Tuesday, June 14, 2011

क्षणिकाये


क्षणिकाये
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सिगरेट
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मुझे न शौक,न लत है फिर भी,
कभी कभी सिगरेट  पी लेता
क्योकि धुंआ,ऊपर उठने की,
अक्सर  मुझे प्रेरणा देता
      ट्रेल
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कोई के घर आये लक्ष्मी,पद्मासन में,
कोई प्रिय के घर, अपने वहां उलूक पर
लेकिन मेरे घर में आई लक्ष्मी मैया
बैठ ट्रेल में,तीन तीन इक्कों पर चढ़ कर
     नीलकंठ
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मित्रों के व्यंग बाण,
पत्नी के ताने
अफसर की डाट डपट,
जाने,अनजाने
जहर भरी है कितनी,
ये तीखी बातें
नीलकंठ बन कर हम,
किन्तु पिये जाते

कमीशन की माया
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एक बड़े नेता ने'
एक बड़ी डील में,
एक बड़ा कमीशन खाया
उसकी जाँच के लिए,
सरकार ने एक 'कमीशन' बिठाया
 और ,'कमीशन' ने,
कमीशन का बंटवारा कर,
नेताजी को निर्दोष पाया
ये है कमीशन की माया
 स्तर
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कौन कहता है,
नहीं बढ़ रहा है,
हमारे देश का स्तर
'मिनी'स्तर वाले लोग भी,
बन रहे हैं मिनिस्टर

,ताली

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ताली,
एक हाथ से ,
बज तो नहीं सकती
पर एक हाथ से ताली,
बड़े से बड़ा ताला खोल सकती है
  बार्टर सिस्टम
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फ़न वाले
धनवालों के यहाँ,
धन के लिए जाते है
धनवाले

,फ़न वालों को
फन(fun ) के लिए बुलाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

क्षणिकाएं

क्षणिकाएं
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ज्ञान
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ज्ञान एक साबुन है,
जिसे,जितना ज्यादा घिसोगे,
उतने ज्यादा झाग पाओगे

सिद्धांत

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सिद्धांत,
दुकान के शोकेस में
रखे हुए ,वो ब्युटीपीस हैं
जो दुकान के अन्दर,
अक्सर नहीं मिलते हैं

सहानुभूति

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सहानुभूति,
बड़े लोगों के दिल में भी होती है,
ठीक उस खजूर के फलों की तरह
जो कंटीले ,पत्तों के बीच,
टेढ़े मेधे,ऊँचे वृक्ष पर लगे होतें है
जन साधारण की ,
पहुँच से परे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'






क्षणिकायें

क्षणिकायें
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पी.ए
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साहब के पी. ए .हैं,
पत्नी के पिया
बच्चों के डबल पी ए
याने कि पापा

खतरा

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मेरी पत्नी को,
कोई खतरा,
न उनसे है,न इनसे है
सिर्फ,
पड़ोसन कि 'सिन' से है

विरह गीत

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तुम वहां,
मै यहाँ,
इतनी दूर और ऐसे
बीरबल कि खिचड़ी
पके तो कैसे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

और

और
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बात नहीं कुछ,
विषय नहीं कुछ
बोअर हो गए ;
तो तुम बोले और सुनाओ
आओ!आओ!
करें सिलसिला,फिरसे चालू,
हम बातों का,
जोर जोर से
अगर गौर से देखोगे तो,
चारों और सुनाई देगा ,शोर 'और' का
जोर शोर से
देखोगे ,जग के जन जन में
सब के मन में
सिर्फ 'और' की आस जगी है
सिर्फ 'और'की प्यास लगी है
जिसके पास जरा है थोडा रूखा सूखा,
अगर उसे कुछ मिला भाग्य से या मेहनत से,
पर उसको संतोष न होगा,
ज्यादा से ज्यादा पाने की प्यास बढ़ेगी
पीने की तो प्यास बुझे पानी से लेकिन,
पाने की तो प्यास कभी भी नहीं बुझेगी
क्योंकि जो जितना पाता है
उतना ज्यादा ललचाता है
इतना सब कुछ पाने पर भी,
थोडा भी संतोष नहीं है,
मानव मन में
और 'और' की ओर बढ़ रहा,
आज हमारे इस समाज का'
ढांचा ही कुछ बदला होता,
अगर और की प्यास न होती
किन्तु'और ' तो अजर अमर है
जब तक जीवन है,दुनिया है,
'और' रहेगा
सिर्फ रहेगा नहीं ,'ओंर'ही राज्य करेगा
क्योकि 'और' पर जोर नहीं है
और 'और' का छोर नहीं है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'



मज़ा बुढ़ापे का

मज़ा बुढ़ापे का
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सीनियर सिटिज़न हैं,हुए रिटायर हम हैं,
                  मस्ती का आलम है,मौज हम मनाते हैं
नहीं कोई काम धाम,अब तो बस है आराम,
                   तीरथ और ग्राम ग्राम ,घूमते घुमाते हैं
आजकल निठल्ले हैं,एकदम अकेल्ले हैं,
                   पैसा जो पल्ले है,खरचते,उड़ाते है
कैसा भी हो मौसम,नहीं कोई चिंता गम,
                     मज़ा बुढ़ापे का हम,जम कर उठाते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

माँ, बाप और नानी

माँ, बाप और नानी
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बच्चा हो,औरत हो या मर्द
जब भी होता है दर्द
मुहं से निकलता है 'उई माँ'
जब भी लगती है चोंट,
या होती है पीड़ा
याद आती है माँ
और माँ का नाम ही,
दर्द को सहलाता है
करार लाता है
और जब भी देखतें है,
कुछ चीज भयंकर
या लगता है डर,
तो मुंह से निकलता है
'बाप रे बाप'
कभी सोचा है आपने
एसा क्या किया है बाप ने
जो डर और अचरज में याद आ जाता है
जब कि वो भी बराबर प्यार लुटाता है
और जब होती है बड़ी परेशानी
लोग कहते है,याद आती है नानी
नानी याने माँ कि माँ
डबल ममता
क्या है इन सबका कारण?
शायद माँ की ममता ,लाड़  प्यार
और पिता का अनुशासन

मदन मोहन बहेती 'घोटू'