देखना है बदल तुम कितना गयी हो
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कभी बचपन में पढ़े हम साथ में थे
खूब खेले हाथ लेकर हाथ में थे
तुमसे मिलने की बड़ी ही तमन्ना है,
देखना है बदल तुम कितना गयी हो ?
क्या तुम्हारे गाल है अब भी गुलाबी,
क्या तुम्हारे बाल अब भी रेशमी है
क्या चमक है आँख में अब भी तुम्हारे,
शरारत में आई क्या कोई कमी है
क्या बची है वही चंचलता तुम्हारी
और हँसना,खिलखिला ताली बजाना
जीत जाने पर ख़ुशी से नाच उठाना,
हार जाने पर मचल कर रूठ जाना
खेल में जो कहीं गिर जाती कभी तुम,
संभल कहती मुझे कुछ भी ना हुआ है
जिंदगी की दोड़ में संभली गिरी हो
वही जज्बा क्या अभी तक बच रहा है
क्या अभी भी बचा तुममे वही बचपन,
या कि फिर परिपक्व सी तुम हो गयी हो
देखना है बदल तुम कितना गयी हो ?
सुना है कि बेवफा इस जमाने ने,
बुरे ,अच्छे सब तरह के दिन दिखाए
जिंदगी कि डगर पर तुम डगमगाई
थे तुम्हारे कदम थोड़े लडखडाये
है कई तूफ़ान आये जिन्दगी में,
दिक्कतों और मुश्किलों से तुम लड़ी हो
कई झंझावत पड़े है झेलने पर,
आज भी तुम सुदृढ़ हो कर के खड़ी हो
इस तरह तप कर समय कि आग में फिर,
किस तरह व्यक्तित्व निखरा है तुम्हारा
एक भोली और नन्ही सी कली ने,
वक्त के संग किस तरह खुद को सवांरा
है पुराना सा वही आलम तुम्हारा,
या कि सांचे में नए तुम ढल गयी हो
देखना है बदल तुम कितना गयी हो?
मदन मोहन बहेती 'घोटू'
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कभी बचपन में पढ़े हम साथ में थे
खूब खेले हाथ लेकर हाथ में थे
तुमसे मिलने की बड़ी ही तमन्ना है,
देखना है बदल तुम कितना गयी हो ?
क्या तुम्हारे गाल है अब भी गुलाबी,
क्या तुम्हारे बाल अब भी रेशमी है
क्या चमक है आँख में अब भी तुम्हारे,
शरारत में आई क्या कोई कमी है
क्या बची है वही चंचलता तुम्हारी
और हँसना,खिलखिला ताली बजाना
जीत जाने पर ख़ुशी से नाच उठाना,
हार जाने पर मचल कर रूठ जाना
खेल में जो कहीं गिर जाती कभी तुम,
संभल कहती मुझे कुछ भी ना हुआ है
जिंदगी की दोड़ में संभली गिरी हो
वही जज्बा क्या अभी तक बच रहा है
क्या अभी भी बचा तुममे वही बचपन,
या कि फिर परिपक्व सी तुम हो गयी हो
देखना है बदल तुम कितना गयी हो ?
सुना है कि बेवफा इस जमाने ने,
बुरे ,अच्छे सब तरह के दिन दिखाए
जिंदगी कि डगर पर तुम डगमगाई
थे तुम्हारे कदम थोड़े लडखडाये
है कई तूफ़ान आये जिन्दगी में,
दिक्कतों और मुश्किलों से तुम लड़ी हो
कई झंझावत पड़े है झेलने पर,
आज भी तुम सुदृढ़ हो कर के खड़ी हो
इस तरह तप कर समय कि आग में फिर,
किस तरह व्यक्तित्व निखरा है तुम्हारा
एक भोली और नन्ही सी कली ने,
वक्त के संग किस तरह खुद को सवांरा
है पुराना सा वही आलम तुम्हारा,
या कि सांचे में नए तुम ढल गयी हो
देखना है बदल तुम कितना गयी हो?
मदन मोहन बहेती 'घोटू'