Monday, February 10, 2020

तिल 

ये मनचले तिल 
होते है बड़े कातिल
 यहाँ,वहां ,
जहां मन चाहा ,बैठ जाते है 
कभी गालों पर ,
कभी होठों पर ,
उभर कर ,इतराते हुए ,ऐंठ जाते है 
इन तिलों में तेल नहीं होता है ,
फिर भी ये ललनाओं की लुनाई बढ़ा देते है 
भले ही ये दिखने में छोटे और काले होते है ,
पर सोने पे सुहागा बन कर ,
हुस्न पर चार चाँद चढ़ा देते है 
ये पिछले जन्म के आशिक़ों की ,
अधूरी तमन्नाओं  के दिलजले निशान है  
जो माशूकाओं के जिस्म की ,
मन चाही जगहों पर ,हो जाते विराजमान है
कोई चुंबन का प्यासा प्रेमी ,
अगले जन्म में प्रेमिका के होठों पर ,
तिल बन कर उभरता है 
कोई रूप का दीवाना ,
प्रेमिका के गालों से चिपट ,
ब्यूटीस्पॉट बन कर सजता है 
ये   तिल ,माचिस की तीली की तरह ,
जरा सा घिस दो ,ऐसी लपट देते  है 
कि दीवानो के दिल को भस्म कर देते  है 
तीली हो या तिल ,
दोनों माहिर होते है जलाने में 
पर असल में ,
तिल  काम आते है खाने में 
गजक रेवड़ी आदि के रूप में,
 बड़े प्रेम से खाये जाते है   
और काले तिल तो पूजन,हवन 
और अन्य कर्मकांड में काम में लाये जाते है 
ये वो तिल है जिनमे तेल होता है 
वरना जिस्म पर उगे तिलों का तो ,
बस दिल जलाने का खेल होता है 
तो जाइये 
सर्दी में किसी के जिस्म पर ,
तिलों को देख कर ,
सर्द  आहें न भरिये ,
तिल की गजक रेवड़ी खाइये 
और मुस्कराइये  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा-अहसास उम्र का 

अबकी कड़कड़ाती ,ठिठुरन  भरी सर्दी के बाद ,
मुझे हुआ अहसास 
कि बुढ़ापा आ गया है पास 
सर्दी में केप और मफलर में ,
रहते थे ढके 
सर के सब बाल सफ़ेद होकर थे  पके 
और जब  सर्दी गयी और टोपी हटी ,
तो मन में आया खेद 
क्योंकि मेरे सर के बाल ,
सारे के सारे हो गये थे  थे सफ़ेद 
 और सर की सफेदी ,याने बुढ़ापे का अहसास 
मुझे कर गया निराश 
और मैंने झटपट अपने बालों पर लगा कर खिजाब 
कर लिया काला 
सच इस  कालिख का भी ,अंदाज है निराला 
आँखों  में जब काजल बन लग जाती है 
आँखों को सजाती है   
कलम से जब कागज़ पर उतरती है 
तो शब्दों में बंध  कर,महाकाव्य रचती है 
श्वेत बालों पर  जब लगाई जाती है 
जवानी का अहसास कराती है 
बच्चो के चेहरे पर काला टीका लगाते है 
 और बुरी नज़र से बचाते है 
मगर ये ही कालिख ,जब मुंह पर पुत  जाती है
बदनाम कर जाती है 
तो हमारे सफ़ेद बालों पर जब लगा खिजाब 
उनमे आ गयी  नयी जान  ,
 और हम  अपने आपको समझने लगे जवान 
पर हम सचमुच में है कितने  नादान  
क्योंकि ,बुढ़ापा या जवानी ,
इसमें कोई अंतर नहीं खास है 
ये तो सिर्फ ,मन का एक अहसास है 
अगर सोच जवान है ,तो आप जवान है 
और सर पर के काले बाल 
ला देतें है आपको जवान होने का ख्याल 
तो अपने सोच में जवानी का रंग आने दो 
और जीवन में उमंग आने दो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती ,मै बसंती
      लग रही है बात बनती
गेंहू बाली सी थिरकती,
                  उम्र  है बाली तुम्हारी
पवन के संग झूमती हो,
                   बड़ी सुन्दर,बड़ी प्यारी
आ रही तुम पर जवानी,
                    बीज भी भरने  लगे है
और मै तरु आम्र का हूँ,
                    बौर अब खिलने लगे है
     तुम बहुत मुझको लुभाती,
       सच बताऊँ बात मन की
         तुम बसंती, मै  बसंती
           लग रही है बात बनती
खेत सरसों के सुनहरे ,
                        में खड़ी  तुम,लहलहाती
स्वर्ण सी आभा तुम्हारी,
                        प्रीत है मन में जगाती
डाल पर ,पलाश की मै ,
                        केसरी  सा पुष्प प्यारा
मिलन की आशा संजोये ,
                         तुम्हे  करता हूँ निहारा
       पीत  तुम भी,पीत मै भी,
      आयें कब घड़ियाँ मिलन की
         तुम बसंती,मै बसंती
         लग रही है बात बनती
भुनना 

