता ,मै जनता का चीरहरण हूँ
गठबंधन की मजबूरी में ,मन मसोसता ,मनमोहन हूँ
  मै भारत का जन मन गण हूँ
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Friday, December 24, 2010

वो बात जवानी वाली थी

    वो बात जवानी वाली थी
तुम्हारे कोमल हाथो का
स्पर्श बड़ा रोमांचक था
तन में सिहरन भर देता था
मन में सिहरन भर देता था
कुछ पागलपन भर देता था
और जब गुबार थम जाता था
तब कितनी राहत मिलती थी
अब आई उम्र बुढ़ापे की
तुम भी बूढी, मै भी बूढ़ा
जब पावों में होती पीड़ा
तुम हलके हलके हाथो से
जब मेरे पाँव दबाती हो
सारी थकान मिट जाती है
या फिर झुर्राए हाथों से
तुम मेरी पीठ खुजाती हो
सारी खराश हट जाती है
स्पर्श तुम्हारे हाथों का
अब भी कितनी राहत देता
तुम भी वोही, हम भी वोही
ये सारा असर उमर का है

Monday, December 20, 2010

हाय पैसा

    हाय पैसा
दुनिया में कुछ लोग हमेशा
करते है बस पैसा पैसा
पैसा तो मिल गया मगर फिर
शांति खो गयी ,अचरज कैसा
पैसा क्या है ,झूटी माया
किस्मत थी तो खूब कमाया
लेकिन कुछ भी काम न आया
क्षीण हो गयी कंचन काया
पैसा बढ़ा ,बढ़ा ब्लड प्रेशर
पैसा बढ़ा ,बढ़ गयी शक्कर
लूखी रोटी ,फीकी सब्जी
और दवा की गोली दिन भर
तन की क्षुधा शांत हो जाती
मन की क्षुधा शांत हो जाती
पर पैसे की भूख हमेशा,
जितना पाओ ,बढती जाती
इसीलिए क्या कमा रहे हम
जीवन का सुख गमा रहे हम
सात पुश्त के लिए हमेशा
करते पूंजी जमा रहे हम
पा पैसा  बिगडेगे बच्चे
मेहनत नहीं करेगे बच्चे
खुद सवार लेंगे निज जीवन
लायक अगर बनेगे बच्चे
मधुमख्खी से तुम बन जाओ
पुष्पों के संग नाचो गाओ
पर पतझड़ में काम आ सके
इतना संचित शहद बनाओ
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आशीर्वाद

          आशीर्वाद
तुम जीवो जैसे तुम चाहो,हम जिए जैसे हम चाहे
हम में पीड़ी का अंतर है ,अलग अलग है अपनी राहे
हाँ ये सच है,उंगली पकड़,सिखाया हमने,तुमको चलना
हमने तुमको राह बताई,तुमने सीखा आगे बढ़ना
लेकिन तुम स्वच्छंद गगन में,अगर चाहते हो खुद उड़ना
तुम्हारी मंजिल ऊँची है,कई सीडिया तुमको चढ़ना
तुम्हारी गति बहुत तेज है,हम धीरे धीरे चलते है
इसीलिए बढ़ रही दूरिया हम दोनों में ,हम खलते है
हमें छोड़ दो ,आगे भागो ,तुम्हे लक्ष्य है ,अपना पाना
अर्जुन, मछली घूम रही है,तुम्हे आँख में तीर लगाना
आशीर्वाद हमारा तुमको,तुम अपनी मंजिल को पाओ
हम पगडण्डी  पर चल खुश ,तुम राजमार्ग पर दोड लगाओ
चूमे चरण सफलता लेकिन ,मंजिल पाकर फूल न जाना
जिन ने तुमको राह दिखाई,उन अपनों को भूल न जाना
ढूंढ रही तुम में अपनापन,धुंधली ममता भरी निगाहे
तुम जियो जैसे तुम चाहो,हम जीए जैसे हम चाहे
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दिया

          दिया
माटी का तन
रस मय जीवन
में हूँ दिया
मैंने बस दिया ही दिया
तिमिर त्रास को भगा
जगती को जगमगा
मैंने सदा प्रकाश दिया
निज काया को जला
करने सब का  भला
प्यार का उजास दिया
जब तक था जीवन रस
जलता रहा मै बस
औरों का पथ प्रदर्शन करता रहा
स्वार्थ को छोड़ पीछे
मेरे स्वम के नीचे
अँधियारा पलता रहा
और दुनिया ने मुझे क्या दिया
रिक्त हुआ ,फेंक दिया
मै हू दिया

Sunday, December 19, 2010

नव वर्ष

     नव वर्ष
नए वर्ष का जशन मनाओ
आज ख़ुशी आनंद उठाओ
गत की गति से आज आया है
लेकिन तुम यह भूल न जाओ
कल कल था तो आज आया है
कल के कारन कल आएगा
आने वाले कल की सोचो
यही आज कल बन जायेगा
कल भंडार अनुभव का है
कल से सीखो, कलसे जानो
कल ने ही कांटे छाटे थे
किया सुगम पथ ,इतना मनो
आज तुम्हे कुछ करना होगा
तो ही कल के काम आओगे
कल की बात करेगी बेकल
जब तुम खुद कल बन जाओगे
यह तो जीवन की सतिता है
कल कल कर बहते जाओ
आने वाले कल की सोचो
बीते कल को मत बिसराओ

Saturday, December 18, 2010

बुढ़ापा

बुढ़ापा
बिना बुलाये ही आ जाता ,दबे पाँव चुपचाप बुढ़ापा
कभी ख़ुशी से झोली भरता ,या देता संताप बुढ़ापा
संचित पुण्यो का प्रतिफल या पूर्व जन्म का पाप बुढ़ापा
व्यथित ह्रदय और थका हुआ तन ,जीवन का अभिशाप बुढ़ापा
जीवन की मधुरिम संध्या या ढलने का आभास बुढ़ापा
टिम टिम करती जीवन लो का बुझता हुआ उजास बुढ़ापा
मृत्यु द्वार नजदीक आ गया ,आकर देता थाप बुढ़ापा
यादों के सागर में तैरो,हंस कर काटो आप बुढ़ापा
 

Wednesday, December 15, 2010

संस्कार

        संस्कार
वो संस्कारी थे
संस्कृति के पुजारी थे
आजकल बुढ़ापा कैसे बिताते है
संस्कार चेनल देखते है
son s  कर में घूमते है
और son s कृति को  खिलाते है

नया जमाना

     नया जमाना
घंटो तक बच्चे करे ,अनजानों से चेट
संस्कृति को खाने लगे,टी.वी. इन्टरनेट
ना तो पढ़ने में रूचि,ना वो खेले खेल
लेपटोप ले गोद में ,भेज रहे ई मेल
ऐसी हम सब पर पड़ी,मोबाइल की मार
मोबाइल होने लगे,संस्कार,आचार
बढे बुधो की आजकल,बात सुनेगा कौन
कानो से हटता नहीं,जब मोबाइल फोन
देखे टी.वी.सीरियल ,ऐसा पाए ज्ञान
बचपन में ही आजकल,बच्चे बने जवान
ये साधन विज्ञानं के ,देने को सहयोग
एडिक्शन यदि हो गया, बन जायेगे रोग

Wednesday, December 8, 2010

काई जमानो आयो है

काई  जमानो आयो है
अबे लुगाया घरवाला को नाम लई ने बात करे
शादी ब्याव बाद में होवे पहला मुलाकात  करे
बिना ब्याव के छोरा छोरी साथ साथ में रेवे है
बेशर्मी का एसा किस्सा टी वी वाला कहवे है
गोदी में कम्पुटर रख के ,कई कई बात बतावे है
तुम जिन से भी बात करो हो,उनको फोटू आवे है
धनी लुगाई, करे नोकरी,खानों होटल से आवे
घी से भरी चूरमा बाटी, नी खावे,मुह बिचकावे
लूखी सूखी रोटी खावे,मीठा से घबरावे है
हाथा मेंमोबाईल लई ने घटो तक बतियावे है
घूमे फिरे उगाडा माथे,पेंट जीन में इतराए
चूल्हों चोको और रसोई,में जावा से घबरावे
तीज त्यौहार याद नी रेवे,तीर्थ बरत की खबर नहीं
रीत रिवाज बड़ा बूढा की,इनके बिलकुल फिकर नहीं
राम राम अब कई बतावा ,कैसो कलजुग छायो है
               कई जमानो आयो है
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Monday, December 6, 2010

