Thursday, December 31, 2015

उसकी कुछ मजबूरी होगी

          उसकी कुछ मजबूरी होगी
 
तुम्हे शिकायत भूल गई औलाद तुम्हे है
भूले भटके से  ही  करती   याद तुम्हे  है
हो सकता है  उसकी कुछ मजबूरी  होगी
तभी बनाई उसने  तुमसे  दूरी   होगी
अब तक वो तुम्हारा ,प्यारा ,मृगछौना था
जो पुलकित करता  घर का कोना कोना  था
बंधा हुआ था  तुम्हारे   ममता   बंधन  में
बिखराया करता था खुशियां घर ,आँगन में
बड़ा हुआ कुछ जिद्दी और स्वच्छंद,मचलता
तुम्ही ने तो दूर हटाने , यह  उच्श्रृंखलता
ख़ुशी ख़ुशी  से बाँधा था गृहस्थ बंधन में
जाने क्या क्या ,सुन्दर सपन सजाये मन में
प्यारी सी पायल खनकाती ,बहू  नवेली
और बाद में ,पोते  की  प्यारी  अठखेली
शायद  यहीं गलत सा था कुछ तुमने आँका
ये गठबंधन ,बन जाएगा ,ऐसा   टांका
जो कि काँटा बन कर पीर तुम्हे ही देगा
तुमसे  ,तुम्हारा प्यारा बेटा  छीनेगा
जिस पर इतना प्यार लुटाया ,पाला ,पोसा
जिस पर तुमने ,इतना ज्यादा किया भरोसा ,
इतने वर्षों ,किया कराया ,व्यर्थ जाएगा
चार दिनों में ,पत्नी संग पा ,बदल जायेगा
सागर सीना चीर ,उठे है दल ,बादल   के
जब भी पड़े दबाब ,वहीँ उनका जल  छलके
सागर ,जनक बादलों के ,इसमें न जरा शक
रहता नहीं बादलों पर उनका कोई हक़
करता उन्हें दबाब नियंत्रित और  हवायें
जो कि घुमाती रहती उनको दांयें,बाएं
नीर भरे वो पर अब  बेबस से लगते है
अरे सूर्य को सूर्य जनित ,बादल  ढकते है
होता ये ही हाल  पति का  सम्मोहन से 
शक्तिहीन वह होता ,पत्नी के दोहन   से
होता दूध पिलाया सारा  ,असरहीन है
पूर्ण रूप से होता वह पत्नी  अधीन  है
जिसके साथ बिताना उसको जीवन सारा
तो फिर ख्याल रखे उसका या फिर तुम्हारा
शेष तम्हारा जीवन कितना,चंद  घड़ी है
उसके आगे , उसकी लम्बी  उमर  पडी है
रोज रोज की किच किच और झगड़े बच कर
अपने ढंग से चाह  रहा है,वो जीना  गर
तो जीने दो ,तुम भी अपने ढंग से खेलो
उमर बची है जितनी भी,पूरा रस ले लो
सच्चे दिल से सदा रही है  चाह तुम्हारी
ख़ुशी ,स्वस्थ और  सुखी रहे  औलाद तुम्हारी 
 चाह  सुखी जीवन की उसकी पूरी  होगी
तभी बनाई उसने तुम से  दूरी होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 





नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये 'दोहज़ारन ' अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये 'दो हज़ारन' अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये ' दोहज़ारन' अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये बीस हज़ारो अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये बीस हज़ारो अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये बीस हज़ारो अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

Wednesday, December 23, 2015

जमीन से जुडी चीजें

        जमीन से जुडी चीजें

जो चीजें जमीन से जुडी हुई होती है ,
जमीन से जुड़े लोगों के बहुत काम आती है
दुःख ,तकलीफ में ,हमेशा साथ निभाती है
पेट भरती है,प्यास बुझाती है
और जमीन से ऊपर उठे हुए ,
लोग ही नहीं,वृक्ष और फूल और फल,
जो अपनी ऊंचाई के कारण बड़े इतराते है
ये भूल जाते है
कि क्योंकि उनकी जड़ें जमीन से जुडी हुई है ,
इसीलिये ही वो फूल फल पाते है
जल जीवन होता है
वह भी जमीन से जुड़ा होता है
भले ही आसमान से बरसता है 
पर पहले जमीन से जुड़ता है
और फिर दुनिया की प्यास बुझाता है
 इंसान के हर काम में ,
सुबह से शाम आता है   
जमीन से जुडी हुई सब्जियां ,
आलू और प्याज सब है
हमेशा सस्ती और सुलभ है
भले ही दालों के दाम आसमान  चढ़ जाए
भले ही मंहगाई कितनी भी जाए
गरीबो के भोजन में हमेशा साथ निभाये
जमीन से जुडी अदरक महान है
और दबी हुई लहसुन ,गुणों की खान है
और अच्छे अच्छे रईसो के,
बावर्ची खाने की शान है
जमीन से जुडी हुई हल्दी ,
न केवल भोजन का स्वाद बढ़ाती है
वरन गौरी के हाथ भी पीले करवाती है
जब शरीर पर लगती है ,रूप निखार देती है
उसका जीवन संवार देती है
और जमीन से जुडी हुई मूंगफली ,
गरीबों की बादाम है
इसका अपना स्वाद है,अपनी शान है
धरती हमारी माता है
इसलिए इससे जुडी हुई चीजों में ,
मातृत्व का गुण समाता है
जमीन से जुडी हुई अधिकतर सब्जियां,
ज्यादा टिकाऊ होती है,जैसे माँ का प्यार
आलू,प्याज,अदरक,लहसुन ,आदि आते है पूरे साल
बाकी सब सब्जिया मौसमी कहलाती है 
और ऋतु के अनुसार आती जाती है 
जमीन से जुडी चाहे मूली सफेद हो या गाजर लाल है
पर सब की सब  ढेर सारे गुणों का भण्डार है
इसलिए जो लोग धरती ,
याने अपनी माँ  से जुड़े रहते है  
लोग उन्हें धरती का लाल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बाप का माल

             बाप का माल

भगवान ने पहले सूर्य,चन्द्र  को बनाया ,
सुन्दर  पहाड़ों,वृक्षों और प्रकृती का सृजन किया 
नदियां बनाई ,हवाये चलाई ,
और फिर जीव ,जंतु और इंसान को जनम दिया
हमने सूरज के ताप से बिजली चुराई
हवाओं के वेग से भी बिजली बनाई
नदियों का प्रवाह से वद्युत का उत्पादन किया
प्रकृती की हर सम्पति  का दोहन किया
हम हवा से ऑक्सीजन चुराते है
तब ही तो सांस ले पाते है
धरा की छाती को छील ,अन्न उपजाते है
तब ही जीवन चलाते है
सूरज की धूप से गर्मी और रोशनी चुराते है
जमीन की रग रग में बहते पानी से प्यास बुझाते  है
प्रकृति की हर वनस्पति और फलों पर,
अपना  अधिकार रखते है
और तो और ,अन्य जीवों को भी पका कर ,
अपना पेट भरते है
हम सबसे बड़े चोर है
 और खुले  आम चोरी करते है
और उस पर तुर्रा ये ,
किसी से नहीं डरते है
और इस बात का हमारे मन में,
जरा भी नहीं मलाल है
क्योंकि हम भगवान की संतान है ,
और ये हमारे बाप का माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Wednesday, December 16, 2015

सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

 सोने की फ्रेम में जड़ी तस्वीर

मैंने अपने दिल के कोरे,
 कैनवास पर सच्चे मन से
सुंदर सी एक तस्वीर बनाई थी ,
बड़ी लगन से
चाँद को चूमने की आशा लिए ,
एक मासूम विहंग
अपने  पंख फैलाये ,गगन में,
उड़ रहा था स्वच्छंद
मैंने उस चित्र को ,
सोने की फ्रेम मे जड़वा ,
अपने ड्राइंग  रूम में टांगा
यह सोच कर कि इससे ,
हो  जाएगा सोने में सुहागा
पर मैं  कितना गलत था
आज मुझे वो पंछी ,
अपने पंख पसारे ,
आसमान में उड़ता हुआ नहीं ,
सोने की फ्रैंम के पिंजरे में ,
छटपटाता नज़र आता  है
कई बार सोने की फ्रेम में फंस ,
जीव कितना मजबूर हो जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

      ऊंचे लोग -ऊंची पसंद

शिराओं में ,उच्चस्तरीय रक्तचाप
बातों में मधुमेह मयी  मिठास
आँखों में मोतियाबिंद बिराजमान
सर पर चांदी से केशो की शान
स्वर्ण के प्रति मोह इतना कि ,
स्वर्ण को भी भस्म करके खाते  है
लोह तत्व की अल्पता के कारण ,
हर किसी से लोहा लेने को तैयार हो जाते है
प्रकृती से प्रेम इतना कि सर्दियों में भी,
'बसंत कुसुमाकर रस'और  'चंद्रप्रभा वटी 'का
 लेते है  आनंद
ऊंचे लोग ,ऊंची पसंद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेस बुक स्टेटस

     फेस बुक स्टेटस

विदेश बसे  बेटे से बाप ने फोन किया ,
बेटा कई दिनों तुमने कोई समाचार नहीं दिया
सप्ताह में कम से कम
एक बार तो फोन कर लिया करो तुम
बेटा बोला 'पापा ,चिंता मत किया करो
फेसबुक पर रोज मेरा स्टेटस देख लिया करो
और आप की  फेसबुक पर भी ,
यदि आपका स्टेटस' अप टू  डेट'रहेगा
तो हमको भी ,आपके बारे में ,
सब पता लगता रहेगा
पिता के अंतर्मन ने ,बुझे स्वर में कहा,बेटा
ये बूढ़ा  जब  अचानक  मरेगा
तो स्टेटस कौन 'अप टू डेट' करेगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम वो पुराना माल है

               हम वो पुराना माल है

चूरमे की तरह वो ,मीठी,मुलायम,स्वाद है ,
 और बाटी की तरह ,मोटी  हमारी खाल है
वो है जूही की कली ,प्यारी सी खुशबू से भरी,
फूल हम भी मगर  गोभी सा हमारा हाल है
वो है छप्पन भोग जैसी,व्यंजनों की खान सी ,
और हम तो सीधे सादे ,सिरफ़ रोटी दाल है
सारंगी से सुर सजाती है मधुर वो सुंदरी ,
हम पुरानी ढोलकी से , बेसुरे  ,बेताल  है
काजू की कतली सी है वो और हम गुड़ की गजक ,
खनखनाती वो तिजोरी ,हम तो ठनठन पाल है
एल ई डी का बल्ब है वो ,टिमटिमाते हम दिये ,
कबाड़ी भी नहीं ले ,हम वो पुराना  माल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
            

Sunday, December 13, 2015

लूटो भी,लुट कर भी देखो

       लूटो भी,लुट कर भी देखो

कुछ दुनियादारी ने लूटा ,
           कुछ झूंठे सपनो ने लूटा
तुमने जिन पर प्यार लुटाया,
          तुमको उन अपनों ने लूटा
मीठी मीठी बात बना कर,
           लूटे हमे  जमाना   सगला
फिर भी ख़ुशी ख़ुशी लुटते  है,
          लोग समझते हमको पगला
अरे लूटता तो वो ही है,
          जिसके पास न कुछ होता है
और लुटता है वो ही जिसका ,
           कि  भण्डार  भरा होता  है
कभी किसी से प्यार करो तुम,
          कभी किसी पर लुट कर देखो
लुटने  की अपनी मस्ती  है,
           कभी किसी पर मर मिट देखो
लुटने में आनंद बहुत है
            कभी समर्पित हो क र देखो
मन में सच्चे भाव लिए तुम,
          अपना सब कुछ खोकर देखो
तुम जो कुछ खोवोगे उसका,
             तुम्हे कई गुणा  मिल जाएगा
मन की उलझन सुलझ जाएगी ,
           पुष्प प्यार का  खिल जाएगा
अगर लूटना है तो लूटो,
              राम नाम की लूट मची है 
लूटो नाम और यश लूटो,
               थोड़ी सी तो उमर बची है
लुटने और लूटने में बस ,
                एक मात्रा  का है अन्तर
अगर लुटोगे   सच्चे मन से ,
             सुख लूटोगे तुम जीवन भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                       
               
        
    
          
       

व्यवहार

             व्यवहार
कितनी ही मंहगी चमकीली,
फ्रेम  भले ही हो ,चश्मे की ,
लेकिन लेंस जब सही होते ,
तब ही साफ़ नज़र  आता है
सजधज कर कोई कितनी भी,
दिखने लग जाती हो सुन्दर ,
पर दिल कैसा ,यह तो  उसका ,
बस व्यवहार  बता पाता  है

          व्यवस्थाएं

अलग अलग लोगों की ,
अलग अलग जिद और व्यवहार
देता है समाज की ,
व्यवस्थाओं को आकार

घोटू

Saturday, December 5, 2015

दीवाना दीवान

        दीवाना  दीवान

जो भी आता ,मुझमे बैठ पसर जाता है
मारता गप्पे है ,मस्ती से पीता , खाता है
कोई जल्दी में रहता है ,कोई फुरसत  से
मगर मैं ,इन्तजार ,करता जिसका शिद्द्त से
वो हंसीं ,मखमली ,कोमल गुलाबी जिस्म लिए
लबों में शरबती मिठास और तिलस्म  लिए
जिसके अहसास से मुझमे गरूर आ जाए
समा के अपने  में ,मुझमे  सरूर  आ जाए
जी ये करता है उसकी खुशबू बसा लूँ  खुद में
   जिसके स्पर्श से ही  हुआ करता , बेसुध मैं       
 जिसकी तहजीब ,जिसकी खिलखिलाती प्यारी हँसी     
,जिसकी चूड़ी की खनक ,देर तलक ,दिलमे बसी
जिसको गोदी में लिए ,बावरा मैं ,पागल सा
 मज़ा जीवन का उठाता हूँ पूरा, पल पल का
इतना खो जाता ,भीनी खुशबू वाले बालों में
डूब जाता हूँ ,इस कदर में उसके ख्यालों में
वो कब आई,कब गयी ,पता नहीं चलता
फिर वो ही सूनापन ,विरहा की अगन में जलता
हमेशा ,बाहें ,मैं अपनी पसार बैठा हूँ
कर रहा ,उनका ही बस इन्तजार,बैठा हूँ
अपना ये जिस्मोजिगरबस उन्ही को सौंपा हूँ
उनका दीवाना हूँ, दीवान हूँ, मैं  सोफ़ा   हूँ
आपके घर की ,सबसे शानदार ,रौनक हूँ
हुकुम मे आपके ,हाज़िर ,गुलाम , सेवक हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

टेस्ट ही टेस्ट

       टेस्ट ही टेस्ट

इधर टेस्ट है,उधर टेस्ट है
जिधर देखिये,उधर  टेस्ट है
कहीं 'मिसाइल'टेस्ट हो रहा
और कहीं ' प्रोटेस्ट 'हो रहा
'एड्मिशन' मे  टेस्ट चल रहा
क्रिकेट में टेस्ट मैच  चल रहा
पग पग पर 'कॉन्टेस्ट' हो रहे
कितने  पैसे ' वेस्ट ' हो रहे
हो बीमार ,डॉक्टर  को जाते
वो भी कितने टेस्ट कराते
मुझे डॉक्टरों से शिकवा है
जब भी देते  कोई दवा  है
'यूरिन 'खून ,टेस्ट  करवाते
तब ही कोई दवा लिख पाते
ये ना कहता कोई डॉक्टर
टेस्ट कराओ रबड़ी  मिस्टर
टेस्ट करो  गाजर का हलवा
रसगुल्लों के साथ लो दवा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


हम तुम -एक सिक्के के पहलू

         हम तुम -एक सिक्के के  पहलू

जब तुम तुम थी,और मैं ,मैं था ,एक दूजे से बहुत प्यार था
तुम मुझको देखा करती थी,छुप  छुप मैं तुमको निहारता
देख ,एक दूजे को खुश थे , मुलाक़ात हुआ करती थी
हाथ पकड़ कर तन्हाई में ,दिल की बात हुआ करती थी
 जब से हुई  हमारी शादी, हम एक सिक्के के दो पहलू 
आपस में चिपके रहते है , पर मैं ,मैं हूँ,और तू  है तू 
 साथ रह रहे ,एक दूजे के ,चेहरा भी पर नज़र न आता
खड़ी आईने आगे जब तुम ,रूप तुम्हारा  तब दिख पाता
क्या दिन थे शादी के पहले ,मैं  स्वच्छंद  जिया करता था
हंसी ख़ुशी से दिन कटते थे ,निज मन मर्जी का करता था
अब सिक्के की  'हेड',बनी तुम ,टेल' बना,पीछे मैं  डोलूँ  ,
तुम्हारी 'हाँ' ही  मेरी' हाँ' ,तुम 'ना' बोलो ,मैं ' ना' बोलूं        
 संग संग  रहते एक दूजे का ,पर हम ना कर पाते दर्शन    
 रह रह मुझे याद आता है ,शादी के पहले का जीवन       

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

             
           

मैं -पैसा हूँ

          मैं -पैसा हूँ

मैं निर्जीव ,मगर चलता हूँ
गिरता कभी ,कभी चढ़ता हूँ
पंख नहीं, पर लोग  उड़ाते
तरल नहीं ,पर लोग बहाते
दुनिया कहती मैं हूँ  चंचल
साथ बदलता रहता पल पल
छप्पर फाड़ कभी आ जाता
हर कोई  मेरे गुण  जाता
मैं सफ़ेद हूँ, मैं हूँ काला
जिसे मिलूं ,होता मतवाला
जब भी मैं हाथों में आता
दुनिया के सब रंग दिखाता
मैं  मादक, मदिरा से बढ़कर
लोग  बहकते ,मुझको,पाकर
अच्छे लोग बिगड़ जाते है  
बिगड़े लोग संवर जाते  है
मुझको पाने सब आतुर है
मेरी खनखन बड़ी मधुर है
सभी तरसते मेरे स्वर को 
नचा रहा  मैं दुनिया भर को
पहले होता  स्वर्ण ,रजत का
पर अब हूँ कागज का,हल्का
मैं तो हूँ भूखों  की  रोटी
वस्रहीन के लिए  लंगोटी
मैं देता घर, चार दीवारी
रहन सहन की सुविधा सारी
पति पत्नी का प्यार मुझी से
 आभूषण ,श्रृंगार मुझी से
मुझसे मिलते नए नाम है
परसु,परस्या ,परसराम है 
दान ,धर्म करवाता मैं  ही
पाप कर्म ,करवाता मैं   ही
मैं तीरथ  और धाम कराता
जेलों में चक्की पिसवाता
मेरे कितने, भिन्न  रूप है 
अफसर कहते ,पत्र पुष्प है
चंदा  कहते है  नेताजी
चपरासी ,चाय पी राजी
मंदिर में, मैं बनू  चढ़ावा 
रेल बसों में बनू किराया
मुख विहीन ,मैं ,मगर बोलता
पा सबका  ,ईमान डोलता
कोई किस्मत का खेल समझता
कोई हाथ का मैल  समझता
मुझसे सारे ऐश्वर्य है 
मान प्रतिष्ठा और गर्व है
ये मत पूछो ,मैं कैसा हूँ
मै जैसा हूँ ,बस वैसा हूँ
हर युग में बस एक जैसा हूँ
हाँ,जनाब ,मैं ही पैसा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

Sunday, November 29, 2015

      बिमारी और इलाज

छोटी सी सर्दी खांसी थी ,ठीक स्वयं हो जाती
तंग करती दो चार दिवस या हफ्ते भर में जाती
शुभचिंतक मित्रों ने देकर तरह तरह की रायें
बोले भैया ,किसी डॉक्टर ,अच्छे को दिखलायें
कहा किसी ने बीपी देखो,ब्लड टेस्ट करवाओ
कोई बोला काढ़ा पियो, ठंडी चीज न खाओ
कहे कोई लो चेस्ट एक्सरे ,कोई देता चूरण
कोई कहता होम्योपैथी की गोली खाए हम
चार डॉक्टरों के चक्कर में ,पैसा खूब उड़ाया
मुझे बिमारी ने घेरा या मैंने ही घिरवाया
एक्यूप्रेशर भी करवाया ,दस दस गोली खाई
दिन दिन बढती गई बिमारी,ठीक नहीं हो पाई
गया उलझता इस चक्कर में ,परेशान,बेचारा
तरह तरह इलाज करा कर ,बुरी तरह से हारा
माँ बोली कि बहुत हुआ अब छोड़ दवाई  बेटा
यूं ही डॉक्टरों के चक्कर में ,तू बीमार बन बैठा
बिगड़ी  हालत हुई, हो गए तन के पुर्जे  ढीले
तू है स्वस्थ ,सोच बस इतना,हंसी खुशी से जी ले


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा

  वो चूसी हुई टॉफी-ये टॉफी का डब्बा 

भाईदूज पर बड़े इसरार के बाद,
मेरा भाई आया
मैंने उसे टीका लगाया
और अपने हाथों बनाई
उसकी पसंद की मिठाई
बेसन की बर्फी खिलाई
भाभी के अनुशासन मे बंधे,
भाई ने बर्फी का एक टुकड़ा मात्र खाया
और मुझे बदले में ,चॉकलेट का एक डिब्बा पकड़ाया
और बोला दीदी,मुझे जल्दी जाना है
तेरी भाभी को भी ,अपने भाइयों को निपटाना है
ये निपटाना शब्द मुझे नश्तर चुभो गया
आदमी क्या से क्या हो गया
वो रिश्ते ,वो प्यार, जाने कहाँ खो गया
न चाव ,न उत्साह ,वही भागा दौड़
कब समझेगा वो रिश्तों का मोल
रिश्ते निभाने के लिए होते है ,
निपटाने के लिए नहीं,
ये रस्मे मिलने मिलाने के लिए होती है,
सिर्फ देने दिलाने के लिए नहीं
फिर मैंने जब चॉकलेट का डिब्बा खोला ,
तो बचपन का एक किस्सा याद आया
एक दिन छोटे  भाई   स्कूल में ,किसी बच्चे ने ,
अपना जन्म दिन था मनाया
और उसने सबको थी बांटी
दो दो चॉकलेट वाली टॉफी
उसने एक खाई और एक मेरे लिए रख दी
पर उसका स्वाद उसे फिर से याद आगया जल्दी
उसने चुपके से रेपर खोला ,थोड़ी चूसी ,
और रख दी रेपर मे 
उसने यह प्रति क्रिया फिर दोहराई ,
जब तक मैं देर तक  ना पहुंची घर में
फिर उसका जमीर जागा
उसने अपनी कमजोरी और लालच त्यागा
और मम्मी को आवाज लगाईं
मम्मी ये टॉफी इतनी ऊपर रखदो
जहां तक मेरे हाथ पहुंच ही पाएं नहीं
माँ,उसकी मासूमियत पर कुर्बान हो गई
 और मैं जब पहुंची ,तो उसने झिझकते हुए बोला था
दीदी टॉफी अच्छी है ,मैंने चखली थी
उसकी ये मासूमियत ,लगी मुझे बड़ी भली थी         
 मुझे याद आ गया ,उसका वो बचपन का प्यार
और आज वो बर्फी खाने से इंकार
 शादी के बाद ,
क्यों बदलजाता है आदमी का व्यवहार
आज मैं सोचती हूँ ,
कि जो स्वाद उस भाई की चूसी हुई ,
और प्यार से सहेजी हुई टॉफी में आया था,
क्या वह वह स्वाद ,
रसम निपटाने के लिए दी गयी ,
डब्बे की सौ टॉफियों में भी आ पायेगा
क्या जीवन ,इसी 'फॉर्मेलिटी'में गुजर जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Thursday, November 26, 2015

सब कुछ -बीबी के भाग्य से

        सब कुछ -बीबी के भाग्य से
 
सास कहती है बेटी मेरी भाग्यशाली है
तुम्हारे घर की इसने शक्ल बदल डाली है
लक्ष्मी सी है ये ,पैरों में इसके बरकत  है
पड़े है जबसे पाँव ,जाग गई  किस्मत है
माँ भी कहती है हुआ जबसे इसका पगफेरा
लाखों में खेलने लग गया है बेटा मेरा
चलाने वंश दिए ,पोते ,दो दो हीरों से
आजकल ठाठ से जीते है हम अमीरों से
हमारे पास आज ,इतना धन और दौलत है
बहू का भाग्य है ,सब उसकी ही बदौलत है
और भी रिश्तेदार ,जितने घर पर आते है
बहू के भाग्य के ही ,सबके सब गुण गाते है
रोज जब सुनता हूँ मैं लोगों की ऐसी बातें
पेट में फड़फड़ाने लगती है मेरी   आंतें
पढाई मैंने की,दिनरात जग कर मेहनत की
मिली है तब कहीं डिग्री ये काबलियत की
सुबह से शाम तक ,खटता हूँ रोज दफ्तर में
तब कहीं आती है ,इतनी कमाई इस घर में
बॉस की डाट सुने ,टेंशन हम झेलें  है
मुफ्त में यूं ही सारा यश मगर ये ले ले है
बिचारे मर्द  की दुर्गत हमेशा होती है
चैन से घर में बीबी,मौज करती ,सोती है 
मैं  जो मेहनत न करू, ख़ाक भाग्य चमकेगा
उसकी तक़दीर से ,पैसा न यूं ही बरसेगा
लोग पतियों के बलिदान को भुलाते है
भाग्य की सारी  वजह ,बीबी को बताते है
मैं भी ये मानता हूँ,बीबी भाग्यशाली है
तभी बन पायी ,मुझ कमाऊ की घरवाली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नई जनरेशन के भाव

    नई  जनरेशन के भाव

ना तो देती भाव किसी को ,
उस पर भाव सभी से खाती ,
बड़ी भावना शून्य हो गयी
        अरे आज की ये जनरेशन
ब्रांडेड शोरूमों में जा कर ,
सीधे से परचेसिंग  करती ,
मोल भाव करना ना जाने ,
        सिर्फ देखती ताज़ा फैशन
सबको आदर भाव  दिखाना 
प्रेम  और सदभाव  दिखाना
भूल  गई सब संस्कार को,
         ऐसा अजब स्वभाव हो गया
उल्टा सीधा रहन सहन है
उल्टा सीधा खाना पीना ,
वेस्टर्न कल्चर  का उन पर,
         इतना अधिक प्रभाव  हो गया
 इतनी ज्यादा आत्मकेंद्रित ,
और गर्वित रहती है खुद पर ,
मातपिता और भाई बहन के ,
         भुला दिए है रिश्ते  सारे
 ये सब माया की माया है
जिसने उनमे अहम भर दिया ,
ढलने जब ये उमर  लगेगी,
           दूर बहम तब होगें सारे    

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'           



 

बोनसाई

      बोनसाई

अपनी जड़ें कटवाने के बाद,
पनपे हुए पौधे ,
बोनसाई हो जाते है
उनकी मानसिकता भी बौनी हो जाती है
उनके पत्ते ,फूल या फल ,
सजावट के लिए सुंदर दिखते है ,
पर उनकी उपयोगिता ,शून्य हो जाती है
इसलिए ,जड़ों से जुड़े रहो ,
जड़ें मत कटवाओ
वरना संगेमरमर की टेबल मे ,
जड़े हुए रत्नो की तरह ,
तुम भी जड़ हो जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ की पीड़ा

          माँ की पीड़ा

बेटा,तेरी ऊँगली पकड़े ,तुझे सिखाती थी जब चलना,
मैंने ये न कभी सोचा था , ऊँगली मुझे दिखायेगा तू 
माँ माँ कह कर,मुझको पल भर ,नहीं छोड़ने वाला था जो,
ख्याल स्वपन में भी ना आया ,इतना मुझे सताएगा तू
तुझको अक्षर ज्ञान कराया ,हाथ पकड़ कर ये सिखलाया ,
कैसे ऊँगली और अंगूठे ,से पेंसिल पकड़ी  जाती है
कैसे तोड़ी जाती रोटी ,ऊँगली और अंगूठे से ही ,
कैसे कोई चीज उठा कर , मुंह तक पहुंचाई जाती है
जब भी शंशोपज में होती ,मैं दो ऊँगली तेरे आगे ,
रखती ,कहती एक पकड़ ले,मेरा निर्णय वो ही होता
तुझे सुलाती,गा कर लोरी,इस डर से मैं चली न जाऊं ,
तू अपने नन्हे हाथों से ,मेरी उंगली   पकड़े  सोता
ऊँगली पकड़ ,तुझे स्कूल की बस तक रोज छोड़ने जाती,
बेग लादती,निज कन्धों पर,तुझ पर बोझ पड़े कुछ थोड़ा
मेला,सड़क,भीड़ सड़कों पर ,तेरी ऊँगली पकड़े रहती ,
इधर उधर तू भटक न जाए,तू मुझको देता था  दौड़ा   
मैं ये  जो इतना करती  थी ,मेरी ममता और स्नेह था,
और कर्तव्य समझ कर इसको,सच्चे दिल से सदा निभाया
जब वृद्धावस्था आएगी,  तब तू मुझे सहारा देगा  ,
हो सकता है  भूले भटके ,ऐसा ख्याल जहन  में आया
बड़े चाव से हाथ तुम्हारा ,थमा दिया था  बहू हाथ में ,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई थी, अपना ये कर्तव्य निभा कर
मेरी ऊँगली  छोड़ नाचने ,लगा इशारों पर तू उसके ,
मुझको लगा भूलने जब तू,पीड हुई,ठनका मेरा सर
लेकिन मैंने टाल दिया था  ,क्षणिक मतिभ्रम ,इसे समझ कर,
सोचा जोश जवानी का है ,धीरे धीरे समझ आएगी
फिर से कदर करेगा माँ की,तू अपना कर्तव्य समझ कर,
मेरी शिक्षा ,संस्कार की,मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी
लेकिन तूने मर्यादा की ,लांध दिया सब सीमाओं को ,
ऐसे मुझे तिरस्कृत करके ,शायद चैन न पायेगा तू
बेटा तेरी ऊँगली पकड़े,तुझे सिखाती थी जब चलना ,
मैंने ये न कभी सोचा था ,ऊँगली मुझे दिखायेगा  तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


Saturday, November 21, 2015

शादी के पहले -शादी के बाद

           
                               
 पहले पहले ही 'ओवर' में,कर डाला हमको 'क्लीन बोल्ड' ,
कुछ बात थी तेरी 'बॉलिंग 'में,कुछ बात थी मेंरी 'बेटिंग' में 
वो फेस,'फेसबुक' पर तेरा ,वो' व्हाट्सऐप' के संदेशे ,
दीदार प्यार ' स्काइप 'पर,कुछ बात थी तेरी 'चेटिंग' में 
तुझको अपना दिल दे बैठे ,और तेरे दीवाने हो बैठे ,
वो छुपछुप करमिलना जुलना ,कुछ बात थी तुझ संग डेटिंग में  
कुछ बात थी मेंरे कहने में ,कुछ बात थी तेरे  सुनने में , 
कुछ बात थी दिल के लुटने में,कुछ बात थी अपनी सेटिंग में 

पर  जब  से  है 'मेरेज' हुई,  इस तरह जिंदगी  कैद  हुई ,
सब   दीवानापन  फुर्र  हुआ ,अपनी  वो  गुटरगूं  बंद  हुई 
दिन भर मैं पिसता दफ्तर में,तुम दिन भर मौज करो घर में ,
मैं थका पस्त ,और  अस्तव्यस्त ,अब जीवन की गति मंद हुई  
मैं ऐसा फंसा गृहस्थी में ,सब आग लग गयी मस्ती में,
स्वच्छंद जिंदगी होती थी ,वो आज बड़ी पाबन्द हुई 
ये तबला अब बेताल हुआ , मेरा  ऐसा कुछ हाल हुआ ,
मैं मंहगाई में पिचक गया ,तुम   फैली  सेहतमंद हुई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 19, 2015

बेटे और बेटियां

                बेटे  और बेटियां             

बेचारा पितृत्व हमेशा रहा तड़फता है,
               विजय पताका पत्नीत्व  की  ही लहराई है
येन केन और प्रकारेण कुछ ऐसा होता है,
                 जीत हमेशा गठबंधन की होती आई है
मातपिता जिनने  बचपन से पालपोसा था,
                   धीरे धीरे उनकी जब कम हुई महत्ता है
और पराये घर से बेटा जिसे ब्याहता है,
                   उसके हाथों में आ जाती घर की  सत्ता है        
 जिसको लेकर सुख के सपने बुने बुढ़ापे में,
                  अच्छे दिन की आशाओं के, कभी, टूटते है
 जैसे बढ़ती उमर ,क्षरण काया  का होता  है,   
                    एक एक कर, साथी संगी सभी छूटते है
 आता आपदकाल ,बुढ़ापा ,जब दुःख देता है,
                  फंसी भंवर में नाव,जिंदगी डगमग करती है
बेटे अपने परिवार संग मौज उड़ाते है,
                    किन्तु बेटियाँ सदा सहारा, पग पग बनती है 
वही बेटियां जिन्हे पराया धन हम कहते है ,
                       साथ हमेशा दुःख पीड़ा में बढ़ कर आई है 
अक्सर बेटों को देखा है,हुए पराये है,
                           बेटी सदा  रही अपनी, ना हुइ पराई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

                                        ,
                  



                

Monday, November 16, 2015

ब्रह्म वाक्य

           ब्रह्म वाक्य

अपनी संतानो से उपेक्षित,
 वरिष्ठजनो ने करवाया  यज्ञ बड़ा
जिसके  प्रभाव से ब्रह्माजी को,
प्रकट हो  स्वयं धरती पर आना पड़ा
उन्होंने आकर प्रश्न किया ,
भक्तों मुझे किसलिए किया याद 
यजमानो  ने कहा ,
प्रभु,आपने ये कैसी बनाई है औलाद
अपने जन्मदाताओं को ,
धता दिखा देती है,शादी के बाद
बिलकुल ख्याल नहीं करती ,
तिरस्कृत  कर दिल तोड़ देती है
उन्हें बुढ़ापे में तड़फ़ने के लिए ,
अकेला छोड़ देती है
आपने ही तो उन्हें बनाया है
पर उनके दिमाग में ,
पितृभक्ती वाला प्रोग्राम नहीं लगाया है
ब्रह्माजी बोले मैं  खुद हैरान हूँ
दुखी और परेशान हूँ
मेरे इस उत्पाद में जरूर कुछ कमी है भारी
पर अब तक ठीक ही नहीं हो पा रही ,
ये निर्माता को भूलने की बिमारी
इसे सुधारने का मेरा हर प्रयास व्यर्थ जाता है
क्योंकि शादी के बाद ,
उसमे  'पत्नी' नाम का'वायरस' लग जाता है
वैसे मैंने आप लोगों का भी निर्माण किया है
पर क्या आपने कभी ,मेरी ओर ध्यान दिया है
पालनकर्ता विष्णु के अवतारों की भी पूजा करते है
राम राम और कृष्ण कृष्ण जपते  है
हर्ता शिवजी से डर कर उन्हें ध्याते है
पूरे सावन भर जल चढ़ाते है
और तो और उनकी पत्नी दुर्गा को ,
वर्ष में दो बार नवरात्री में पूजा जाता है
विष्णु पत्नी लक्ष्मी की पूजा के  लिए भी,
दीपावली का त्योंहार आता है
सब ही देवी देवताओं  के पूजन और व्रत के लिए ,
वर्ष में कोई ना कोई दिन नियत है 
पर मेरे लिए ,न कोई दिन है ,
न पूजन होता है ,न कोई व्रत है
सभी  के देवताओं के पूरे देश में मंदिर अनेक है
पर पूरे विश्व में,मेरा मंदिर ,बस पुष्कर में एक है
तुम मेरी संतान हो पर तुमने ,
मेरी जो अवहेलना की है ,ये उसी का परिणाम है
कि तुम्हारी अवहेलना करती ,तुम्हारी संतान है
ये दुनिया का नियम है ,इस हाथ दो,उस हाथ लो
मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा ,तुम मेरा ख्याल रखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 12, 2015

