एक वो भी ज़माना होता था
जब तुम्हें अम्मा की याद आती थी
और तुम जिद करके मैके चली जाती थी
पर मुझसे दूर रहकर जब सताती थी विरह पीड़ा
और तुम्हें सोने नहीं देता था मेरी याद का कीड़ा
तुम मुझे बार बार याद किया करती थी
तुम्हारी बेचैनी तुम्हारे ख़तों में झलकती थी
तुम लिखा करती थी होकर के बेक़रार
आइ लव यू 'मैं करती हूँ तुम्हें बहुत प्यार
बस मुझे लिवाने आ जाओ चिट्ठी को समझ कर तार
वो भी क्या दिन थे ,अजीब सा दीवनापन था
तन्हाई में आग लगाता सावन था
गरमी में सिहरन और सर्दी में पसीना आता था
एक दूजे के बिन पल भर भी नहीं जिया जाता था
और अब
दो चार दिन के लिये भी तुम मैके जाती हो जब
रास्ते में मोबाइल से चार बार
और मैके पहुँच कर व्हाटएप पर बार बार
मुझसे पूछती हो क्या हाल है
फ्रिज में रख कर आइ हूँ ,रोटी और दाल है
गरम करके ख़ा लेना
और याद रख कर टाइम से दवा लेना
काम वाली बाई
आइ या नहीं आइ
उससे ठीक से करवा लेना घर की सफ़ाई
तुम्हारी शुगर बढ़ी हुई है , ख़याल रखना
भूल कर भी मिठाई मत चखना
रोज़ रात को दूध गरम करके पी लेना
दो चार दिन हमारे बग़ैर भी जी लेना
सर भारी हो तो बाम लगा लेना
नारियल पानी नारियल वाले से रोज़ मंगालेना
टीवी के चक्कर में ज़्यादा देर से मत सोना
गरम पानी से नहाना और चड्डी बनियान मत धोना
मुझे तरह तरह की शिक्षा देती रहती हो
पर पहले की तरह 'आई लव यू 'कभी नहीं कहती हो
क्या बूढ़ापे में प्यार प्रदर्शन का तरीक़ा बदल जाता है
एक दूसरे की तबियत का ध्यान पहले आता है
जवानी का प्यार हुआ करता है तूफ़ानी
कुछ आग दिल की कुछ आग जिस्मानी
बुढ़ापे का इश्क़ मगर तिमारदारी है
पर उसमें छुपी मोहब्बत पड़े सब पे भारी है
बुढ़ापे का दर्द पति पत्नी मिल कर बाटते है
एक दूसरे के पैर के नाख़ून काटते है
बुढ़ापे के प्यार का एक अलग अपनापन है
एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण है
पति पत्नी का आपस में अटूट बंधन बंध जाता है
प्यार का सही मतलब बुढ़ापे में ही समझ आता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'