मिलन यात्रा
तुम भी थोडी पहल करोगे
मैं भी थोड़ी पहल करूंगा
बात तभी तो बन पाएगी
धीरे हो या जल्दी-जल्दी
पास हथेली जब आएगी
तब ही ताली बज पाएगी
तुम भी चुप चुप, मैं भी चुप चुप
कोई कुछ भी नहीं बोलता
तो फिर बात बनेगी कैसे
तुम उस करवट मैं इस करवट
दोनों में बनी दूरियां
तो फिर रात कटेगी कैसे
यूं ही शर्म हया चक्कर में
मिलन रात में मिलन न होगा
यूं ही रात निकल जाएगी
तुम भी थोड़ी पहल करोगे
मैं भी थोड़ी पहल कर लूंगा
बात तभी तो बन पाएगी
दीवारे जब तलक हिचक की ,
खड़ी रहेगी बीच हमारे
कैसे मिल पाएंगे तुम हम
गंगा और जमुना की धारा
अगर बहेगी दूर-दूर ही
तो फिर कैसे होगा संगम
कैसे मैं मधुपान करूंगा
यदि चेहरे पर चंदा से
यूं ही बदली अगर छाएगी
तुम भी थोड़ी पहल करोगे
मैं भी थोड़ी पहन कर लूंगा
बात तभी तो बन पाएगी
मदन मोहन बाहेती घोटू