बिहार की हार

           बिहार की हार   
                  १
                
लोग लाख कहते थे ,कि दम  है बन्दे में ,
           हार कर बिहार लेकिन बन्दे की साख गई
चींखें भी,चिघाड़े भी शेर से दहाड़े भी ,
           शोर हुआ इतना कि जनता थी जाग गई
लोग तो ये कहते है ,छुरी मारी अपनों ने ,
            बड़ी बड़ी बातें थी ,लेकिन कट नाक गई 
 घूमता परदेश रहे ,इज्जत कमाने को ,
               पर घर की बेटी ही ,गैरों संग भाग गई     
                       २
 मोदीजी की रैलियों में ,रेला तो उमडा  था बहुत ,
                 वोट कम क्यों,पता ये कारण लगाना चाहिए
कोई कहता मिडिया है,कुछ कहे अंतर्कलह ,
               कुछ कहे मंहगाई बढ़ती ,अब घटाना  चाहिए
मोदीजी तो जा रहे लंदन है मिलने क़्वीन से,
          हमको भी थोड़े दिनों ,अब मुंह  छुपाना चाहिए
हमको भी इस हार के ,सब कारणों को जानने ,
            आत्मचिंतन के लिए,   'बैंकॉक' जाना  चाहिए  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मीजी की पीड़ा

       लक्ष्मीजी की पीड़ा 

दिवाली की रात लक्ष्मी माई
मेरे सपनो में आई
मैं हतप्रभ चकराया
मैंने ना पूजा की ना प्रसाद चढ़ाया
बस एक आस्था का,
 छोटा सा दीपक जलाया
फिर भी इस वैभव की देवी को ,
इस अकिंचन का ख्याल कैसे आया
मुझे विस्मित देख कर ,
लक्ष्मी माता मुस्कराई
बोली इस तरह क्यों चकरा रहे हो भाई
तुमने सच्चे मन से याद किया ,
मैं  इसलिए तुम्हारे यहाँ आई
लोग इतनी रौशनी करते है ,
आतिशबाजी चलाते है
मनो तेल के लाखों दीपक जलाते है
लेकिन उनको  ये समझ नहीं आता है
 मेरी पूजा अमावस को इसलिए होती है,
क्योंकि मेरे  वाहन उल्लू को,
अंधियारे में ही ठीक से नज़र आता है
 वो उजाले से घबराता है
तुम्हारे यहां अँधियारा दिखलाया
इसीलिये वो मुझे  यहाँ पर ले आया
 मुझे एक बात और चुभती है
दिवाली पर जितना तेल ,
लोग दियों  में जलाते है ,
उतने में कई गरीबों को ,
चुपड़ी हुई रोटी मिल सकती है
मेरी पूजा और आगमन की चाह में ,
मुझी को पानी की तरह बहाना ,
मेरे साथ नाइंसाफी है
मुझे प्रसन्न करने के लिए तो,
श्रद्धा से जलाया ,एक दीपक ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


Tuesday, November 10, 2015

बदलता मौसम

        बदलता मौसम

धुंधली धुंधली सुबह ,साँझ  भी धूमिल  धूमिल
शिथिल शिथिल सा तन है,मन भी बोझिल बोझिल 
शीतल शीतल पवन ,फ़िज़ा बदली बदली है
 मौसम  ने ये  जाने  कैसी  करवट  ली  है
बुझा बुझा सा सूरज कुछ खोया खोया  है
अलसाया अलसाया दिन, सोया सोया  है 
सिहरी सिहरी रात ,हुई  हालत पतली  है
मौसम ने  ये  जाने  कैसी  करवट ली  है
टूटे टूटे सपन , कामना  उधड़ी  उधड़ी
चिन्दी चिन्दी चाह,धड़कने उखड़ी उखड़ी
छिन्न छिन्न अरमान ,तबियत ढली ढली है
मौसम   ने  ये  जाने  कैसी  करवट ली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फिर से मेग्गी -चार दोहे

         फिर से मेग्गी -चार दोहे

ना तो भाये पूरी कचौड़ी ,और ना भाये मिठाई
बहुत दिनों के बाद प्लेट में ,मेग्गी माता आई

मन में फुलझड़ियाँ छूटे ,फूटे खूब पटाखे
लक्ष्मीमाता को पूजेंगे ,मेग्गी नूडल खाके

वही सुनहरी प्यारी आभा,वो  ही स्वाद पुराना
बहुत दिनों के बाद मिला  है ये मनभावन खाना

नरम मुलायम यम्मी यम्मी ,खाकर मन मुस्कायो
दीवाली पर तुम्हे देख कर,'प्रेम रतन धन पायो '

घोटू

Monday, November 2, 2015

वो कौन है

          वो कौन है

जिसकी एक नागा भी नागवार गुजरे ,
 वो जब तक ना आये ,बैचैनी  बढ़ती
जिसके आने से मिलती दिल को राहत ,
जिसका रास्ता ,रोज निगाहें है तकती
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को ,
इन्तजार होता है जिसके आने का
उसके संग होती मीठी मीठी बातें,
जली कटी सब मुझको सिर्फ सुनाने का
आस पास की सारी खबरें जो देती,
किस का किस के साथ चल रहा है लफड़ा 
जिस दिन उसकी मेहर नहीं होती है तो,
उस दिन सारा घर लगता उजड़ा उजड़ा
जिसके आने से घरबार संवर जाता ,
जिसकी,फुर्ती,तेजी ,हर बात निराली है
मुझसे भी ज्यादा मेरी बीबीजी को,
लगती प्यारी ,वो बाई  कामवाली  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
          

पिछलग्गू पुरुष

       पिछलग्गू पुरुष

पुरुष की अग्रणीयता ,
शादी के पहले चार फेरों तक ही सीमित रहती है
क्योंकि उसके बाद,बाकी तीन फेरों में,
औरत आगे आ जाती है ,
और उसके बाद,उमर भर,पति से आगे ही रहती है
पति बेचारा,पिछलग्गू बना ,
उसकी हर बात मानता है
उसके इशारों पर नाचता है ,
ये बात सारा जमाना जानता है
अंग्रेजी में भी 'लेडीज फर्स्ट' याने,
महिलाओं को वरीयता दी जाती है
पुरुष मेहनत कर , धनार्जन करता है ,
पर औरतें गृहलक्ष्मी कहलाती है
घर की सुख शांति के लिए ,
इनकी हाँ में हाँ मिलाना आवश्यक होता है
और जो पति ये नहीं करता,रोता है
इसलिए जो भी पुरुष ,
पत्नी का अनुगामी बन ,
उसके पीछे पीछे चलता है
उसे जीवन के सब सुख प्राप्त होते है ,
और वो फूलता,फलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, October 29, 2015

ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

          ऊनी वस्त्रो की पीड़ा

अजब तक़दीर होती है ,हम स्वेटर और शालों की
सिर्फ सर्दी में मिलती है ,सोहबत हुस्नवालों की
गर्मियों वाले मौसम में, विरह की  पीर  सहते है
बड़े घुट घुट के जीते है ,सिसकियाँ भरते रहते है
दबे बक्से में रखते है ,दबाये  दिल के सब अरमां
आये सर्दी और हो जाए,मेहबाँ हम पे मोहतरमा
याद आती,भड़क जाती,दबी सब भावना मन की
गुलाबी गाल की रंगत ,वो संगत रेशमी तन की
भुलाये ना भुला पाते, तड़फती हसरतें दिल की   
थी कल परफ्यूम की खुशबू,है अब गोली फिनाइल की
बड़ी मौकापरस्ती है ,ये फितरत हुस्नवालों की
अजब तक़दीर होती है ,इन स्वेटर और शालों की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम के मुताबिक़ चलो

           मौसम के मुताबिक़ चलो

गर्मी में गोला  बर्फ का ,सर्दी में रेवड़ी ,
                           जो बेचते है ,साल भर उनकी कमाई है
सर्दी में शाल,कार्डिगन,गमी में स्लीवलेस ,
                             पहनावा पहने औरतें पड़ती दिखाई है
 गर्मी में ऐ सी ,कूलरों में आती नींद है ,
                             सर्दी में हमको ओढ़नी पड़ती  रजाई है
मौसम के मुताबिक़ ही बदलो अपनेआप को ,
                            इसमें ही सुख है ,फायदा,सबकी भलाई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'            

किस्मत -कुत्ते की

          किस्मत -कुत्ते की

हर कुत्ते की ऐसी किस्मत कब होती है ,
           कोई कोठी या बंगलें में पाला जाए
हो उसको नसीब सोहबत ऊंचे लोगों की,
          बिस्किट और दूध खाने को डाला जाए
जब जी चाहे प्यार दिखाए 'मेडम जी'कॉ ,
       जब जी चाहे उनके चरण कमल को चूमे 
नाजुक नाजुक प्यारे हाथ जिसे सहलाएं ,
       जब जी चाहे ,मेडम  की बाहों  में  झूमे
साहब को घर छोड़ ,सवेरे शाम प्रेम से ,
       घर की मेडम जिसे प्यार से हो टहलाती
उसके संग संग ,खेल खेल कर गेंदों वाला ,
       बड़े प्यार से हो अपने मन को बहलाती
जिसको घर के अंदर बाहर ,हर कोने में,
        हो स्वच्छंद विचरने की पूरी आजादी
जो मालिक के बैडरूम में और बिस्तर पर,
          प्रेमप्रदर्शन  करने का हो हरदम आदी
अगर अजनबी कोई जो घर में घुस जाए,
         भौंक भौंक कर ,वो उसका जी दहलाता हो
लेकिन एक इशारे पर मालिक के चुप हो,
          दुम को दबा  ,एक कोने में छुप जाता  हो
बाकी कुत्ते गलियों में घूमा करते है ,
          फेंकी रोटी खा कर पेट भरा  करते  है
उनका कोई ठौर ठिकाना ना होता है,
           आवारा से आपस में  झगड़ा करते है
 पर ये किस्मतवाला रहता बड़े शान से ,
              खुशबू वाले शेम्पू से नहलाया जाए
 हर कुत्ते की कब ऐसी किस्मत होती है ,
               कोई कोठी या बंगले में पाला जाए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                       
              

दास्ताने मोहब्बत

           दास्ताने मोहब्बत

चाहे पड़ा हो कितने ही पापड़ को बेलना ,
         कैसे भी खुद को,उनके लिए 'फिट 'दिखा दिया
मजनू कभी फरहाद कभी महिवाल बन ,
        हुस्नो अदा और इश्क़ पर ,मर मिट दिखा दिया
उनकी गली मोहल्ले के ,काटे कई चक्कर,
         चक्कर  में  उनके  डैडी  से भी पिट दिखा दिया 
देखी हमारी आशिक़ी ,वो मेहरबाँ हुए,
           नज़रें झुका  के  प्यार का 'परमिट'दिखा दिया
पहुंचे जो उनसे मिलने हम ,गलती से खाली हाथ,
          मच्छर समझ के हमको काला'हिट' दिखा दिया
दिल के हमारे  अरमाँ सब आंसूं में बह गए,
           'एंट्री' भी  ना  हुई  थी  कि ' एग्जिट' दिखा दिया 

 'मदन मोहन बाहेती'घोटू'             

'

Wednesday, October 28, 2015

शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

  शरद पूनम का चाँद और बढ़ती उमर

इसने तो पिया था अमृत ,ये चाँद शरद का क्या जाने
होते है   कितने  दर्द  भरे, बुझते  दीयों के  अफ़साने
कहते है शरद पूर्णिमा पर ,चन्दा अमृत बरसाता है
अपनी सम्पूर्ण कलाओं पर ,इठलाता वह मुस्काता है
ये रूप देख उसका मादक ,मन विचलित सा हो जाता है
यमुना तट के उस महारास की यादों में खो जाता  है
उस मधुर चांदनी में शीतल,तन मन  हो जाता उन्मादा
याद आते  गोकुल,वृन्दावन ,आती है याद बहुत राधा
यूं ही हंस हंस कर रस बरसा,क्या जरूरत है तरसाने की
ये नहीं सोचता कान्हा की ,अब उमर न रास रचाने की
मदमाता मौसम उकसाता ,और चाह मिलन की जगती है
पर दम  न रहा अब साँसों में ,ढंग से न बांसुरी  बजती है
ये  चाँद पहुँच के बाहर है,फिर भी करता है बहुत दुखी
जैसे हमको ललचाती है ,पर घास न डाले  चन्द्रमुखी
वो यादें  मस्त  जवानी की ,लगती है मन को तड़फाने
इसने तो पिया था अमृत , ये चाँद  गगन का क्या जाने
होते   है   कितने  दर्द  भरे ,बुझते  दीयों  के  अफ़साने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, October 26, 2015

अजीब रिश्ते

        अजीब रिश्ते

ये रिश्ते भी ,कैसे अजीब होते है
पासवाले दूर ,और दूर वाले करीब होते है
माँ को अपने दामाद पर ,
बेटे से ज्यादा प्यार आता है
क्योंकि वह उसकी बेटी पर  ,
अपना जी भर के प्यार लुटाता है
और दामाद भी ,अपने माँ बाप से ज्यादा,
प्यार करता है अपने ससुर और सास से
जिन्होंने अपनी पाली पोसी बेटी ,
उसके हवाले करदी,उसके विश्वास पे
उसे पराये घर से आये ,
अपने दामाद की हर बात सुहाती है
लेकिन पराये घर से आयी ,
अपनी बहू में कई कमियां नज़र आती है
सोचती है कि बहू ने कुछ जादू टोना किया है
उससे उसका बेटा छीन लिया है
उसके मायके से आयी हर चीज लगती है ,
सस्ती और बेकार
उसको ताने मारे जाते है हर बार
और दामाद को ,बिठाया जाता है,पलकों पर
उसकी आवभगत में जुट जाता है सारा घर
वो तो क्या ,उसके घरवालो का भी ,
'वी आई पी ' की तरह होता है सत्कार
त्योंहारों पर उन्हें भेजे जाते है उपहार
ये उपहार या शादी में दिया हुआ दहेज ,
एक तरह की रिश्वत है ,जिसका मतलब साफ़ है
जरा ख्याल रखियेगा ,
हमारी फ़ाइल आपके पास है
लेकिन मेरी समझ में ये बात नहीं आये
बहू और दामाद के लिए ,
अलग अलग मापदंड क्यों जाते है अपनाये?
जिन्हे समझदार बहू औरअच्छा दामाद मिलता है ,
वो बड़े खुशनसीब होते है
ये रिश्ते भी अजीब होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर की शान-सपाट मैदान

      सर की शान-सपाट मैदान
 
काले काले घुंघराले बाल ,
जो हुआ करते थे कभी जिस सर की शान
वहां है आज एक सपाट मैदान
बढ़ती हुई उमर के साथ
अक्सर कई लोगों में होती है ये बात
सर होने लगता है सपाट 
याने क़ि हम दिखने लगते है खल्वाट
बचपन से कमाई हुई ,सर के बालों की दौलत ,
होने जब लगती है गायब
परेशान हो जाते  है सब
आदमी बेचारा रोता है
क्या आपने कभी सोचा है ,
ऐसा मर्दों के साथ ही क्यों होता है ?
क्या औरतों को कभी मर्दों की तरह ,
इस तरह टकले होते हुए देखा है
या मर्दों ने ही ले रखा इसका ठेका है
टकले होने के बतलाये जाते कई कारण है
संस्कृत में एक उक्ती है,
खल्वाट क्वचित ही होते निर्धन है
याने कि अधिकतर टकले होते है धनवान
लक्ष्मीजी उन पर होती है मेहरबान
दूसरा कारण ये कि कुछ समझदार मर्द,
दिमाग पर जोर डाल कर,ज्यादा सोचते है
और जब बात समझ में नहीं आती ,
तो खीज कर अपना सर नोचते है
हो सकता है इनमे से कोई बात ,
उनके सर के बाल उड़ाती है
पर मेरी समझ में तो तीसरी ही वजह आती है
आदमी शादी के बाद,
बीबी का गुलाम हो जाता है 
उसकी हर बात मानता है ,
उसके आगे सर नमाता है
और उसके आगे ,सर टेकते टेकते ,
हो जाता है उसका बुरा हाल
और उड़ने लगते है उसके सर के आगे के बाल
दफ्तर में भी ,वो बॉस के आगे सर रगड़ता है
तब ही तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता है
इसलिए धीरे धीरे ,सर के आगे का,
बीच का मैदान ,सपाट हो जाता है
सड़क की दोनों तरफ ,वृक्षों की तरह,
कुछ ही बाल उगे रहते है,
और आदमी खल्वाट हो जाता है
कुछ पुरुषार्थी लोगों के,
आगे के बाल तो ठीक रहते है ,
पर पीछे की चाँद निकल आती है
ये उनकी पत्नी के भाई के प्रति,
उनका प्रेम दिखलाती है
चाँद को बच्चे मामा कहते है ,
याने वो बीबी का भाई ,आपका साला है
उसके कारण ही ये गड़बड़ घोटाला है
आपको साले की सेवा करनी पड़ती है,
उसे आप सर पर बैठाते है
इसीलिए सर पर चाँद धरे नज़र आते है
और जिनके जीवन में बहुत सारे घपले होते है
अक्सर वो पूरे के पूरे टकले होते है
कुछ भी हो ,चमकती हुई टाँट के अपने ठाठ है ,
उससे व्यक्तित्व निराला होता है
अनुभवों की पाठशाला होता है
चेहरे पर गंभीरता ,ओढ़ी हुई नज़र आती है
पर जब लड़कियां ,उन्हें अंकल कहती है,
तो दिल पर सैकड़ों छुरियाँ चल जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
   

पटाया माँ को कैसे था

             पटाया माँ को कैसे था

थे छोटे हम ,पिताजी से ,डरा करते थे तब इतना ,
         कभी भी सामने उनके ,न अपना सर उठाया था
और ये आज के बच्चे, हुए 'मॉडर्न' है  इतने ,
         पिता से पूछते है ,'मम्मी' को ,कैसे पटाया  था
न 'इंटरनेट'होता था,न ही 'व्हाट्सऐप'होता था,
         तो फिर मम्मी से तुम कैसे,कभी थे 'चेट' कर पाते
 सुना है उस जमाने में,शादी से पहले मिलने पर,
           बड़ा प्रतिबन्ध होता था,आप क्या 'डेट'पर जाते 
बड़े 'हेण्डसम 'अब भी हो,जवानी में लड़कियों पर,
           बड़ा ढाते सितम होगे,उस समय जब कंवारे थे
'फ्रेंकली'बात ये सच्ची ,बताना हमको डैडी जी ,
            माँ ने लाइन मारी थी ,या तुम लाइन मारे थे
 कहा डैडी ने ये हंस कर ,थे सीधे और पढ़ाकू हम,       
      कहाँ हमको थी ये फुरसत ,किसी लड़की को हम देखें
तुम्हारी माँ थी सीधी पर ,तुम्हारे 'नाना' चालू थे ,
              पटाया उनने 'दादा' को,'डोवरी 'मोटी  सी देके

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 
                                    
         

Friday, October 23, 2015

ऐसा क्यूँ होता है ?