हमने थोड़ी करी तरक्की ,वो जल भुन  कर खाक हो गए 
थोड़े नरम ,  स्वाद हो जाते ,पर वो तो गुस्ताख़ हो  गए 
कड़क अन्न का एक एक दाना ,भुनने पर हो जाय मुलायम 
स्वाद मूंगफली में आ जाता ,उसे भून जब  खाते  है हम 
मक्की दाने सख्त बहुत है,ऐसे  ना खाए  जा सकते 
बड़े प्रेम से सब खाते जब ,भुन  कर'पोपकोर्न' वो  बनते 
जब भी आती नयी फसल है ,उसे भून कर हम है खाते
चाहे लोढ़ी हो या होली ,खुश  होकर त्योंहार  मनाते 
होता नोट एक कागज़ का ,मगर भुनाया जब जाता है 
चमकीले और खनखन करते ,सिक्कों की चिल्लर लाता है 
जिनकी होती बड़ी पहुँच है ,उसे भुनाया  वो करते है 
लोग भुनाते  रिश्तेदारी  ,मौज  उड़ाया  वो करते है 
भुनना ,इतना सरल नहीं है, अग्नि में सेकें जाना  है 
लेकिन भुनी चीज खाने का ,हर कोई ही दीवाना  है 
गली गली में मक्की भुट्टे ,गर्म और भुने मिल जाते है 
शकरकंदियां , भुनी आग में ,बड़े शौक से सब खाते  है     
ना तो तैल ,नहीं चिकनाई,अन्न आग में जब भुनता है 
होता 'क्लोस्ट्राल फ्री' है,और स्वाद  दूना  लगता  है 
लइया ,खील ,भुनो चावल से ,लक्ष्मी पर परसाद चढ़ाओ 
है प्रसाद बजरंगबली का ,भुने चने ,गुड के संग  खाओ 
औरों की तुम देख तरक्की ,बंद करो अब जलना ,भुनना 
आगे बढ़ने का उनसे तुम,सीखो  सही रास्ता  चुनना 
अगर आग में अनुभवों की ,भुन कर तुम सके जाओगे
बदलेगा व्यक्तित्व तुम्हारा ,सबके मन को तुम भाओगे  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
वेलेंटाइन  सप्ताह
           (दूसरा नजराना)         
           प्रेम दिवस 
प्रेम का कोई दिवस होता नहीं,
                        प्रेम का हर एक दिन ही ख़ास है 
प्रेम हर वातावरण में महकता ,
                         प्रेम की हर ह्रदय में उच्छ्वास  है 
प्रेम पूजन,प्रेम ही आराधना ,
                          प्रेम में परमात्मा का वास  है 
प्रेम तो है कृष्ण राधा का मिलन,
                             राम का चौदह बरस  बनवास है 
प्रेम मीरा के भजन में गूंजता ,
                              सूर के पद में इसी का वास है 
सोहनी -महिवाल,रांझा -हीर  और,
                               लैला-मजनू  प्रेम का इतिहास है 
प्रेम बंधन भावनाओं से भरा ,
                                 प्रेम जीवन का मधुर अहसास है 
प्रेम में ही समर्पण है,त्याग है,
                                   एक दूजे का अटल विश्वास है 
प्रेम गुड का स्वाद गूंगा जानता ,
                                पर न कह पाता ,वही आभास है 
जो समझ ले ढाई आखर प्रेम का,
                                  तो समझ लो,प्रभु उसके पास है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'