स्केम

        स्केम
राजा जब स्केम करेगा
भला प्रजा का फिर क्या होगा
हे करूणानिधि! साथ न छोडो
इन्द्रप्रस्थ का फिर क्या होगा
जी जी या टू जी का चक्कर
अपनी रहे तिजोरी सब भर
कोटि कोटि जनता की कोटिश
धन राशी का फिर क्या होगा
सोसायटी आदर्श बन गयी
आदर्शो की बाट लग गयी
अंधे बाँट रेवड़ी खाए
आदर्शो का फिर क्या होगा
kis par koi kare bharosa
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Sunday, December 5, 2010

अब भी

          अब भी
अब भी तेरा रूप महकता जेसे चन्दन
अब भी तुझको  छूकर तन में होती सिहरन
अब भी चाँद सरीखा लगता तेरा आनन्
अब भी तुझको देख मचल जाता मेरा  मन
अब भी तेरे नयना उतने मतवाले है
अब भी तेरे होंठ भरे रस के प्याले है
अब भी तेरी बाते मोह लेती है मन को
अब भी तेरा साथ बड़ा देता धड़कन को
मुझे अप्सरा लगती अब भी, तू ही हूर है
वही रूप है,वही जवानी, वही नूर है
अब भी तेरी रूप अदाए ,उतनी मादक
वो ही नशा है,वो ही मज़ा है,तुझमे अब तक
तुझ पर अब तक हुआ उम्र का असर नहीं है
मेरी उम्र बाद गयी तो क्या ,नज़र  वही है
अब भी मुझको रात रात भर तू तद्फाती
तेरे खर्राटो से मुझको नीद न    आती

           

आओ सुख दुःख मिल कर बाटे

आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
 खाते  गाते जीवन  काटे
गरम जलेबी  गाजर हलवा
रबड़ी के लच्छो का जलवा
दही बड़े ,आलू की टिक्की
दोने में भर ,दोनों चाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
जाए सिनेमा, देखे पिक्चर
काफी पिए,बरिस्ता जाकर
घर आकर तुम हमें खिलाओ
आलू वाले गरम परांठे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे
गाये मुन्नी की बदनामी
या शीला की मस्त जवानी
कजरारे कजरारे नयना
गाकर दूर करे सन्नाटे
आओ सुख दुःख मिल कर बाटे

Thursday, December 2, 2010

गृह प्रवेश हे हनीमून सा

 गृह प्रवेश हे हनीमून सा
मन की चार दिवारी में जब कोई बसता
नयन निहारे पलक बिछा कर जिसका रस्ता
जिसकी मीठी वाणी में हे प्यार बरसता
वो प्यारा मदमस्त चेहरा हँसता हँसता
दिल के हर एक कोने में जिसकी खुशबू हे
नवल वृक्ष की नवल कली या नव प्रसून सा
   गृह प्रवेश हे हनीमून सा
जिसमे बस कर मन को मिल जाती हो राहत
रहने वालो में होती आपस में चाहत
कोने कोने में बिखरी हो प्यार मोहब्बत
जहा लक्ष्मी वास करे ,खुल जाये किस्मत
थके हुए हरे प्राणी को जिस चोखट में
आते ही मिल जाता हो मन में सुकून सा
    गृह प्रवेश हे हनीमून सा

Tuesday, November 30, 2010

senior citizenसीनियर सिटी जन

सीनियर सिटी जन
साठ साल की उम्र के होने पर
रिटायर मेंट के बाद की पेंशन हू
या रेलवे में मिलने वाला कन्सेशन हू
या फिर पेंसठ साल के बाद का
इनकम टैक्स एक्सेम्प्शन हू
कितनी ही विसंगतियों से भरा
एक साधारण जन हू
जी हाँ में एक सीनियर सिटिजन हू
जब में परिपक्व और
अनुभवों से भरपूरहोता हू
रिटायर कर दिया जाता हू
क्योकि नयी पीड़ी के लिए
मै ही जगह बनाता हू
सिर्फ राजनीती में ही मेरी कद्र होती हे
क्योकि नेता के रिटायर मेंट की कोई उम्र नहीं होती हे
जो पेरो से खुद नहीं चल पाता हे
वो पूरे देश को चलता हे
और आने वाली पुश्तो का भी
इंतजाम कर जाता हे
जिसका ब्याज कई गुना बढ गया हे
एसा मूलधन हू
जी हां में एक सीनियर सिटिजन हू
मेरे लिए बस में,ट्रेन में
और घर के एक कोने में
एक सीट रिजर्व होती हे
एक सीट ऊपर भी रिजेर्व होती हे
स्वर्ग हो या नरक
कही भी जाऊ, क्या पड़ेगा फर्क
क्योकि इन दोनों लोको का अनुभव
मेने इसी जीवन में ले लिया हे
कभी हंसी ख़ुशी, कभी घुट घुट के
जीवन जिया हे
थका हुआ तन हू
टूटा हुआ मन हू
जी हां में एक सीनियर सिटिजन हू
प्रकृति के नियम भी अजीब हे
वृक्षो से जब पुराने पत्ते गिर जाते हे
तब नए पत्ते आते हे
पर इंसानों में
पुराने पत्ते पहले नए पत्तो को उगाते हे
और नए पत्ते थोड़े बड़े होने पर
पुराने पत्तो को गिराते हे
में भी एसा ही पका हुआ पुराना पत्ता हू
जो कभी भी गिराया जा सकता हू
मेरी वानप्रस्थ की उम्र हे
इसलिए रोज बगीचे में घूमने जाता हू
चिंता और जिम्मेदारियों से मुक्त
सन्यासी सा जीवन बिताता हू
लाफिंग क्लब में हँसता हू
और साँस लेने के लिए करता प्राणायाम योगासन हू
जी हां में एक सीनियर सिटिजन हूa