        ऐसा क्यूँ होता है ?

मिलन के रात हो ,नींद नहीं आती है
पिया जब साथ हो,,नींद नहीं  आती है
खुशी की बात हो,नींद  नहीं   आती है
दुःख ,अवसाद हो ,नींद नहीं   आती है
पेट जब भूखा हो, नींद नहीं आती है
अधिक लिया खा हो,नींद नहीं आती है
हाल ,बदहाल  हो,नींद नहीं आती है
जमा खूब माल हो,नींद नहीं  आती है
आप परेशान हो,नींद नहीं आती है
सर्दी या जुकाम हो,नींद नहीं आती है 
बहुत अधिक गर्मी हो,नींद नहीं आती है
बहुत अधिक सर्दी हो ,नींद नहीं आती है
यदि निर्मल काया है,जी भर के सोता है
घर में ना माया है ,जी भर के सोता है
मेहनतकश थक जाता ,जी भी के सोता है
जब घोडा बिक जाता ,जी भर के सोता है
निपट जाती जब शादी,जी भर के सोता है
बिदा बेटी हो जाती ,जी भर के सोता  है
चिंता ना करता है,जी भर के  सोता है
या फिर जब मरता है,जी भर के सोता है
कई बार सोच सोच,'घोटू ' ना सोता है
 नींद नहीं आती है,ऐसा क्यूँ   होता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

संगत का असर

          संगत का असर

एक कथा ,आपने सुनी हो या ना सुनी,
फिर से सुनाता हूँ
संगत का असर कैसा होता है,
बतलाता हूँ
समुद्र मंथन के बाद जब अमृत निकला
उसे पाने को,
देवता और दानव में,आरम्भ हो गया झगड़ा
तब भगवान विष्णु ने ,मोहिनी रूप धार ,
अमृत बांटने का कार्य किया
तो एक असुर ने ,देवता की पंक्ती में घुस,
थोड़ा अमृत चख लिया
विष्णु जी को पता लगा तो,
सुदर्शन चक्र से काट दिया उसका सर
तब उसके गले में अटकी ,
अमृत की कुछ बूँदें ,गिर गई थी धरती पर
और जहां वो बूंदे गिरी थी,
वहां पर दो पौधे थे उग आये
जो बाद में लहसुन और प्याज कहलाये
दोनों में ही ,अमृत के गुण पाये जाते है,
और सबके लिए फायदेमंद है
पर क्योंकि ,राक्षस के साथ ,
 उनका सम्पर्क हो गया था ,
इसलिए आती उनमे दुर्गन्ध है
सम्पर्क का असर ,आदमी में,
गुण या अवगुण भर देता है,
अपना असर दिखलाता है
भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आकर ,
डाकू अंगुलिमाल भी ,साधू बन जाता है
और 'रॉल्सरॉयल'भी ,
जब कीचड़ से गुजरती है
तो उसके पहियों में भी गंदगी लगती है
मिट्टीके ढेले पर भी ,जब गुलाब गिरता है ,
उसमे गुलाब की खुशबू आ जाती है
सज्जन की संगत ,
हमेशा आपको अच्छा बनाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रंग भेद

          रंग भेद

        मैं गेंहूँ वर्ण ,तुम हो सफेद
         हम   दोनों  में है  रंग भेद
मैं गेंहूँ सा ,तुम अक्षत सी ,
मैं पीसा जाता,तुम अक्षत
मैं रहता दबा कलश नीचे,
तुम रहती हो मस्तक पर सज
कुमकुम टीका लगता मस्तक
  उसपर  लगते अक्षत  दाने
 प्रभु की पूजा में अक्षत की 
 महिमा को हम सब पहचाने
चावल उबाल सब खा लेते ,
गेंहू को पिसना  पड़ता है
या फिर खाने में तब आता ,
जब उसका दलिया बनता है
गेंहू बनता हलवा प्रसाद,
चावल से खीर बना करती
जो हवन यज्ञ में,पूजन में ,
डिवॉन का भोग बना करती
चावल का स्वाद बढे दिन दिन,
जितनी है उसकी बढे उमर
 और साथ उमर के गेंहू में ,
पड़ने लगते है घुन अक्सर
चावल होते है देव भोज ,
गेंहू  गरीब  का  खाना है
दो रोटी खा कर भूख मिटे  ,
और पेट तभी भर जाना है
गेंहूँ  के ऊपर है दरार ,
वो इसिलिये क्षत होते है
तुम से सुंदर और चमकीले ,
चावल ही अक्षत होते है
पुत्रेष्ठी यज्ञ हुआ था और
परशाद खीर का खाया था
तब ही तो कौशल्या माँ ने ,
भगवान राम को जाया  था
चावल प्रतीक है समृद्धि का ,
धन धान्य इसलिए कहते है
है मिलनसार ,खिचड़ी बनते,
इडली , डोसे  में रहते है 
      चाहे बिरयानी या पुलाव,
      सब खुश हो जाते तुम्हे देख
      मैं गेंहूँ वर्ण,तम हो सफेद
       हम दोनों में है रंग भेद

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, October 21, 2015

जय जय आरक्षण

       जय जय आरक्षण

आरक्षण महाराज ,आपकी महिमा न्यारी ,
             तुमने मेरी सात सात पुश्तों को तारा
तुम्हारे ही बल पर मैं सत्ता में आया,
           आज हो रहा है लाखों का वारा ,न्यारा
तुम ना थे तो कोई नहीं पूछता हमको,
           निम्न वर्ग के हम सेवक माने जाते थे     
ब्राह्मण,बनिए और क्षत्रिय राज्य करते थे ,
          हम पिछड़े थे और क्षुद्र बस कहलाते थे         
लेकिन जब से आरक्षण वरदान मिला है,
                तब से ही हो रहे हमारे ,वारे न्यारे
भले हमारा शिक्षण और योग्यता कम हो,
               सरकारी पद ,आरक्षित है,लिए हमारे
 आरक्षण है नहीं सिरफ़ भरती में हमको,
             आरक्षण का हक है हमे प्रमोशन में भी
बहुत बड़ी हम वोट बैंक है इसीलिये तो,
              कई चुनावी  सीटें  है ,आरक्षण में भी
आरक्षण के देख इस तरह कई फायदे ,
           उच्चवर्ग भी आज चाह  रहा आरक्षण है
आज दलित बनने को वो सब भी आतुर है ,
      जिनने बरसों तक दलितों का किया दलन है
आरक्षित वर्गों के भी अब कई वर्ग है ,
       सबके लिए सुरक्षित ,प्रतिशत भांति भांति
कोई दलित,महादलित,कोई बैकवर्ड है,
           कोई अल्पसंख्यक है,तो कोई जनजाति
सबसे ज्यादा मज़ा उठती क्रीमी लेयर ,
             लाखों और करोड़ों में जो खेल रही है    
 लेकिन कितनी दलित अल्पसंख्यक जनता है,
        अब भी वो की वो ही मुसीबत झेल रही है
आरक्षण से क्षरण हो रहा प्रतिभाओं का,
         आगे बढ़ने से ,अगड़े ना रोके जाएँ
साथ साथ सब दौड़ें ,जो भी अव्वल आये,
        उसको ही पारितोषिक से बक्शा  जाए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                          



                              

हमवतनो से

       हमवतनो से

यह कह कर वो मुसलमान ,तू हिन्दू है
मारकाट कर ,झगड़ रहा आपस में तू है
गाय और सुवर के चक्कर में पड़ कर के,
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ  है
नेता लोग रोटियां अपनी सेक रहे है
और पड़ोसी ,चटखारे ले देख रहे है
साथ साथ कितने वर्षों से रहते आये,
भाई भाई से,हिन्दू मुस्लिम एक रहे है
कुछ भी दे दो नाम,राम हो चाहे अल्लाह ,
परमपिता वो ऊपरवाला ,एक प्रभू  है
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ  है
मंदिर हो ,मस्जिद हो चाहे हो गुरद्वारे
पूजा के स्थल ,ईश्वर के घर है सारे 
अपने अपने धर्म ,आस्था अपनी अपनी ,
मिलजुल रहते,आपस में थे भाईचारे
नाम धरम का लेकर के,तुमको लड़वाकर ,
नेता लोग कर रहे सीधा निज उल्लू है 
आपस में इतनी  नफरत फैलाई क्यूँ है 
हम सब भाई भाई से है,ईश्वर के बन्दे
झगड़ रहे आपस में हो नफरत में अंधे
गोटी हमको बना ,सियासी खेल खेलते ,
ये सब तो है  नेताओं के गोरख धंधे
इनके बहकावे ना आये,एक रहे हम,
एक तरह का लाल ,तुम्हारा ,मेरा खूं है
आपस में इतनी नफरत फैलाई क्यूँ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हमवतनो से

       हमवतनो से

यह कह कर वो मुसलमान ,तू हिन्दू है
मारकाट कर ,झगड़ रहा आपस में तू है
गाय और सुवर के चक्कर में पड़ कर के,
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ  है
नेता लोग रोटियां अपनी सेक रहे है
और पड़ोसी ,चटखारे ले देख रहे है
साथ साथ कितने वर्षों से रहते आये,
भाई भाई से,हिन्दू मुस्लिम एक रहे है
कुछ भी दे दो नाम,राम हो चाहे अल्लाह ,
परमपिता वो ऊपरवाला ,एक प्रभू  है
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ  है
मंदिर हो ,मस्जिद हो चाहे हो गुरद्वारे
पूजा के स्थल ,ईश्वर के घर है सारे 
अपने अपने धर्म ,आस्था अपनी अपनी ,
मिलजुल रहते,आपस में थे भाईचारे
नेता उल्लू साध रहे तुमको लड़वाकर ,
एक तरह का लाल ,तुम्हारा ,मेरा खूं है
आपस में तूने नफरत फैलाई क्यूँ है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लालू उचाव

         लालू उचाव

मैं ग्वाला,मैंने सत्ता को खूब दुहा है ,
मैं चरवाहा ,मैंने सबको खूब चराया
पशु चरने को घास जंगलों में जाते है,
मेरा राज,इसलिए जंगलराज कहाया
चारा खाकर ,पशु दूध ज्यादा देते है ,
मैंने जमकर चारा खाया इतने सालो
अब मै बूढी भैंस हो गया,दूध न देता,
इसका मतलब नहीं मुझे तुम घास न डालो
अब मेरी औलादें है तैयार हो गयी ,
खूब चरेंगी,और दूध भी  देंगी  ज्यादा
उन्हें वोट का चारा डालो और जितादो ,
दूध मिलेगा तुमको, ये है  मेरा  वादा

घोटू  

जीवन यात्रा

           जीवन यात्रा

जीवन पथ पर तुमको बढ़ते ही जाना है,
ध्येय तुम्हारा अपनी मंजिल को पाना है
बाधाएं कितनी ही आ ,रोकेगी  रस्ता ,
धीरज रख तुमको उनसे ना घबराना है
तुम चुपचाप सड़क पर सीधे जाते होगे ,
तीव्र गति से पास कोई वाहन गुजरेगा
उसके पहिये से गड्ढे में पड़ा हुआ जो,
गंदा और ढेर सारा कीचड़ उछलेगा
और उसके कुछ छींटे ,जाने अनजाने ही ,
तुम्हारे उजले कपड़े ,गंदे  कर देंगे
इस जीवन में ऐसे कई हादसे होंगे ,
तुमको यूं ही परेशान कर,दुःख भर देंगे
इसका मतलब नहीं सड़क से तुम ना गुजरो,
 जीवनपथ लोग कई लोग धोखा करते है
हाथी जब भी चलता शान और मस्ती से,
तो सड़कों पर कुछ कुत्ते भौंका करते है
ये दुनिया है,कुछ ना कुछ होता रहता है,
कई तरह के अच्छे बुरे  लोग मिलते है
किन्तु सबर का फल हरदम मीठा होता है ,
जब मौैसम आता है ,फूल  तभी खिलते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लेंग्वेज प्रॉब्लम

         लेंग्वेज प्रॉब्लम

मेरे मित्र मुसद्दीलाल ,
जो कुछ दिन पहले ही हुए थे स्वर्गवासी
कल मेरे सपने में आये,चेहरे पर थी उदासी
हमने कहा यार ,
तुम तो स्वर्ग में रहे हो मज़े मार
तो फिर क्यों चेहरा ग़मगीन है
वो बोले यार,
वैसे तो स्वर्ग का माहौल बड़ा हसीन है
अप्सराएं भी आसपास डोलती है
पर मेरी समझ में कुछ नहीं आता ,
वो न जाने कौनसी भाषा बोलती है
पंडित जी मुझे बड़ा मूरख बनाया है
स्वर्ग आने का रास्ता तो बतलाया है
पर यहाँ की भाषा नहीं सिखलाई
इसलिए यहां ,
बड़ा 'कम्युनिकेशन गेप' है मेरे भाई
यहां के फ़रिश्ते और अप्सराएं
एक अलग ही भाषा में बोलें और गाये
जो हमारी समझ में बिलकुल नहीं पड़ता है
वैसे  यहाँ भी,लोकल और 'ऑउटसाइडर'का,
काफी 'पॉलिटिक्स' चलता है
धरती से जब भी कोई आता है
उसे किसी अनजान भाषा बोलने वाले ,
अजनबी के साथ ठहराया जाता है
जिससे आपस में कोई बातचीत नहीं हो पाती  है
थोड़ी शांती तो रहती है ,पर इस माहौल में,
अपनी तो तबियत घबराती है
सोमरस पियो और पड़े रहो
यार ये भी कोई लाइफ है,तुम्ही कहो
न गपशप ,न नोकझोंक,
 न व्हाट्सऐप ,न इंटरनेट
न फेसबुक ,न टी वी,
कोई क्या करे दिन भर यूं ही बैठ   
निर्धारित समय पर ,
कुछ देर के लिए ,अप्सराएं तो आती  है
थोड़ा मन बहलाती है
पर न हम कुछ कह पाते है
न उनकी समझ में कुछ आता है
और इतनी देर में ,उनका हमारे लिए ,
'अलोटेड 'टाइम भी खतम हो जाता है
भैया,इससे तो अपनी धरती की लाइफ ,
ही बड़ी अच्छी थी
गपसप होती रहती थी,मौजमस्ती थी
यहाँ पर आकर तो हम एक दम ,
 बड़े डिसिप्लीन में बंध  गए है
यार,कहाँ  आकर  फंस गए है ?


