Wednesday, June 29, 2011

दांत की बात

दांत की बात
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जब हम हँसते,तो दिखते है
 जब कुछ खाते तो पिसते है
  च
मका करते तड़ित रेख से,
सर्दी हो ,किट किट करते है
आँख,कान या हाथ ,पैर सब,
तन पर दो दो पीस दिये है
 लेकिन प्रभु ने थोक भाव से,
दांत हमें बत्तीस दिये है
सबसे सख्त अंग मानव का,
लेकिन साथ दिया है कोमल
अन्दर है नाजुक सी जिव्हा,
अधर चूमते रहते बाहर
आते है सब अंग जनम से,
ये आते है ,मगर ठहर के
वी. आई. पी.मेहमानों जैसे,
शकल दिखाते,एक एक कर के
एक बार जो अंग मिल गया,
संग रहता है जीवन सारा
 लेकिन सिर्फ दांत ऐसे है,
जो तन पर उगते दोबारा
दांतों तले दबाते उंगली,
जब हम अचरज में आ जाते
दांतों काटी रोटी होती,
तब हम गहरे दोस्त कहाते
अगर किसी को हरा दिया तो,
कहते खट्टे दांत कर दिये
तुमने दांत निपोर दिये क्यों,
बिना बात के अगर हंस दिये
हुआ प्रलय,डूबी धरती,तब
वराह रूप ले भगवन आये
उठा धरा अपने दांतों पर,
प्रभु थे जल से बाहर लाये
एक दन्त भगवान गजानन,
पूजा प्रथम सदा पाते है
दांत छुपे रहते मानव के,
और दानव के दिखलाते है
हाथी और रिश्वतखोरों की
लेकिन होती बात अलग है
दिखलाने के दांत और है,
और खाने के दांत अलग है
अगर निहत्थे जो गर तुम हो,
एक मात्र हथियार यही है
काट दांत से,दूर भगो तुम,
सबसे अच्छा वार यही है
है बच्चों के दांत दूध के,
अर्ध चन्द्र जैसे उगते है
दांत किसी सुन्दर रमणी के,
मोती के जैसे लगते है
हिलते दांत बुढ़ापे में हैं,
और नकली भी लग जाते है
रोज रोज मंजन कर के हम,
ख्याल दांत का,रख पाते है
जो भी शब्द ,निकलता मुंह से,
दांतों को छू कर आता है
दांत खिलखिला,उनका हँसना,
'घोटू' के मन को भाता है
खाना,पीना,हँसाना,गाना,
है सब में महत्त्व दांतों का
बात दांत की सुन कर मेरी,
ख्याल रखोगे ,तुम दांतों का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

Tuesday, June 28, 2011

समुद्र मंथन

    समुद्र मंथन
   ---------------
प्यार तुम्हारा
है अथाह सागर सा गहरा,
और मेरु पर्वत के जैसा ये मेरा मन
जब समुद्र  का  होता मंथन
चौदह रत्न  प्रकट दिखलाते
रूप तुम्हारा 'रम्भा' जैसा,
और चमकीली 'मणि' जैसी तुम्हारी आँखें
'इंद्र धनुष' सी छटा,
'चन्द्र' सा सुन्दर आनन,
'शंख' बजाते सांसों के स्वर
रूप 'हलाहल'
'वारुणी' जैसे अधर मुझे कर देते पागल
'कामधेनु'और 'कल्पवृक्ष' सी
मेरी सभी कामनाएं तुम पूरी करती
'धन्वन्तरी' सी,
दग्ध ह्रदय की पीड़ा हरती
प्रेम 'लक्ष्मी',जब मै साथ तुम्हारा पाता,
'एरावत' सा मत्त गयंद हुआ करता मन,
और 'उच्च्श्रेवा' घोड़े सी दोड़ लगाता
रूप मोहिनी सा धर आती
मुझे देवता समझ प्रेम से,
'अमृत'घट से ,घूँट सुधा की मुझे पिलाती
तो अमरत्व मुझे मिल जाता
तृप्त तृप्त सा हो जाता मन
चौदह रत्न मुझे मिल जाते
जब होता है समुद्र मंथन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


Monday, June 27, 2011

बच्चा रो रहा था

बच्चा रो रहा था
पिता ने कहा, देख शेर आया
बच्चा चुप हो गया
बच्चा फिर रोया,
पिता ने कहा,देख हव्वा आया
बच्चा चुप हो गया
बच्चा फिर रोया
पिता ने कहा,देख माँ आई,
बच्चा चुप हो गया
बताओ,बच्चा डर से चुप हुआ प्यार से ?

