Monday, August 31, 2015

जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ

        जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ
मैं चापलूस हूँ
मेरा जिससे मतलब होता है ,
या जिससे मैं डरता हूँ
मैं उनकी चापलूसी करता हूँ
उसे खूब मख्खन लगाता हूँ
चने के झाड़ पर चढ़ाता हूँ
हर इंसान में ,तारीफ़ करवाने की ,
एक भूख होती है ,मैं उसे शांत करता हूँ
अपना मतलब निकालता हूँ,
और तरक्की की सीढ़ियां चढ़ता हूँ
आप क्या सोचते है ,
ये जो होते  पोस्टिंग और प्रमोशन है 
क्या सब काबलियत के कारण है
इसमें कुछ का आधार तो आरक्षण है
और बाकी की वजह ,
चापलूसी और मख्खन है
भगवान ने आदमी को जो दी ये जुबान है
ये सोने की खदान है
जब ये सही दिशा में चलती  है
सोना उगलती है
चापलूसी ,इस जुबान का सही जगह,
सही तरीके से इस्तेमाल है
 ये दिखलाती कमाल है
आपके दोनों हाथों में लड्डू दे  ,
 पॉकेट में भर देती माल है
चापलूसी करने में आपका क्या जाता है
किसी की तारीफ़ में कुछ बोल दो,
जो उसे सुहाता है
न हींग लगती न फिटकड़ी ,
फिर भी रंग चोखा आता है
इसलिये जम कर मख्खन लगाता हूँ
और इसमें बिलकुल नहीं कंजूस हूँ
जी हाँ,मैं चापलूस हूँ
ये चापलूसी बड़े कामकी चीज होती है
जीवन में खुशियों के मोती पिरोती है
किसी लड़की को पटाना है
रूठी  बीबी को मनाना है
तो चापलूसी ही काम आएगी
अपनी बीबी की तारीफ़ कर दीजिये ,
वो आप पर निछावर हो जाएगी
जब अपनी मनोकामना की पूर्ती के लिए,
किसी की तारीफ़ का पुल बांधा जाता है
तो उसका दिल जीतने का प्रयास ,
चापलूसी कहलाता है
हम मंदिर जा ,भगवान की स्तुति करते है ,
शीश नमाते है ,करते यशोगान है
ये अपने मनोरथ की पूर्ती के लिए ,
भगवान की चापलूसी करने के समान है
हर इंसान ,प्रभु को प्रसन्न करने के लिए ,
भगवान की प्रशस्ती करता है
हर पति,वक़्त बेवक़्त,अपने मतलब के लिए ,
अपनी बीबी की चापलूसी करता है
जिंदगी की हक़ीक़त यही है,
जो मन ही मन हम करते महसूस है
कि हम सब के सब ही चापलूस है
कोई हमें चमचा कहे तो कहे ,
ठीक है,हम चमचे है
पर इसी की बदौलत कर रहे मजे है
कोई हमें मख्खनबाज कहे तो कहे ,
हाँ,हम मख्खनबाज है
हमारा यही तो अंदाज है 
 जिसकी बदौलत ,आज कर रहे राज है 
अपना काम बनाने के लिए सिर्फ ,
अपनी जुबान का इस्तेमाल करता हूँ,
औरों की तरह ,नहीं देता घूस हूँ
जी हाँ ,मैं चापलूस हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, August 30, 2015

हाँ,मैं जोरू का गुलाम हूँ

       हाँ,मैं जोरू का गुलाम हूँ

मैं बड़े गर्व से कहता हूँ
 कि मैं जोरू का गुलाम हूँ
क्योंकि  मैं एक आदमी आम  हूँ
और हर आम आदमी ,घर चलाने के लिए ,
दिनरात खटता है,काम करता है
दफ्तर में बॉस से ,
और घर में बीबी से डरता है
और ये डरना जरूरी है
या यूं कह दो ,मजबूरी है
क्योंकि घर में अगर शांति रखनी है
प्यार की रसीली जलेबियाँ चखनी है
मनपसंद खाने से पेट भरना है
तो आवश्यक बीबी से डरना है
इससे घर में शांति व्याप्त होती है
और सारी टेंशन समाप्त होती है
पत्नी का प्यार और सहानुभूति मिलती है
एक सुखद अनुभूति मिलती है
बीबी से डरना ,समझदारी की निशानी है
क्योंकि जीवन में यूं ही सेंक्डों परेशानी है
बीबी से पंगा लेकर ,
एक परेशानी और मोल लो
याने कि घर में ही ,
कुरुक्षेत्र का एक मोर्चा खोल लो
भैया ,इससे तो अच्छा है ,
बीबीजी सी थोड़ा सा डर लें   
और जीवन को खुशियों से भर लें
कई अफसर जो दफ्तर में शेर नजर आते है
बीबी के आगे ,भीगी बिल्ली बन जाते है
कोई कितना ही फांके की वो घर का बॉस है
पर वो असल में बीबी का दास है
घर की सुख और शांति ,
बीबी के आगे पीछे डोलती है
हर घर में बीबी की तूती बोलती है
भैया ,हर घर में मिटटी के चूल्हे है ,
अपने अपने हमाम में सब नंगे है
अक्लमंद लोग ,बीबी से नहीं लेते पंगे है
इसी में समझदारी है,यही डिप्लोमेसी है
वरना हो जाती ,ऐसी की तैसी है
जो लोग पत्नी को प्रताड़ते है
अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारते है
इसलिए मैं ये एलान करता खुले आम हूँ
मैं  अपनी बीबी के इशारों पर ,
नाचता सुबह शाम हूँ
मैं गर्व से कहता हूँ,
मैं जोरू का गुलाम हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नारी

                   नारी

कभी मोहिनी रूप धरे मोहित करती है ,
        कभी रिझाया करती है वो ,बन कर रम्भा
कभी परोसा करती है पकवान सुहाने ,
         अन्नपूर्णा देवी सी बन  कर  जगदम्बा
बन कर कभी बयार बसंती ,मन हर्षाती ,
        कभी आग बरसाती बन कर लू का झोंका
कभी बरसती जैसे रिमझिम रिमझिम बारिश ,
        कभी उग्र हो, रूप बनाती  ,तूफानों  का    
ममतामयी कभी माँ बन कर स्नेह लुटाती,
         कभी बहन बन ,बाँधा करती ,रक्षाबंधन
कभी बहू बन,करती सास ससुर की सेवा ,
      जिस घर जाती ,वो आँगन,बन जाता उपवन
मात पिता का ख्याल रखे बेटों से ज्यादा ,
           करती सेवा ,बेटी लगती  सबको प्यारी
नर क्या,जिसे देवता तक भी समझ न पाते,
           प्रभु की इतनी अद्भुत रचना होती नारी   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

किसी से तुम आँखे मिला कर तो देखो

      किसी से तुम आँखे मिला कर तो देखो

है जो रंग पक्का ,तो पक्का रहेगा ,
      भले लाख साबुन लगा कर तो  देखो
कभी ना कभी वो तुम्हे डस ही लेगा ,
       किसी सांप को दूध,पिला कर तो देखो
दुआओं से झोली भरेगी तुम्हारी ,
        कभी काम कोई के आकर तो देखो
प्यासे को पानी पिला कर तो देखो,
        भूखे को खाना खिला कर तो देखो
नहीं है नामुमकिन , कुछ भी जहां में,
       जरा हौंसला तुम  ,बना कर तो देखो
कभी बंधनो में बड़ा सुख है मिलता ,
         बंधन में बाँहों के ,आकर तो देखो  
मिलन दूर से ही ,हुआ करता इनका,
       किसी से तुम आँखें मिला कर तो देखो  
महोब्बत बड़े काम की चीज होती ,
        किसी से तुम दिल को लगा कर तो देखो
पड़ता है पछताना ,खाओ न खाओ ,
           ये शादी के लड्डू ,तुम खाकर  तो देखो
यूं ही नाचना वो सिखा देगी तुमको,
            किसी को तुम बीबी ,बना कर तो देखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फितरत

               फितरत

बदलना होता है मुश्किल,किसी इंसान की फितरत,
             करो तुम लाख कोशिश पर ,नहीं बदलाव आएगा
अगर वो स्वर्ग भी जाए ,मिले जो अप्सराएं तो,
              बड़ा शालीन ,शरमा कर,बहन जी ,कह बुलाएगा
और जो चलता पुर्जा है,हमेशा मस्त मौला है,
               हरेक हालात में वो,मौज मस्ती  ढूंढ  लाएगा
नरक में भी उबलता तेल ,देखेगा कढ़ाहों में,
               कहीं से मांग कर बेसन ,पकोड़े तल के खायेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

गहरी चोट

                गहरी चोट

कुछ ऐसे तीर भी होते है ,जो बिना धनुष के चल जाते ,
            करते है गहरी चोट मगर ,ना खून खराबा  करते है
  जब तीर नयन के चलते है,तो सीधे दिल पर लगते है,
             दिल की घंटी  बजती है पर,ना शोर शराबा करते है
सच तो ये है कि हमको भी ,वो चोट सुहानी लगती है,
             हालांकि घायल होने का ,हम यूं ही दिखावा  करते है
वो ऐसी आग लगा देते ,जो नहीं बुझाए बुझती है,
             दिन दूनी ,रात चौगुनी वो,चाहत में इजाफा   करते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                
           

निभाती साथ बीबी है

              निभाती साथ बीबी है

समय का चक्र ऐसा है,बदलता रहता है अक्सर ,
                कभी जो बदनसीबी तो कभी फिर खुशनसीबी है
ये लक्ष्मी चंचला होती ,नहीं टिकती कहीं पर है,
                छोड़ती साथ वो जब है ,तो छा जाती  गरीबी  है
डूबती नाव को सब छोड़ कर के भाग जाते है,
                 निभाते साथ ना जिनको ,समझते हम करीबी है
हरेक हालात में और उम्र के हर मोड़ पर हरदम
                      तुम्हारे संग रहती है ,निभाती साथ बीबी है
                
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मशवरा

                  मशवरा 
सबके फोटो खींचों और खुद रहो  नदारद ,
           फोटोग्राफर बनने में नुक्सान   यही है 
फॅमिली निग्लेक्ट करो और समय खपाओ ,
         सोशल सर्विस करना कुछ आसान नहीं है
खुद कुछ भी ना करना,कोई और करे तो,
          मीनमेख उसमे निकालना बड़ा सरल है ,
हरेक बात में लोग मशवरा दे देते है ,
           रत्ती भर भी होता जिसका ज्ञान नहीं है
जब सत्ता में थे तो उड़ते राजहंस से ,
         पंख फड़फड़ाते हैं अब बने विपक्षी पक्षी,
कांव कांव कर काम नहीं होने देतें है,
          क्या विपक्ष का एकमात्र बस काम यही है
जब थे अच्छे दिन तो लूटी वाही वाही ,
              अब कोई ना पूछे ऐसी हुई तबाही  ,
अपने पैरों पर जो स्वयं कुल्हाड़ी मारे,
              ऐसे लोगों का होता  अंजाम  यही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Wednesday, August 26, 2015