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम तुम -संग संग

    हम तुम -संग संग

मैं  काहे  कोठी, बंगला लूँ ,
या फ्लेट कहीं बुक करवालूँ
मेरे रहने को तेरे दिल का एक कोना ही काफी है
क्यों चाट पकोड़ी  मैं खाऊँ
'डोमिनो' पिज़ा  मंगवाऊँ
मेरे खाने को तुम्हारी ,मीठी सी झिड़की काफी है
क्यों पियूं कोई शरबत,पेप्सी
बीयर ,दारू  या  फिर  लस्सी
मेरे पीने को तुम्हारा ,ये रूप, प्रेम रस  काफी है
मैं तेरे  दिल में बस जाऊं
और नैनों में तुम्हे बसाऊं 
खुदमें खुद बस कर मुझे मिले,संग तुम्हारा काफी है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, October 19, 2015

बड़े कैसे बनते हैं

        बड़े कैसे बनते हैं

सबसे पहले अपनी दाल गलानी पड़ती ,
           और फिर मेहनत करना और पिसना पड़ता है
दुनियादारी की कढ़ाई के गरम तेल में,
               धीरे  धीरे  फिर  हमको  तलना  पड़ता  है
फिर जाकर मिलती है कुछ पानी की ठंडक,
            उसमे से भी  निकल, निचुड़ना फिर पड़ता  है
 तब मिलती है हमे दही की क्रीमी लेयर ,
               मीठी  चटनी  और  मसाला  भी  पड़ता  है
जीवन में कितनी ही मेहनत करनी पड़ती ,
                 तब जाकर के कहीं बड़े हम बन पाते है
कोई दहीबड़े कहता है कोई भल्ले ,
                      और  हमारे  बल्ले बल्ल हो जाते है
  
मदन मोहन बाहेती'घोटू'                     
                 
  
              
                 
  
              

गुल और गुलगुले

          गुल और गुलगुले

मित्र हमारे पहुंचे पंडित ,हमने पूछा ,
          है परहेज गुलगुलों से,गुड खाते रहते
मुंह में राम,बगल में छूरी क्यों रखते हो,
          छप्पन छुरियों के संग रास रचाते रहते
बन कर बगुला भगत ढूंढते तुम शिकार हो,
          कथनी और करनी में हो अंतर दिखलाते
सारे नियम आचरण लागू है भक्तों पर ,
         प्याज नहीं खाते पर रिश्वत  जम  कर खाते
उत्तर दिया मित्र ने हमको,कुटिल हंसी हंस ,
           है  परहेज  गुलगुलों से, पर  नहीं  गुलों  से
प्रभू की सुंदर कृतियों का यदि सुख हम भोगें ,
           जीवन का रस पियें ,कोई क्यों हमको कोसे
प्याज अगर खाएं तो मुख से आये बदबू ,
           प्याज खाई है,ये जग जाहिर हो जाता  है
रिश्वत की ना कोई खुशबू या बदबू है,
           पता किसी को इसीलिये ना  चल पाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नदिया और जीवन

  नदिया और जीवन
         
मैं ,बचपन में थी उच्श्रृंखल
बच्चों सी ,चंचल और चपल 
पर्वतों से उतरते हुए ,
कुलांछे भरते हुए ,
जब जवानी के मैदानी इलाके में आई  ,
इतराई
मेरी छाती चौड़ी होने लगी
और मैं कल कल करती हुई,
मंथर गति से बहने लगी
मेरी जीवन यात्रा इतनी सुगम नहीं थी
मेरे प्रवाह में कई मोड़ आये
कभी ढलान के हिसाब से बही ,
कभी कटाव काट कर,
अपने रस्ते खुद बनाये
लोगों ने मुझे बाँधा ,
मुझ पर बाँध बनाया
मुझसे ऊर्जा ली ,
नहरों से मेरा नीर चुराया
 मेंरे आसपास ,अपना ठिकाना बनाया
मेरी छाती पर चढ़,
अपनी नैया को पार लगाया
किसी ने दीपदान कर ,
मुझे रोशन किया
किसी ने अपना सारा कचरा ,
मुझमे बहा दिया
कभी बादलों  ने ,अपना नीर मुझ में उंढेला
मैंने झेला ,
मुझे बड़ा क्रोध भी आया
मैंने क्रोध की बाढ़ में ,कितनो को ही बहाया
मुझे पश्चाताप हुआ,मैं शांत हुई
 और फिर आगे बढ़ती गयी
राह में कुछ मित्रों ने हाथ मिलाया
मेरे हमसफ़र बने
मेरी सहनशीलता और मिलनसारिता ,
मेरी विशालता का   सहारा बने
आज मैं ,विशाल सी धारा के रूप में,
बाहर से शांत बहती हुई दिखती हूँ
पर मेरे अंतर्मन में ,है बड़ी हलचल
क्योंकि महासागर में,विलीन होने का ,
आनेवाला है पल
आज नहीं  तो कल

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



 

बचत के रोमांटिक तरीके

        बचत के रोमांटिक तरीके

मंहगाई बढ़ रही हमें कुछ करना होगा ,
ऐसा जिससे मज़ा उठायें  मंहगाई का,
रोमांटिक ढंग से यदि थोड़ी बचत करें तो ,
          मंहगाई की चुभन  नहीं   तड़फ़ा पायेगी
तुम परफ्यूम लगाओ,तुम्हे बांह में ,मैं लूँ ,
तो  मुझ में भी आयेगी तुम्हारी  खुशबू ,
इससे परफ्यूमो का खर्चा घट  जाएगा ,
          हम दोनों में एक जैसी खुशबू आएगी
मेरी बढ़ी हुई दाढ़ी जब चुभती तुमकों ,
तुम्हे  सुहाती है ये हरकत मर्दों वाली ,
मैं दाढ़ी के बाल बढ़ा कर तुम्हे चुभाऊँ ,
          शेविंग क्रीम ,ब्लेड की लागत कम आएगी
बाथरूम में एक तौलिया सिरफ रखेंगे ,
तुम पहले नहा लेना ,अपना बदन पोंछना ,
फिर नहाऊंगा मैं ,और उससे  तन पोंछूँगा ,
                   मुझमे भी तुम्हारी रंगत आ जाएगी    
 दालें मंहगी ,पतली दाल बनाया करना ,
एक थाली में साथ बैठ ,हम तुम खांयेंगे ,
इससे प्यार बढ़ेगा ,बरतन भी कम होंगे,
        विम की टिकिया ,ज्यादा दिन तक चल पाएगी
जब भी मैं मांगूं मिठाई ,तुम मीठी पप्पी,
दे  दे  कर , मेरे मन को  बहलाती रहना ,
इससे डाइबिटीज का खतरा भी न रहेगा,
         खर्चा भी कम ,अच्छी सेहत हो जाएगी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
         
         

Saturday, October 10, 2015

काजल

        काजल

गौरी का गोरापन ही नहीं,
काजल की कालिख के बारे में भी ,
बहुत कुछ कहा जाता है
काजल ,सौ बार धोने  पर भी,
सफेद नहीं हो पाता है
काजल सी कालिख ,
मुंह पर जब पुत जाती है
बहुत बुरी लगती है
उसी काजल की धार,
अपनी आँखों पर लगा कर गौरी ,
छप्पनछुरी लगती है
लाडले बच्चे के माथे पर,
काजल का बिठौना ,
बुरी नज़र से बचा लेता है
और गौरी की आँखों का ,
फैला हुआ कजरा ,
उसकी बीती रात का ,
अफ़साना बता देता है
लोग  अंधियारे का भी, मज़ा ऐसे लेते है
मिलन की रात में ,दीपक बुझा देते है
ये दीपक ,जब बुझता है ,तो भी सताता है
और जलता है ,तो भी सताता है
जलते दीपक की बाती  का धुँवा ,
काजल बनाता है
और वो काजल जब उनकी आँखों में अंजता है
कितने ही दिलों को घायल  करता है
औरतों के सोलह सिंगार
में एक होती है कजरे की धार
जो करती है सबको बेकरार
इसलिए काजल की मार से डरिये
ये दुनिया काजल की कोठरी है ,
कहीं तुम पर काजल की कोई लीक न लग जाए ,
जरा सम्भल कर चलिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पक्षपात -प्रेमघात

                    पक्षपात -प्रेमघात
                      
तुम हो उजली शुक्ल पक्ष सी ,मै हूँ कृष्णपक्ष सा काला
तुम सत्ता में,मैं विपक्ष  में ,घर पर चलता  राज तुम्हारा
मुझे नचाती ही रहती हो ,अपने एक इशारे पर तुम,
मैं बेबस और परेशान हूँ ,मैं  हूँ पक्षपात  का  मारा 
                          
जैसे श्राद्ध पक्ष में पंडित,  न्योता खाना नहीं छोड़ते
सरकारी दफ्तर के बाबू, रिश्वत   पाना  नहीं छोड़ते
वैसे तुम मुझे रिझाते, दिखा दिखा कर अपना जलवा,
औरफिर छिटक छिटक जाते हो,मुझे सताना नहीं छोड़ते

होता जब मौसम चुनाव का ,वोटर तब पूजे जाते है
श्राद्धपक्ष में पंडित ही क्या,कौवे भी दावत खाते है
तुम्हे पूजता हूँ मै हरदम ,चाहे कोई भी हो मौसम ,
फिर भी घास न डालो मुझको,कितना आप भाव खाते है    

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                         
                         


     
             

मौत

        मौत

कलावे हाथों में अपने,भले कितने भी बँधवालो
कई ताबीज और गंडे ,गले में अपने लटकालो
उसे जिस रोज आना है ,वो आ ले जाएगी तुमको,
करो तीर्थ ,बरत कितने,टोटके  लाख   करवा लो 

घोटू

बहू ससुर संवाद

         बहू ससुर संवाद

सवेरे घूमते हो तुम ,रोज व्यायाम करते हो
विटामिन गोलियां कहते,फलों से पेट भरते हो
बहू बोली ससुर से तुम,प्रभू को पूजते हरदम,
वो तुमको याद ना करता,तुम जिसको याद करते हो
ससुर जी बोले यूं हंसकर,ये उसकी मेहरबानी है
उमर बोनस में उसने दी,हमें हंस कर बितानी है
परेशां व्यर्थ होती हो,करेगा याद जब भी वो,
हमारी सारी धनदौलत ,तुम्हारे पास आनी है

घोटू

Thursday, October 8, 2015

अपनी अपनी किस्मत

         अपनी अपनी किस्मत

यूं ही पेड़ पर कच्चा झड़ जाता है कोई
कोई पक जाता तो सड़  जाता है कोई
कोई बेचारे का बन जाता  अचार है,
होता है रसहीन ,निचुड़  जाता है कोई
होता कोई स्वाद और बेस्वाद कोई है,
कोई किसी को भाता और कोई ना भाता
हर एक फल की कब होती ऐसी किस्मत है,
साथ उमर के वह सूखा  मेवा बन जाता
      कोई फूल डाल  पर बैठा इठलाता  है 
     कोई निज खुशबू से बगिया महकाता है
     कोई प्रभु पर चढ़ता ,कोई लाश पर चढ़ता , 
     कोई पंखुड़ी पंखुड़ी कर के खिर  जाता है  
         कोई सजता सेहरे या सुहाग सेज पर  ,
        और भोर तक,दबा हुआ, है कुम्हला जाता
       हरेक फूल की किस्मत कब होती गुलाब सी ,
       मिश्री संग मिल,बन गुलकंद ,सभी मन भाता
        हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
           साथ उमर के वह सूखा मेवा  बन जाता   
कोई की औलाद निकम्मी है नाकाबिल
लायक कोई होती,कर लेती सब हासिल
कोई की औलाद न पूछे मातपिता को,
तिरस्कार करती है और जलाती है दिल
कितने ही माबाप यूं ही घुट घुट कर जीते ,
और किन्ही को बेटा ,सर आँखों बैठाता 
कब होती सबके नसीब में वो औलादें ,
जिनसे उनका नाम और यश है बढ़ जाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के ,वह सूखा  मेवा बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

     जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

कुछ करने को मन ना करता ,
मन करता  ,हिम्मत ना होती  ,
हिम्मत होती ,थक जाता हूँ,
परेशान फिर मन है  रोता
                जाने क्यूँ है  ऐसा होता?
जी  ये करता , थोड़ा टहलूं
सुनु किसी की,अपनी कहलूं 
हंसलूँ  मैं भी मार ठहाका,
कल कल कर नदिया सा बहलूं
    घर से निकल न पाता पर बस
    कुछ करने में आता  आलस
    हो ना पाता मैं  टस  से  मस
            और मेरा धीरज है खोता 
              जाने क्यूँ है ऐसा होता?  
मन खोया रहता यादों में
डूबा रहता  अवसादों में
करवट यूं ही बदलता रहता,
नींद नहीं आती  रातों में
      जी न करे खाने पीने का
      मज़ा गया सारा जीने का  
      छुपा दर्द मेरे सीने  का ,
       आंसूं बन है मुझे भिगोता
         जाने क्यूँ है  ऐसा होता  ?
दिन दिन  बढ़ती हुई उमर है
क्या ये उसका हुआ असर है
दिन भर खोया खोया रहता,
चैन नहीं मुझको पल दो पल है
         कोई भी मन ना बहलाता
        कोई प्यार से ना सहलाता 
         भूल गए सब रिश्ता ,नाता
               यही सोच कर मन है रोता
                  जाने क्यों है ऐसा  होता  ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आशिकाना मिजाज -बचपन से

      आशिकाना मिजाज -बचपन से

पैदा होते ही पकड ली थी नर्स की ऊँगली ,
      और फिर बाहों में उसने हमे झुलाया था
कोई आ  नर्स बदलती थी हमारी नैप्पी ,
     गोद में ले के ,बड़े प्यार से खिलाया था
हम मचलते थे ,कोई देखने जब आती थी,
       बाहों में हमको भर के ,सीने से लगाती थी
हमारे घर के आजू बाजू की हसीनाएं ,
       आती जाती  हमारे गाल चूम जाती   थी
बीज जो आशिक़ी के पड़ गए थे बचपन में ,
      फसल को अच्छी बन के फिर तो उग ही आना है
बताएं आपको क्या ,ये मगर हक़ीक़त है,
      अपना मिजाज तो बचपन से आशिकाना  है 

घोटू

जीवन चुनाव

           जीवन चुनाव

ये जीवन क्या ,ये जीवन तो एक चुनाव है ,
        इसमें हम तुम ,और कितने ही प्रत्याशी है
इसमें कोई तो है झगड़ालू प्रकृति  वाला,
        तो कोई ,सीधासादा  और मृदुभाषी   है
सबसे पहले अपने इस जीवन चुनाव में ,
        अच्छा क्या है और बुरा क्या चुनना होगा
केवल अपनी ही हाँकोगे ,नहीं चलेगा ,
        बात दूसरों की भी तुमको  सुनना  होगा
तुम्हारा 'मेनिफेस्टो',क्या है ,कैसा है ,
        सोच समझ कर तुमको इसे बनाना होगा
हो सकता है ,बहुत विरोध तुम्हे मिल जाए ,
        विपदाओं से ,बिलकुल ना घबराना  होगा
अगर जीतना है तुमको यदि इस चुनाव में ,
         और नाव है यदि जो अपनी पार लगानी
कितना भी मिल जाय तुम्हे मौसम तूफानी,
          धीरज अगर धरोगे तो होगी  आसानी
कितने ही लालू ,तुमको आ गाली देंगे,
         कितने ही पप्पू ,विरोध आ, जतलायेंगे
लोग मिलेंगे ऐसे भी तुम्हारे बन कर,
         छेद  करें  उस   थाली में ,जिसमे खाएंगे
लेकिन ये सब एक हक़ीक़त है जीवन की,
         उतर अखाड़े में ,मलयुद्ध ,तुम्हे है लड़ना  
सिर्फ शक्ति ही नहीं ,युक्ति भी काम आएगी ,
         सीख दूसरों के अनुभव से होगा  चलना
 आलोचक भी कई मिलेंगे ,यदि जो तुमको ,
           कई चाहने वाले भी तो  मिल जाएंगे         
उनका सब सहयोग भुनाना होगा तुमको,
          इस चुनाव को तब ही आप जीत पाएंगे
और जीत के बाद बहुत रस्ता मुश्किल है,
         वादे जितने किये ,निभाने  होंगे  सारे    
इसीलिए ,ये उचित करो तुम वो ही वादे ,
         जिनको पूरा करना हो बस में तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गौमाता और मातापिता

         गौमाता और मातापिता

बचपन से अब तक तुमको, दूध पिलाया,पोसा,पाला
दूध हमारा ही पी पी कर ,हुआ हृष्ट पुष्ट ,बदन तुम्हारा
जब तक देती रही दूध हम,गौमाता कह,चारा डाला
दूध हमारा बंद हुआ तो, हमको भेज दिया  गौशाला
हम पशु है पर संग हमारे ,क्या ये अत्याचार नहीं है
हम क्या,अपने मातपिता संग,तुम्हारा व्यवहार यही है
जिनने खून पसीना देकर ,तुम्हे बनाया इतना काबिल
तिरस्कार करते हो उनका ,उनसे सब कुछ करके हासिल
तुमको लेकरउनने मन में ,क्या क्या थे अरमान जगाये
अपने पैरों खड़े क्या हुए ,वो लगते अब तुम्हे पराये
बहुत दुखी,पछताते होंगे,और सोचते होंगे मन में
निश्चित ही कुछ कमी रह गयी ,उनके ही लालन पालन में
दुर्व्यवहार देख तुम्हारा , डूबे रहते होंगे गम में
हमको भेजा गौशाला ,उनको भेजोगे  वृद्धाश्रम में

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Sunday, October 4, 2015

दीवानगी -तब भी और अब भी

           दीवानगी -तब भी और अब भी

गुलाबी गाल चिकने थे,नज़र जिन पर फिसलती थी,
        अब उनके गाल पर कुछ पड़ गए है,झुर्रियों के सल
इसलिए देखता जब हूँ ,नज़र उन पर टिकी रहती ,
        फिसल अब वो नहीं पाती ,अटक जाती है झुर्री  पर
गजब का हुस्न था उनका ,और जलवा भी निराला था,
        तरस जाते थे दरशन को,देख तबियत मचलती थी
हुई गजगामिनी है वो ,हिरण सी चाल थी जिनकी ,
       ठिठक कर लोग थमते थे ,ठुमक कर जब वो चलती थी
जवानी में गधी  पर भी ,सुना है नूर चढ़ता है,
        असल वो हुस्न ,जो ढाता ,बुढ़ापे में ,क़यामत  है
हम तब भी थे और अब भी है ,दीवाने उनके उतने ही,
      आज भी उनसे करते हम,तहेदिल से मोहब्बत  है
आज भी सज संवर कर वो,गिराती बिजलियाँ हम पर ,
      उमर के साथ ,चेहरे पर ,चढ़ा अनुभव का पानी है
जानती है ,किसे घायल ,करेंगे तीर नज़रों के ,
       उन्हें मालूम ,किस पर कब,कहाँ बिजली गिरानी है
उमर के संग बदल जाता, नज़रिया आदमी का है ,
       उमर  बढ़ती तो आपस में ,दिलों का प्यार है बढ़ता
बुढ़ापे में ,पति पत्नी,बहुत नज़दीक आ जाते ,
          समर्पित ,एक दूजे पर ,बढ़ा करती है निर्भरता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मैं और तू

                 मैं और तू

तू है मेरे साथ सफर में ,मुश्किल आये ,फ़िक्र नहीं है 
मेरी जीवन कथा अधूरी ,जिसमे तेरा  जिक्र  नहीं है
तेरी बाहें  थाम, कोई भी दुर्गम रस्ता कट जाएगा
जीवनपथ में ,कहीं कोई भी ,संकट आये,हट जाएगा
हम तुम दोनों,एक सिक्के के,दो पहलू है,चित और पट है 
दोनों एक दूजे से बढ़ कर ,कोई नहीं किसी से घट  है
जब भी मुश्किल आयी ,तूने,दिया सहारा,मुझे संभाला
मेरी अंधियारी रातों में ,तू दीपक बन ,करे उजाला
हम तुम,तुम हम,संग है हरदम ,एक दूजे के बन कर साथी
तू है चंदन ,मै हूँ पानी,मैं  हूँ  दीया  , तू  है  बाती
तू है चाँद,तू ही है सूरज,आलोकित दिन रात कर रही
बन कर प्यार भरी बदली तू,खुशियों की बरसात कर रही
तू है सरिता ,संबंधों की ,सदभावों का ,तू  है निर्झर
तू पर्वत सी अडिग प्रेमिका ,भरा हुआ तू प्रेम सरोवर
तू तो है करुणा का सागर ,प्रेम नीर छलकाती गागर
सच्ची जीवनसाथी बन कर ,जिसने जीवन किया उजागर
ममता भरी हुई तू लोरी,जीवन का संगीत सुहाना
तू है प्यार भरी एक थपकी,सुख देती,बन कर सिरहाना
तू सेवा की परिभाषा है , तू जीवन की अभिलाषा है
बिन बोले सब कुछ कह देती,तू वो मौन ,मुखर भाषा है
तू क्या क्या है,मै  क्या बोलूं ,तू ही तो सबकुछ है मेरी
तूने ही आकर  चमकाई,जगमग जगमग रात अंधेरी
तू है एक महकती बगिया ,फूल खिल रहे जहां प्यार के  
तेरे साथ ,हरेक मौसम में ,झोंके बासंती  बहार  के
दिन दूना और रात चौगुना ,साथ उमर के प्यार बढ़ रहा
तेरा रूप निखरता हर दिन ,अनुभव का है रंग चढ़ रहा
एक दूजे के लिए बने हम,हममे ,तुममे अमर प्रेम है
जब तक हम दोनों संग संग है ,इस जीवन में कुशल क्षेम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन दर्शन