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

वर्षा गीत

वर्षा गीत
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बदल घुमड़े,घिर घिर ,घुम घुम
पानी बरसा,रिमझिम, रिमझिम
मस्तीवाला,प्यारा मौसम
बचपन नाचा,छमछम,छमछम
उछल उछल कर,छपछप,छपछप
गीली माटी,थप थप,थप थप
हाथ उठा कर,नाचें,कूदें
पकड़ रहे पानी की बूँदें
नन्हे होंठ,पुष्प से खिल खिल
किलकारी भरते,किल किल किल
राग द्वेष ना,चिंता,उलझन
कितना निश्छल,प्यारा बचपन
भोले भाले,चंचल,चंचल
हँसते गाते,हरपल,पल पल
ठुम ठुम ठुमके,कदम सुहाने
अपनी ही धुन में मस्ताने
माँ बुलाएगी,जबतक,तबतक
नाच रहें हैं,छप छप,छप छप
माँ डाटेंगी,तो रो देंगे
प्यार करेंगी,फिर हंस देंगे
सो जायेंगे,थक,थक,थक थक
माँ के आँचल,से लग लग लग

मदन मोहन बाहेती 'घोटू

Tuesday, June 21, 2011

कवितायेँ-किसम किसम की ----------------------------------

    कवितायेँ-किसम किसम की
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बिना किसी लाग लपेट,
बेईमानी,भ्रष्टाचार,
दुर्दशा दर्शाती,
        नंगी सी  कविता
दो चार पंक्तियाँ
क्षणिकाएं या दोहे,
छिपी हुई पर सार्थक,
          चड्डी सी कविता
दिल के बहुत करीब,
भावनाओं के उभार,
दर्शाती है निखार,
          चोली सी कविता
ऊपर से दिखे एक,
पर नीचे मतलब दो,
द्विअर्थी या श्लेष,
          पायजामा कविता
द्रोपदी के चीर सी,
जितना भी पढ़ते जाओ,
उतनी ही बढती जाये,
        साडी सी कविता
अलंकर आभूषित,
मन को लुभानेवाली,
शब्दों से सजी धजी,
      श्रंगार सी कविता

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

Monday, June 20, 2011

सोने की चिड़िया

      सोने की चिड़िया
      -------------------
एक नामी संत के शयन कक्ष से,
अड़तीस करोड़ की ,संपत्ति मिलने के बाद
आपको ,लग गया होगा अंदाज
की हमारे संतो,मंदिर और मठों के पास,
कितनी अकूत दौलत का खजाना होगा
शायद  स्विस बेंक में जमा,
काले धन से भी ज्यादा होगा
अगर कोई ईमानदार राजनेता (?)
सत्ता में आजाये
और कुछ ऐसा क़ानून बनाए जिससे
 इन मंदिर ,मठों की अपार सम्पति,
और स्विस बेंक में जमा धन,
देश के काम आजायेगा
तो भारत फिर से,
सोने की चिड़िया बन जाएगा

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

नोयडा
 

अपनो की मार

    अपनो की मार
----------------------
            १
आँखों का काजल,
वो ही चुरा सकता है
जो आँखों में बसता है
               २
अकेली लोहे की कुल्हाड़ी
बिलकुल बेबस है बेचारी
लेकिन हत्ते की लकड़ी जब लगती है
तो लकड़ी का पूरा जंगल,
काट वो सकती है
                ३
दही ,दूध का जाया है
मगर ,उसी के एक कतरे ने
दूध को भी जमाया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 






Sunday, June 19, 2011

गर्दभ कहे गदही से,

बैशाखनंदन ने,क्रंदन कर ,मन खोला,
                 रेंक गदही से बोला,प्यार मेरा सच्चा है
तू इतनी है प्यारी,चल चले मतवाली,
                 रूप तेरा अच्छा और गान तेरा अच्छा है
मुझे रोज करती तंग,धोबी के बेटे संग,
                 घाट चली  जाती है,दे जाती गच्चा है
गर्दभ कहे गदही से,आँख मूँद,कर जोड़,
                   सच सच बतला दे ना, तेरे मन में क्या है  

मदन मोहन बहेती'घोटू'

हाँ, हम भ्रष्ट है

हाँ, हम भ्रष्ट है
आपको क्या कष्ट है
जनता की भीड़ में,
भाषण देते हो,चिल्लाते हो
हमें भ्रष्टाचारी बताते हो
चुप रहा करो,
नहीं तो हम बता देंगे,
क्या  औकात है तुम्हारी
तुम्हे पता नहीं, हम है सत्ताधारी
कल ही हमारे प्रवक्ता,
डुगडुगीबजा कर ,
दुनिया को देंगे बता
की तुम्हारे दादा के दादा ने,
एक दलित लड़की को छेड़ा था
तुम्हारे दादा ने भी ,
किया कुछ बखेड़ा था
, तुम्हारे पिता ,जो मिठाई की दुकान चलाते थे
सिंथेटिक खोवा काम  में लाते थे
चोरी की चीनी की चासनी से,
जलेबी बनाते थे
तुम्हारी झोपड़ी में जो घांस लगायी गयी है
वो रिजर्व फोरेस्ट से चुरायी गयी है
हम इन आरोपों की जांच के लिए
 एक कमीशन भी बेठा देंगे
हमसे मत लो पंगा
जनता के बीच में,
हम को मत करो नंगा
वर्ना तुम नहीं जानते,
हम तुम्हारा जीना हराम कर सकते है
तुम्हारे हर आयोजन को,
चार जून का रामलीला मैदान कर सकते है


