Sunday, September 30, 2012

रिटायर होने पर

रिटायर होने पर

उस दिन जब हम  होकर के तैयार

ऑफिस जाने वाले थे यार
बीबी को आवाज़ लगाई,
अभी तलक नहीं बना है खाना
हमको है ऑफिस जाना
तो बीबीजी बोली मुस्काकर
श्रीमानजी,अब आपको दिन भर,
रहना है घर पर
क्योंकि आप हो गए है रिटायर
सारा दिन घर पर ही काटना है
और मेरा दिमाग चाटना है
एसा ही होता है अक्सर
रिटायर होने पर
आदमी का जीना हो जाता है दुष्कर
दिन भर बैठ कर निठल्ला
आदमी पड़ जाता है इकल्ला
याद आते है वो दिन,
 जब मिया फाख्ता मारा करते थे
अपने मातहतों पर,
ऑफिस में रोब झाडा करते थे
यस सर ,यस सर का टोनिक पीने की,
जब आदत पड़ जाती है
तो दिन भर बीबीजी के आदेश सुनते सुनते,
हालत बिगड़ जाती है
सुबह जल्दी उठ जाया करो
रोज घूमने जाया करो
डेयरी से दूध ले आया करो
घर के कामो में थोडा हाथ बंटाया करो
बीते दिन याद आते है जब,
हर जगह वी आई पी ट्रीटमेंट था मिलता
आजकल कोई पूछता ही नहीं,
यही मन को है खलता
पर क्या करें,
उम्र के आगे किसी का बस नहीं है चलता
वक़्त काटना हो गया दूभर है
हम हो गए रिटायर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नेता और शायर-कभी नहीं होते रिटायर

       नेता और शायर-कभी नहीं होते रिटायर

एक नेताजी,जो है अस्सी के उस पार

आज कल चल रहे है थोड़े बीमार
पर जब कोई उदघाटन करने बुलाये
या टी.वी.पर किसी मुद्दे पर चर्चा करवाए
हरदम रहते है तैयार
सुबह मंगवाते है ढेर सारे अखबार
और उन्हें खंगालते जाते है
अपने बारे में कोई खबर न छपने पर,
उदास हो जाते है
ये ही उनकी बीमारी की जड़ है सारी
और उन्हें नींद ना आने की हो गयी है बीमारी
उनका बेटा
जो उनकी मेहरबानी से,
मिनिस्टर है बना बैठा
क्योंकि राजनीती,आजकल बन गयी है,
पुश्तैनी ठेका
उसने डाक्टर  को बुलवाया
और अपने पिताजी को दिखलाया
डाक्टर ने काफी जांच पड़ताल  के बाद
उनके बेटे को बताया उनकी बिमारी का इलाज
कि आप किसी टी.वी.चेनल में हर रात
बुक करवालो,एक पांच मिनिट का स्लाट
और एक टी.वी.प्रोग्राम बनवाओ
जैसे'नेताजी के बोल-अनुभवों का घोल'
और उसे रोज रात प्रसारित करवाओ
और नेताजी को भी दिखलाओ
जब टी.वी. पर नेताजी को रोज अपनी ,
शकल नज़र आ जायेगी
उन्हें रात को अच्छी नींद आएगी
इनकी बिमारी का ये ही इलाज है
आजकल नेताजी को खूब नींद आती है,
डाक्टर का ये नुस्खा,रहा कामयाब है
कहते है नेता और शायर
कभी नहीं होते रिटायर
एक बुजुर्ग से शायर,जब कभी,
किसी मुशायरे में बुलाये जाते है
तो गरारे करते है,बाल रंगवाते है
पुरानी शेरवानी  पर ,प्रेस करवाते है
और फिर मुशायरे में अपनी ग़ज़ल सुनाते है
वाह वाह और इरशाद
का नशा,मुशायरे के बाद
आठ दस दिनों तक रहता है कायम
और इस बीच,दो तीन गज़लें,
ले लेती है जनम
ये सच शाश्वत है
जिसको पड़ जाती,तारीफ़ कि आदत है
बिना तारीफ़ से रह नहीं पाता है
और बुढ़ापे में बड़ा दुःख पाता है
नेताजी कि जुबान,तक़रीर के लिए तडफाती है
शायर को सपनो में भी,वाह वाह सुनाती है
 बूढीयाओं   को जवानी कि याद आती है
पुलिस वालों कि हथेली खुजलाती है
कुछ नहीं होने पर दिल टूटता है
ये नशा बड़ी मुश्किल से छूटता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'