Wednesday, April 6, 2022

ढलता तन,चंचल मन

तन बूढ़ा हो गया आ गई ,अंग अंग में ढील है लेकिन मन का कोना कोना ,चंचल है गतिशील है

 हाथ पांव कृषकाय हुए पर मन अभी जोशीला है 
तन में फुर्ती नहीं रही पर अंतर मन फुर्तीला है 
 अब भी ख्याल जवानी वाले मस्तक में मंडराते हैं 
हालांकि थोड़ी सी मेहनत, करते तो थक जाते हैं 
चार कदम ना चलता तन ,मन चले सैकड़ों मील है 
लेकिन मन का कोना कोना ,चंचल है गतिशील है
 
तन तो अब ना युवा रहा पर मन यौवन से भरा हुआ 
तन बूढ़ा हो गया मगर मन,ना बूढ़ा है जरा हुआ 
इसका कारण मैं गांव में पला बढ़ा और रहता हूं 
नहीं संकुचित शहरों सा उन्मुक्त पवन सा बहता हूं 
हैआध्यात्म बसा नसनस में और संस्कार सुशीलहै 
 लेकिन मन का कोना कोना चंचल है गतिशील है

शुद्ध हवा में सांसे लेता और शीतल जल पीता हूं 
दूर बहुत दुनियादारी से, सादा जीवन जीता हूं
तन पर तो बस नहीं मगर मन पर तो है बस चल जाता 
जैसा हो परिवेश उस तरह ही है मानस ढल जाता 
बहुत नियंत्रित मेरा जीवन ,जरा न उसमें ढील है 
लेकिन मन का कोना कोना चंचल है गतिशील है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बढ़ती महंगाई 

प्रवासी भारतवासी ,
जब विदेश से लौटकर 
वापस अपने घर आते हैं 
बढ़ी हुई महंगाई को
 अपने साथ ले आते हैं 
 
 जैसे मेरे देश का वड़ापाव 
 छोड़कर अपना गांव 
 जब गया विदेश ,
 तो लौटा नया रूप धर 
 वह बन गया था वड़ापाव से बर्गर 
 उसका नया हीरो वाला रूप,
  लोगों को सुहाया 
  दाम दस गुना हो गए ,
  फिर भी लोगों ने बड़े चाव से खाया 
  
  मेरे गांव के नाई चाचा की तेल मालिश ,
  जब विदेश गई 
  तो स्पा बन गई 
  नए रंग में सन गई
  बहुत महंगी हो गई 
  पर फैशन बन गई 
  
  दादी के हाथों के मैदे की सिवैयां
   आज भी बहुत याद आती हैं 
   जब से विदेश से लौटी है ,
   चाऊमीन कहलाती है 
    बड़ी मंहगी आती है
   
   और जब आलू का पराठा पहुंच गया विदेश
    देखकर उन्मुक्त परिवेश 
    दो परतों के बीच उसका दम घुटने लगा 
    और वह बाहर की और भगा 
    रोटी के ऊपर चढ़कर उसे आया मजा 
    और वह बन गया पिज़्ज़ा 
    विदेशी रंगत देख कर,
    लोगों में दीवानगी चढ़ गई 
    बस कीमत कई गुना बढ़ गई 
    
    कनखियों से ताक झांक कर के ,
    नैनो को लड़ाने वाला प्यार 
    विदेश में डेटिंग करके हो गया बेकरार 
    खुली छूट मिल गई कर लो पूरा दीदार 
    मगर खर्च होगया कई हजार
    
    विदेश जाकर बदले परिवेश में,
     गांव की चीजों पर आधुनिकता चढ़ा दी 
     पर मेरे देश की महंगाई बढ़ा दी

     मदन मोहन बाहेती घोटू