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

फादर डे

फादर डे
----------
साल भर में
 एक दिन पिता का
एक दिन माता का,
उस दिन ,माता या पिता को,
धन्यवाद का कार्ड या भेंट देकर,
हो जाती कर्तव्य की पूर्ती है
अरे! ये तो विदेशी संस्कृति है
हमारे संस्कार तो,
हर पल ,हर दिन,
माँ बाप को समर्पित होना सिखाते है
फिर भी हम माता पिता का ऋण,
नहीं चुका पाते हैं
आज हम जो,
सांसें ले रहे है,
फलफूल रहे है,
खुशहाल और आबाद है
ये पिताजी की प्रेरणा और तपस्या है,
और माँ का आशीर्वाद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



शाश्वत सत्य

शाश्वत सत्य
-----------------
भारत की धर्मपरायण जनता,
जब श्रद्धा लुटाती है
मंदिर और मठों की,
साधू और संतों की
चांदी ही चांदी है
भक्त लोग गुरुओं पर,
श्रद्धा के पत्र पुष्प,
प्रेम से चढातेहैं
चमत्कार होता है,
ये  सारे पत्र पुष्प,
नोटों के बण्डल में ,
बदल बदल जाते है
अगर धर्म गुरुओं के,
सोने के कमरे में
मिलता जो सोना है 

अचरज क्यों होना है?

मंदिर के गर्भगृह में ,
मिलता यदि अरबों का खजाना है
तो क्यों चकराना है?
मगर इस जीवन का,
सत्य ये शाश्वत है
राजा हो,रानी हो
संत,गुरु,ज्ञानी हो
खाली हाथ आता है
खाली हाथ जाता है'
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

Friday, June 17, 2011

मैंने कहा पति हूँ मै,,कोई चपरासी नहीं,



दफ्तर में काम काम,घर पर भी ना आराम,
                 बन कर तेरा गुलाम, काम नहीं आऊंगा
चाम के चक्कर में,नाच बहुत नाचा मै,
                  तेरे इशारण पर, नाच नहीं पाऊंगा
इहाँ जाव,उहाँ जाव,साग और सब्जी लाव
                  बच्चो को घुमाय लाव,कहाँ कहाँ जाऊँगा
 मैंने कहा पति हूँ मै,,कोई चपरासी नहीं,
                   मेरा पत राखोगी तो,प्रीत बरसाउंगा
         2
 
मक्खन के समोसे से,गाल तुम्हारे चिकने,
                    रसगुल्ले सी प्यारी,आँखें तुम्हारी है
खुर्जा की खुरचन सी,स्वाद भरी संगत है
                    रबड़ी  के लच्छों सी,बातें तुम्हारी है
  जब तू मुस्कावत है,तो मन को भावत है,
                   लेकिन नचावत है मोहे, पड़े भारी है
मैंने कहा पति हूँ मै,,कोई चपरासी नहीं,
                    चोबे हूँ,ओबे (obey )की,आदत हमारी है

  मदन मोहन बहेती 'घोटू'
,
                   

बारिश है पर दूर सजन है

बारिश है पर दूर सजन है
चूल्हा ठंडा पड़ा हुआ है,सिगड़ी बिगड़ी ,नहीं अगन है
बारिश है  पर दूर सजन है
है स्टोव बिसूरता उसमे पर मिटटी का तेल नहीं है
ओ पीहर की प्यारी प्रियतम,मेरा घर भी जेल नहीं है
आजकेतलीसूनी सूनी,भाग गयी है,चाय निगोड़ी
ठंडा मौसम,भूख लगी पर,कौन खिलाये,मुझे पकोड़ी
तेल पड़ा है,प्याज पड़े है,मगर पास में ना बेसन है
बारिश है पर दूर सजन है
पाकिट  भर सिगरेट पड़ी है,लेकिन सील गयी है माचिस
भुट्टा छिलकों बीच दबा है,कैसे पाऊं ,भुट्टे का 'किस'
बाहर रिमझिम है गीलापन ,लेकिन मेरा उर सूखा है
ओ दिलवाली! ये दीवाना तेरे दर्शन का भूखा है
'पी घर' से तो मन उकताता,पर 'पीहर' से लगी लगन है
बारिश है पर दूर सजन है