                 जीवन दर्शन

  ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
अपनी गुजर चलाने घर में ,काफी चना चबेना है
  कोई मिलता 'हाई हेलो' ना ,राम राम कह देते है
उनका अभिवादन भी करते,राम नाम ले लेते है
यूं ही किसी की  तीन पांच में ,काहे बीच में पड़ना है
अच्छा मरना ,याने सु मरना ,हरी का नाम सुमरना है 
इस जीवन के भवसागर में,अपनी नैया खेना है
ना ऊधो का कुछ लेना है,ना माधो  का देना है
ऐसे करें आचरण हम जो ,सभी जनो को सुख दे दे
ऐसी बात न मुख से निकले ,जो कोई को दुःख दे दे
बहुत किया अपनों  हित,अब तो अपने हित भी कुछ कर लें
दीन  दुखी की सेवा करके ,पुण्यों से झोली भर लें
अब तो प्रभु के दरशन करने,आकुल,व्याकुल नैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है
फंस माया में ,किया नहीं कुछ,हमने इतने सालों में
कब तक उलझे यूं ही रहेंगे,जीवन के जंजालों में
जितने भी है रिश्ते नाते,सब मतलब की है यारी
आये खाली हाथ , जाएंगे, हाथ रहेगें  तब खाली
तन का पिंजरा तोड़ उड़ेगी ,एक दिन मन की मैना है
ना ऊधो का कुछ लेना है ,ना माधो का देना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, October 3, 2015

आरक्षण का भूत

          आरक्षण  का भूत

देश में हर तरफ ,
जिधर देखो उधर ,हो रहे है आंदोलन
हर कोई चाहता है ,सरकारी नौकरी में,
उसे भी मिल जाए आरक्षण
और तो और वो कौमे भी ,
जो करती थी ,दलितों का दलन
आज उनके समकक्ष होने के लिए ,
कर रही है आंदोलन
क्योंकि आजकल कई जगह ,
सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा ,सरकारी नौकरियां ,
विभिन्न जाति के लोगों के लिए आरक्षित है ,
इससे सवर्ण त्रसित है
और अब पिछड़ी नहीं,अगड़ी जाति के लोग,
सबसे ज्यादा शोषित है
इनके प्रतिभाशाली  बच्चे ,
अच्छे कॉलेजों में एडमिशन नहीं पाते है
क्योंकि आरक्षण की वजह से ,
घोड़ों की दौड़ में ,गधे घुस जाते है
इस चक्कर में  ,
प्रतिभाशाली  छात्र छले जाते है
और कुछ तो इसीलिये ,आगे की पढ़ाई के लिए ,
 विदेश चले जाते है
कुछ तो विदेशों की व्यवस्था और वैभव देख कर
वहीँ बस जाते है,नहीं आते लौट कर
और बाकी जो लौट कर आते है
अपनी काबलियत और विदेशी डिग्री के कारण ,
यहाँ भी खूब कमाते है
कोई इंजीनियर बना तो उद्योग लगाता है
देश को प्रगति  के पथ पर पहुंचाता है
कोई डॉक्टर बन ,अस्पताल चलाता है
और ये देखा गया है,
इनके प्रायवेट अस्पतालों में ,
मंहगे होने के बावजूद भी ,बड़ी भीड़ रहती है ,
हर कोई यहाँ इलाज कराता है
यहाँ तक की आरक्षित  कोटे से,
भर्ती हुआ बड़ा सरकारी अफसर भी ,
अपने इलाज के लिए ,सरकारी अस्पताल नहीं,
इन्ही प्रायवेट अस्पतालों में जाता है
शायद इन्हे खुद ही ,
अपने जैसे क्वालिफाइड लोगों की ,
कार्यकुशलता पर नहीं है विश्वास
इसलिए ,वो नहीं जाते उनके पास
नेता लोग वोट के चक्कर में ,लोगों को ,
आरक्षण का लोलीपोप चुसा कर,  
देश के साथ कर रहे है विश्वासघात
और अगर ऐसे ही रहे हालत
तो देश की प्रतिभाओं का विदेश में ,
यूं ही 'ब्रेन ड्रेन 'होता रहेगा
या फिर देश का काबिल युवा ,
आरक्षण की मार का मारा ,
अवसर से वंचित रह कर ,
बस यूं ही रोता रहेगा
जब बोये गए बीज ही कमजोर होंगे ,
तो फसल तो बिगड़ ही जाएगी
मेरे देश के कर्णधारों को ,
सदबुद्धि कब आएगी

मदन  मोहन बाहेती 'घोटू'


हुस्न और जवानी

      हुस्न और जवानी

जब हो  जाता हुस्न जवां है
करता सबकी खुश्क  हवा है
लोग  बावरे  से हो  जाते ,
देख देख उसका  जलवा  है
सबकी नज़रें फिसला करती ,
देखा करती  कहाँ  कहाँ  है
कई तमन्नाएँ जग जाती ,
और भड़क जाते  अरमाँ है
जब सर पड़ती जिम्मेदारी ,
होते सारे ख्वाब हवा  है
 'घोटू'कोई तो  बतला दे ,
दर्दे दिल की कौन दवा  है

घोटू
 

शादी और घरवाली

                  शादी और घरवाली

 हर औरत का ,अपने  अपने ,घर में राज हुआ करता है
हर औरत का अपना अपना ,एक अंदाज हुआ करता है
कभी प्यार की बारिश करती,और कभी रूखी रहती  है
जब भी सजती और संवरती ,तारीफ़ की भूखी रहती है
उसका मूड बिगड़ कब जाए ,मुश्किल है यह बात जानना
यह होता  कर्तव्य पति का, पत्नी   की हर बात मानना
हम सगाई  में पहनाते है ,एक ऊँगली में एक अंगूठी
बाकी तीन उँगलियाँ उनकी,इसीलिये रहती है रूठी
जो शादी के बाद हमेशा ,बदला लेती है गिन गिन कर
अपने एक इशारे पर वो ,हमें नचाती है जीवन भर
जिन आँखों के लड़ जाने से ,हुआ हमारा दिल था पगला
शादी बाद लिया करती है ,उस लड़ाई का हमसे बदला
एक इशारा उन आँखों का ,हम से क्या क्या करवाता है
उनकी भृकुटी ,जब तन जाती,बेचारा पति घबराता है
शादी समय ,आँख के आगे ,जो सेहरा पहनाया जाता
नज़रे इधर उधर ना ताके ,ये प्रतिबन्ध लगाया जाता
उनके आगे किसी सुंदरी ,को जो देखें नज़र उठा कर
तो परिणाम भुगतना पड़ता ,है हमको अपने घर आकर
फिर भी कभी कभी गलती से ,यदि हो जाती ये नादानी
तो फिर समझो ,चार पांच दिन,बंद हो जाता हुक्का पानी
उनके साथ,सात ले फेरे, अग्नि कुण्ड के काटे चक्कर
उनके आगे पीछे हरदम ,घूमा करते बन घनचक्कर
प्रेम,मिलन की,और शादी  की,जितनी भी होती है रस्मे
कस निकालती है कस कस कर ,शादी में जो खाते कसमें
पत्नी से मत  करो बगावत,वरना खैर नहीं तुम्हारी
शादी करके,सांप छुछुंदर ,जैसी होती  गति हमारी
शादी है  बूरे  के लड्डू  ,सभी चाहतें है वो खायें
जिसने खाए वो पछताए ,जो ना खाए ,वो पछताए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, October 2, 2015

वाहन के टायर से

         वाहन  के टायर से
ओ मेरे वाहन के टायर
समयचक्र की तरह हमेशा ,
तीव्रगति से दौड़ा करते
सबको पीछे छोड़ा करते
मुझको तुम मेरी मंजिल तक पहुंचाते हो
किन्तु अकेले ,तुमकुछ भी ना कर पाते हो
तुम्हे हमेशा ,अपने जैसे ,
भाईबन्धु का साथ चाहिये
और वो भी दिनरात चाहिए
ध्येय तुम्हारा ,संग संग चलना
समगति से गंतव्य पहुंचना
जब तक तुममे सांस ,याने कि भरी हवा है
तब तक जीवन का जलवा है
कुछ भी चुभा तुम्हारे तन को,
तो मन खाली हो जाता है
थोड़ा भी ना चल पाता है
किन्तु प्यार की एक चिप्पी से ,
मिलता तुमको पुनर्जन्म है
और फिर से आ जाता दम है
दिखने में चाहे काले हो
भाईचारा किन्तु निभाने वाले,
साथी मतवाले  है
बरसों से उपकार कर रहे,
 तुम दुनिया पर
सबको अपनी अपनी,
 मंजिल तक पहुंचा कर  
मैं भी था पागल दीवाना
एक बार जब बीच राह में
कुपित हुए तुम,
कदर तुम्हारी करना मैंने तबसे जाना
तब ही है गुणगान बखाना
सबका सोच भिन्न होता है
मेरा हृदय खिन्न होता है
जब भी मुझको है यह दिखता
जब आराम कर रहे होते हो ,
तुम,तब ही कोई कुत्ता
पहले तुम्हे सूंघता और फिर,
अपनी एक टांग ऊंची कर ,
तुमको गीला कर जाता है
मुझको बड़ा क्रोध आता है
फिर लगता हूँ अपने मन को मैं समझाने
कुत्ता तो कुत्ता ही होता ,
कदर तुम्हारी वो क्या जाने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

पूजा,प्रसाद और कामनायेँ

         पूजा,प्रसाद और कामनायेँ 

मैंने प्रभु से पूछा कि तेरे मंदिर में  ,
        कितने भगत रोज आते ,परशाद चढ़ाते
बदले में कितनी ही मांगें रख देते है ,
        तब तुझको कैसा लगता  ,ये मुझे बतादे
प्रभु ने मेरी बात सुनी और हंस कर बोले ,
        ऐसा प्रश्न किया है ,उत्तर क्या दूँ तुझको
यही सोच कर कि मैं पत्थर की मूरत हूँ ,
       लोग हमेशा मुर्ख बनाते  रहते  मुझको
एक किलो का डब्बा लाते है लड्डू का ,
      उसमे से दो चढ़ा ,शेष खुद घर ले जाते
मिलता मुझे पचास ग्राम ही है मुश्किल से ,
      एक किलो का वो मुझ पर अहसान चढ़ाते
इस पर ये तुर्रा वो मुझसे आशा करते,
      उन पर क्विंटल ,दो क्विंटल,किरपा बरसा दूँ
सबने मुझको बिलकुल बुद्धू समझ रखा है ,
      बतलाओ, ऐसे भक्तों को , मैं क्या क्या दूँ 
अक्सर उनकी मुझसे मांग हुआ करती है,
      दे दे लम्बी उमर ,हमें  दीर्घायु   कर दे
मुझे चढ़ा कर ,पांच,सात या ग्यारह रूपये,
      करें वंदना ,मेरा घर ,दौलत से भर दे
कोई लड़की ,व्रत करती,पूजा करती है,
      क्योंकि उसे चाहिए अच्छा जीवन साथी 
अच्छा जीवन साथी उसे दिलाया तो फिर ,
     चंद दिनो मे ,बेटा दो  ,अरदास लगाती
बेटा दिया ,चाहती उसको पढ़ा लिखा कर,
      मोटी तनख्वाह वाली कोई नौकरी दे दूँ
और ढेर सा ,संग दहेज लाये जो अपने,
       बहू  रूप  में ,ऐसी कोई  छोकरी  दे  दूँ
उसके मनमाफिक जब उसको बहू दिलादूँ  ,
      तो कुछ दिन में,दादी बनूं ,कामना जगती
हर दिन जब भी करने आती दर्शन ,मंदिर,
      कुछ परसाद चढ़ा,कुछ ना कुछ माँगा करती
इच्छाओं का ,कभी कोई भी अंत नहीं है,
      हर एक मन में रहती कुछ इच्छा जाग्रत है
ये कर दे तो इतना तुझे चढ़ाऊंगा मैं ,
      तरह तरह के देते  मुझे  प्रलोभन  सब  है
हद तब होती , कुछ वो बहुए ,बड़े चाव से,
       जिन्हे मांग कर ,सासू ने थे सपने  पाले
कहती बुढ़िया सासू बहुत तंग करती है,
      भगवन उसको ,जल्दी अपने पास बुलाले
तरह तरह की रोज मुझे फरमाइश मिलती ,
       तरह तरह  के  लोग, टोटके, टोने  करते
कोई नंदी के कानो में कुछ कहता है,
       कोई चूहे  के  कानो में फुसफुस   करते
यही सोच कर कि ये तो है प्रभु के वाहन ,
       प्रभु तक पहुंचा देंगे ,उनकी सब फरियादें
मन में कितना लालच भरा हुआ है सबके ,
      और दिखने में ,सब  दिखते  है सीधे सादे
स्कूल के बच्चे है मुझको शीश नमाते ,
       पेपर  बिगड़ गया है, नंबर बढ़वा  देना
नेतागण ,करवाते यज्ञ ,याचना करते ,
       इस चुनाव में ,हमको सत्ता दिलवा देना
प्रेमी शीश नमाता ,करता यही  कामना,
       उसे प्रेमिका मिलवा उसका घर बसवा दूँ
जो होते बेकार नौकरी माँगा करते ,
       कई चाहते ,उनका अपना घर बनवा दूँ
तरह तरह के लोगों की कितनी ही मांगें ,
       मैं सबकी सुन लेता ,करता अपने  मन की
नहीं जानते,कर्म करो तब फल मिलता है ,
       सबसे बड़ी हक़ीक़त यह होती जीवन की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  

श्वान और शंका

          श्वान और शंका
मैंने पूछा एक श्वान से ,श्वान महोदय ,
       ये देखा है ,जब भी तुम करते लघुशंका
करने को यह कार्य पसंद तुमको आता है,
      कोई कार का टायर या बिजली का खम्बा 
कहा श्वान ने,जो निचेष्ट पडी रहती है ,
      ऐसी चीजें ,मुझको बिल्कुल नहीं सुहाती
सदा खड़ा ही देखा करता हूँ मैं खम्बा,
      आता मुझको क्रोध, ,टांग मेरी उठ जाती 
और जहाँ तक बात कार के टायर की है,
      कुछ करने के पहले उसे सूंघता हूँ मैं
दिनभर चलकर थका ,अगर आराम कर रहा ,
      मुझे पसीने की खुशबू आती है उसमे
 उसे छोड़,जब मिलता टायर कोई,जिसने,
       कभी किसी भी ,भाई बहन को मेरे कुचला
उसको गीला कर देता मै मूत्रधार से ,
        इसी तरह बस ,ले लेता हूँ ,अपना  बदला
मुझ में भी है भरी भावना,भाईचारा ,
        जो भी मुझे पालता ,करता बहुत प्यार हूँ
मुझमे और तुम इंसानो में फर्क यही है ,
        मैं अपने मालिक संग रहता वफादार  हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

Monday, September 28, 2015

चक्कर चुनाव का

    चक्कर चुनाव का

खुद आये है हार पहन कर ,
और कहते है हमें जिता  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे,
अबके नैया पार लगा दो
पार्टी और न निशान देखिये
बस काबिल इंसान  देखिये
प्रत्याशी की भरी भीड़ में,
कोई भी इन सा न देखिये
इधर उधर की तुम सोचो मत
बस हमको दे दो अपना मत
और किसी को मत,मत देना ,
मत दो हमें,बढ़ाओ हिम्मत
ये तुम्हारा वोट नहीं है ,
ये तो एक 'बोट '  है भैया
इस चुनाव के भवसागर को,
पार कराएगी  ये  नैया
मत दे,मतलब पूरा कर दो,
हमे जीत उपहार दिला  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे ,
प्यार दिखा कर ,पार लगा दो

घोटू

          

प्रताड़ना

             प्रताड़ना

मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झांक रहे हो,
    अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मैं सोने की,मेरा मूल्य आंकते हो क्या ,
   थोड़ी अपनी भी औकात आंक कर देखो
यूं क्यों ताक झाँक करते हो नज़र बचा कर,
       तुम्हारे मन के अंदर क्या जिज्ञासा   है
एक झलक पा भी लोगे,क्या मिल जाएगा
      पूर्ण न होती इससे मन की अभिलाषा है
मैं ही क्या,तुमको जो भी कोई दिखती है,
     उसको आँखे फाड़ फाड़ घूरा करते तुम
कौन कामना तुम्हारी जो पडी अधूरी ,
      हर नारी को देख ,जिसे पूरा करते तुम
लो मैं ही बतला देती हूँ इनके अंदर,
      छिपे हुए है वो स्नेहिल ,ममता के निर्झर
जिनसे तुम्हारी माँ ने था दूध पिलाया ,
     तुमको बचपन में ,अपनी गोदी में लेकर
जिनसे चिपका कर तुमको बाहों में बांधे,
     कितनी बार गाल तुम्हारे चूमे होंगे
निज ममता के गौरव पर इतराई होगी,
    जब तुम उसकी बाहों में आ झूमे  होगे
नारी तन की सौष्टवता के ये प्रतीक है,
   इनमे छिपी विधाता की वह अद्भुत रचना
जिस ज्वालामुखी की झलक ढूंढते हो तुम,
   वो हर माँ के गौरव है,ममता का झरना
पर तुम्हारी नज़रें काली भँवरे जैसी ,
    दिखला रही कलुषता है तुम्हारे मन की
तुम्हारी माँ,बहन सभी संग होती होगी ,
     ये विडंबना है ,हर नारी के जीवन की
अरे कभी कुछ तो सोचो ,ये क्या करते हो  ,
   अपना  गिरेबान में कभी ताक  कर  देखो
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झाँक रहे हो ,
     अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

