बुढ़ापा होता है कैसा
बुढ़ापा होता है कैसा
बुढ़ापा होता है ऐसा
अभी जोशे जवानी है
चमक चेहरे पर पानी है
मटकती चाल बलखाती
जुल्फ काली है लहराती
उमर जब बढ़ती जाएगी
लुनाई घटती जाएगी
कोई जब आंटी बोलेगा
तुम्हारा खून खोलेगा
भुगतनी पड़ती जिल्लत है
उमर की यह हकीकत है
सफेदी सर पे आती है,
उमर देती है संदेशा
बुढ़ापा होता है ऐसा
बुढ़ापा होता है कैसा
तुम्हारी अपनी संताने
जो चलती उंगली को थामें
बड़ी होने लगेगी जब
ध्यान तुम पर न देगी तब
तुम्हारी कुछ न मानेगी
सिर्फ अपनी ही तानेगी
कहेगी तुम हो सठियाये
रिटायर होने को आए
रमाओ राम में निज मन
छोड़ दो काम का बंधन
नियंत्रण उनका धंधे पर ,
और उनके हाथ है पैसा
बुढ़ापा होता है ऐसा
बुढ़ापा होता है कैसा
बदन थोड़ा सा कुम्हलाता
चिड़चिड़ापन है आ जाता
बहुत कम खाते पीते हैं
दवाई खा कर जीते हैं
मिठाई खा नहीं सकते
बहुत परहेज है रखते
गुजारे वक्त ना कटता
बड़ी आ जाती नीरसता
नहीं लगता कहीं भी मन
खटकता है निकम्मापन
न घर के घाट के रहते ,
हाल कुछ होता है ऐसा
बुढ़ापा होता है कैसा
बुढ़ापा होता है ऐसा
मदन मोहन बाहेती घोटू