Sunday, November 21, 2010

दिनचर्या -बुदापे की

दिनचर्या -बुदापे की
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुढ़ापे में
          १
खोल एल्बम हर फोटो पर आँख  गाढ़ते है
कुरते की बाहों से सबकी धूल झाड़ते है
भूल्भुलेया में यादो की खोया करते है
कभी कभी हँसते है या फिर रोया करते है
धुंधली आँखों से ये दुनिया लगती मैली है
लगता है ये जीवन एक अनभूझ पहेली है
सिसक सिसक बौरा जाते ना रहते आपे में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे में
              २
खोल रेडियो बहुत पुराने गाने सुनते है
फीके खाने के संग तीखे ताने सुनते है
सास बहू के सभी सीरियल देखा करते है
'बागवान' सी फिलम देख कर आहे भरते है
बार बार अख़बार  चाट कर वक्त बिताते है
डूबा चाय में यादो के कुछ बिस्किट खाते है
एकाकीपन खो जाता है हँसते गाते में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे  में
             ३
बी.पी.हार्ट, शुगर की गोली, यही नाश्ता है
जितने है भगवान सभी में बड़ी आस्था है
आर्थे राइ टिस हे घुटनों में,चलना भारी है
कथा भागवत टी वी पर ही सुनना जारी है
छड़ी उठा कर सुबह पार्क में टहला करते है
खिलती कलिया फूल देख कर ,बहला करते है
वक्त गुजरता हमदर्दों के संग बतियाते में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे में
                ४
याददास्त भी साथ निभाने में कतराती है
ताज़ी नहीं पुरानी बाते मन में छाती है
होता मन उद्विग्न आँख से आंसू बहते है
फिर भी मन की पीर छुपा कर हँसते रहते है
जीवन की आपाधापी में ये सब चलता है
पर अपनों का बेगानापन ज्यादा खलता है
कब तक यादे रखे दबा कर, बंद लिफाफे में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे में
                      ५
मोह माया में अब भी ये मन उलझा रहता है
कहता है मष्तिष्क औरये दिल कुछ कहता है
haatho में जब लिए सुमरनी प्रभु को जपते है
भटके मन में जाने क्या क्या ख्याल उभरते है
नाती,पोते,पोती,बच्चे,याद सताती है
किसको क्या दे, करे वसीयत चिंता खाती है
कितनी देर लगा करती मृत्यु को आते में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे में
                               ६
कभी रात को सोते में जब नीद उचटती है
डनलप की गद्दी भी हमको चुभने लगती है
करवट बदल बदल मुश्किल से ही सो पाते है
जाने कैसे गंदे गंदे सपने आते है
अपने जन की यादे  आकर जब तड फाती  है
 मन की पीड़ा आंसू बन कर बह बह जाती है
कितना वक्त लगेगा इस दिल को समझाते में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे में
                            ७
अच्छे बुरे सभी कर्मो कियादे आती है
सच्चा झूठा,भला बुरा, सब बाते आती है
किसने धोका दिया और किसने अपनाया है
कौन पराया अपना, अपना कौन पराया है
लेखे जोखे का हिसाब जब जाता आँका है
जीवन की बलेंस शीट का बनता  खाका है
क्या खोया क्या पाया, कितने रहे मुनाफे में
जाने क्या क्या करते है हम लोग बुदापे में

अपने ही दूरस्थ हो गए

    अपने ही दूरस्थ हो गए
     उम्र बड़ी हम पस्त हो गए
    थे हम प्रखर सूर्य चमकीले
    लगता है अब अस्त हो गए
देखे थे जो हमने मिल कर
     वो सब सपने ध्वस्त हो गए
    हमको छोड़ किसी कोने में
     सब अपने में मस्त हो गए
रोटी, कपडा, खर्चा, पानी
      दे कर के आश्वस्त हो गए
अपनों के बेगानेपन की
    बीमारी से ग्रस्त हो गए
   अब तो जल्दी राम उथले
  हम तो इतने त्रस्त हो गए

संत

संत
मन बसंत था कल तक जो अब संत हो गया
अभिलाषा, इच्छाओ का बस अंत हो गया
जब से मेरी प्राण प्रिया ने करी ठिठोली
राम करू क्या बूढ़ा मेरा कंत हो गया

purane chawal

पुराने चावल
पकेगा तो महकेगा खिल खिल के दाना
क्योकि ये चावल पुराना बहुत है
नहीं प्यार करने की हिम्मत बची है
कैसे भी नजरे चुराना बहुत है
कभी पेट में दर्द,खांसी कभी है
सरदर्द का फिर बहाना बहुत है
भले ही हमारी,है ये जेब खली
तजुरबो का लेकिन खजाना बहुत है

Sunday, November 14, 2010

hum bujurg hai

हम वो पके हुए फल है
जो सड़े नहीं है,
सूखा मेवा बन गए है
समय की कड़ाई में तले हुए
वो गुलाब जामुन है
जो अनुभवों के रस में सन गए है
भले ही टेडी मेडी सही
हम प्यार के रस में डूबी जलेबिया है
थोड़े चरपरे तो है पर
स्वादिष्ट बीकानेरी भुजिया है
हम ममता के दूध में रडी हुयी
पुराने चावलों की खीर है
हम देशी मिठाइयो की तरह
मिठास से भरे है
पर हमारे मन में एक पीर है
की आजकल की पीड़ी को
देशी मिठाइयो से है परहेज
हमें खेद है हम लेट हो गए
बनने में चाकलेट
परांठा या चीले ही रह गए
पीजा न बन सके
पर आज भी कोई अगर प्रेम से चखे
तो जानेगा हम कितनी स्वादिष्ट है
हम बूड़े है ,हम वरिष्ठ है
भले ही युद्ध में कम नहीं आ सकते है
पर सांस्कृतिक धरोहर के रूप में तो रखे जा सकते है
हम विरासत के वो पुराने दुर्ग है
हम बुजुर्ग है

Sunday, November 7, 2010

deepotsav aaye

दीपोत्सव आये
प्रमुदित मन हम करे दीप अभिनन्दन,
आज धरा पर कोटि चन्द्र मुस्काए
दीपोत्सव आये
बाल विधु से कोमल चंचल
सुंदर मनहर स्नेहिल निर्झेर
घर घर दीप जले
पल पल प्रीत पले
अंध तमस मय निशा आज मावस की
भूतल नीलाम्बर से होड़ लगाये
दीपोत्सव आये
रस मय बाती लों का अर्चन
पुलकित हे मन जन जन जीवन
नव प्रकाश आया
ले उल्हास आया
रससिक्त दीपक में लों मुस्काई
ज्यो पल्वल में पद्मावली छाये
दीपोत्सव आये

deepotsav aayeदीपोत्सव आये प्रमुदित मन हम करे दीप अभिनन्दन, आज धरा पर कोटि चन्द्र मुस्काए दीपोत्सव आये बाल विधु से कोमल चंचल सुंदर मनहर स्नेहिल निर्झेर घर घर दीप जले पल पल प्रीत पले अंध तमस मय निशा आज मावस की भूतल नीलाम्बर से होड़ लगाये दीपोत्सव आये रस मय बाती लों का अर्चन पुलकित हे मन जन जन जीवन नव प्रकाश आया ले उल्हास आया रससिक्त दीपक में लों मुस्काई ज्यो पल्वल में पद्मावली छाये दीपोत्सव आये

Auto Draft

Saturday, November 6, 2010

Diwali Hoti Hai

सब साथ साथ  होते हैं तो दीवाली होती हैं
वरना तो बस हम होते हैं
और चार दीवारी होती हैं
तेरी आखों के दीप जलते है तो उजियारा हैं
वरना अमावस की रात काली होती हैं |
अपनत्व का अनार और स्नेह की रंगोली
सब मिल जाये तो ही दीवाली होती हैं
अमावस की रात, चाँद तू नहीं तो क्या
चाँद की सूरत वालों से रोशन दीवाली होती है |
जबसे शादी हुई तभी से यह जाना
कि घर की असली रौनक घरवाली होती हैं
पत्नी तो होती है फटाके जैसी
पर फूल-झड़ियो सी प्यारी साली होती है |
Composed by – Baheti Brothers (Madan Mohan, Dwarka and Jagdish)

Sunday, October 17, 2010

कामनवेल्थ सबकी हेल्थ

कामनवेल्थ सबकी हेल्थ
देखो खेलगाव का मेला
कामनवेल्थ सभी ने खेला
लेकिन सबसे बड़े खिलाडी
तो निकले मिस्टर कलमाड़ी
पहलवान ने दाव लगाये
कुश्ती जीती,गोल्ड जिताए
कलमाड़ी ने दाव लगाया
सबसे ज्यादा गोल्ड कमाया
अपने हिन्दुस्तानी शूटर
रहे पदक में सबसे उपर
लेकिन नहीं कोई भी शूटर
निकला कलमाड़ी से बढ कर
शुरू किया जब शूटिंग करना
बजट शूट हो गया सोगुना
रिले रेस में भी बिलकुल फिट
खुद फिर गिल खन्ना फिर दीक्षित
उनसे अच्छा तीरंदाज
नहीं मिलेगा तुमको आज
ऐसा आया कामनवेल्थ
बनी कई लोगो की हेल्थ
सोचो यदि युग होता त्रेता
कलमाड़ी सा कोई नेता
रामसेतु का ठेका पाता
क्या टाइम पर पुल बन जाता
दाम दस गुने,होती लूट
बनता भी तो जाता टूट
तो फिर केसे रावण मरता
और दशहरा केसे मनता
इसीलिए इश्वर की माया
कलमाड़ी कलयुग में आया