नर,नारी और बारह राशि

       नर,नारी और बारह राशि

नारी,
स्वयं 'कन्या'राशि होती है ,
'मीन' की तरह सुन्दर और चंचल नयन
 तिरछी भौंहो के 'धनु'से ,
नज़रों के तीर छोड़ती हुई  हरदम 
द्वय 'कुम्भ'से,
शोभित किये हुए अपना गात
'वृश्चिक'की तरह ,जब डंक मारती है ,
तो मुश्किल हो जाते है हालात
नर,
'वृषभ' सा  मुश्तंड ,
'सिंह' सा दहाड़ता हुआ
और 'मेष'की तरह ,
अपने सींग मारता हुआ
कभी 'मकर'की तरह ,
अपने जबड़ों में जकड़ता है
तो कभी 'कर्क'की तरह ,
पकड़ता है
नर और नारी,
'तुला'की तरह जब,
दोनों पलड़ों का होता है संतुलन 
तब ही  दोनों का 'मिथुन'की तरह
होता है मिलन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

विरह पाती -तुम बिन

             विरह पाती -तुम बिन

डबलबेड की जिस साइड पर ,तुम अक्सर सोया करती थी ,
जब से मइके गयी ,पड़ा है, तब से ही वो कोना  सूना
गलती से करवट लेकर के ,उधर लुढ़क जो मैं जाता हूँ,
मेरी नींद उचट जाती है ,लगता जीवन बड़ा अलूना
उस बिस्तर में,उस तकिये में ,बसी हुई तुम्हारी खुशबू ,
अब भी मुझे बुलाती लगती ,यह कह कर के ,इधर न आना
तुम बिन  मन बिलकुल ना लगता ,कैसे अपना वक़्त गुजारूं,
ना चूड़ी की खनक और ना पायल का  संगीत  सुहाना
इतनी ज्यादा आदत मुझको ,पडी तुम्हारी संगत की थी
कि तुम्हारे खर्राटे भी ,लोरी जैसे स्वर लगते थे
मेरी नींद उचट जाती तो ,तुमको हिला जगाता था मैं ,
तुम मुझ पर बिगड़ा करती थी ,फिर दोनों संग संग जगते थे
तुम चाहे मम्मी पापा संग ,दिन भर मौज उड़ाती होगी ,
किन्तु रात को कभी कभी तो ,होगी मेरी याद सताती
उठते विरह वेदना के स्वर ,करते मेरा  जीना दूभर ,
बहुत दिन हुए ,अब आ जाओ, मुझे रात भर नींद न आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, August 23, 2015

औरतें

            औरतें
              १
औरतें,
हवा सी होती है ,
कभी चिलचिलाती सर्द
कभी लू की तरह गर्म
कभी बसंती बयार बन कर
प्यार से सहलाती है
कभी नाराज होती है
तो तूफ़ान बन कर ,
तहस नहस मचाती  है 
             २
औरतें,
बदली सी होती है
पुरुष की समंदर सी
 शक्शियत को ,
अपने प्यार की गर्मी से ,
आसमान में उडा कर,
अपने में ,
समाहित लेती है कर
फिर मन मर्जी के मुताबिक़ ,
डोलती है इधर,उधर
कभी बिजली सी कड़कती है,
कभी गरजाती है
कभी मंद मंद फुहार सी बरस ,
मन को हर्षाती है
                ३
औरतें ,
चन्दन सी होती है
खुद घिस घिस जाती है
और आदमी के मस्तक पर चढ़ ,
शीतलता देती है,
जीवन महकाती है
                ४
औरतें,
मेंहदी सी होती है,
हरी भरी ,लहलहाती
जब आदमी के जीवन में आती,
तो कुट कर,पिस कर,
अपना व्यक्तित्व खोकर ,
हमारे हाथों को रचाती है
जीवन में रंगीनियाँ लाती है
              ५
औरतें,
नदिया सी होती है ,
लहराती,बल खाती
अक्सर,पीहर और ससुराल के,
दो किनारों के बीच ,
अपनी सीमा में रह कर बहती है
और कल,कल करती हुई,
अपने प्यार के वादों को,
कल पर टालती रहती है
                 ६
औरतें,
प्रेशर कुकर की तरह होती है ,
जिसमे बंद होकर जब आदमी,
 गृहस्थी के चूल्हे पर चढ़ जाता है
तो उसके दबाब से ,
सख्त से सख्त आदमी का मिजाज़ भी ,
चावल दाल की तरह ,
नरम पड़ जाता है
                   ७
औरतें,
बिजली सी होती है
घर को  चमकाती है
 घर की साफसफाई भी करती है,
और खाना भी पकाती है
मौसम और मूड के अनुसार ,
घर को ठंडा या गर्म भी कर देती है
और गलती से छू लो ,
तो झटका भी देती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                          

वर्षा का पानी

           वर्षा का पानी

बरस बरस वर्षा का पानी ,सबके मन को हर्षाता है
पर जब शैतानी पर आता ,तो सड़कों पर भर जाता है   
नन्हे नन्हे छोटे बच्चे ,जब उसमे छप छप करते है,
भरते निश्छल सी किलकारी,तो उसको प्यारे लगते है
वो जब खुश हो भीगा करते ,इसका मन भी मुस्काता है
बरस बरस वर्षा का पानी,सबके मन को  हर्षाता  है
कई सुंदरी और सुमुखियां,संभल संभल कर आती,जाती
अपने वस्त्रों को ऊँचा कर,निज पिंडली दर्शन करवाती
नारी तन स्पर्श उसे जब मिलता ,पागल  हो जाता है
बरस बरस वर्षा का पानी ,सबके मन को हर्षाता है
कुछ मंहगे ,गर्वीले वाहन,तेज गति से है जब आते
कोशिश करते ,करें पार हम ,आसपास छींटे उड़वाते
बेचारे ठप होते जब ये ,साइलेंसर में घुस जाता  है
बरस बरस वर्षा का पानी सबके मन को हर्षाता है
बरसा करता जब ऊपर से ,मानव छतरी ले बचता है
पर सड़कों पर बच ना पाता ,वो नंगे पैरों चलता है
तरह तरह के देख नज़ारे ,उसको बड़ा मज़ा आता है
बरस बरस वर्षा का पानी ,सबके मन को हर्षाता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चार दिन

