Wednesday, June 26, 2019

मन तो करता है
 
कहीं कोई सुन्दर सी लड़की ,जो दिख जाती है ,
कैसे भी हम उसे पटायें ,मन तो करता  है
वस्त्र चीर कर ,रूप रश्मि जब ,झलक दिखाती है ,
बार बार हम दर्शन पायें ,मन तो करता है
नीला अम्बर ,मस्त पवन और दूप सुनहरी है ,
बन विहंग ,हम भी उड़ जायें ,मन तो  करता है
सिकते हो भुट्टे और सौंधी खुशबू आती हो  ,
चबा न पायें ,लेकिन खाएं ,मन तो करता है
शुगर बढ़ी ,मिष्ठान मना पर गरम जलेबी है ,
जी ललचाये ,खा ना पाएं ,मन तो करता है
उम्र बढ़ गयी ,शिथिल हुआ तन ,हिम्मत नहीं रही ,
पर यौवन सुख ,फिर से पाएं ,मन तो करता है
चार कदम चल लेने पर भी ,सांस फूलती है ,
कभी कभी हम दौड़ लगाएं ,मन तो करता है
दीवाना ,मतवाला लोभी मचला करता है ,
कैसे, कौन इसे समझाए मन तो करता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
आईने के पीछेवाला शख्स

मन  विदीर्ण
तन जीर्ण शीर्ण
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
उम्र में लगता ,मुझसे बहुत बड़ा है
 रह रह कर
पीड़ाये सह सह कर
उसकी  आँखें  पथरा  गयी है
चेहरे पर उदासी छा गयी है
मायूसियों ने उसे  घेर लिया है
खुशियों ने मुंह फेर लिया है
देखो चेहरा कैसा मुरझाया पड़ा है
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
क्या वो मैं हूँ या मेरा अक्स है
नहीं नहीं ,वो मैं नहीं हो सकता ,
वो तो कोई दूसरा ही शख्स है
मैं तो हँसता हूँ ,गाता हूँ
हरदम मुस्काता हूँ
चौकन्ना और चुस्त हूँ
एकदम दुरुस्त हूँ
मेरे मन में सबके लिए प्यार बसा है
मुझमे जीने की लालसा है
उदासियाँ मुझसे कोसों दूर है
मेरी जिंदादिली मशहूर है
उम्र कितनी भी हो जाय ,
मैं खुशियां खो नहीं सकता
इसके जैसा मेरा हाल  हो नहीं सकता
इस पर  तो मनहूसियत का रंग चढ़ा है
आईने के पीछे ,वो कौन शख्स खड़ा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,

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Mr. Edwin Ashley