Saturday, October 16, 2010

आत्म दीप

आत्म दीप
लो फिर से आगई दिवाली
मेरे मन के दीप्त दीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
प्रतिशोध के
वे बेढंगे
कई पतंगे
शठरिपु जैसे
थे मंडराए
मुझ पर छाये

पर मेने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मेने उन्हें निकाल दियाRE

मगन में जला
लगन से JALA
और मेने शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गयी दिवाली

Self Enlightment

OH,THE FESTIVAL OF DIWALI HAS COME AGAIN
ON THE ENLIGHTENED EARTHEN POT
AND THE DANCING FLAME OOF MY HEART
ALL THE INSECTS OF GREED AND ANGER
SEX,HATRED,REVENGE AND FEAR
STARTED DANCING AROUND THE FLAME
BUT I HAVE BURNT ALL OF THEM
ALL THEIR ATTEMPS TO LURE ME FAILED
AND THE LIGHT OF TRUTH AND PEACE PREVAILED
QH,THE FESTIVAL OF DIWALI HAS COME AGAIN

Monday, October 11, 2010

बिजली अवतार

बिजली अवतार
होती देखी जब घर घर नारी की पूजा
लख कर महिमा कलियुग की प्रभु को यह सूझा
फारवर्ड होती जाती नारी दिन प्रतिदिन
करदे ना मेरे खिलाफ भी वो आन्दोलन
जितने भी अवतार लिए सब पुरुष रूप धर
लक्ष्मी जी को बिठा रखा है घर के अन्दर
वो नारी है, उनको आगे लाना होगा
लक्ष्मी जी को अब अवतार दिलाना होगा
किया विचार, तनिक कुछ सोचा,मन में डोले
पर क्या करते जा कर लक्ष्मी जी से बोले
सुनो लक्ष्मी धरती पर छाया अँधियारा
आवश्यक है अब होना अवतार हमारा
होगा दूर अँधेरा उजियारा लाने से
पर मै तो डरता हूँ धरती पर जाने से
राम बनूगा ,लोग कहेगे कैसा पागल
मान बाप की बात अरे जाता हे जंगल
गर नरसिंह बनू तो भी आफत कर देंगे
निश्चित मुझे अजायब घर में सब धर देंगे
कृष्ण बनूगा तो भी आफत हो जायेगी
सेंडिल खा खा मुफ्त हजामत हो जाएगी
मै डरता हूँ सुनो लक्ष्मी मेरी मनो
जरा पति के दिल के दुःख को भी पहचानो
अब के से तो तुम्ही लो अवतार धरा पर
तुम भी दुनिया को देखो पृथ्वी पर जाकर
मेरी मत सोचो में काम चला लूँगा
मै कैसे भी अपनी दाल गला लूँगा
मगर प्रियतमे कभी कभी मुझ तक भी आना
बारिश की बिजली के संग मुझसे मिल जाना
कहते कहते आंसू की बोछार हो गयी
पति की व्यथा देख लक्ष्मी तैयार हो गयी
बिदा लक्ष्मी हुई आँख से आंसू टपके
पहले समुद्र से प्रकटी थी वो लेकिन अबके
नारी थी उसने नारी का ख्याल किया

ना समुद्र पर नदिया से अवतार लिया
बंधे बांध से टकरा प्रकटी बिजली देवी
किया अँधेरा दूर सभी बन कर जनसेवी
चंद दिनों में ही फिर इतना काम बढाया
दुनिया के कोने कोने में नाम बढाया
बिजली को अवतार दिला सच सोचा प्रभु ने
बिन बिजली के तो हें सब काम अलूने
रातो को चमका करती कितनी ब्यूटी फुल
बटन दबाते जल जाती सचमुच वंडर फुल
बिन बिजली के तो सूनी हें महफ़िल सारी
महिमा कितनी महान धन्य बिजली अवतारी
इतनी लिफ्ट मिली लेकिन फिर भी ना फूली
वह नारी हें अपना नारीपन ना भूली
चूल्हे चोके में बर्तन सीने धोने में
बाहर और भीतर घर के कोने कोने में
बिजली जी ने अपना आसन जमा लिया है
सच पुछो नारी को कितना हेल्प किया है
उल्लू से ये तार बने बिजली के वाहन
अब दीपावली को होता बिजली का पूजन
इतनी जनप्रिय किन्तु पतिव्रता धर्म निभाती
जो छूता धक्का दे उसको दूर भागती
जब थक जाती हें तो फ्यूज चला जाता हें
भक्तो ये बिजली वही लक्ष्मी माता हें

BIJALI AVTAR –The Electricity

After seeing women being worshied everywhere
The God was worried seeing Kalyugs atmospehere
The ladies are getting froward everyday
And may start a revolution against me and say
You have taken all the incarnation as a man
And have confiend laxmi ji in a den
She is women and needs to be brought forward
And this time she should take incarnation in this world
He thought and thought and went to laxmi to tell
There is darkness and the world has become a hell
To remove the darkness and to bring in the light
This time for my reincarnation is very right
I would have taken incarnation , He said
But this time going to earth, I am afraid
If born like Ram, people will pass comments
What a fool to go to forest to obey parents
If born like krishna, they would be scandal
Gop and Gopies will beat me with their sandal
If born like Narsimha, than what I will do
They will all Capture me and put in a zoo
Hence dear Laxmi please try to understand
And solve my problems like a good friend
This time you go and take incarnation
Ans see closely the world and my creation
Remove all the darkness and shine like sun
My dear Kamli, become Bijali and have fun.
Don’t bother about me, I will manage
It won’t be difficult for me in this age
But please do come to me, my dear
Some time when there are clouds come as thunder
Laxmi agreed but with a very heavy heart
She was daughter of Ocean but this time smart
She was a women and so kept women’s name
And took worth from river with the help of dam
And a few days she became so popular
Brighting life of everyone, everywhere
By giving incarnation to Laxmi, God was so right
That today nothing is possible without electricity light
If shine in the night and is so beautiful
Sparks with touvh of a button, so wonderfull
Power, light, electricity has become a passion
But she did not forget that she is women
Sweeping, washing, stiching and in the kitchen
She is there in all applicences to help women
These wires like owls are carriers of Bijali
We worship lights on the festival of Deepawali
So popular but still loyal to husband she stay
If one touches, get shocked and thrown away
And the fuse goes off when there is tiredness
Oh friends! Bijali is Laxmi the Godess

Saturday, October 9, 2010

रेखा

रेखा
मैंने जब रेखा को देखा,मई था छोटा,वो थी जवान
फिर बार बार उसको देखा, वो थी जवान,मै था जवान
लेकिन इन धुंधली आखो से,अब भी उसको देखा करता
वो है अब भी जवान लगती,लेकिन मै हूँ बूढा लगता
तो मैंने उनसे पूछ लिया,एक बात बताओ रेखा जी
क्यों नहीं तुम्हारे चेहरे पर,है चढ़ी उम्र की रेखा जी
रेखा बोली मुस्का कर के,व्यायाम करो और कम खाओ
योग और प्राणायाम करके, व्यक्तित्व चिर युवा तुम पाओ
थी कितनी स्लिम सायराजी,कितनो के दिल की रानी थी
दुबला पतला छरहरा बदन,सारी दुनिया दीवानी थी
पर जब से पति का प्यार मिला,दूना हो गया दायरा है
पहले जैसी दुबली पतली, अब ना वो रही सायरा है
वह सुंदर कटे बाल वाली,लड़की छरहरे बदन की थी
था नाम साधना हिरोइन मेरे महबूब फिलम की थी
पर जबसे उसको महबूब मिला वह फूली फूली फूल गयी
हो गया घना साधना बदन,अब जनता उसको भूल गयी
तो शादी कर लेने पर जब,आहार प्यार का मिलता है
अच्छा खासा छरहरा बदन,शादी के बाद फूलता है
तो कम खाना और योग,साथ में अबतक मै जो क्वारी हूँ
इसलिए चिर युवा लगती हूँ,मै सुंदर हूँ मै प्यारी हूँ

