Friday, May 24, 2013

गैया के सींगों से डरिये

       

गैया जैसी भोली जनता ,तुम माँ कह कर जिसे बुलाते 
मीठी मीठी बातें करके ,आश्वासन की घास चराते 
बछड़े के मुख,छुआ स्तन, सारा दूध दुहे तुम जाते 
पगहा बंधन बाँध रखा है ,जिससे वो ना मारे लातें 
उसका बछड़ा भूखा पर तुम,मुटिया रहे दूध  पी पीकर 
बचे दूध की बना मिठाई ,या मख्खन खाते हो जी भर 
बूढी होती,काटपीट कर ,मांस भेज देते विदेश में 
तुम कितने अत्याचारी हो ,हो कसाई तुम श्वेत वेश में 
गाय दुधारू ,पर मत भूलो ,उसके सींग ,बड़े है पैने 
जिस दिन वो विद्रोह करेगी ,पड  जाये लेने के देने 
तो समझो,चेतो नेताजी ,बहुत खा लिया,अब मत खाओ 
भूखी गैया तड़फ रही है, उसे पेट भर घास खिलाओ 
उसको गुड दो और बंटा दो,माँ कहते हो ,ख्याल रखो तुम 
उसके बछड़े के हिस्से का,दूध उसी को पीने दो तुम 
अगर किसी दिन आक्रोशित हो,सींग उठा यदि दौड़ी गायें 
और पडी तुम्हारे पीछे , दौडोगे  तुम दायें ,बायें 
गैया के सींगों से डरिये ,जिस दिन ये तुमपर भड़केगी 
अपना हक पाने के खातिर , तुम्हे हटा कर ही दम लेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 



बूढ़े नेता

          बूढ़े नेता 
        
अक्सर ये देखा है ,
फूल जो गंधहीन होते है ,
ज्यादा समय तक ,
खिले रहते ,टिकते है 
कई तो बारह माह ही विकसते है 
और खुशबू वाले फूल ,जो अपनी सुगंध से ,
वातावरण को महकाते है 
जल्दी से मुरझाते है ,
या तोड़ लिए जाते है 
तो श्रीमान  ,
अब तक तो आप गए होंगे जान 
कि मानवता और संवेदनशीलता की,
खुशबू से विहीन ,हमारे नेता ,
बूढ़े होने पर भी ,सत्ता की टहनी पर ,
क्यों रहते है विराजमान 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'