घोटू

मुकरियां

मुकरियां
-----------
   १
जब जब देखूं,मन में भावे
व बिन मोहे ,कछु न सुहावे
मोको वासे  सच्चो प्रेमा
को सखी साजन, नहीं सिनेमा
       २
रात पड़े तब मोहे सतावे
पलक बसे अरु मोहि  सुलावे
दुक्ख भुलावे ,मोरा मितरा
को सखी साजन,न सखी निदरा
           ३
रात पड़े तब मो पर छावे
गरम करे मोरि ठण्ड भगावे
मजा देत है मोहि सुलाई
को सखी साजन,नहीं रजाई
          ४
दुबली,टेडी,ऊँची,नीची
प्यारी लागत रस में सींची
पीत वर्ण अति सुन्दर देबी
को सखे सजनी,नहीं जलेबी

घोटू
(सन १९५५-५६ में मध्यभारत की हाई स्कूल की
हिंदी पुस्तक में कुछ मुकरियां पढ़ी थी और लिखी भी थी
वो ही पुरानी मुकरियां प्रस्तुत है )



Thursday, June 16, 2011

दोहे

दोहे
------

कातिल है कोई कहे,काफ़िर कोई बताय
कोई कडवी 'पिल' कहे,बातें कुटिल बनाय

वैसे है ज्ञानी बड़ा,है कानूनी कीट
बातूनी है गज़ब का,लोग बताये 'चीट'

सर पर तो है सफेदी,मन काला घनघोर
तेरे मन कछु और है,तेरे मुख कछु और

'सिम्बल' एरोगंस' का,चेहरे पर मुस्कान
संबल है सरकार का बढबोला इंसान
,
घोटू

Wednesday, June 15, 2011

,मै एक सोशल वर्कर हूँ

मै एक सोशल वर्कर हूँ
समाज की सेवा करना मेरा' पेशन' है
आज की हाई सोसायटी में ये ही फेशन है
गरीब बच्चों को पढाना,
ब्लड डोनेशन केम्प लगवाना,
अनाथालय में खाना और कपडे बटवाना,
और ये सब करते हुए फोटो खिंचवाना,
ये सब अब मेरी दिनचर्या बन गया है,
मुझे समाजसेवा का नशा चढ़ गया है
 और ये सिलसिला एसा चलता है
कि मै इतनी व्यस्त हो जाती हूँ,
कि मुझे अपने बूढ़े बीमार सास ससुर की,
 खबर लेने का भी टाइम नहीं मिलता है
वो तो घर के है,उनकी क्या चिंता करना
मुझे तो है समाज की सेवा  करना,
जिसके लिए मै हमेशा तत्पर हूँ
हाँ,मै एक सोशल वर्कर हूँ

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

Tuesday, June 14, 2011

क्षणिकाये


क्षणिकाये
-----------
सिगरेट
---------
मुझे न शौक,न लत है फिर भी,
कभी कभी सिगरेट  पी लेता
क्योकि धुंआ,ऊपर उठने की,
अक्सर  मुझे प्रेरणा देता
      ट्रेल
   -------
कोई के घर आये लक्ष्मी,पद्मासन में,
कोई प्रिय के घर, अपने वहां उलूक पर
लेकिन मेरे घर में आई लक्ष्मी मैया
बैठ ट्रेल में,तीन तीन इक्कों पर चढ़ कर
     नीलकंठ
---------------
मित्रों के व्यंग बाण,
पत्नी के ताने
अफसर की डाट डपट,
जाने,अनजाने
जहर भरी है कितनी,
ये तीखी बातें
नीलकंठ बन कर हम,
किन्तु पिये जाते

कमीशन की माया
---------------------
एक बड़े नेता ने'
एक बड़ी डील में,
एक बड़ा कमीशन खाया
उसकी जाँच के लिए,
सरकार ने एक 'कमीशन' बिठाया
 और ,'कमीशन' ने,
कमीशन का बंटवारा कर,
नेताजी को निर्दोष पाया
ये है कमीशन की माया
 स्तर
-------
कौन कहता है,
नहीं बढ़ रहा है,
हमारे देश का स्तर
'मिनी'स्तर वाले लोग भी,
बन रहे हैं मिनिस्टर

,ताली

------
ताली,
एक हाथ से ,
बज तो नहीं सकती
पर एक हाथ से ताली,
बड़े से बड़ा ताला खोल सकती है
  बार्टर सिस्टम
---------------------
फ़न वाले
धनवालों के यहाँ,
धन के लिए जाते है
धनवाले

,फ़न वालों को
फन(fun ) के लिए बुलाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

क्षणिकाएं

क्षणिकाएं
-----------
ज्ञान
------
ज्ञान एक साबुन है,
जिसे,जितना ज्यादा घिसोगे,
उतने ज्यादा झाग पाओगे

