Sunday, September 26, 2010

जीवन के मधुरिम बसंत में

जीवन के मधुरिम बसंत में लगता फूला जग का उपवन
रस की लोभी मधुमख्खी सी चंचल दृग की चंचल चितवन
महक रहे कलियों फूलो का नित रसपान किया करती है
मधु संचय हित उर में छत्ते का निर्माण किया करती है
किन्तु एक ऐसा भी मोका आता है मानव जीवन में
जब संचित रस का अधिकारी कोई छा जाता है मन में
कर लेती है रसिक प्रियतमे जब रसपान मधु संचय का
तो केवल छत्ता बचता है होता ह्रदय मोम मानव का
जो थोड़ी सी गर्मी पाकर झट से पिघल फिघल जाता है
जब ये छत्ता गल जाता है समझो योवन ढल जाता है
तो ओ मोम ह्रदय दिलवालों,घोटू यही कहा करता है
रस तो थोड़े ही दिन रहता फिर तो मोम रहा करता है
इसीलिए यदि सुन्दरता का दृग रसपान करे करने दो
रस संचय में कभी न चूको;छत्ते को रस से भरने दो

JEEVAN KE MADHURIM BASANT MEIN

IN THE PRIME OF OUR YOUTH
THE WORLD LOOKS BLOOMING WITH FLOWER
AND EYES LIKE GREEDY BEES
WANDER HERE AND THERE
AND KISSESAND SUCKS THE JUICE
FROM FLOWERS BEAUTIFUL AND NICE
AND MAKES A HONEYCOMB IN HEART
TO COLLECT THE NECTOR OF LIFE
BUT THEN COMES IN YOUR LIFE
SOME CHARMING,LOVELY DEAR
WHO STARTS LIVING IN YOUR HEART
AND OWNS THE STOCK OF NECTOR
ANDSLOWLY SLOWLY AND SLOWLY
THAT DARLING BEAUTIFUL WIFE
WITH ALL THE LOVE AND AFFECTION
SUCKS ALL THE NECTOR OF LIFE
AND EMPTY BECOMES THE COMB
A LUMP OF WAX ,IT IS FELT
WITH A VERY LITTLE OF WARMTH
THE WAX STARTS GETTING MELT
THAT’SWHY WE BECOME SOFT HEARTED
WHEN OLDER AND OLDER WE GROW
THE JUICE IS ONLY IN YOUTH
IT IS WAX LATER THAT FLOW
HENCE WHENEVER YOU SEE ABEAUTY
LET BEES OF YOUR EYES FLY
AND KEEP THE HONERCOMB REFILLING
DO’NT MISS JUST TRY AND TRY

chaya ka pyala

चाय का प्याला

एक बार जब नीलगिरी में
पहुँच गया मैं मतवाला
हरी ओदनी में बेठी थी
एक सलोनी सी बाला
बोली मुझको देख रहे क्यों
प्यार भरी नज़रों से तुम
मुझको पाना हो तो पीलो
गरम चाय का एक प्याला

रोज़ लगा कराती होठों से
रंग गुलाबी है प्यारा
जिसके रगरग में गर्मी है
रातों हमें जगा डाला
यदि बिस्तर पर मिल जाये तो
कितनी प्यारी लगती है
पत्नी के सब गुण हैं जिसमे
वो है चाय भरा प्याला

भला बताओ किसके मन में
नहीं चाह की है ज्वाला
बोलो जग में कौन नहीं है
किसी चाह में मतवाला
टेडी मंदी चाह रह है,
मुश्किल राहत चाहत में
चाह राह में आह मिले तो
पीयो चाय भरा प्याला

रूप जल भ्रमजाल कठिन है
खोया मई भोलाभाला
श्वेत रंग में मन उलझा कर
भटक रहा था मतवाला
लेकिन एक सलोनी बाला
मुझे रास्ता दिखा गयी
कला तन रस रंग गुलाबी
मिला चाय का एक प्याला

भेद भाव को दूर भगाने,
होटल है मंदिर आला
जिस प्याले से भंगी पीता,
उससे ही पीता लाला
मेरा अगर चले बस तो
हर मंदिर में होटल खोलू
चरणामृत के बदले बाटू
सबको चाय भरा प्याला

