तो कैसा लगता होगा ?
वो जब हमसे टकराते है,तन में सिहरन होती है ,
पर्वत से पर्वत टकराते ,तो कैसा लगता होगा
कैसे स्वामी परायण होगी ,दो बद्दी वाली चप्पल,
सभी पहनते आते जाते,तो कैसा लगता होगा
यूं ही इशारों पर ऊँगली के ,हम तो नाचा करते है ,
वो ऊँगली कर ,हमें सताते ,तो कैसा लगता होगा
हम तो उनका प्यार मांगते है कितनी बेशर्मी से ,
पर वो प्यार करें शर्माते ,तो कैसा लगता होगा
चन्द्र बदन ,हिरणी सी आँखों वाली सुन्दर सी ललना ,
'अंकल 'कहती ,हमें चिढ़ाते ,तो कैसा लगता होगा
पलकों पर रख पाला जिनको,पढ़ा लिखा कर बढ़ा किया ,
वो बच्चे जब तुम्हे भुलाते ,तो कैसा लगता होगा
अगर जिंदगी में अपनी जो ,केवल सुख ही सुख होते,
और दुःख आकर नहीं सताते ,तो कैसा लगता होगा
भरी भीड़ में ,बड़े चाव से ,'घोटू' जब पढ़ते कविता ,
लोग तालियां नहीं बजाते, तो कैसा लगता होगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वो जब हमसे टकराते है,तन में सिहरन होती है ,
पर्वत से पर्वत टकराते ,तो कैसा लगता होगा
कैसे स्वामी परायण होगी ,दो बद्दी वाली चप्पल,
सभी पहनते आते जाते,तो कैसा लगता होगा
यूं ही इशारों पर ऊँगली के ,हम तो नाचा करते है ,
वो ऊँगली कर ,हमें सताते ,तो कैसा लगता होगा
हम तो उनका प्यार मांगते है कितनी बेशर्मी से ,
पर वो प्यार करें शर्माते ,तो कैसा लगता होगा
चन्द्र बदन ,हिरणी सी आँखों वाली सुन्दर सी ललना ,
'अंकल 'कहती ,हमें चिढ़ाते ,तो कैसा लगता होगा
पलकों पर रख पाला जिनको,पढ़ा लिखा कर बढ़ा किया ,
वो बच्चे जब तुम्हे भुलाते ,तो कैसा लगता होगा
अगर जिंदगी में अपनी जो ,केवल सुख ही सुख होते,
और दुःख आकर नहीं सताते ,तो कैसा लगता होगा
भरी भीड़ में ,बड़े चाव से ,'घोटू' जब पढ़ते कविता ,
लोग तालियां नहीं बजाते, तो कैसा लगता होगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'