सिद्धांत

---------
सिद्धांत,
दुकान के शोकेस में
रखे हुए ,वो ब्युटीपीस हैं
जो दुकान के अन्दर,
अक्सर नहीं मिलते हैं

सहानुभूति

-------------
सहानुभूति,
बड़े लोगों के दिल में भी होती है,
ठीक उस खजूर के फलों की तरह
जो कंटीले ,पत्तों के बीच,
टेढ़े मेधे,ऊँचे वृक्ष पर लगे होतें है
जन साधारण की ,
पहुँच से परे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'






क्षणिकायें

क्षणिकायें
----------------
पी.ए
------
साहब के पी. ए .हैं,
पत्नी के पिया
बच्चों के डबल पी ए
याने कि पापा

खतरा

---------
मेरी पत्नी को,
कोई खतरा,
न उनसे है,न इनसे है
सिर्फ,
पड़ोसन कि 'सिन' से है

विरह गीत

-------------
तुम वहां,
मै यहाँ,
इतनी दूर और ऐसे
बीरबल कि खिचड़ी
पके तो कैसे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

और

और
-----
बात नहीं कुछ,
विषय नहीं कुछ
बोअर हो गए ;
तो तुम बोले और सुनाओ
आओ!आओ!
करें सिलसिला,फिरसे चालू,
हम बातों का,
जोर जोर से
अगर गौर से देखोगे तो,
चारों और सुनाई देगा ,शोर 'और' का
जोर शोर से
देखोगे ,जग के जन जन में
सब के मन में
सिर्फ 'और' की आस जगी है
सिर्फ 'और'की प्यास लगी है
जिसके पास जरा है थोडा रूखा सूखा,
अगर उसे कुछ मिला भाग्य से या मेहनत से,
पर उसको संतोष न होगा,
ज्यादा से ज्यादा पाने की प्यास बढ़ेगी
पीने की तो प्यास बुझे पानी से लेकिन,
पाने की तो प्यास कभी भी नहीं बुझेगी
क्योंकि जो जितना पाता है
उतना ज्यादा ललचाता है
इतना सब कुछ पाने पर भी,
थोडा भी संतोष नहीं है,
मानव मन में
और 'और' की ओर बढ़ रहा,
आज हमारे इस समाज का'
ढांचा ही कुछ बदला होता,
अगर और की प्यास न होती
किन्तु'और ' तो अजर अमर है
जब तक जीवन है,दुनिया है,
'और' रहेगा
सिर्फ रहेगा नहीं ,'ओंर'ही राज्य करेगा
क्योकि 'और' पर जोर नहीं है
और 'और' का छोर नहीं है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'



मज़ा बुढ़ापे का

मज़ा बुढ़ापे का
-----------------
सीनियर सिटिज़न हैं,हुए रिटायर हम हैं,
                  मस्ती का आलम है,मौज हम मनाते हैं
नहीं कोई काम धाम,अब तो बस है आराम,
                   तीरथ और ग्राम ग्राम ,घूमते घुमाते हैं
आजकल निठल्ले हैं,एकदम अकेल्ले हैं,
                   पैसा जो पल्ले है,खरचते,उड़ाते है
कैसा भी हो मौसम,नहीं कोई चिंता गम,
                     मज़ा बुढ़ापे का हम,जम कर उठाते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

माँ, बाप और नानी

माँ, बाप और नानी
----------------------
बच्चा हो,औरत हो या मर्द
जब भी होता है दर्द
मुहं से निकलता है 'उई माँ'
जब भी लगती है चोंट,
या होती है पीड़ा
याद आती है माँ
और माँ का नाम ही,
दर्द को सहलाता है
करार लाता है
और जब भी देखतें है,
कुछ चीज भयंकर
या लगता है डर,
तो मुंह से निकलता है
'बाप रे बाप'
कभी सोचा है आपने
एसा क्या किया है बाप ने
जो डर और अचरज में याद आ जाता है
जब कि वो भी बराबर प्यार लुटाता है
और जब होती है बड़ी परेशानी
लोग कहते है,याद आती है नानी
नानी याने माँ कि माँ
डबल ममता
क्या है इन सबका कारण?
शायद माँ की ममता ,लाड़  प्यार
और पिता का अनुशासन

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Monday, June 13, 2011

वक्र-चक्र

वक्र-चक्र
----------
लचकीली जिव्हा है,लचकीली ग्रिव्हा है,
         और कमर लचकीली, ने मन  ललचाया है
देह ऐसी प्रभु दीन ,कटि तेरी बहुत क्षीण,
         ऊपर उन्नत उरोज,से तन सजाया है
नीचे  नितम्ब भार,मतवाली चलत चाल,
         जाल वक्र रेखा का तन पर बिछाया है
मुस्काते अधर वक्र,देखे तो नज़र वक्र,
            तेरी वक्र रेखाओं ने तो कमाल ढाया है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'
     