पर जब से उसको महबूब मिला वह फूली फूली फूल gayee

भविष्यवाणी

भविष्यवाणी
एक प्रोढ़ महिला ने
एक ज्योतिषी को अपना हाथ दिखलाया
तो ज्योतिषी ने बतलाया
आपका जीवन सुखी और संपन्न है
काया निरोग है
मगर माई आपका दो सास का योग है
महिला बोली, आपका सारा ज्योतिष है बेकार
मेरे ससुर तो कभी से गए है स्वर्ग सिधार
पास खड़ा उसका पति बोला
भाग्यवान,ज्योतिषी की बात में दम हैa
तेरी बहू क्या तेरी सास से कम है

नारी

नारी
शक्ति रूपा प्रचंड होती है
सास रूप में हो या बहू रूप में
दोनों में करंट होती है
और अक्सर एक की करंट पोसिटिव
और एक की करंट निगेटिव होती है
ये दोनों लाइव वायर जब टकराते है
तो अच्छे अच्छे घरों के फ्यूज उड़ जाते है
कई बार इतनी स्पार्किंग होती है
की घर तक जल जाता है
पर जब इन तारों पर
पुत्र प्रेम का
या पति प्रेम का इन्सुलेसन चढ़ जाता है
तो इनके करंट से
शांति का बल्ब जल जाता है
और सारा घर रोशन हो जाता है

दशहरे के दिन

दशहरे के दिन
वो हमारे घर आये
और बोले, बच्चे रावण देखने गए है
हमने सोचा चलो आपको ही देख आये
हमने कहा सच होता बड़ा तमाशा है
रावण को देखने सब जाते है
राम को देखने कोई नहीं जाता है
आप तो हमेशा से रूदियाँ तोड़ते आये है
अच्छा हुआ रावण देखने नहीं गए,
हमारे यहाँ आये है
पर बच्चो को वहां क्या मज़ा आएगा
आप तो यहाँ है
बच्चो को रावण कैसे नज़र आएगा

Saturday, October 2, 2010

माँ बीमार है

माँ बीमार है
दिल थोडा कमजोर हो गया,घबराता है
थोडा सा भी खाने से जी मचलता है
आधी से भी आधी रोटी खा पाती है
अस्पताल का नाम लिया तो घबराती है
साँस फूलने लगती जब कुछ चल लेती है
टीवी पर ही कथा भागवत सुन लेती है
जी घबराता रहता है ,आता बुखार है
माँ बीमार है
प्रात उठ स्नान ध्यान पूजन आराधन
गीताजी का पठान आरती भजन कीर्तन
फिर कुछ खाना,ये ही दिनचर्या होती थी
और रात को हाथ सुमरनी ले सोती थी
ये दिनचर्या बीमारी में छूट गयी है
कमजोरी के कारण थोड़ी टूट गयी है
बीमारी की लाचारी से बेक़रार है
माँ बीमार है
फ़ोन किसी का आता है,खुश हो जाती है
कोई मिलने आता है,खुश हो जाती है
याद पुरानी आती है,गुमसुम हो जाती
बहुत पुरानी बाते खुश हो होकर बतलाती
अपना गाँव माकन मोहल्ला याद आते है
पर ये तो हो गयी पुरानी सी बाते है
एक बार फिर जाय वहां ,मन बेक़रार है
माँ बीमार है
बचपन में मै जब रोता था,माँ जगती थी
बिस्तर जब गीला होता था,माँ जगती थी
करती दिन भर कम ,रात को थक जाती थी
दर्द हमें होता था और माँ जग जाती थी
अब जगती है,नींद न आती ,तन जर्जेर है
फिर भी सबके लिए कम, करने तत्पर है
ये ममता ही तो है ,माँ का अमिटप्यार है
माँ बीमार है
उसके बोये हुए वृक्ष फल फूल रहे है
सभी याद रखते है पर कुछ भूल रहे है
सबसे मिलने ,बाते करने का मन करता
देखा उसकी आँखों में संतोष झलकता
और जब सब मिलते है तो हरषा करती है
सब पर आशीर्वादो की बर्षा करती है
अपने बोये सब पोधों से उसे प्यार है
माँ बीमार है
यही प्रार्थना हम करते हैं हे इश्वर
उनका साया बना रहे हम सबके ऊपर
जल्दी से वो ठीक हो जाये पहले जैसी
प्यार,दांत फटकार लगाये पहले जैसी
फिर से वो मुस्काए स्वर्ण दन्त चमका कर
हमें खिलाये बेसन चक्की स्वम बना कर
प्रभु से सबकी यही प्रार्थना बार बार है
माँ बीमार है

फरमाइश

फरमाइश
तुमने जब जब भी पहने
सुंदर कपडे ,सुंदर गहने
और सझधज कर तैयार हुई
तुम खिलती हुई बहार हुई
देखा करते SHRANGAR तुम्हे
मन मचला करने प्यार तुम्हे
मैं लेकर तुमको बाँहों में
उड़ चला प्यार की राहों में
जब मन में था तूफ़ान उठा
तो तन का सब श्रंगार हटा
न वस्त्र रहे तन पर पहने
बिखरे सब इधर उधर गहने
फैला काजल फैली लाली
बिखरी सब जुल्फे मतवाली
जिनने की मुझे लुभाया था
कुछ करने को उकसाया था
जब बात प्यार की आती है
साडी चीजे हट जाती है
तन की नेसर्गिक सुन्दरता
पाकर ही है ये मन भरता
तो क्यों गहनों की ख्वाहिश है
और कपड़ो की फरमाइश है

Farmaish

Whenever you are beautifully dressed,
I like it and get impressed
All make-up and ornaments you wear
You bloom like a flower,my dear
By seing your beautiful charms
I embrace you in my arms
And when,in bedroom we moved
All the ornaments are removed
And your beautiful bode undressed
We loved each other and embraced
I kissed you and kissed and kissed
All make-up and lipstick vanished
All the dresses and ornaments that excite
Are gone away and out of sight
Woman’s body’s natural beauty
Is the most satisfying thing,Oh cutie
Then why ornaments you want to purchase
And want me to buy you costly dress