                     चार दिन
 
चार दिनों के लिये चांदनी ,फिर अंधियारा ,
               यही सिलसिला पूरे जीवन भर चलता है
उमर चार दिन लाये ,दो दिन करी आरज़ू ,
                बाकी दो दिन इन्तजार की व्याकुलता  है
चार दिनों के लिए ,अचानक पति देवता,
                जाय अकेले ,कहीं घूमने ,ना खलता है
चार दिनों तक छुट्टी करले,अगर न आये ,
                बाई कामवाली तो काम नहीं चलता है

घोटू 

Tuesday, August 18, 2015

डिजिटल ज़माना

         डिजिटल ज़माना
ये जमाना अब डिजिटल हो गया है
वो भी तेरह मेगापिक्सल हो गया है
पहले होता बॉक्स वाला कैमरा था,
         ब्लेक एंड व्हाइट सदा तस्वीर खिंचती
हुई शादी ,तब हुआ रंगीन जीवन ,
         कलरफुल थी तब हमारी छवि दिखती
कैमरे की रील के छत्तीस फोटो,
         जब तलक खिंचते नहीं थे,धुल न पाते
और फिर दो तीन दिन में प्रिंट मिलते ,
          तब कहीं हम फोटुओं को देख पाते
कौन अच्छा,कौन धुंधला ,छाँट कर के,
            एल्बम में उन्हें जाता था सजाया
कोई आता,खोल कर एल्बम ,उनको,
            था बड़े उत्साह से जाता  दिखाया
अब तो मोबाइल से फोटो खींच,देखो,
            नहीं अच्छा आये तो डिलीट कर दो
अच्छा हो तो फेसबुक में पोस्ट कर दो,
    या कि फिर 'व्हाट्सऐप'में तुम फीड करदो   
जब भी जी चाहे स्वयं की सेल्फ़ी लो ,
    मेमोरी में कैद हर पल हो गया  है
    ये जमाना अब डिजिटल हो गया है
याद अब भी आता है हमको जमाना ,
           होता था इवेंट  जब फोटो खिचाना
खूब सजधज कर के स्टुडिओ जाना,
         फोटोग्राफर ,चीज बोले,मुस्कराना
सबसे पहला हमारा फोटो खिंचा था,
         जब हमारा जन्मदिन पहला मनाया
फॉर्म हाई स्कूल के एग्जाम का जब ,
          भरा था, तब दूसरा फोटो   खिंचाया   
तीसरा फोटो हमारा तब खिंचा था,
          बात शादी की हमारी  जब चली थी   
बड़े सज धज ,चौथा फोटो खिंचाया जब,
        बीबी की फरमाइशी  चिट्ठी मिली थी
और जब से हुई शादी ,उसी दिन से ,
        रोज ही खिंच रही है फोटो  हमारी
गनीमत है फोन अब स्मार्ट आया ,
       हो गयी है जिंदगी ,खुशनुमा ,प्यारी
बात करलो,देखो दुनिया के नज़ारे ,
दोस्त अब तो अपना गूगल  हो गया है
जमाना तो अब डिजिटल हो गया है
वो भी तरह मेगापिक्सल हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Sunday, August 16, 2015

मैं अब भी हूँ तुमसे डरता

  मैं अब भी हूँ तुमसे डरता

आया बुढ़ापा ,बिगड़ी सेहत
मुझसे अब ना होती मेहनत
 मैं ज्यादा भी ना चल पाता
और जल्दी ही हूँ थक जाता
जब से काटे अग्नि चक्कर
स्वाद प्यार का तेरे चख कर 
बना हुआ तब से घनचक्कर
आगे पीछे   काटूं   चक्कर
इसी तरह बस जीवन भर मैं
नाचा खूब इशारों पर मैं
मुझमे अब सामर्थ्य नहीं
लेकिन इसका अर्थ नहीं है
मेरा प्यार हो गया कुछ कम
हाजिर  सेवा में हूँ  हरदम
इस चक्कर से नहीं उबरता 
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
अब भी हूँ मैं तुम पर मोहित
अब भी तुम पर पूर्ण समर्पित
वैसा ही पगला दीवाना
आशिक़ हूँ मैं वही पुराना
 भले हो गयी कम तत्परता 
तुम बिन मेरा काम न चलता
पका तुम्हारे हाथों  खाना
अब भी लगता मुझे सुहाना
स्वाद तुम्हारे हाथों में है
मज़ा तुम्हारी  बातों में है
तुम्हारी मुस्कान वही है
रूप ढला ,पर शान वही है
अब भी तुम उतनी ही प्यारी
पूजा  करता  हूँ    तुम्हारी
नित्य वंदना भी हूँ करता 
मैं अब भी हूँ तुम से डरता
साथ जवानी ने है छोड़ा
अब मैं बदल गया हूँ थोड़ा
सर पर चाँद निकल आयी है
काया भी कुछ झुर्रायी है
और तुम भी तो बदल गयी हो
पहले जैसी रही नहीं हो
हिरणी जैसी चाल तुम्हारी
आज हुई हथिनी सी प्यारी
ह्रष्ट पुष्ट और मांसल है तन
और ढलान पर आया यौवन
रौनक ,सज्जा साज नहीं है
 जीने का अंदाज  वही  है
वो लावण्य रहा ना तन पर
लेकिन फिर भी तुम्हे देख कर 
ठंडी ठंडी  आहें भरता
मैं अब भी हूँ तुमसे डरता
भले पड गयी तुम कुछ ढीली
पर उतनी ही  हो रौबीली
चलती हो तुम वही अकड़ कर
काम कराती सभी झगड़ कर
मैं झुकता  तुम्हारे आगे
पूरी करता सारी  मांगें 
 कभी कभी ज्यादा तंग होकर
जब गुस्से से जाता हूँ भर
उभरा करते विद्रोही स्वर
तो करीब तुम मेरे आकर
अपने पास सटा  लेती हो
करके प्यार,पटा  लेती हो
झट से पिघल पिघल मैं जाता 
तुम्हारे  रंग में   रंग जाता 
 चाल  पुरानी पर हूँ चलता
मै अब भी हूँ तुमसे डरता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सेल्फ़ी

             सेल्फ़ी

कोई दूसरा जब लेता है ,फोटो खिंच जाना कहते है
खुद अपनी फोटो जब लेते,उसे सेल्फ़ी हम कहते है
अपना काम कोई जब करता,नहीं किसी पर हो अवलम्बित
मदद दूसरों की लेने की ,नहीं जरुरत पड़ती किंचित
सेल्फ़ी जैसे मन मर्जी से ,खुद ही पकाओ ,खुद ही खाओ
औरों से फोटो खिंचवाना ,  जैसे होटल में जा खाओ
अपने आसपास वाले भी ,सब निग्लेक्ट हुआ करते है
खुद कैसे हो बस ये दिखता,आप आत्म दर्शन  करते है
फेमेली फोटो होती था ,जब सब रहते संग में मिलजुल
अब एकल परिवार सिमट कर,हुआ सेल्फ़ी जैसा बिलकुल
सेल्फ़ी में वो ही आ पाता ,जितनी दूर हाथ है जाते
सेल्फ़ी बड़ी सेल्फिश होती ,आस पास वाले कट जाते
होता है संकीर्ण दायरा ,सेल्फ़ी के कुछ लिमिटेशन है
आत्मकेंद्रित हम होते है,फिर भी सेल्फ़ी का फैशन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Friday, August 14, 2015

हम दोनों

         हम दोनों
अहंकार से एक भरा ,एक है चारा चोर
पहला है छप्पन छुरी ,और दूजा मुंहजोर
एक भालू उल्टा चढ़े,एक गुर्राता  बाघ,
एक पीना चाहे शहद,और एक सत्ताखोर
दोनों ही घबरा रहे,आया बब्बर शेर ,
इसीलिए है हो गया ,दोनों में गठजोड़
बिल्ली मौसी खा गयी,बुरी तरह से मात ,
वो भी है संग आ गयी,सभी हेकड़ी छोड़ 
एक खुद को चदन कहे,और दूजे को सांप ,
दोनों ही विष उगलते ,मचा रहे है शोर
एक दूजे को गालियां,देते थे जो रोज,
शुरू हो गया दोस्ती ,का अब उनमे दौर
दोनों ही है पुराने ,घुटे हुए और घाघ ,
राजनीति डी.एन.ऐ.,दोनों का कमजोर
उत्तर गए मैदान में,सबने  कसी लंगोट,
सब के सब है कह रहे'ये दिल मांगे मोर'

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कैसे कह दें हम है स्वतंत्र ?

       कैसे कह दें हम है स्वतंत्र  ?

बचपन में मात पिता बंधन,
               मस्ती करने पर मार पड़े
फिर स्कूल के अनुशासन में,
               हम बेंचों पर भी हुए खड़े
जब बढे हुए तो पत्नी संग ,
               बंध  गया हमारा गठबंधन
 बंध कर बाहों के बंधन में ,
           करदिया समर्पित तन और मन  
उनके बस एक इशारे पर ,
           नाचा करते थे सुबह शाम
वो जो भी कहती,हम करते ,
          इस कदर हो गए गुलाम    
फिर फंसे गृहस्थी चक्कर में ,
          और काम काज में हुए व्यस्त
कोल्हू के बैल बने,घूमे,
           मेहनत कर कर के हुए पस्त
फिर बच्चों का लालन पालन ,
           उनकी पढ़ाई और होम वर्क
बंध  गए इस तरह बंधन में,
            बेडा ही अपना हुआ गर्क
जब हुए वृद्ध तो है हम पर 
            लग गए सैंकड़ो  प्रतिबन्ध
डॉक्टर बोला है डाइबिटीज ,
             खाना मिठाई अब हुई बंद
बंद हुआ तला खानापीना ,
              हम ह्रदय रोग से ग्रस्त हुए
उबली सब्जी और मूंग दाल ,
             हमरोज रोज खा त्रस्त हुए
आँखे धुंधलाई ,सुंदरता का ,
                    कर सकते दीदार नहीं
चलते तो सांस फूलती है,
              कुछ करने तन तैयार नहीं
तकलीफ हो गयी घुटनो में,
              और तन के बिगड़े सभी तंत्र
बचपन से लेकर मरने तक,
               बतलाओ हम कब है स्वतंत्र
थोड़े बंधन थे सामाजिक,
                तो कुछ बंधन  सांसारिक थे
कुछ बंधन बंधे भावना के,
                कुछ बंधन पारिवारिक थे
हरदम ही रहा कोई बंधन ,
                हम अपनी मर्जी चले नहीं
और तुम कहते ,हम हैं स्वतंत्र ,
                ये बात उतरती   गले नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'      

Tuesday, August 11, 2015

पापी पेट के लिए

        पापी पेट के लिए
वो अच्छा खासा इंजीनियर ,
अच्छी नौकरी,ढेर सी कमाई
उमर भी तीस के करीब होने आयी
घर के बूढ़े,बड़े ,माँ बाप और दादी
पीछे लगे है करवाने को शादी
पर उसने साफ़ कर दिया इंकार
बोला जिस दिन दिल की घंटी बजेगी ,
हो जाएगा ,शादी को तैयार
अच्छे खाने पीने का शौक़ीन
कामं में रहता है इतना तल्लीन
इतना है कमाता
पर ठीक से खाना भी नहीं खा पाता
किसी ने पूछा दिनरात काम ही काम ,
बिलकुल नहीं आराम ,आखिर किसके लिये
उसने दिया उत्तर 'पापी पेट के लिए'
किस्मत से उसकी पोस्टिंग हो गयी विदेश
चौगुनी तनख्वाह,ऐश ही ऐश
माँ बाप से बात होती कभी
पूछ लिया करते ,घंटी बजी
वो ना कहता ,माँ बाप मजबूर थे
इतनी दूर थे
एक दिन उसने माँ को फोन किया ,
आप मेरे लिए लड़की ढूंढ सकती है
पर ऐसी जो पाकशास्त्र में प्रवीणता रखती है
मैं शादी कर लूँगा उसी के संग
क्योंकि बर्गर ,पीज़ा खाखा के आ गया हूँ तंग   
इतना कमाता हूँ
पर गरम गरम पूड़ी,और ,
पराठों के लिए तरस जाता हूँ
मम्मी  हंसी
बोली देर से ही सही ,तेरी घंटी तो बजी
घंटी ने बजने में कितने दिन लगा दिए
लड़के ने हंस कर,दिया उत्तर,
घंटी वंटी कुछ नहीं बजी ,
मैं तो शादी करना चाहता हूँ ,
पापी पेट के लिए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फरक नहीं पड़ता

            फरक नहीं पड़ता

चाहे कितनी भी बदल  जाए वेषभूषाएं ,
               किसी इंसान में कोई फरक नहीं पड़ता
पहन ले 'मोनोलिसा' साडी या स्कर्ट कोई,
               उसकी मुस्कान में कोई फरक नहीं पड़ता
भले ही हो सितार ,सारंगी या इकतारा ,
               सुरों की तान में कोई फरक नहीं पड़ता
तबाही करना ही फितरत है,नाम कुछ भी दो,
               किसी तूफ़ान में कोई फरक  नहीं पड़ता
विरोधी दल का काम,धरना ,नारेबाजी है ,
                उनके इस काम मे कोई फरक नहीं पड़ता
पा के सत्ता भी नहीं बदलता है डी एन ऐ,
                 उनकी पहचान में कोई फरक नहीं पड़ता
  रूप  मोहताज नहीं ,साज सज्जा ,गहनो का  ,
                हुस्न की शान में कोई फरक नहीं पड़ता  ,
चाहे तुम राम कहो,गॉड कहो या अल्लाह ,
                मगर भगवान में कोई फरक नहीं पड़ता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
               

प्रतिकार

            प्रतिकार
आपने हमसे निभाई दोस्ती ,
                प्यार हमने दे दिया प्रतिकार में
लेने देने का यही तो सिलसिला ,
               चल रहा है ,युगों से  ,संसार में
  देते दिल तो बदले में मिलता है दिल ,
 मोहब्बत के बदले मिलती मोहब्बत ,
और नफरत लाती है नफरत सिरफ ,
                  मिलता झगड़ा है सदा तकरार में
किसी का तुम भला करके देखिये,
 सच्चे मन से मिलेगी तुमको दुआ ,
मदद करना किसी जरूरतमंद की ,
                     पुण्य है सबसे बड़ा  संसार में                          
कर्म जो तुम करते हो इस जन्म में ,
उसका फल मिलता है अगले जन्ममे,
बस यही  तो कर्म का सिद्धांत  है ,
                      मोक्ष है,सद्कर्म ,सद्व्यवहार में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

         ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ

कहा धरा ने आसमान से,ला मैं तेरे आंसूं पी लूँ
मेरा अंतर सूख रहा है,तेरा प्यार मिले तो जी लूँ
तेरे मन की पीर घुमड़ती ,
                   बन कर काले काले बादल
कभी रुदन कर गरजा करती ,
                   कभी कड़कती बिजली चंचल
बूँद बूँद कर आंसूं जैसी ,
                    बरसा  करती है रह रह कर
मैं भी अपनी प्यास बुझालूं,कर थोड़ी अपने मन की लूँ
कहा धरा   ने आसमान  से , ला मैं  तेरे  आंसू  पी  लूँ
तिमिर हटे ,छंट जाएँ बादल,
                         जीवन में उजियारा छाये
तेरे प्यारे सूरज ,चन्दा ,
                         मेरे आँगन  को चमकाएं
मेरी माटी,पिये  प्रेम रस,
                         सोंधी सोंधी सी गमकाये
फूल खिले मन की बगिया में ,महके,मैं उनकी सुरभि लूँ
कहा धरा ने आसमान   से  ,ला ,मैं  तेरे   आंसूं   पी लूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, August 9, 2015

हार का दर्द

           हार का दर्द

मिली शिकस्त ,हुआ पस्त ,बड़ा त्रस्त दुखी,
            हो गया अस्त व्यस्त ,ऐसा लगा झटका है
बड़ी बेदर्द , बड़ी बेवफा  ,ये   पब्लिक है ,
            अर्श से फर्श पर लाकर के कहाँ  पटका है
कभी पुश्तैनी जो होती थी कुर्सी सत्ता की ,
           ध्यान पी एम की कुर्सी पे अब भी अटका है
हार का दर्द क्या  ,पूछे ये कोई राहुल से ,
          मन में मोदी का सदा ,बना रहता  खटका है