     

Sunday, June 12, 2011

रावण के दस सर

रावण के दस सर
--------------------
रावण ,वीर था,और विद्वान था
उसे शास्त्र और शास्त्र  दोनों का ज्ञान था
और उसके दस सर थे
और ये ही मुसीबत की जड़ थे
 एक सर बीच में था,
और एक तरफ चार सर थे ,
और दूसरी तरफ पांच सर थे
इससे उसके दिमाग का बेलेंस बिगड़ गया था,
और वो सीताहरण जैसी हरकत कर गया था
काश उसके नौ या ग्यारह सर होते
और दिमाग का बेलेंस बराबर हो जाता
तो आज उसकी भी तारीफ होती
और वो पूजा जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

लंका दहन

लंका दहन
-------------
लंका का राजा रावण,
था महान वैज्ञानिक ,
और उसकी सोच थी,
बड़ी आधुनिक
उसके पास,आधुनिकतम,
हथियारों का भंडार था
उसका खुद का हेलिकोप्टर,पुष्पक,
बेमिसाल था
उसने जब लंका का टाउन प्लानिग किया
जल वितरण के लिए,नलों की व्यवस्था की,
लोग बोले, उसने वरुण को कैद कर लिया
 लंका के सारे घरों का डिजाइन एक जैसा करवाया
सभी भवनों के शिखरों को सोने से मंडवाया
इसीलिए लंका,सोने की लंका कहलाई
पर बाद में इसी ने मुसीबत ढाई
बाकि तो सब ठीक था
पर उसका सिविल मेंटेनन्स विभाग ,
थोडा वीक था
सीताजी की तलाश में,
हनुमानजी ने ,जब लंका का हर घर खंगाला था
तो कई छतों पर,
सोने की परत उखड़ी पड़ी थी,
नीचे कुछ काला काला था
हनुमानजी ने जब विवेचन किया
तो पाया की काली काली चपड़ी थी,
जिस पर था सोने के पतरे को मड दिया
और अंत में जब सीताजी ,
रावण के फार्महाउस 'अशोक वाटिका' में मिली
 और रावण द्वारा पकडे जाने पर,
हनुमानजी की पूँछ जली
कहते है हनुमानजी का दिमाग,
कंप्यूटर से भी तेज था,
उन्हें छतों पर,सोने की परत के नीचे,
काली काली चपड़ी की याद आई
तो उन्होंने छतों पर छलांग लगायी
और क्योंकि चपड़ी ,बहुत ज्वलनशील होती है,
उसमे आग लग गयी
और सोने की लंका जल गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, June 11, 2011

      चाँद
------------
झिलमिल सितारों की ओढ़े चुनरिया है,
गोल मोल चमकीला,मुखड़ा ,सुहाना है
औरत सा चंदा भी ,चमके है रातों में,
चाँद सा चेहरा ये,नारी की उपमा है
बदल से  घूंघट को,उठा,गिरा लेता है,
महीने में एक दिन की छुट्टी भी लेता है,
अंग्रेजी भाषा में,इसको 'शी' कहते है
तो फिर क्यों हिंदी में,पुर्लिंग चंदरमा है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

,

मेरी मीता

मेरी मीता
तुम बिन, हर दिन,
एसा बीता
रीता रीता
दिन आया फिर सांझ हो गयी
रजनी काजल आंझ  सो गयी
मैंने ,हर पल ,
भोर प्रतीता
मेरी मीता
शरद,ग्रीष्म ,कुछ जान न पाया
ऋतुओं को  पहचान न पाया
हर मौसम था ,
तीता,तीता
मेरी मीता
तुममे खोयी मेरी आँखे
उडी सपन की लेकर पांखें
मिला नहीं ,
मेरा मनचीता
मेरी मीता
प्रेमपंथ में भटक भटक कर
जब पहुंचा प्रीतम पनघट पर
पाया पनघट,
रीता,रीता
मेरी मीता

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Friday, June 10, 2011

मेह सुख -देह सुख

मेह सुख -देह सुख
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सूरज के,यौवन की,
प्रखर तेज किरणों का,
पाया जो आलिंगन,
तप्त हुई धरती
अवनि की तपस देख,
घुमड़ घुमड़ घिरे मेघ,
अम्बर पर छाये,
आश्वस्त हुई धरती
मेघों ने गरज गरज,
गया जब मिलन गीत,
साजन के सपनो में,
मस्त हुई धरती
बारिश की फुहारें,
भिगा गयी सब तन मन,
सौंधी सी गंधायी,
तृप्त हुई धरती