Thursday, September 30, 2010

ye yugm shikarये युग्म शिखर

सागर की लहरों का योवन,सरिता का कल कल स्पंदन
ये उन्नत उन्नत युग्म शिखर,जिनमे हर पल हर क्षण कम्पन
जैसे पुष्पों में बिकसे फल,फल में भी पुष्पों का सौरभ
योवन के उपवन की बहार, माता की ममता के गौरव
इन में अपरिमित वात्सल्य ,ममता से भी ज्यादा ममत्व,
है घनीभूत इन पुंजों में,सुन्दरता का सारा रहस्य
ये मादकता से भी मादक,ये कोमलता भी कोमल
कितने सुंदर चंचल मनहर ,ये स्नेहिल ममता के निर्झर
जैसे की क्षीर सरोवर में ,हो खिले हुए दो श्वेत कमल
या एक साथ हो चमक रहे,ज्यों भुवनभास्कर ,रजनीकर
या सुधा भरे ये युगल कलश,ममता मादकता का संगम
कितना स्निग्ध कितना कोमल,ये गंगा जमुना का उदगम
इनके स्पंदन कम्पन में,मुखरित होते जीवन के स्वर
ये ज्योतिर्पुंज कर रहे है ,आलोकित प्रणय विभा सुंदर
जब खुद अपना ही ह्रदय भेद,कर प्रकटे है ये युग्म शिखर
तो औरों के उर भेदन में,इनको लगता केवल पल भर
मन को चुभ चुभसा जाता है,स्वछंद मचलता सा योवन
पर आलिंगन के बंधन में बढता है इनका तीखापन
सुन्दरता का रस छिपा हुआ है,इन्ही वक्र रेखाओ में
नारी तन का सारा सोश्तव, सिमटा है इनकी बाँहों में
कटी कंचन कट विधि ने जब,ममता की माटी में घोला
अपनी सम्पूर्ण कलाओं को ,पहनाया यह जीवित चोला
गढ़ डाले ये स्तूप युगल, तो अमर हो गयी सुन्दरता
रह गया देखता खुद अपनी ,रचना को वह सृष्टिकर्ता
लख मूर्त रूप सुन्दरता का,यदि दोल गया आराधक मन
कोमल कगार पर फिसल गयी,चंचल दृग की चंचल चितवन
ये दोष नहीं है चितवन का,ये मौन निमंत्रण देते है
ये दो उभरे नवनीत शिखर ,जब खुद आमंत्रण देते है
पुष्पों का सौरभ पाने को,सबका ही मन ललचाता है
इनका आलिंगन पाने को,जी किसका नहीं चाहता है
वह नजर नजर ही नहीं अगर,इनको देखे और न फिसले
वह जिगर जिगर ही नहीं अगर,इनको देखे और न मचले
वह रूप रूप ही नहीं अगर,उसमे कोई आव्हान न हो
सौन्दर्य सार्थक न तब तक,जब तक उसका रसपान न हो

These two hillocks (breasts)

Like tidal waves of oscean
And gentle flowing of river
These two beautiful hillocks
Are vibrant always, ever
Like fruits have grown on flowers
And having the fragrance of flowers
Blooming in the garden of youth
And proud possession of mother
They are full of love for child
And are symbols of motherhood’s pride
All the secrets of women’s beauty
Are concentrated on this hill site
They are more exciting then excitement
And are softer than softness
These fountains of love for child
Are beautiful and full of goodness
Like two lotus are blooming
In a poand that is milky white
Or sun and moon are shining
Both together in the night
Or these two pots full of nector
Combination of excitement and motherhood
These origins of river ganga jamuna
Are so soft lovely and good
The vibrations of these hillocks
Are singing the song of life
These two objects of light
Are brightening lovers night
These two hillocks have come out
By piercing their own heart
It heardly takes a moment
To pierce any boady’s heart
These bubbling symbols of youth
Pricks hearts of all with grace
But their sharpness increases
Manyfold when you embrace
All the secrets of women’s beauty
Is hidden in these beautifull curves
The built up of women’s boady
Is concentrated in these hemispheres
After cutting gold from body’s waist
God mixed it with motherhood’s charm
With all His artistic talents
Gave the mixture this beautifull form
He made these two lovely hillocks
And immortal beauty blazed
So beautifull was His creation
That He gazed and gazed and gazed
By seening these symbols of beauty
If your heart get perplexed
On the peaks of these beautifull mountains
Your eyes remain stayed
This is not the fault of eyes
They silently call for attention
These two lovely hills of butter
Are giving you an invitation
Who will not like to enjoy
The soothing fragrance of flowers
Who will not like to embrace
These two beautifull towers
That eye is not an eye
Which does not look when they are sited
That heart is not a heart
Who sees them and is not excited
That beauty is not a beauty
If does not have attraction
The real meaning fullness of beauty
Is when it is enjoyed with passion

Monday, September 27, 2010

मैंने पंखुड़ी में गुलाब की,हंसती बिजली ना देखी थी

मैंने पंखुड़ी में गुलाब की,हंसती बिजली ना देखी थी
बारह मास रहे जो छाई ,ऐसी बदली ना देखी थी
ना देखे थे क्षीर सरोवर,उनमे मछली ना देखी थी
सारी चीजे नज़र आ गई मैंने तुझको देख लिया है
तीर छोड़ फिर तने रहे वो तीर कमान नहीं देखे थे
पियो उम्र भर पर ना खाली हो वो जाम नहीं देखे थे
गालों की लाली में सिमटे वो तूफ़ान नहीं देखे थे
सारी चीजें नज़र आगई मैंने तुझको देख लिया हैं
चमके पूनम और अमावास ऐसा चाँद नहीं देखा था
गंगा जमुना के उदगम का ये उन्माद नहीं देखा थाi
जहाँ फूल में फल विकसे हों ऐसा बाग नहीं देखा था
सारी चीजें नज़र आगई मैंने तुझको देख लिया हैं
ढूंढा घट घट ,घट पर पनघट ,घट पनघट पर ना देखे थे
सरिता की लहरों में मैंने भरे समंदर ना देखे थे
कदली के स्तंभों ऊपर लगे आम्र फल ना देखे थे
सारी चीजें नज़र आगई मैंने तुझको देख लिया है

I HAVE SEEN YOU DEAR

I had never seen a spark
Of lighting in a rose petal
I had never seen a cloud
That remains for the whole year
I had never seen milk ponds
And fished swimming here and there
But now I have seen everything
Because I have seen you dear
After throwing the arrow
The bow remains always tight
The glass that remains full of juice
Though you drink day and night
Never seen such storms
In the blushing of cheeks so right
But I have seen every thing
Because I have seen you dear
I never seen such a moon
That shines day and night
The orgin of Ganga and Jamuna
So exciting and so bright
Where fruits bloom in flowers
Such garden was never in sight
But I have seen everything
Because I have seen you dear
Pot on a pot on a pot
I have not seen here and there
Tidal waves of ocean
In the gentle flowing of River
On a smooth banana tree
The mangos have grown ever
But I have seen every thing
Because I have seen you dear

Sunday, September 26, 2010

जीवन के मधुरिम बसंत में

जीवन के मधुरिम बसंत में लगता फूला जग का उपवन
रस की लोभी मधुमख्खी सी चंचल दृग की चंचल चितवन
महक रहे कलियों फूलो का नित रसपान किया करती है
मधु संचय हित उर में छत्ते का निर्माण किया करती है
किन्तु एक ऐसा भी मोका आता है मानव जीवन में
जब संचित रस का अधिकारी कोई छा जाता है मन में
कर लेती है रसिक प्रियतमे जब रसपान मधु संचय का
तो केवल छत्ता बचता है होता ह्रदय मोम मानव का
जो थोड़ी सी गर्मी पाकर झट से पिघल फिघल जाता है
जब ये छत्ता गल जाता है समझो योवन ढल जाता है
तो ओ मोम ह्रदय दिलवालों,घोटू यही कहा करता है
रस तो थोड़े ही दिन रहता फिर तो मोम रहा करता है
इसीलिए यदि सुन्दरता का दृग रसपान करे करने दो
रस संचय में कभी न चूको;छत्ते को रस से भरने दो

JEEVAN KE MADHURIM BASANT MEIN

IN THE PRIME OF OUR YOUTH
THE WORLD LOOKS BLOOMING WITH FLOWER
AND EYES LIKE GREEDY BEES
WANDER HERE AND THERE
AND KISSESAND SUCKS THE JUICE
FROM FLOWERS BEAUTIFUL AND NICE
AND MAKES A HONEYCOMB IN HEART
TO COLLECT THE NECTOR OF LIFE
BUT THEN COMES IN YOUR LIFE
SOME CHARMING,LOVELY DEAR
WHO STARTS LIVING IN YOUR HEART
AND OWNS THE STOCK OF NECTOR
ANDSLOWLY SLOWLY AND SLOWLY
THAT DARLING BEAUTIFUL WIFE
WITH ALL THE LOVE AND AFFECTION
SUCKS ALL THE NECTOR OF LIFE
AND EMPTY BECOMES THE COMB
A LUMP OF WAX ,IT IS FELT
WITH A VERY LITTLE OF WARMTH
THE WAX STARTS GETTING MELT
THAT’SWHY WE BECOME SOFT HEARTED
WHEN OLDER AND OLDER WE GROW
THE JUICE IS ONLY IN YOUTH
IT IS WAX LATER THAT FLOW
HENCE WHENEVER YOU SEE ABEAUTY
LET BEES OF YOUR EYES FLY
AND KEEP THE HONERCOMB REFILLING
DO’NT MISS JUST TRY AND TRY

chaya ka pyala

चाय का प्याला

एक बार जब नीलगिरी में
पहुँच गया मैं मतवाला
हरी ओदनी में बेठी थी
एक सलोनी सी बाला
बोली मुझको देख रहे क्यों
प्यार भरी नज़रों से तुम
मुझको पाना हो तो पीलो
गरम चाय का एक प्याला

