दिनकर से
ओ पश्चिम में अस्त हो रहे प्यारे दिनकर
ये तो बतला ,तूने क्या क्या देखा दिन भर
तू स्वर्णिम आभा लेकर के नित्य सवेरे
प्रकटा करता ,हरने जग के सभी अँधेरे
रोज रोज ही तू इतने ऊँचें अम्बर से
ताकझांक सबकी करता रहता ऊपर से
जग की हर हरकत पर रहती तेरी नज़रें
रहती तेरे पास जमाने भर की खबरें
देखा होगा दुनिया कितनी हुई मतलबी
माया के चक्कर में उलझे लोग है सभी
रिश्वतखोरी ,चोरबाज़ारी ,काला धंधा
इन सब में निर्लिप्त हो गया है हर बंदा
देखी होगी हदें झूंठ और गद्दारी की
सरे आम लुटती इज्जत अबला नारी की
थे परिवार संयुक्त ,टूटते देखे होंगे
अपनों को अपने ही लूटते देखें होंगे
बूढ़े माँ और बाप जिन्होंने उन्हें संवारा
किये तिरस्कृत जाते अपने बच्चों द्वारा
देखा होगा तूने कहर ,कोरोना वाला
जिसने सबका जीवन चक्र बदल ही डाला
कितने प्रकट हो गए साधू ,बाबा ,ढोंगी
नज़र तुझे क्या आया कोई सच्चा योगी
राजनीती में ,सत्ता और विपक्ष के झगड़े
धरम नाम पर ,मंदिर और मस्जिद के लफड़े
भूख अभाव में त्राहि त्राहि कर जीती जनता
और रसातल को दिन दिन गिरती मानवता
क्या देखी मगरूर मगर वाली वो सेना
कहती हमसे डरो ,समुन्दर में जो रहना
क्या देखी वो मछली ,झाँसी वाली रानी
इन मगरों से पंगा लेगी ,जिसने ठानी
क्या देखा था तूने एक सितारा उभरता
फंसकर चक्रव्यूह में अभिमन्यू सा मरता
देखा है क्या भाई भतीजावाद पनपता
मुश्किल से ही अनजाना आगे बढ़ सकता
देखा है क्या बड़े लोग की कुछ संताने
गड़बड़ करती तो सब लगते ,उन्हें बचाने
देखा क्या मादक पदार्थ का बढ़ता सेवन
नव आगंतुक ,कलाकार का होता शोषण
मन तेरा भी ,ये सब देख तड़फता होगा
भारी दिल से ही तू आगे बढ़ता होगा
क्योंकि देखता ,रोज रोज तू ,ये सब किस्से
किसको कोसे ,सहानुभूति दिखलाये किस से
ये सब चलता आया और रहेगा चलता
ये सब सोच ,हृदय तेरा निश्चित ही जलता
तब तू ठंडा होने ,दूर क्षितिज सागर में
लगा डुबकियां ,शीतलता लाता है सर में
बस तेरी ये ही दिनचर्या है धरती पर
ओ पश्चिम में अस्त हो रहे प्यारे दिनकर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ओ पश्चिम में अस्त हो रहे प्यारे दिनकर
ये तो बतला ,तूने क्या क्या देखा दिन भर
तू स्वर्णिम आभा लेकर के नित्य सवेरे
प्रकटा करता ,हरने जग के सभी अँधेरे
रोज रोज ही तू इतने ऊँचें अम्बर से
ताकझांक सबकी करता रहता ऊपर से
जग की हर हरकत पर रहती तेरी नज़रें
रहती तेरे पास जमाने भर की खबरें
देखा होगा दुनिया कितनी हुई मतलबी
माया के चक्कर में उलझे लोग है सभी
रिश्वतखोरी ,चोरबाज़ारी ,काला धंधा
इन सब में निर्लिप्त हो गया है हर बंदा
देखी होगी हदें झूंठ और गद्दारी की
सरे आम लुटती इज्जत अबला नारी की
थे परिवार संयुक्त ,टूटते देखे होंगे
अपनों को अपने ही लूटते देखें होंगे
बूढ़े माँ और बाप जिन्होंने उन्हें संवारा
किये तिरस्कृत जाते अपने बच्चों द्वारा
देखा होगा तूने कहर ,कोरोना वाला
जिसने सबका जीवन चक्र बदल ही डाला
कितने प्रकट हो गए साधू ,बाबा ,ढोंगी
नज़र तुझे क्या आया कोई सच्चा योगी
राजनीती में ,सत्ता और विपक्ष के झगड़े
धरम नाम पर ,मंदिर और मस्जिद के लफड़े
भूख अभाव में त्राहि त्राहि कर जीती जनता
और रसातल को दिन दिन गिरती मानवता
क्या देखी मगरूर मगर वाली वो सेना
कहती हमसे डरो ,समुन्दर में जो रहना
क्या देखी वो मछली ,झाँसी वाली रानी
इन मगरों से पंगा लेगी ,जिसने ठानी
क्या देखा था तूने एक सितारा उभरता
फंसकर चक्रव्यूह में अभिमन्यू सा मरता
देखा है क्या भाई भतीजावाद पनपता
मुश्किल से ही अनजाना आगे बढ़ सकता
देखा है क्या बड़े लोग की कुछ संताने
गड़बड़ करती तो सब लगते ,उन्हें बचाने
देखा क्या मादक पदार्थ का बढ़ता सेवन
नव आगंतुक ,कलाकार का होता शोषण
मन तेरा भी ,ये सब देख तड़फता होगा
भारी दिल से ही तू आगे बढ़ता होगा
क्योंकि देखता ,रोज रोज तू ,ये सब किस्से
किसको कोसे ,सहानुभूति दिखलाये किस से
ये सब चलता आया और रहेगा चलता
ये सब सोच ,हृदय तेरा निश्चित ही जलता
तब तू ठंडा होने ,दूर क्षितिज सागर में
लगा डुबकियां ,शीतलता लाता है सर में
बस तेरी ये ही दिनचर्या है धरती पर
ओ पश्चिम में अस्त हो रहे प्यारे दिनकर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '