Wednesday, January 20, 2016

चने से बनो

           चने से बनो

चने को चबाना ,बड़ा यूं तो  मुश्किल,
मगर भून लो ,स्वाद आये  करारा
चने को दलों तो ,बने दाल  प्यारी ,
अगर पीसो ,बनता है ,बेसन निराला 
ये  बेसन कि जिससे ,बनाते पकोड़े,
कभी भुजिया बनती या आलूबड़े है 
कभी ढोकला है ,कभी खांडवी है ,
कभी गांठिया है ,कभी फाफडे है
बनाते है कितने ही पकवान इससे ,
कभी बेसन चक्की,कभी बूंदी प्यारी ,
उसी से ही बनते है बेसन के लड्डू ,
कितनी  ही प्यारी ,मिठाई निराली
अगर बनना है कुछ ,चने से बने हम,
हमें सिकना होगा या पिसना पड़ेगा
तभी बन सकेंगे ,मिठाई से प्यारे ,
तभी प्यार लोगों का ,हमसे  बढ़ेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जो माँ का प्यार ना मिलता

         जो माँ का प्यार ना मिलता

जो माँ  का प्यार ना मिलता ,तो हम जो हैं ,वो ना होते
पिता की डाट ना  पाते ,तो हम जो हैं ,वो ना होते
हमें  माँ ने  ही पैरों  पर,खड़े होना सिखाया है
हमारी थाम कर ऊँगली ,सही रस्ता दिखाया है
आये जब आँख में आंसूं ,तो आँचल से  सुखाया है
सोई गीले में खुद,सूखे में ,पर हमको सुलाया  है
जरा सा हम टसकते थे ,तो वो बेचैन  होती  थी
हमें तकलीफ होती थी ,दुखी होकर वो रोती  थी
पिलाया दूध छाती से ,हमें पाला ,किया पोषण
रखा चिपटा के सीने से ,हमारा ख्याल रख हर क्षण
पुष्प ममता का ना खिलता ,तो हम जो है ,वो ना होते
जो माँ का प्यार ना मिलता ,तो हम जो है ,वो ना होते 
 पिताजी प्यार करते पर ,अलग अंदाज था उनका
डरा करते से हम उनसे और चलता  राज था उनका
वो बाहर सख्त नारियल थे,मगर अंदर मुलायम थे
बड़ा था संतुलित जीवन ,महकते जैसे चन्दन थे
उन्ही का आचरण ,व्यवहार ,हरदम कुछ सिखाता था
उन्ही का सख्त अनुशासन ,भटकने से बचाता  था
उन्होंने धर्म ,धीरज की ,हमें शिक्षा  सिखाई  थी
लक्ष्य पाने को जीवन का ,राह उनने  बताई  थी
अगर वो पाठ ना पाते ,तो हम जो है ,वो ना होते
पिता की डाट ना पाते ,तो हम जो है ,वो ना होते

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'             
             
 


वाह वाही

         वाह वाही

मैंने कुछ अर्ज किया ,तुमने वाह वाह किया ,
तबज्जो जब कि दी बिलकुल भी नहीं गैरों ने
बताना सच कि तूने दोस्ती निभाई सिरफ़ , 
या असल में भी था , दम कोई  मेरे  शेरों  में
ये तेरी तारीफे ,दुश्मन मेरी बड़ी निकली ,
तेरी वाह वाही ने  , रख्खा मुझे  अंधेरों में
पता लगा ये ,निकल आया जब मैं  महफ़िल से ,
मुशायरा लूट लिया ,और ही  लुटेरों ने

घोटू 

नाम कम्बल होता है

           नाम कम्बल होता है

लड़ाई लड़ता है सैनिक,जान पर खेल कर अपनी ,
मगर जब जीत होती है ,नाम 'जनरल 'का होता है
रोज खटता है ,मेहनत कर ,कमाई मर्द करता है ,
मगर घर को चलाने में ,नाम औरत  का होता  है
सिरफ़ ये रोकते है ,गर्मी बाहर जा नहीं सकती ,
मगर इस पहरे दारी का ,उठाते फायदा पूरा ,
हमारे जिस्म की गर्मी ,हमीं को गर्म  रखती है,
मगर सरदी बचाने में  ,नाम कम्बल का होता है 

     मदन मोहन बाहेती 'घोटू'       

शिकवे -शिकायत

           शिकवे -शिकायत

मैंने ऐसा क्या कहा और तुमने ऐसा क्यूँ कहा ,
               एक दूजे को यूं ही , इल्जाम हम देते  रहे
इसी शिकवे शिकायत में उमर सारी काट दी ,
             पीठ खुद की थपथपा ,इनाम हम  देते  रहे
देखते एक दूजे की जो खूबियां,अच्छाइयां,
          दो घड़ी मिल बैठते और बात करते प्यार की
होता होली  मिलन हर दिन,दिवाली हर रात को,
         जिंदगी कटती हमारी , रोज  ही  त्योंहार  सी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'