रोज़ लगा कराती होठों से
रंग गुलाबी है प्यारा
जिसके रगरग में गर्मी है
रातों हमें जगा डाला
यदि बिस्तर पर मिल जाये तो
कितनी प्यारी लगती है
पत्नी के सब गुण हैं जिसमे
वो है चाय भरा प्याला

भला बताओ किसके मन में
नहीं चाह की है ज्वाला
बोलो जग में कौन नहीं है
किसी चाह में मतवाला
टेडी मंदी चाह रह है,
मुश्किल राहत चाहत में
चाह राह में आह मिले तो
पीयो चाय भरा प्याला

रूप जल भ्रमजाल कठिन है
खोया मई भोलाभाला
श्वेत रंग में मन उलझा कर
भटक रहा था मतवाला
लेकिन एक सलोनी बाला
मुझे रास्ता दिखा गयी
कला तन रस रंग गुलाबी
मिला चाय का एक प्याला

भेद भाव को दूर भगाने,
होटल है मंदिर आला
जिस प्याले से भंगी पीता,
उससे ही पीता लाला
मेरा अगर चले बस तो
हर मंदिर में होटल खोलू
चरणामृत के बदले बाटू
सबको चाय भरा प्याला

दूध दही की नदिया बहती,
है यह बात बड़ी आला
लेकिन इस पर नहीं भरोसा
करता कोई समझ वाला
अरे दूध काभी क्या पीना,
वो तो बच्चे पीते है
समझदार की परिभाषा है,
पीये चाय भरा प्याला

गंगा जैसी बहती आई,
उजली दूध भरी धरा
सरस्वती सी शकर गुप्त थी,
जमना जैसी जल धारा
रेती ने रंग किया गुलाबी,
जब ये तीनो धर मिली
ये ही संगम,ये ही त्रिवेणी
ये है चाय भरा प्याला

कभी कंही कोई उपवन में,
हरी भरी थी एक बाला
प्रेमी ने दिल जला दिया तो,
जल कर रंग हुआ कला
अरमानो का खून जमा है
पर उस काली काया में
जो आंसू से घुलमिल बनता,
गर्म चाय जा एक प्याला

रोज सुबह जलती है लाखों
के मन में किसकी ज्वाला
रोज सुबह लाखों होठों को
कौन चूमता मतवाला
रोज सुबह किसका आना सुन
आँखों में आती रौनक
कई करोड़ों प्रेमी जिसके
वह है एक चाय प्याला


अगर प्रियतमा पास नहीं हो
और समा हो मतवाला
तारे गिन गिन रात गुजारा
करता था प्रिय दिलवाला
विरही दिल की विरह वेदना
कम करने आया जग में
आँखों में ही रात कटे यदि
पियो चाय का एक प्याला


जिन होठों को चूमा करता
रोज रोज ही जो प्याला
उस प्याले को चूम रहा मैं
खुशनसीब हूँ मतवाला
इसका मतलब किसी तरह भी
मैंने उनको चूम लिया
प्रेमी दिल की प्यास बुझाने
आया चाय भरा प्याला


देखी होगी मधुबाला भी
देखी होगी मधुशाला
छलक जाए जो जाम अगर तो
बिखर जाए सारी हाला
पर यदि छलके तो नीचे
आस लगाये प्लेट पड़ी
हाला से ज्यादा प्यारा है
सबको चाय भरा प्याला

दृश्य अभी भी बसा हुआ है
मन में प्रथम मिलन वाला
शरमा सकुचाती आई तुम
नजरें झुका लिए प्याला
मैंने भी झुक तेरी पहली
छवि देखी थी प्याले में
फिर होठों से लगा लिया था
तेरा चाय भरा प्याला

श्राद्ध

श्राद्ध
एक दिन बाद
बहू को आया याद
अरे कल था ससुरजी का श्राद्ध
आधुनिका बहू ने क्या किया
डोमिनोस को फोन किया
और एक पिज़ा पंडितजी के यहाँ भिजवादिया
ब्राहमण भोजन का ये मोडर्न स्टाइल था
दक्षिणा के नाम पर कोक मोबाइल था
रातससुरजी सपने में आये
थोड़े से मुस्कराए
बोले शुक्रिया
मरने के बाद ही सही,याद तो किया
पिज़ा अच्छा था,भले ही लेट आया
मैंने मेनका और रम्भा के साथ खाया
उन्हें भी पसंद आया
बहू बोली,अच्छा तो आप अप्सराओं के साथ खेल रहे है
और हम यहाँ कितनी मुसीबतें झेल रहे है
महगाई का दोर बड़ता ही जाता है
पिज़ा भी चार सो रुपयों में आता है
ससुरजी बोले हमें सब खबर है भले ही दूर बैठें है
लेट हो जाने पर डोमिनो वाले भी पिज़ा फ्री में देते है

shradha

श्राद्ध
जीते जी तीर्थ न करवाए मरने पर संगम जाओगे
भर पेट खिलाया कभी नहीं पंडित को श्राद्ध खिलाओगे
बस एक काम ही ऐसा है जो तब भी किया और अब भी किया
जीते जी बहुत जलाया था मरने पर भी तो जलाओगे

Tuesday, September 21, 2010

पो फटी

पो फटी
कलियाँ चटकी
भ्रमरों के गुंजन स्वर महके
डाल डाल पर पंची कहके
गों रामभाई
मंदिर से घंटा ध्वनि आई
शंखनाद भी दिया सुनाई
मंद समीरण के झोंको ने आ थपकाया
प्रकृति ने कितने ही स्वर से मुझे जगाया
लेकिन मेरी नींद न टूटी
किन्तु फ़ोन की एक घंटी से मैं जग बैठा
कितना भौतिक
मुझको है धिक्

Sunday, September 19, 2010

व्यथा कथा

व्यथा कथा - 1

सपनो के कपडे ,सब के सब सिल गए
और बची रह गयी ,कतरन सी यादें
इन्ही चिंदियों की ,गुदड़ी को ओड ओड
करता हू प्रयास,बचने की ठिठुरन से
मैं एकाकीपन की

_________________

व्यथा कथा - 2

पौधों को सींच सींच
रीत गए सब कूएँ
सागर में जल भरते
सूख गयीं सरिताएं
सूरज की ऊष्मा से
जाने कब उमड़ेंगे
घुमड़ घुमड़ घने मेघ
फिर से जल बरसाने

_______________

व्यथा कथा - 3

समय की हांडी में
पाक गया सब कुछ
सबने मिल बाँट लिया
बची रह गयी बस
हांडी की कोने में थोड़ी सी खुरचन
चाहत है बस यही, ऐसा कुछ बन जाए
मेरी यह हांडी फिर से
द्रौपदी के अक्षय पात्र की तरह
लबालब भर जाए

व्यथा कथा

सपनो के कपडे ,सब के सब सिल गए
और बची रह गयी ,कतरन सी यादें
इन्ही चिंदियों की ,गुदड़ी को ओड ओड
करता हू प्रयास,बचने की ठिठुरन से
मैं एकाकीपन की

कौन कहता है की हम बूढ़े हुए हैं

आँख में इतने अनुभव बस गए हैं इसलिए कुछ धुंधलका सा छा गया है.
बाल में यूँ चांदनी बिखरी हुई है ज्यों तिमिर छट कर उजेला आ गया है.
बदन पर ये झुर्रियों के साल नहीं हैं ये कथाएँ हमारे संघर्ष की हैं.
खाई ठोकर, गिरे, संभले फिर बढे, यही गाथा हमारे उत्कर्ष की है.
हम झुके थे तुम्हें ऊंचा उठाने को इसलिए ये कमर थोड़ी झुक गयी है.
चाहते थे हमसे भी आगे बढ़ो तुम इसलिए ये गति थोड़ी रुक गयी है.
अगर ढलने लग गए तो क्या हुआ, चमकते हैं आज भी, आफ़ताब हैं.
कौन कहता है की हम बूढ़े हुए हैं, आज भी हम जवानो के बाप हैं.