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

तुम खरबूजे,मै खरबूजा

तुम खरबूजे,मै खरबूजा
हम दोनों में फर्क बहुत क्यों,
एक है मीठा ,फीका दूजा
एक जात के हम दोनों,
फिर भी क्यों है इतना अंतर
लोग मुझे कहते है दानव,
तुम कहलाते,देव,पैगम्बर
लोग घृणा करते है मुझसे,
तुम्हारी होती है पूजा
तुम खरबूजे,मै खरबूजा
 रूप रंग में बड़ा फर्क है,
अलग अलग हम क्यों दिखते है
इतना रंग भेद क्यों होता,
हम सस्ते,महंगे बिकते है
सब खरबूजे, फिर भी,कोई,
'सिंह''खान' है,कोई 'डिसूज़ा'
तुम खरबूजे,मै खरबूजा
है विभिन्न रंगों के गूदे,
कहीं सफ़ेद,हरा,  या पीला
अलग,अलग है रंग रक्त का,
देखो प्रभु की कैसी लीला
खरबूजे को देख बदलता ,
है क्यों रंग ,हरेक खरबूजा
तुम खरबूजे,मै खरबूजा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हवा,धरती और बादल

हवा,धरती और बादल
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हवाओं मुस्कराओ आज तुम,  दिन फिर गए मेरे
कि देखो आज छाये है धुमड कर घन,गगन घेरे
गरज है ये नहीं घन की,मिलन का गीत आता है
बुझाने प्यास उर की आज मेरा मीत आता है
धरा ने जो कहा ये तो,यूँ मुस्का के ,हवा बोली
तेरे साजन,हमारे भी,तो कुछ लगते,  अरी भोली
करेंगे दिल मेरा ठंडा,तुम्हारी,प्यास के पहले
कलेजे से मेरे लग कर,लगेंगे फिर गले तेरे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

Thursday, June 9, 2011

मै कपास का फूल

मै कपास का फूल
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मै कपास का फूल विकस कर फूट रहा हूँ
मेरा उजला बदन रुई सा झांक रहा है
और बिनोले काले काले ,
छुपे हुए है मुझ में उलझे
मेरी रुई बन जायेगी धागा कत के
और जब कभी कोई ललना,
सुई छेद में ,जब पिरोएगी, कोई धागा,
तो फिर उसके होंठ लगूंगा,मै बढभागा
धागे बुन कर वस्त्र बनेगे
कितनो के ही अंग ढकेंगे
 और बन कर रूमाल ,काम में ,मै आऊंगा
पोंछ पसीना,
कोमल कोमल गालों को, मै सहलाउंगा
और बिनोले,
 बन कर के आहार पशु का,
दूध,दही बन कर बरसेंगे 
कितनो की ही भूख हरेंगे
सर्दी में,मै,ऊष्मा दूंगा,
बन कर रजाई,तन पर छाऊंगा
और गर्मी में,
उजली चादर बन कर ,छत पर बिछ जाऊँगा
मेरा जन्म हुआ है जगती की सेवा को,
हर एक रूप में,काम तुम्हारे मै आऊंगा
मै कपास का फूल,विकस कर फूट रहा हूँ

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

  

Wednesday, June 8, 2011

बदलाव की हवा

बदलाव की हवा
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आएगा बदलाव मौसम में सुनिश्चित,
      है सुनामी की प्रबल सम्भावनाये
किस तरह भूचाल आया रात में था ,
     हुई मानवता कलुषित ,क्या बताये
था बड़ा वीभत्स शक्ति का प्रदर्शन,
     मचाया कोहराम सत्ताधारियो ने
बाल बच्चे,औरतें,बूढ़े ,सभी थे,
     जब खदेड़ा था पोलिस की लाठियों ने
बड़ी ही वीभत्स थी यह राजनीती,
      छोड़ अश्रु गेस था सबको रुलाया
आँख में इंसानियत के अश्रु आये,
     भगाया,घायल किया ,मारा,सताया
विदेशों में छुपा धन काला पड़ा है
      मांग थी,जाए उसे वापस बुलाया
मगर काली निधि के संरक्षकों ने,
       काल रात्रि में महा तांडव मचाया
दमन का ये खेल है खुल कर बताता,
        नहीं ,शायद साफ है दामन तुम्हारा
इस तरह जन भावनाओं को दबा कर,
       अंत निश्चित ,नज़र आता है तुम्हारा
फट रहा आक्रोश का ज्वालामुखी है,
       अब नहीं दब पायेगा,तुमसे दबाये
आएगा बदलाव मौसम में सुनिश्चित,
       है सुनामी की प्रबल सम्भावनाये