आरक्षण के पौधे

        आरक्षण के पौधे

वर्ण व्यवस्था के चक्कर में ,बरसों तलक गये रौंदे है
 हम  आरक्षण के पौधे है 
अब तक दबे धरा के अंदर , कहलाते  कंद मूल रहे हम 
खाद मिला आरक्षण जब से ,तब से ही फल फूल रहे हम 
  फ़ैल गई जब जड़ें हमारी, तो क्यों कोई हमे  रौंदे है  
 हम आरक्षण के पौधे है  
 सत्तर प्रतिशत ,सरकारी पद, परअब तो अपना कब्जा है
  कौन उखाड़ सकेगा  हमको,किसमे अब इतना जज्बा है
 दलितों के उत्थान हेतु ,हम किये गए समझौते है 
हम आरक्षण के पौधे है    
कुछ मांग समय की ऐसी थी ,दलितों को उन्हें उठाना था
 राजनीति के भवसागर में अपनी नाव चलाना था   
वोटों के खातिर चुनाव में ,किये सियासी सौदे है
 हम आरक्षण के पौधे है   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                      
      

         सच्चे मित्र     
               1
जब रहती रौशनी ,तब तक साया साथ
संग छोड़ते है सभी, जब आती है  रात
जब आती है रात , व्यर्थ सब रिश्ते नाते
बुरे वक़्त में लोग तुम्हे पहचान न पाते
 कह घोटू कविराय ,सगा भी तुम्हे भगाये 
केवल सच्चा मित्र ,अंत तक साथ निभाये  
                 2     
कल तक तपती धूप थी ,बादल छाये आज
 बदल रहा है इस तरह ,मौसम का मिजाज
मौसम का मिजाज ,ऋतू सब आती,जाती
कभी शीत  या ग्रीष्म,कभी मौसम बरसाती
पग पग पर जो हर मौसम में साथ निभाये
कह 'घोटू 'कवि,वो ही सच्चा मित्र  कहाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                                             

 
 

ईश वंदना

        ईश वंदना

हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो 
मुझ में तुम स्थिरता भर दो 
नहीं चाहता डेढ़ ,पांच या दस दिन का मैं बनू गजानन
या नौ दिन की दुर्गा बन कर,करवाऊं पूजन और अर्चन
और बाद  में धूम धाम से ,कर  दे मेरा  लोग  विसर्जन 
मुझको तुलसी के पौधे सा ,
निज आँगन स्थपित कर दो
हे प्रभु मुझको  ऐसा वर   दो
न  तो जेठ की दोपहरी  बन, तपूँ ,आग सी बरसाऊँ  मैं
या बारिश की अतिवृष्टी सी, बन कर बाढ़,कहर ढ़ाऊं मैं
ना ही पौष माघ की ठिठुरन ,बन कर बदन कँपकँपाऊँ मैं
मेरे जीवन का हर मौसम ,
हे भगवन  बासंती  कर दो 
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो
मेंहदी लगा,हाथ पीले कर ,मुझको सजा,बना कर दुल्हन
ले बारात ,ढोल बाजे संग ,मुझे लाओ घर ,बन कर साजन
चार दिनों के बाद लगा दो ,करने घर का ,चौका ,बरतन
मुझको सच्ची प्रीत दिखा कर ,
अपने मन मंदिर में धर  दो
हे प्रभु मुझको ऐसा  वर  दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, September 25, 2015

पति और मच्छर

               पति और मच्छर

पत्नीजी ,जब भी करती कोई फरमाइश,
     पति देवता झट से तुनक तुनक जाते है
ऐसे पति को ज्यादा भाव नहीं मिलता  है,
        पत्नी द्वारा वो मच्छर  समझे जाते  है 
तुनक मिजाजी और आशिक़ी करते रहना ,
       ये दोनों ही गुण  ,हर पति में पाये जाते
मच्छर भी आशिक़ हो गाल चूमते है या,
       तुन तुन कर,पत्नी के इर्द गिर्द  मंडराते
हिटलर सी ले काला 'हिट',बेलन के जैसा ,
           जब पत्नी स्प्रे करती , तो घबराते है 
डर के मारे ,इधर उधर उड़ते फिरते है,
       जहाँ जगह मिलती छुपने को,छुप जाते है
 इस चक्कर में उनकी हो जाती पौबारह ,
         ऐसी ऐसी जगह ढूंढ लेते   छुपने को
कभी जुल्फ में उनकी छुप कर सहलाते है,
        और कभी चोली में मिल जाता  रहने को
थकी हुई जब रातों को वो सोई रहती,
         पति हो या मच्छर ,तंग दोनों ही करते है
धूम्रपान करने से कैंसर हो जाता है,
           धूम्रपान  से इसीलिए  ,दोनों डरते  है
 दोनों को ही पत्नी लेती हलके में है,
           इसीलिये ,ज्यादा ऊंचे वो ना उड़ पाते
पानी में पलते ,चेहरे पर पानी देखा,
         रोक न पाते खुद को ,दीवाने  हो जाते
जितना भी रसपान कर सको,करलो,वरना ,
         क्षणभंगुर है जीवन ,मन को ,समझाते है        
ऐसे पति को ज्यादा भाव नहीं मिलता है,
            पत्नी द्वारा वो मच्छर  समझे जाते  है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वृद्धों का सन्मान करो तुम

           वृद्धों का सन्मान करो तुम

भूखे को भोजन करवाना,और प्यासे की प्यास बुझाना ,
अक्सर लोग सभी कहते है ,बड़ा पुण्यदायक  होता है
बड़ी उमर का त्रास झेलते ,जो   लाचार ,दुखी,एकाकी,
वृद्धों का सन्मान करो तुम ,ये तो उनका हक़ होता है
बूढ़े वृक्ष ,भले फल ना दें ,शीतल छाया तो देते है,
उनकी डाल डाल पर पंछी,नीड बना चहका करते है
बहुत सीखने को है उनसे ,वे अनुभव के गुलदस्ते  है,
फूल भले ही सूख गए हो,वो फिर भी महका करते है
कभी बोलकर के तो देखो , उनसे मीठे बोल प्यार के ,
 उनकी धुंधली सी  आँखों में , आंसूं  छलक छलक आएंगे
उन्हें देख कर मुंह मत मोड़ो ,सिरफ़ प्यार के प्यासे है वो,
 गदगद होकर ,विव्हल होकर,वो आशीषें बरसाएंगे
एक मधुर मुस्कान तुम्हारी,उनको बहुत सुखी करदेगी, 
ये भी काम पुण्य का है इक,हर्षित अगर उन्हें कर दोगे
ये मत भूलो ,आज नहीं कल,ये ही होगी गति तुम्हारी ,
कोई  बोले बोल प्यार के , तब  शायद तुम भी तरसोगे 
इसीलिए जितना हो सकता ,उतना उनका ख्याल रखो तुम,
 इससे   पुण्य बहुत मिलता है  ,इसमें जरा न शक होता  है
भूखे को भोजन करवाना,और प्यासे की प्यास बुझाना ,
अक्सर लोग सभी कहते है,बड़ा पुण्यदायक   होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

टी वी और बुढ़ापा

            टी वी और बुढ़ापा

न होती चैनलें इतनी,न इतने सीरियल होते ,
बताओ फिर बुढ़ापे में,गुजरता वक़्त फिर कैसे
बिचारा एक टीवी ही ,गजब का है जिगर रखता ,
छुपा कर दिल में रखता है ,फ़साने कितने ही ऐसे
कभी भी हो नहीं सकता ,कोई 'ओबिडियन्ट' इतना,
कि जितना होता है टीवी ,इशारों पर,बदलता  स्वर
नाचता रहता है हरदम ,हमारी मरजी के माफिक ,
भड़ासें अपनी हम सारी ,निकाला करते है उसपर
हमेशा  ही किये  नाचा   ,हम बीबी के  इशारों पर,
नहीं ले पाये पर बदला, सदा हिम्मत ही  हारी है
इसलिए  हाथ में रिमोट ले,जब बदलते चैनल ,
ख़ुशी   होती है कम से कम ,कोई सुनता हमारी है
कभी देखे नहीं थे जो ,नज़ारे हम ने दुनिया  के ,
वो सतरंगी सभी चीजे ,दिखाता हमको टीवी है
फोन स्मार्ट भी अब तो , हमारे हाथ आया है ,
हुए इस युग में हम पैदा ,हमारी खुशनसीबी है
दूर से बैठे बैठे ही ,शकल हम देखते सबकी ,
तरक्की इतनी कर लेंगे ,कभी सोचा न था ऐसे
न होती  चैनलें इतनी ,न इतने सीरियल होते,
बताओ फिर बुढ़ापे में, गुजरता वक़्त फिर कैसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, September 24, 2015

जानवर और मुहावरे

           जानवर और मुहावरे

कितनी अच्छी अच्छी बातें,हमें जानवर है सिखलाते
उनके कितने ही मुहावरे , हम  हैं  रोज  काम में लाते
भैस चली जाती पानी में ,सांप छुछुंदर गति हो जाती
और मार कर नौ सौ चूहे ,बिल्ली जी है हज को जाती
अपनी गली मोहल्ले में  आ ,कुत्ता शेर हुआ करता है
रंगा सियार पकड़ में आता ,जब वो हुआ,हुआ करता है
बिल्ली गले कौन बांधेगा ,घंटी,चूहे सारे  डर जाते है 
कोयल और काग जब बोले , अंतर तभी  समझ पाते है
बॉस दहाड़े दफ्तर में पर ,घर मे भीगी बिल्ली बनता
सांप भले कितना टेढ़ा हो,पर बिल में है सीधा घुसता
 काटो नहीं ,मगर फुंफ़कारो ,तब ही सब दुनिया डरती है
देती दूध ,गाय की  लातें , भी हमको सहनी पड़ती है
मेरी बिल्ली ,मुझसे म्याँऊ ,कई बार ऐसा होता है
झूंठी प्रीत दिखाने वाला ,घड़ियाली  आंसू  रोता है
चूहे को चिंदी मिल जाती ,तो वह है बजाज बन जाता
बाप मेंढकी तक ना मारी  , बेटा  तीरंदाज  कहाता
कुवे के मेंढक की दुनिया ,कुवे में ही सिमटी  सब है
आता ऊँट  पहाड़ के नीचे ,उसका गर्व टूटता  तब है
भले दौड़ता हो तेजी से ,पर खरगोश हार जात्ता है
कछुवा धीरे धीरे चल कर ,भी अपनी मंजिल पाता है
रात बिछड़ते चकवा,चकवी ,चातक चाँद चूमना चाहे
बन्दर क्या जाने अदरक का ,स्वाद भला कैसा होता है
रोटी को जब झगड़े बिल्ली ,और बन्दर झगड़ा सुलझाये
बन्दर बाँट इसे कहते है,सारी  रोटी खुद खा जाए
कोई बछिया के ताऊ सा ,सांड बना हट्टा कट्टा है
कोई उल्लू सीधा करता ,कोई उल्लू का पट्ठा  है
मैं ,मैं, करे कोई बकरी सा ,सीधा गाय सरीखा कोई
हाथी जब भी चले शान से ,कुत्ते भोंका करते यों  ही 
चींटी के पर निकला करते ,आता उसका अंतकाल है
रंग बदलते है गिरगट  सा ,नेताओं का यही हाल है
कभी कभी केवल एक मछली ,कर देती गन्दा तालाब है
जल में रहकर ,बैर मगर से ,हो जाती हालत खराब है
उन्मादी जब होगा हाथी ,तहस नहस सब कुछ कर देगा
है अनुमान लगाना मुश्किल,ऊँट कौन करवट  बैठेगा
जहाँ लोमड़ी पहुँच न पाती,खट्टे वो अंगूर बताती
डरते बन्दर की घुड़की से ,गीदड़ भभकी कभी डराती
सीधे  है पर अति होने पर,गधे दुल्लती बरसाते है
साधू बन शिकार जो करते ,बगुला भगत कहे जाते है
ये सच है बकरे की अम्मा ,कब तक खैर मना पाएगी
जिसकी भी लाठी में दम है ,भैस उसी की  हो जायेगी
कौवा चलता चाल हंस की ,बेचारा पकड़ा  जाता है
धोबी का कुत्ता ना घर का,और न घाट का रह पाता है
 घोडा करे  घास से यारी ,तो खायेगा  क्या बेचारा
जो देती है दूध ढेर सा ,उसी गाय को मिलता चारा
दांत हाथियों के खाने के ,दिखलाने के अलग अलग है
बातें कितनी हमें  ज्ञान की ,सिखलाते पशु,पक्षी सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, September 22, 2015

ईश्वर पूजन और मनोकामना

 ईश्वर पूजन और मनोकामना

हम विघ्नहर्ता गणेशजी की,
 आराधना करते है
और उनसे ये याचना करते है
हमें सुख ,शांति,समृद्धि दे ,
व्यापार में वृद्धि दे
ऋद्धि और सिद्धि दे
जब क़ि हम ये जानते है,
ऋद्धि और सिद्धि ,गणेशजी की पत्नियां है
जो खड़ी रहती है उनके दांये,बाएं
हमारी ये कैसी आस्था है
पूजा कर,मोदक चढ़ा,
हम उनसे उनकी पत्नियां ,
ऋद्धि सिद्धि मांगते है,
ये हमारे लालच की पराकाष्ठा है
हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं
और कामना करते है लष्मी को पाने की
यहाँ भी हमारी कोशिश होती है ,
उनकी पत्नी को हथियाने की
हम शिव जी की करते है भक्ती
और मांगते है उनसे  शक्ति
जबकि शक्ति स्वरूपा दुर्गा उनकी पत्नी है,
हम ये जानते है
फिर भी हम उनसे उनकी पत्नी,
याने  शक्ति मांगते है
कृष्ण के मंदिर में जाकर हम उन्मादे
रटा  करते है 'राधे राधे'
सबको पता है राधा कृष्ण के प्रेयसी है
उनके दिल में बसी है
इसतरह किसी की प्रेयसी नाम
उसी के सामने जपना ,सरे आम
वो भी सुबह शाम
जिससे वो हो जाए हम पर मेहरबान 
अरे कोई भी भगवान
हो कितना ही दाता और दयावान
आशीर्वाद देकर तुम्हे समृद्ध बनाएगा
पर क्या अपनी पत्नी ,
भक्तों में बाँट पायेगा
फिर भी ,हम थोड़ी सी पूजा कर ,
और चढ़ा कर के परसाद
करते है उनसे उनके पत्नी की फ़रियाद
और उसको पाने की ,
कामना करते हर पल है
सचमुच,हम कितने पागल है
घोटू 

मच्छर की फ़रियाद

                  मच्छर की फ़रियाद

गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मै अदना सा मच्छर काला
तुम्हारे गालों  पर  बैठूं , करूं रूप रसपान तुम्हारा
गोरे हाथों में काला'हिट' लेकर तुम मुझ पर बरसाती
इधर उधर उड़ता फिरता मैं ,नानी मुझे याद आ जाती
तुम हिटलर सी 'हिट'लेकर के,करती बहुत जुलम हो मुझ पर
मुश्किल से मैं जान बचाता ,तुम्हारी जुल्फों में छिप कर
पर तुमतो बगदादी जैसी ,बन जाती हो एक जेहादी
बड़ी क्रूर ,आतंकी बनकर ,सदा चाहो मेरी  बरबादी
या नरेंद्र मोदी सी बन कर ,जब तुम्हारा जादू चलता
मेरी हालत कॉंग्रेस सी ,हो जाती पतली  और खस्ता
तुम्हे पता है ,हम सब मच्छर ,पानी में है पनपा करते
पानीदार तुम्हारा चेहरा ,इसीलिये है उस पर मरते
गोर गालों पर काला तिल,बनू ,निखारूँ रूप तुम्हारा
मुझ पर दया करो तुम देवी ,मैं तुम्हारा ,आशिक प्यारा 
गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मैं अदना सा मच्छर काला    
तुम्हारे गालों पर बैठूं ,करूँ  रूप  ,रसपान  तुम्हारा
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

 '

Saturday, September 19, 2015

उचटी नींद

           उचटी नींद
आती है नींद मुझको ,थोड़ी ठहर ठहर के
मैं सो भी नहीं पाता ,आराम से,जी भर के
मुद्दत से नहीं आई ,है मुझको नींद गहरी
हो रात पूस की या फिर जेठ की दोपहरी
मैं वक़्त काटता हूँ,करवट बदल बदल के
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के
सीखा है जब से इसने ,यूं इस तरह उचटना
आता जो मुश्किलों से,जाता है टूट  सपना
रहता हूँ पड़ा यूं ही,तकिये को बांह भरके
आती है नींद मुझको ,थोड़ी ठहर ठहर के
यादें  पुरानी  मेरा  पीछा न छोड़ती  है
गाहे बगाहे आकर,मुझको झंझोड़ती है
आते है याद मुझको,किस्से इधर उधर के
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के
था जब बसंती मौसम ,हम फूल थे महकते
उड़ते थे आसमां में,पंछी  से हम चहकते
अब शिशिर में ठिठुरते है ठंडी आह भरके
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चुगलखोर