घोटू

छुवन

           छुवन

नन्हा बच्चा जब रोता है ,
माँ उसे थपथपाती है
माँ के हाथों की छुवन ,
उसे चुप कर,सुलाती है
बड़ा होने पर ,जब भी माता पिता के,
चरण छूकर , सर नमाता है
ढेरों आशीर्वाद पाता  है
और जवानी में किसी लड़की की छुवन
कर देती है उसके पूरे तन में सिहरन
इस छुवन के भी कई रंग है ,कई ढंग है
हाथ ,जब गालों को छूकर सहलाता  है ,
तो मन में भरता  उमंग है
वो ही हाथ जब तेजी से,
 गालों पर पड जाता है  
तमाचा कहलाता है
कई बार एक दूजे को छू
लोग करीब आते है
 कबड्डी के खेल में ,ज़रा सा छूने पर ,
आउट हो जाते है
गुरूजी के ज्ञान की ऊर्जा ,
उनके चरण छूने पर ,
हमें प्राप्त होती है,जीवन संवारती है
तो बिजली के तारों में ,प्रभावित ऊर्जा ,
जरा सा छूने पर,करंट मारती है
कलम कागज़ को छूकर जब चलती है,
महाकाव्य रचा करती है
और कलाकार की तूलिका ,
जब कैनवास को छूती है
तो अनमोल पेंटिंग सजा करती है
कई बातें ,बिना स्पर्श किये ही,
दिल को छू जाती है
आँखे भी बिना छूए ही ,
एक दूसरे से मिल जाती है
इस छुवन का भी ,
बड़ा अजीब चलन होता है
हाथ को हाथ छूते  है तो दोस्ती होती है,
होंठ को होंठ छूते है तो चुम्बन होता है
दूर क्षितिज में,आसमान ,
धरती को छूता  हुआ नज़र आता है
पर क्या धरती और आसमान  का,
कभी मिलन हो पाता है 
आकाश की ऊंचाइयों को छूने का ,
मन में लेकर अरमान
जब सच्ची लगन से कोशिश करता इंसान
तो उसके कदमो को छूती  सफलता है
छुवन से ही जीवन है,जगती है ,प्रकृति है,
छुवन के बिना कुछ काम नहीं चलता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, August 6, 2015

संवदेनशीलता

        संवदेनशीलता

थोड़ी सी बारिश हुई,और हम भीग गए ,
      थोड़ी सी सर्दी पडी ,और हम ठिठुराये
थोड़ी सी गर्मी में ,पसीने में तर हुए,
       लू के थपेड़ों से ,हम झट से कुम्हलाये
थोड़ी सी पीड़ा ने ,विचलित हमें किया ,
       आँखों ने नम होकर ,आंसू भी बरसाए
खबर कोई अच्छी सी ,अगर कहीं से आयी ,
      हुआ मन आनंदित  ,खुश हो हम  मुस्काये
हम उनको पाने की,कोशिशें करते है ,
      वो हमको हो जाते ,जब तक हासिल  नहीं
नहीं अगर वो मिलते ,टूट टूट जाता दिल,
          और तुम कहते हम,संवेदनशील   नहीं 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेसबुक स्टेटस

       फेसबुक स्टेटस

गोल चेहरा
रंग गहरा
मेरा फेसबुक स्टेटस
जस का तस
मजबूर और बेबस
फिर भी कभी कभी,
लेता हूँ हंस
मंहगाई के मौसम के ,
थपेड़े सहता हूँ
मैं बूढा बरगद पर,
हरा भरा रहता हूँ
मेरी शाखाओं पर
पंछियों ने ,
बसा रखे है अपने घर
सुबह शाम,
 जब वो चहकते है,
मैं भी चहकता हूँ
बहती हवाओं के,
संग संग बहता हूँ
मन की भावनाओं को,
शब्दों के उकेर कर
फेसबुक के पन्नो पर
कभी कभी कर देता हूँ पोस्ट
उन्हें जब पढ़ते है दोस्त
कोई कॉमेंट देता है,
कोई लाइक करता है
 आजकल जीवन ,
कुछ ऐसे ही गुजरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बचपन-कल और आज

      बचपन-कल और आज

अगर मिटटी में नहीं खेले
धूल में सन कर,नहीं हुए मैले
बारिश में भीग कर नहीं नहाये
बहते पानी में उछल कर,नहीं छपछपाये
शैतानी करते हुए नहीं दौड़े
साइकिल सीखते हुए,घुटने नहीं फोड़े  
रो रो कर चिल्ला,अपनी जिद ना मनवाई
फ्रिज से चुरा कर ,मिठाई ना खायी
नानी,दादी की ,कहानियां नहीं सुनी
पेड़ों पर पत्थर फेंक,जामुने नहीं चुनी
स्कूल नहीं जाने के बहाने नहीं बनाये
दरख्तों पर चढ़,आम नहीं खाये 
अपने छोटे भाई बहनो को तंग नहीं किया
तो फिर हमने  बचपन क्या  जिया ?
कॉपी किताबों से भरा स्कूलबेग ,
कंधे पर लाद  स्कूल गए
लौट कर होमवर्क में जुट गए
अपने माँ बाप की अपेक्षाएं,
 पूरी करने की दौड़ में
सबसे अव्वल आने की होड़ में
कई बार डाट खाई
और  करते रहे बस पढाई ही पढाई
न उछलकूद ,न शैतानी,न मस्ती मनाना
 टाइमटेबल के हिसाब से पल पल बिताना
और तो और ,,छुट्टियों में भी पढाई का,
ऐसा ही सिलसिला हो गया है
आजकल बच्चों का ,
बचपन कहाँ खो गया है ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, August 4, 2015

