Friday, February 10, 2017

माँ तुझे प्रणाम 

तूने मुझको पाला पोसा ,तू मेरी जननी है माता 
जब भी मुझे वेदना होती,नाम तेरा ही मुंह पर आता 
कैसे तुझे पता चल जाता,जब भी मुझको दर्द सताता 
अन्तरतल से बना हुआ है ,ऐसा तेरा मेरा  नाता 
तेरे चरणों में मौजूद है ,सारे तीरथ  धाम 
माँ तुझे प्रणाम 
नौ महीने तक रखा कोख में ,तूने कितना दर्द उठाया 
फिर जब मै दुनिया में आया,तूने अपना दूध पिलाया 
चिपका रखा मुझे छाती से ,तूने मुझको गोद उठाया 
ऊँगली पकड़ सिखाया चलना ,भले बुरे का बोध कराया 
इस दुनिया की उंच नीच का मुझे कराया ज्ञान 
माँ तुझे प्रणाम 
 धीरे धीरे ,बड़ा हुआ मैं ,गए बदलते कितने मौसम 
मुझको कुछ तकलीफ नहीं हो ,तूने ख्याल रखा ये हरदम 
मैं बीमार पड़ता तू रोती ,मैं हंसता तो खुश होती तुम 
करी कटौती खुद पर ताकि मुझको कुछ भी नहीं पड़े कम 
तूने मेरी खुशियों खातिर ,किया नहीं आराम 
माँ तुझे प्रणाम 
माँ तू ही मेरी ताक़त है ,मेरी शक्ति,मेरा बल है 
तेराआशीर्वाद हमेशा ,मेरे लिए बना सम्बल है 
मुझे बचाता ,हर पीड़ा से ,तेरा प्यार भरा आँचल है 
मैं उपकृत हूँ,ऋणी तुम्हारा ,मेरा रोम रोम हरपल है 
मुझ पर तेरी कृपा हमेशा ,बनी रहे अविराम 
माँ तुझे प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
              जिंदगी 

तमन्ना थी जिंदगी में ,फतह कर लूं हर किला 
मगर जो था मुकद्दर में, मुझे बस वो ही मिला 
हार जो झेली कभी तो,कामयाबी भी मिली,
यूं ही बस चलता रहा इस जिंदगी का सिलसिला 
 दुश्मनो ने राह में ,कांटे बिछाये तो कभी,
दोस्तों ने हर कदम पर ,फूल भी डाले खिला 
मेरी कुछ कमजोरियों की,भी हुई आलोचना ,
तो मेरी अच्छाइयों का भी मिला,मुझको सिला 
दुनियाभर की सारी खुशियां ,मिलगयी उसदिन मुझे ,
तेरे जैसे हमसफ़र का ,साथ जिस दिन से मिला 
अब तो हँसते गाते सारी उमर ये कट जायेगी ,
जिंदगी मुझको नहीं है ,तुझसे कोई भी गिला 

घोटू 
 
सपने देखो 

दिन में देखो,चाहे देखो रात में 
मिलते है सपने  यहाँ खैरात  में
जी में आये ,उतने सपने देखिये ,
सपनो पर अब तक लगा ना टेक्स है 
कभी भी मन में न डरना चाहिए 
आदमी को वो ही करना चाहिए ,
जिससे उसको मिलती हो थोड़ी ख़ुशी,
रहता मन मष्तिस्क भी 'रिलेक्स' है 

घोटू  
                      जड़े 

जो ऊपर से लहराते है और मुस्काते,महकाते है 
निज सुंदरता पर नाज़ किये जो किस्मत पर इतराते है 
होती है किन्तु जड़े इनकी ,सबकी जमीन के नीचे है 
ये सब तो तभी पनप पाते,जब कोई इनको सींचे  है 
जब तक इनकी मजबूत जड़ें,ये तब तक शान हुआ करते 
जो जड़े हिल गयी थोड़ी सी,तो ये कुरबान  हुआ करते 
इतना महत्व है जब जड़ का ,उनकी सोचो जो खुद जड़ है 
इन ऊपर उगने वालों से ,ये सब के सब होते बढ़  है 
आलू जमीन  के नीचे है, बारह महीनो का भोजन है 
नीचे जमीन के ही बढ़ते ,ये प्याज और गुणी लहसन है 
अदरक जमीन के नीचे है ,जो कितने ही गुण वाला है 
भू के अंदर उगती हल्दी ,जो भेषज और मसाला है 
धरती नीचे मूली ,सलाद और शलजम बड़ी भली लगती 
देती है तैल ,स्वाद वाली ,भू में ही मुंगफली  लगती 
कितनी ही जड़ीबूटियां भी उगती जमीन के अंदर है 
पैदा जमीन में होता है ,तब ही गुणवान चुकन्दर है 
हर बीज पनपता धरती में,माँ सीने की ऊष्मा पाकर 
जड़ से ही होता है विकास ,बनता तब वृक्ष घना जाकर 
ये सब ही भले दबे रहते ,भीतर ही भीतर बढ़ते है 
माँ धरती से चिपटे रहते ,तब ही गुण इनके बढ़ते है 
रहते जमीन के नीचे जो ,वो गुण की खान हुआ करते 
इनके जमीन से जुड़ने से ,इनके गुणगान हुआ करते 
इसलिए जुडो तुम धरती से,ये देश  तभी तो संवरेगा
तुम्हारा धरती से जुड़ना ,तुम में कितने गुण भर देगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'