Wednesday, September 6, 2017

अध्याय नहीं ,परिशिष्ट सही 

तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम ,परिशिष्ट ही,अगर बना ,आभार करूंगा 
तुम्हारी जीवनगाथा का ,नहीं पात्र जो  अगर बन सका ,
फिर भी प्यार किया था तुमसे ,और जीवनभर प्यार करूंगा 
मेरा तो ये मन दीवाना ,पागल ,सदा रहेगा  पागल ,
चाह रहा था चाँद चूमना ,मालुम था ,पाना मुश्किल है 
लेकिन इसे चकोर समझ कर ,लेना जोड़ नाम संग अपने ,
बहुत चाहता तुम्हे हृदय से ,नहीं मानता ,दिल तो दिल है 
थाली में जल भर कर मैंने ,तुम्हारी छवि बहुत निहारी ,
कम से कम बस इसी तरह से ,तुम्हे पास पाया है अपने  
छूता तो लहरों में छवि ,हिल ,लगता जैसे ना  ना कहती ,
कर न सका महसूस तुम्हे मैं ,रहे अधूरे मेरे सपने 
कभी दूज में तुम्हे निहारा ,घूंघट में आहट चेहरे की , 
देखा अपलक ,पूरा मुखड़ा ,कभी पूर्णिमा की रातों में 
कभीअमावस को जब बिलकुल,नहीं नज़र आती तो लगता ,
निकली शायद मुझसे मिलने ,मैं खो जाता,जज्बातों में 
मिलन हमारा नहीं हुआ पर,यही लिखा शायद नियति ने ,
किन्तु चांदनी जब छिटकेगी,मैं तुमसे अभिसार करूंगा 
तुम्हारी जीवन पुस्तक का ,अगर नहीं अध्याय बना मैं ,
तो कम से कम परिशिष्ट ही ,अगर बना,आभार करूंगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गणपति बाप्पा से 

बरस भर में ,सिरफ दस दिन,
यहां आते हो तुम बाप्पा 
जमाने भर की सब खुशियां ,
लुटा जाते हो तुम बाप्पा 
तुम्हारे मात्र दर्शन से ,
कामना पूर्ण हो मन से 
भावना ,भक्ति की गंगा,
बहा जाते हो तुम बाप्पा 
लगा कर रोली और चंदन ,
करें तुम्हारा सब वंदन
सभी को रहना मिलजुल कर ,
सिखा जाते हो ,तुम बाप्पा 
भगत सब हो के श्रद्धानत,
चढ़ाते आपको मोदक ,
समृद्धि ,सुख की परसादी ,
खिला जाते हो तुम बाप्पा 
गजानन ,विघ्नहर्ता हो 
सदा आनन्दकर्ता हो 
विनायक हो,हमे लायक ,
बना जाते हो तुम बाप्पा 
साथ दस दिन, लगे प्यारा
विसर्जन होता तुम्हारा 
समाये दिल में पर रहते,
कहाँ जाते हो,तुम बाप्पा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'