हम दोनों-दिल्लीवाले

      हम दोनों-दिल्लीवाले
                   १
क़ाबलियत से ज्यादा,कोई जब पा जाता ,
         पचा नहीं पाता है और पगला जाता है
गर्व से फूल फूल,हैसियत जाता भूल,
         हरकतें ऊल जलूल ,करता कराता है
उससे भी बुरा हाल ,उसका भी होता है,
         सत्ता से जिसका कि पत्ता कट जाता है
पाकर जो बौराता ,कहलाता केजरीवाल,
       खोकर जो बौराता ,राहुल कहलाता  है
                      २
एक लड़े एल जी से ,एल लड़े मोदी से ,
              एक पोस्टर लगवाता,एक करता हंगामा
दोनों ही बेमिसाल ,दोनों का बुरा हाल,
              दोनों ही रोज रोज ,करते है कुछ ड्रामा
एक सत्ता पा पागल,एक सत्ता खो पागल ,
              एक असर,उल्टा पर,दोनों का अफ़साना
तेल तिलों में कितना ,प्यार दिलों में कितना ,
               जनता के खातिर है,जनता ने अब जाना

''घोटू'   
                       

हुस्नवाले -एक ग़ज़ल

        हुस्नवाले -एक ग़ज़ल

हुस्न वालो के भी सीने में धड़कता दिल है
बड़ा ही नाजुक है,नायाब,पाना मुश्किल है
बड़े ही सलीके से ,छुपा कर के रखते हैं,
प्यार उनका बड़ी किस्मत से होता हासिल है
बड़ा ही खूबसूरत जिस्म,गजब का जलवा ,
उनकी हर एक अदा ,तारीफों के काबिल है
वो यूं ही मुस्करा के ,कितने कत्ल करते है ,
हमेशा जालिम ही होता नहीं हर कातिल है
गोरी पगथलियां भी ,पांवों में दबी है उनके ,
शान से गाल पे बैठा हुआ, काला तिल है
देख कर उनको ये दिल बल्लियों उछलता है ,
उस पे करने में काबू होती बड़ी मुश्किल है
उनकी 'ना ना' में ही मंजूरी छुपी रहती  है ,
उनके मुंह से 'हाँ 'कहलाना ,बड़ी मुश्किल है
बड़ी मुद्दत से उनकी  आरजू में  बेकल  है ,
बड़ी सूनी पडी'घोटू' ये दिल की महफ़िल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दुनिया-सब्जीमंडी

         दुनिया-सब्जीमंडी

ये दुनिया सब्जीमंडी है और हम सब सब्जी भाजी है
बासी  है  कोई  सूख  रही ,तो कोई  एकदम  ताज़ी है
कोई बिन पेंदे का बेंगन ,जो एक जगह ना टिकता है
वह जाता भुना आग में है और उसका भुड़ता बनता है
है कांटेदार कोई कटहल ,लसलसी,चिपचिपी है भीतर
तो किसी खेत की मूली है, कोई ,उजली,दुबली  सुन्दर
है कोई हरी हरी मिरची  चरपरी,तेज,तीखी तीखी
मुंह जलता ,बड़े प्रेम से पर ,सब खाते है ,करते सी सी
कोई पत्ता  गोभी जैसी ,है जिसकी थाह बड़ी मुश्किल
हर परत दर परत पत्ते है,अंदर ना मिल पाता है दिल
कोई जमीन से जुडी हुई,  सीधी सादी और   मामूली 
वो हरदम काटी जाती है ,जैसे कटते गाजर,मूली
है कोई मटर ,छिलके   छूटे  ,दाने दाने है हो जाती 
कट कोई प्याज सी आँखों में ,आंसू भरती पर मनभाती 
कितने ही भरे विटामिन हो,हो स्वाद भले ही वो कितनी
बस कट जाना और पक जाना,सब्जी की नियति है इतनी
कोई  कद्दू सी गोलमोल ,कोई तरोई सी  है कमसिन  
 तो कोई आलू के जैसी ,है काम न चलता जिसके बिन
जिसके संग मिलने जुलने में ,हर सब्जी रहती राजी है
ये दुनिया सब्जी मंडी है ,और हम सब सब्जी भाजी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दो क्षणिकाएँ

         दो क्षणिकाएँ
                  १
वो दूरदृष्टा हैं ,पर उनकी ,
दूर की दृष्टी है कमजोर
उनके चश्मे का नंबर है ,
माइनस फोर
                  २
मैंने छोटे बेटे से कहा ,
पिया करो दूध
इससे ताक़त मिलती है ,
बदन होता है मजबूत
बेटा ने कहा ये बात है झूठ
मेरे दूध के दांत ,
कितनी जल्दी गए सब टूट

घोटू

Monday, August 3, 2015

दिल्ली का बवाल -पांच दोहे

       दिल्ली का बवाल -पांच दोहे
                        १
दिल्ली में है कर रहे ,ये दो लोग बवाल
एक तो राहुल भाई है,एक केजरीवाल
                        २
एक सत्ता पाकर हुआ,पागल और मदमस्त
दूजा सत्ताच्युत हुआ  ,त्रस्त और  है  पस्त
                          ३ 
एक 'पोस्टर वार ' कर, मचा रहा उत्पात
एक बौखला रहा है, जब  से  खायी  मात
                          ४
एक ने थे वादे किये , कर ना  पाया  पूर्ण
बाँट  रहा  है  दूसरा  , नव वादों का चूर्ण
                           ५
एक पदयात्रा करे, एक सब में टांग अड़ाय
'लाइम लाइट ' में  रहें,  दोनों  करते 'ट्राय '

घोटू