दक्षिणा के साथ साथ
अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको खाना होगा
पर इतनी सारी केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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Monday, November 19, 2012
दिवाली मन जाती है
दिवाली मन जाती है
जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जब भी आती है दिवाली ,हर बार
एक जगह ,एकत्रित हो जाता है,
हम सब भाइयों का पूरा परिवार
मनाने को खुशियों का त्योंहार
साथ साथ मिलकर के ,दिवाली मनाना
हंसी ख़ुशी ,चहल पहल,खाना,खिलाना
लक्ष्मी जी का पूजन,पटाखे चलाना
प्रेम भाव,मस्ती,वो हँसना ,हँसाना
भले ही चार दिन ,पर जब सब मिल जाते है
मेरी माँ के झुर्राए चेहरे पर ,
फूल खिल जाते है
सब को एक साथ देख कर ,
उनकी धुंधली सी आँखों में ,
खुशियों के दीपक जल जाते है
प्यार ,ममता और संतोष की,
ऐसी चमक आती है
कि दीपावली,अपने आप मन जाती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गृह लक्ष्मी
गृह लक्ष्मी
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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