दूध दही की नदिया बहती,
है यह बात बड़ी आला
लेकिन इस पर नहीं भरोसा
करता कोई समझ वाला
अरे दूध काभी क्या पीना,
वो तो बच्चे पीते है
समझदार की परिभाषा है,
पीये चाय भरा प्याला

गंगा जैसी बहती आई,
उजली दूध भरी धरा
सरस्वती सी शकर गुप्त थी,
जमना जैसी जल धारा
रेती ने रंग किया गुलाबी,
जब ये तीनो धर मिली
ये ही संगम,ये ही त्रिवेणी
ये है चाय भरा प्याला

कभी कंही कोई उपवन में,
हरी भरी थी एक बाला
प्रेमी ने दिल जला दिया तो,
जल कर रंग हुआ कला
अरमानो का खून जमा है
पर उस काली काया में
जो आंसू से घुलमिल बनता,
गर्म चाय जा एक प्याला

रोज सुबह जलती है लाखों
के मन में किसकी ज्वाला
रोज सुबह लाखों होठों को
कौन चूमता मतवाला
रोज सुबह किसका आना सुन
आँखों में आती रौनक
कई करोड़ों प्रेमी जिसके
वह है एक चाय प्याला


अगर प्रियतमा पास नहीं हो
और समा हो मतवाला
तारे गिन गिन रात गुजारा
करता था प्रिय दिलवाला
विरही दिल की विरह वेदना
कम करने आया जग में
आँखों में ही रात कटे यदि
पियो चाय का एक प्याला


जिन होठों को चूमा करता
रोज रोज ही जो प्याला
उस प्याले को चूम रहा मैं
खुशनसीब हूँ मतवाला
इसका मतलब किसी तरह भी
मैंने उनको चूम लिया
प्रेमी दिल की प्यास बुझाने
आया चाय भरा प्याला


देखी होगी मधुबाला भी
देखी होगी मधुशाला
छलक जाए जो जाम अगर तो
बिखर जाए सारी हाला
पर यदि छलके तो नीचे
आस लगाये प्लेट पड़ी
हाला से ज्यादा प्यारा है
सबको चाय भरा प्याला

दृश्य अभी भी बसा हुआ है
मन में प्रथम मिलन वाला
शरमा सकुचाती आई तुम
नजरें झुका लिए प्याला
मैंने भी झुक तेरी पहली
छवि देखी थी प्याले में
फिर होठों से लगा लिया था
तेरा चाय भरा प्याला

श्राद्ध

श्राद्ध
एक दिन बाद
बहू को आया याद
अरे कल था ससुरजी का श्राद्ध
आधुनिका बहू ने क्या किया
डोमिनोस को फोन किया
और एक पिज़ा पंडितजी के यहाँ भिजवादिया
ब्राहमण भोजन का ये मोडर्न स्टाइल था
दक्षिणा के नाम पर कोक मोबाइल था
रातससुरजी सपने में आये
थोड़े से मुस्कराए
बोले शुक्रिया
मरने के बाद ही सही,याद तो किया
पिज़ा अच्छा था,भले ही लेट आया
मैंने मेनका और रम्भा के साथ खाया
उन्हें भी पसंद आया
बहू बोली,अच्छा तो आप अप्सराओं के साथ खेल रहे है
और हम यहाँ कितनी मुसीबतें झेल रहे है
महगाई का दोर बड़ता ही जाता है
पिज़ा भी चार सो रुपयों में आता है
ससुरजी बोले हमें सब खबर है भले ही दूर बैठें है
लेट हो जाने पर डोमिनो वाले भी पिज़ा फ्री में देते है

shradha

श्राद्ध
जीते जी तीर्थ न करवाए मरने पर संगम जाओगे
भर पेट खिलाया कभी नहीं पंडित को श्राद्ध खिलाओगे
बस एक काम ही ऐसा है जो तब भी किया और अब भी किया
जीते जी बहुत जलाया था मरने पर भी तो जलाओगे