          चुगलखोर 

तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना कहना है
तुम चाहे मेरे पास रहो ,तुम  चाहे   मुझसे दूर  रहो ,
हमको इक दूजे के दिल में, बस साथ साथ  ही रहना है
कुछ भाषाएँ ऐसी होती ,जब मौन मुखर हो जाता है
आखें आँखों से कुछ कहती ,दिल दिल से कुछ कह जाता है
जब प्रेमी युगल मिला करते ,स्पर्श बहुत कुछ है कहता
बोला करते श्वासों के स्वर ,कहने को कुछ भी ना रहता
कुछ बिखरी जुल्फें कह देती,कुछ कह देता फैला काजल
कुछ थकी थकी सी अंगड़ाई ,कुछ कहता अस्तव्यस्त आँचल
वेणी के मसले हुए फूल,चूड़ी के टुकड़े  झड़े हुए
देते है सारा भेद खोल ,वो चादर के सल पड़े   हुए
है इतने सारे चुगलखोर ,इसलिए जरूरत ना पड़ती ,
कुछ कहने या बतलाने की,अब बेहतर चुप ही रहना है
तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम  समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना ,कहना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुलहनामा

        सुलहनामा

  हम दोनों के बीच जम गयी जो दीवार बरफ  की,
आओ उसे ,प्यार की गरमी  देकर हम पिघला लें
ना तुम करो शिकायत ,शिकवा ,ना मैं ही कुछ बोलूं ,
अपनी आपस की उलझन को,आपस में सुलझा लें
मैंने माना खता हो गयी ,कुछ गलती थी मेरी ,
पर थोड़ा तो दोष तुम्हारा भी था इस अनबन में
मेरी इस गुस्ताखी को तुम ,यूं ही टाल सकती थी, 
नहीं इसतरह ,विचलित होती,उसको लेकर मन में
उल्टा तुमने ,उन लपटों में ,तपता घी था डाला ,
तुम्हारी इस प्रतिक्रिया ने आग और भड़का दी
आपस में टकराव अहम का ,ऐसा हुआ हमारे ,
हम दोनों के बीच दूरियां ,इसने और बढ़ा दी
रहें एक छत के नीचे हम ,लेकिन अनजानों से,
तुम भी तड़फ़ो ,मैं भी तड़फूं,मन ना रहता बस में
तुम इस करवट,मैं उस करवट,जाग रहे है दोनों,
बेहतर ये होगा समझौता ,कर लें ,हम आपस में
पहले पहल कौन करता  इस ,इन्तजार में दोनों,
इस प्यारी वासंती ऋतू में,शीत  युद्ध है चलता
कुछ तो कमी रही होगी जो हुई ग़लतफ़हमी ये,
रहना यूं गहमागहमी में,बहुत मुझे है खलता
अब महसूस कर रहे हैं हम ,पीड़ा विच्छेदन की,
अलग एक दूजे से रह कर ,कैसे जी पाएंगे
चार कदम तुम आगे आओ ,चार कदम मैं आऊं ,
तब ही होगी दूर दूरियां ,हम तुम मिल पाएंगे
आओ मिलन राह पर चल कर,हम करीब आ जाएँ
अपने अपने अहम त्याग कर ,दूरी सभी मिटा लें
हम दोनों के बीच जम गई ,जो दीवार बरफ की,
आओ उसे प्यार की गरमी देकर हम पिघला लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

राम का नाम

         राम का नाम

बात रामायण काल  की है
लेकिन कमाल की है
राम की सेना के वानर
पत्थरों पर राम का नाम लिख कर 
पानी  में तैरा रहे थे
समुन्दर में पुल बना रहे थे
रामजी ने सुना ,तो चकराए ,
सोचा ये हो सकता है कैसे
वो दूर अकेले निकल गए ,
और उन्होंने एक पत्थर ,
पानी में फेंक दिया ,चुपके से
पत्थर तैरा नहीं,डूब गया तो राम ने ,
सकपका के देखा इधर उधर
तो उन्हें पास ही हनुमानजी आये नज़र
बोले ,हनुमान ,तूने कुछ देखा तो नहीं
तो हनुमान बोले ,प्रभु सब देख लिया
जिसने आपका नाम लिया ,वो तैर गया ,
आपने जिसको छोड़ा,वो डूब गया
ये बात तो हुई आध्यात्मिक
अब बताते है इससे भी कुछ अधिक
लंका में जब पहुंचा ये समाचार
कि समुन्दर के उस पार
पुल बन रहा है,धमाल हो रहा है
रामका नाम लिखा हुआ पत्थर ,
पानी में तैर रहा है,कमाल हो रहा है
रावण जब ये सुना ,तो सोचा ,
इससे तो लंका जनता का
'मोरल डाउन 'हो सकता है 
इसलिए कुछ करने की आवश्यकता है
इसलिए उसने करवा दिया एलान
कि  वो भी पानी में तैरायेगा ,
लिख कर के अपना नाम
एक निश्चित दिन ,जब रावण को था ,
पानी में पत्थर तैराना
लंका के सारी जनता ,एकत्र हो गयी ,
देखने रावण का ये कारनामा
और जब रावण ने ,अपना नाम लिख,
पत्थर को पानी में तैराया
तो पत्थर  डूबने लगा ,बाहर नहीं आया
रावण घबराने लगा
मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगा
कुछ ही देर में चमत्कार दिखलाया
डूबता पत्थर ,तैरता हुआ वापस आया
रावण की सांस में सांस आयी ,
वो पसीने पसीने था ,पर मुस्कराया
जनता उसकी जयजयकार कर रही थी
पर मन ही मन ,
रावण की हवा खिसक रही थी 
रात मंदोदरी ने पूछा ,
आपने इतना बड़ा चमत्कार कर दिया ,
फिर क्यों इतना घबरा रहे थे
जब पत्थर डूब रहा था ,
आप कौनसा मन्त्र बुदबुदा रहे थे
रावण ने बोला रानीजी,
मैं कैसे ना घबराता
अगर पत्थर नहीं तैरता तो,
मेरी इज्जत का तो फलूदा हो जाता
इसलिए पत्थर को पानी में ,
 तैराने में आया जो मन्त्र काम
मैं मन ही मन बुदबुदा रहा था
राम का नाम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'





 

Thursday, September 17, 2015

मेरी सुबह बन जाती है

    मेरी सुबह बन जाती है

सवेरे सवेरे ,
तुम्हारे हाथों से बनाया,
गरम चाय का प्याला ,
 जब मेरे हाथों में आता है
और उससे उठती हुई ,
गरम गरम वाष्प की लहरें ,
जब मेरे ओठों से टकराती है
मुझे तेरे जिस्म की गर्मी ,
महसूस कराती है
चाय के गुलाबी रंग में ,
तेरी छवि दिखलाती है
तेरा ये स्वरूप देख कर ,
मेरे होंठ कुलबुलाने लगते है
मे ,बावरा सा ,
रूप रास पान करने की लालसा में,
उसे होठों से लगा लेता हूँ
और देर तक मेरे होंठ,
उस ऊष्मा की ,
गरमाहट की झनझनाहट से  ,
तरंगित होते रहते है
ऐसा मेरे साथ ,
रोज रोज होता है
जब चाय के रूप में ,
तू मुझे लुभाती है
और मेरी सुबह बन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जल कण

          जल कण

स्नानोपरांत ,
तुम्हारे कुन्तलों से टपकती हुई ,
जल की बूँदें ,
तुम्हारे कपोलों को सहलाती हुई ,
जब तुम्हारे वक्षस्थल में समाती है
बड़ी सुहाती है
ऊष्मा से उपजी ,
स्वेद की धारायें ,
जब तुम्हारे गालों पर बहती है
तुम्हारा श्रृंगार बिगाड़ देती है
भावना से अभिभूत हो,
तुम्हारी आँखें,
जब मोती से आंसू टपकाती है
तुम्हारे गालों पर,
अपनी छाप छोड़ जाती है
सुख में या अवसाद में ,
या किसी की याद में ,
बारिश या धूप में
किसी भी रूप में ,
जल के कण ,
जब भी मौका पाते है
तेरे गालों को सहलाते है
बड़े इतराते है
काश मैं भी ……

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंहगाई की महिमा

           मंहगाई की महिमा

औरत को घर की मुर्गी ,कहते थे लोग अक्सर
और उसकी हैसियत थी  बस दाल के बराबर
दालों का दाम जब से  ,आसमान  चढ़  गया है
वैसे ही औरतों का  ,रुदबा  अब  बढ़  गया है
मुर्गी और दाल सबको ,मंहगा  बना दिया  है
मंहगाई  तूने   अच्छा , ये  काम तो किया है

घोटू

स्विमिंगपूल और डेंगू

            स्विमिंगपूल और डेंगू
                         १
अदना सा देख कर के ,'इग्नोर'नहीं करना,
                हर शख्सियत की होती ,अपनी ही अहमियत है
जो काम होता जिसका , करता है अच्छा  वो ही ,
                 तलवार  क्या  करे जब ,सुई   की   जरूरत   है
कहते है हाथी तक भी, घबराता चींटी से है,
                   वो सूंड में जा उसकी ,  कर  देता  मुसीबत है
कल तक जो था लबालब ,हम तैरते थे जिसमे,
                  डेंगू के  डर  से खाली ,स्वमिंगपूल   अब  है
                       २
मच्छर जिसे हम यूं ही ,देते मसल मसल थे ,
                 अब तोप से भयानक  ,उसकी नसल हुई है
डेंगू के इस कहर से ,सब कांपने लगे है,
                  कितनी  दवाइयाँ  भी ,अब बेअसर  हुई  है
डेंगू के  डर से  देखो, अब हो  गया है खाली,
                 था कल तलक लबालब ,जो तरणताल प्यारा
जबसे गयी जवानी, हम हो गए है खाली ,
                 इस तरणताल  सा ही ,अब हाल   है  हमारा
                            ३      
तुच्छ को तुच्छ कभी ,मत समझो भूले से ,
               बड़े बड़े उच्चों को ,ध्वंस कर सकता है
छोटी सी लड़की ने ,संत को पस्त   किया ,
               आज भी आसाराम ,जेल में  सड़ता है
तुच्छ सी तीली से ,जंगल जल जाता है,
                तुच्छ सी गोली से ,प्राण निकल सकता है
छोटा सा मच्छर भी ,अगर काट लेता है,
               मलेरिया ,डेंगू से ,बड़ा  विकल  करता  है
                     
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 13, 2015

घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

        घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

जो  बड़े रौब से कहते है ,हम घर के करता धरता  है
पर सभी जानते है उनपर ,बीबी का शासन चलता है
सब पति जोरू के है गुलाम ,बाहर गर्वित हो फूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिट्टी के चूल्हे  है
हर युवा देखता ही रहता ,शादी का सपन  सुहाना है
शादी कर जब कि गृहस्थी के,चक्कर में बस फंस जाना है
फिर भी जाने क्यों ख़ुशी ख़ुशी ,घोड़ी पर चढ़ते दूल्हे है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिटटी के चूल्हे है
सब लोग चाहते है  बेटा ,जो कुल का नाम चलाएगा
शादी करके वो पत्नी का ,लेकिन गुलाम हो जायेगा
माँ बाप ध्यान रखती बिटिया ,और बेटे उनको भूले है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिट्टी के चूल्हे है
होता चुनाव तो हर पार्टी ,आश्वासन,भाषण देती है 
जब जाती जीत, किया करती ,वादों की ऐसी तैसी है
कुर्सी पर बैठ सभी नेता  ,अपने सब वादे  भूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिटटी के चूल्हे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बिगड़ी बातें


            बिगड़ी बातें

बीबी की ख्वाइश पूर्ण न हो,बीबी का मूड बिगड़ता है
बीबी की ख्वाइश  पूर्ण करो ,तो घर का बजट बिगड़ता है
बच्चों की जिद पूरी न करो ,तो हम पर वे बिगड़ा करते
और उनकी हर जिद पूर्ण करो तो बच्चे है बिगड़ा करते
जब दूध बिगड़ता,फट जाता,उसमे खटास आ जाता है
जब रिश्ते बिगड़ा करते है ,मन में खटास आ  जाता है
फसलें बिगडे ,हो बर्बादी  ,बेबस किसान बस रोता है
 नस्लें बिगड़े बन तालिबान ,सारा जहान तब रोता है
जब उन्हें देखते सजा धजा ,अपना ईमान बिगड़ता है
जो छेड़छाड़ थोड़ी करते ,उनका श्रृंगार  बिगड़ता  है
उनका मिजाज बिगड़ जाए ,घर भर सर पर उठ जाता है
कोई की तबियत जब बिगड़े ,तो वो बीमार कहलाता है
दफ्तर पहुँचो यदि देरी से ,गुस्सा  हो बॉस बिगड़ जाता
जब पोल किसी की खुलती है तो सारा खेल बिगड़ जाता
सब कहते बंद हो गयी है ,यदि घड़ी बिगड़ जो जाती है
लड़की जब बिगड़ा करती है ,तो वो 'चालू' हो जाती है
सत्ता विपक्ष में ना पटती ,आपस में बात बिगड़ती है
परिणाम भुगतती है जनता ,उनकी लड़ाई जब बढ़ती है
मौसम जो अगर बिगड़ जाता ,तो बड़ा कहर वो ढाता है
बस एक वो ऊपरवाला है ,सब बिगड़ी  बात बनाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बर्बाद फसल

           बर्बाद फसल

एक राजनेता का उदयीमान युवराज
चुनाव में शिकस्त मिलने से था नाराज
कुछ दिन उसने लिया अज्ञातवास
और फिर से करने लगा प्रयास
जनता में अपनी पैठ बनाने को
इसलिए ,जब भी कहीं कोई हादसा होता ,
पहुँच जाता था अपनी सहानुभूती दिखलाने को
एक बार ,मौसम की बेरुखी से ,
किसी गाँव की फसल हो गयी बरबाद
वो झट से पहुँच गया ,सहानुभूति दिखलाने ,
अपनी अम्मा के साथ
और करने लगा किसानो से संवाद
कृषि के बारे में देख कर उसका अल्पज्ञान
हैरान हुए सब किसान
सोचने लगे क्या इसी के हाथों में,
सौंपी जानी थी देश की कमान
और फिर उन्होंने सचमुच सर पीट लिया
जब उसने उनको ये सुझाव दिया
कि आप इतनी मेहनत कर ,
खेतो में अनाज क्यों उपजाते है
जब हमारी सरकार थी तो हमने ,
सभी फ़ूड कार्पोरेशन के गोदामो में ,
इतना अनाज भर रखा था ,
आप वहीँ से अनाज क्यों नहीं ले आते है
 फिर भी ,मैं सरकार के आगे ,
आपका मुद्दा उठाऊंगा
और आपको आपकी बरबाद फसल का ,
मुआवजा दिलवाऊंगा
उसकी बातें सुन गाँव के लोगों ने ,
आपस में विचार विमर्श किया
और जिससे जितना हो सकता था ,
चंदा इकठ्ठा किया
और उसकी माताजी के हाथ में पकड़ा दिया
और उससे बोले कि,
 हम इससे ज्यादा कुछ न कर सके ,
यह हमारी विवशता है
हमारी फसल बरबाद हुई है ये तो  ठीक है ,
पर आपकी भी फसल बर्बाद हुई है ,इसलिए ,
आपका भी कुछ मुआवजा तो बनता है
और क्योंकि सरकार की नीतियों में ,
इस तरह की फसल की बर्बादी के लिए ,
मुआवजे का नहीं है कोई प्राविधान
इसलिए मुआवजे स्वरूप ,
कबूल कीजिये ,हमारा ये छोटा सा योगदान

घोटू

Saturday, September 12, 2015

हरि लीला

       हरि  लीला

हरि व्याप्त जग के कण कण में ,
              बतलाओ हरि कहाँ नहीं है
पीड़ा हरे,शांति दे मन को ,
             बस समझो तुम हरि वही है
मन हो चंगा अगर ,कठौती ,
                में भी गंगा मिल जाती है  
हरियाली  में हरि बैठे है ,
                दर्शन कर ठंडक आती है
 सुबह सुनहरी धूप में हरी  ,
                 हरी  तेज है दोपहरी का
नज़र हरी की तुम पर हरदम,
                  हरी काम करते प्रहरी का
रूपहरी जो खिले  चांदनी ,
                   उसमे भी हरी का प्रकाश है
पीताम्बरी छवि है हरी की ,
                    आम दशहरी सा मिठास है
हरी बसते है ,गाँव गाँव में,
                      शहरी  के  भी संग  हरी  है
हरि  ऊँगली पर ,गोवर्धन सी,
                        ये सारी   जगती  ठहरी है
मुश्किल बहुत समझ पाना है,             
                        हरी की लीला ,अति गहरी है
हरी पहाड़ी,खेती,बगिया ,
                         जित देखो बस हरी हरी है
हरा भरा है उसका जीवन ,
                          जिसके मुख पर हरी नाम है
घर की देहरी ,पर हरी बसते ,
                           हर घर होता हरी धाम  है
     
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, September 9, 2015

मच्छर की दीवानगी

     मच्छर की दीवानगी

एक मच्छर मतवालो ,प्यार में दीवानो भयो,
ढूंढत रह्यो ,इहाँ उहाँ ,अपनी  मच्छरानी कूँ 
गुनन गुनन गीत गाय,गाँव गाँव ,गली गली ,
फिरत रह्यो,टेरत रह्यो ,प्रीतम  दीवानी  कूँ
सुन्दर सी नारी के ,गालन पर तिल देख्यो ,
चिपट गयो तिल पर जा,मच्छरानी जानी कूँ
अंधे के हाथन में ,जैसे की बटेर लगी,
ढूंढत रह्यो मच्छरानी ,पाय गयो रानी कूँ

घोटू

ग़ज़ल

       ग़ज़ल
यहाँ  कुछ  लोग  मच्छराना है
जिनकी आदत ही भिनभिनाना है
गाल पर बैठना है चुपके से ,
और हौले से काट जाना है
बजन हल्का है बात हलकी है,
रोग भारी मगर फैलाना  है
काम करते है अब अँधेरे में ,
रौशनी देख मुंह छिपाना है
 बात करते है आग शोलों की,
डर के धुँवें से भाग जाना है
चूसते रहते खून है सबका ,
शौक बतलाते आशिकाना है
कौन है,कितने है क्या बतलाएं,
आपने ,हमने ,सबने जाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'