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Tuesday, June 7, 2011

मन यायावर

मन यायावर
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कितना ही समझा लो
फिर भी,
रहे भटकता इधर या उधर
    मन यायावर
झर झर करते, झरनों के संग हँसता गाता
या यादों के सागर  में  हिचकोले    खाता
कभी मचलती सरिता सा कल कल बहता है
आशाओं के    पंख लगा   उड़ता   रहता है
कभी विचरता कुन्ज गली में वृन्दावन की
कभी भीजता रिमझिम बारिश में सावन की
या तितली सा उपवन में करता अठखेली
भ्रमरों सा गुंजन करता लख कली  नवेली
आसमान में उड़ता रहता है पतंग सा
या फिर छाया रहता है मन में उमंग सा
कभी जाल में चिंताओं के उलझा रहता
या उन्मुक्त पवन के झोंको जैसा बहता
नहीं रात को चैन ,भटकता है सपनो में
कभी ढूंढता रहता ,अपनापन,अपनों में
है द्रुतगामी,तेज गति विद्युत् से ज्यादा
पल में जाने कहाँ कहाँ की सैर कराता
जहाँ न पहुंचे रवि,कवि सा पहुंचा करता
पुष्पों की मादक सुरभि सा महका करता
कभी चाँद को छू लेने के लिए मचलता
कभी दीप सा जल,जग में उजियारा करता
कभी भटकता रहता ,बादल सा आवारा
गाँव गाँव और गली गली में बन बंजारा
पथरीली डगरों पर,नंगे पाँव विचरता
तपती धूप,तरु की छायां ढूँढा  करता
  काम काम
,विश्राम नहीं लेता है पल भर
                 मन यायावर

मदन मोहन बहेती 'घोटू'


 

मज़ा ही क्या आया?

मज़ा ही क्या आया?
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पूरी,कचोरी,बालूशाही
गरम जलेबी जम कर खायी
दहीबड़े,आलू की टिक्की
और रबड़ी की ठंडी कुल्फी
खूब दबा कर ये सब खाकर,
अगर जोर से ना ली डकार
   तो फिर खाने का मज़ा ही क्या आया?
दिन भर काम किया थक सोये
सपनो की दुनिया में खोये
इधर उधर करवट भी बदली
और नींद भी आई तगड़ी
लेकिन ऐसे सोते सोते,
नहीं भरे जम कर खर्राटे
   तो फिर सोने का मज़ा ही क्या आया?
पिक्चर हो कोमेडी जेसी
या फिर हरकत ऐसी वैसी
कोई हंसाये जोक सुना के
हंसने में ना लगे ठहाके
पेट पकड़ कर हँसते,हँसते,
आँखों में पानी ना आया
     तो फिर हंसने का मज़ा ही क्या आया?
जिसका बरसों इंतजार था
मिलने को दिल बेक़रार था
और मिली जब शोख हसीना
हंस कर मुझे सिखाया जीना
उसके नाज़ औ नखरे सहते
प्यार में पसीना न बहाया
     तो फिर प्यार का मज़ा ही क्या आया?


मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Saturday, June 4, 2011

बाबा का अनशन

बाबा का अनशन
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बाबा का अनशन है,और साथ जन जन  है,
         हुई सन्न है सत्ता,बस ये ही मौका है
रामदेव है जंग में,बालकृष्ण है संग में,
          त्रेता और द्वापर का, संगम अनोखा है
हठ पर है है हठयोगी,पुलिस कहे हट योगी,
          नेता कहे पट योगी,बाबा कहे धोखा है
कंस सा काला धन,भ्रष्ट सभी है रावण,
           इन्हें अंत,करे संत,ये प्रयास चोखा है

      
मदन मोहन बहेती 'घोटू'

Friday, June 3, 2011

बाबा! मान जाओ ना,

बाबा! मान जाओ ना,
भ्रष्टाचार  के विरुद्ध अनशन कर ,
क्यों कर  रहे हमें तंग हैं,
कैसे छोड़ दें ये आचार,
अरे ये तो राजनीती का अभिन्न अंग है
आपने कहा,धीरे धीरे साँस लो और छोडो,
हमने किया
आपने कहा एक तरफ से साँस लो,
और दूसरी तरफ से छोडो,
हमने किया
और अब आप ऐसी चीज छोड़ने को कह  रहे है,
की जिससे हमारी साँस ही रुक  जाएगी
हज़ार,पांच सो के नोट तो,
 हमारे बिस्तर के नीचे बिछे रहते हैं,
ये ही बंद हो गए ,
तो हमें नींद कैसे आएगी ?
आप विदेशों से कालाधन ,
मंगाने के लिए,नंगे बदन,
सत्याग्रह करेंगे,योग सिखायेंगे
अगर हम आपकी ये बात मान लें
तो हममें से कितने ही नंगे हो जायेंगे
बाबाजी, क्यों हमें बाबा बनाने पर तुले हो



,कृपा कर के ,हमें बक्श दो,छोड़ दो
और अनशन पर जाने की जिद छोड़ दो

मदन मोहन बहती 'घोटू'