Tuesday, May 10, 2011

ससुराल संहिता

         ससुराल संहिता
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                 १
कुछ साथी कोलेज के,मिले दिनों के बाद
निज पत्नी ,ससुराल पर,चली बात में बात
चली बात में बात,एक बोला मुस्काकर
यारों अपना तो दिल उलझा दिल्ली  जाकर
'घोटू' कहा दूसरे ने सर पर कर धरके
'अस्सी तो फस गए जाल  में 'जालंधर' के'
                    2
कहा तीसरे मित्र ने,बड़े गर्व के साथ
मिली 'मुरादाबाद' में,मन की मुझे मुराद
मन की मुझे मुराद,तभी चोथा मुस्काया
मै तो अपनी 'अली' 'अलीगढ' से हूँ लाया
'घोटू' कहा पांचवें ने भर आहें ठंडी
मेरे घर में आई 'चंडीगढ़' से 'चंडी'
                         3
छटवें के दिल की कली,कोलकत्ता की नार
बाँहों का घेराव जो,करती बारम्बार
करती बारम्बार,सातवें की थी बारी
बोला 'हाथ' हमारे आई ,'हाथरस' वाली
कह घोटू कविराय,आठवां हंस कर बोला
गिरा हमारे घर में,बम्बई का बम गोला


मदन मोहन बहेती 'घोटू'  
               

सवैया

         सवैया
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                 1
सीस पर सुहाय रहे ,केसन के दल पर दल,
         फेसन के मारे वा में तेल नहीं डारो है
मुखड़े पर पोत लियो ,मन भर के पाउडर,
         गरदन को रंग मगर ,दिखे कारो कारो है
फेशन की रोगिन ने ,जोगिन को रूप धरयो,
         पहन लियो भगवा सो कुर्तो ढीरो ढारो है
बल खाती बिजली से,बरस रही बदली से ,
             फेशन की पुतली से ,पड्यो हाय पालो है
                       २
सुरमा लगे लियो,अखियन अरु पलकन पर,
             सूरमा सी डोलत है, वर करे नैनन के
तनी रहे तन्वांगी, तुनक तुनक बात करे,
              ताने दे तान तान ,घात करे तन तन के
मुस्कावत ,मनभावत,चाहत पर शरमावत,
                  बनी ठनी रूपकनी,बात करे बन बन के
होटन हंसी फूट जाये,'घोटू' मन लूट जाए,
                  हाथन से छूट जाये, रूठ जाये मन मन के

मदन मोहन  बहेती 'घोटू'