Sunday, March 7, 2010

Budhapa






Here is one of the most recent poems by Shri Mdan Mohan Baheti ``Ghotoo". He writes as he feels. Just enjoy the old age with him.



बुढापा


क्या बतायें हाल कैसा हो गया है


उम्र का यह काल कैसा हो गया है


गाल थे फूले चिपकने लग गये हैं


झुर्रियों के झुन्ड दिखने लगे हैं


आइने में अक्स धुन्धला हो गया है


स्याह था जो शीश उजला हो गया है


तनी रहती थी कमर अब झुक गई है


चाल की भी गति कुछ रुक गई है


ओज वाणी का जरा हकला गया है


कोष स्म्रती का जरा धुन्धला गया है


नीन्द को भी अब उचटना आ गया है


रात भर करवट बदलना आ गया है


उदर की भी जो क्षुधा कम हो गयी है


लालसा की ललक मध्यम हो गई है


जोश तन का आज सुस्ताने लगा है


जो खिला था फुल कुम्हालाने लगा है


मोह के बदले विरक्ति आ गई है


भोग छूटे आज भक्ति आ गई है


छोड़ संग अपने पराये हो गए हैं


दूर हमसे अपने साये हो गए हैं


थे कभी तूफ़ान बेबस हो गए हैं


पूर्णिमा से घट असमान हो गए हैं


जिन्दगी जंजाल जैसी हो गई है


ढोलकी बैताल जैसी हो गई है


माज़रा हड़ताल जैसा हो गया है


उम्र का ये काल कैसा हो गया है




English translation is mine. I am not a poet. Perhaps some poet can frame it in a little better poetic style. Help me!

Old Age


What can I say How am I


How this age is now calling for time


cheeks which used to be blown are now dent


bunches of wrinkles are visible


In the mirror face looks a little dim


head used to be dark colored but now looks white


waist used to be straight but has now started bending


speed of walking has reduced a little


the vehemence of voice has now some stammering


the dictionary of memory is a little hazy


the sleep now gets disturbed easily


shaking from one side to the other for whole night is now common


hunger in the stomach has reduced


ordours of desires are now milder


ebullition of body today is slack


blossoming flower has now started searing


affection is being replaced by detachment


desires are being replaced by devotion


loved ones are keeping a distance


even shadows have now moved far away


one who was storm has now become tamed


full moon has got reduced to just a sky


life has now become dragging net


drum has become the one used by ghost


whole activity has become like that on strike


what has happened to this era of age







Ghotooji-An Intro


Shri Madan Mohan Baheti “Ghotoo”- a born poet

by an admirer from Mumbai

March 7, 2010




I am fortunate to have enjoyed Hindi poetries of Shri Madan Mohan Baheti "Ghotto" , from my childhood. He is an Engineer and an industrialist by profession, a graduate from Institute of Technology (now called Indian Institute of Technology) at Varanasi, India. But poetry, playing with words twisting them, Hindi words with occasional mix of English words is his basic instinct. Ghotoo is his pet name, he uses as a sort of signature on his poetries.

pun/fun at the same time subtle philosophical points
Just sitting with you almost at any instant some word he will twist in such a manner that it will no longer look as before but whole meaning is carried with the new one and you will automatically laugh at it. The pun, satire what ever you may call his such twistings, they are just sweet fun which give a hearty laugh. Rarely I have seen him making fun at the expense of any body else. He is a born sweet poet. So his poetries are based on his own experiences of life put in an entertaining pleasing "laughy" manner. At the same time you can see deep philosophical point he makes.

He writes in Hindi so his poetry, pun, jokes philosophies are quite a bit very Hindi like -very Indian. But I am sure others can enjoy them too. Let me give here two such examples.

He is now perhaps around 68. He must have been writing from his childhood. But I heard him first time when I was about 14 years old. He was just finishing engineering then. A teenager who loved any thing young, old, nature or machine and converted it into poetry. I was among first listeners to some of his poetries and enjoyed it very much. It did help me in the long run to shape up my ideas, philosophies, enjoyments of life and fun behind even serious matters like science, politics, family. He was writing at that time a series of poetries on "कलयुग के दशावतार" (Ten Avatar of current era Kalayug).

Yuga and Avatar in Indian Mythology
In Hindu Cosmology, life in the universe is created and destroyed once every 4.1 to 8.2 billion years. There are 4 such epochs or eras. Each of these eras or epochs is called a Yuga. The cycle of these 4 yugas continues eternally. New one starts when the another ends and so on. These 4 yugas are called "sat yuga" (era of truth), Treta Yuga, Dwapara Yuga and finally Kalayuga. The current era is that of Kalayuga. It has started about 5000 years back. It is supposed to be yuga in which people just enjoy life and are not so much dedicated towards truth, god etc. They are just lost in physical pleasures. But this is also era in which mythological gods are very generous. They will be pleased by very simple things like you just remember them with your full heart in it. Then they may help you. Avatars are reincarnations of gods who come to earth in some form (not necessarily human form), to help human beings in any era. For more details on yugas see wikipedia site

http://en.wikipedia.org/wiki/Yuga

Now generally Avatars in recent eras have been sort of reincarnation of  devatas ( exact word in english for devata is not so clear, one can use perhaps gods) in human forms. For example the well known trinity Shiva (the destroyer), Vishnu (the creator), Brahma (the ruler) are devatas. The devatas Rama and Krishna (who preached the well known book Geeta) are avatars of Vishnu. Some people also consider Buddha as an Avatar of Vishnu in the current era. But Ghotoo imagined in these poetries that Avatars of this Kalayuga -the era of physical pleausres are very different.

Avatars according to Ghotoo
They are बिजली (electricity), फैशन (fashion), सिनेमा (movies), नेता (leaders), सहकारिता (cooperative movement) etc. He wrote poetries on each of them. The pun, mythological touch, fun included in this imagination is quite unique to Madan. It describes his style quite a bit. In those school years, I won several times prizes, applauds in my school by reciting his poetries. Here is another one of his instant pun- an old one.

Path to life and Path to stairs
One day during my school days my younger sister was pleading with Madan Mohan, "You have taken my brother for the movie जीने की राह ( jeene ki rah -Path to life). Why you left me. Take me also for the same movie." Now in Hindi if you just twist the word जीने (jeene ) a little bit to जिने (jine), the meaning changes from life to stairs. Right opportunity for Ghotoo. He took hand of my sister and said, "Okey I will show you jine ki rah (path to stairs)", and just took her towards जिने (stairs).
Let me end this intro of him with one of his couplet which I like very much. We are creating this blog  for his poetries, where I and some others will put some his poetries in Hindi and their translations in English ( We need some poet for giving poetical color to English one) -may be some body will come along after seeing these poetries).

A couplet by Shri Madan Mohan Baheti "Ghotoo"

ज्ञान एक सबून है.


जिसे जितना घिसो

उतना ही झाग देता है


knowledge is like a soap,

more you rub it,

more it gives you foam