hi there
Do you mean that you want 1 backlinks from 1 domain? unique domains links
like this?
yes, we offer that here
https://str8creative.co/product/unique-domains-links/
thanks and regards
Mike
support@str8creative.co
http://blogsmanch.blogspot.com/" target="_blank"> (ब्लॉगों का संकलक)" width="160" border="0" height="60" src="http://i1084.photobucket.com/albums/j413/mayankaircel/02.jpg" />
Thursday, November 19, 2020
आज की बात
आज सुबह से ही पत्नीजी, मुंह फुलाये थी बैठी
ना खुद ने ही कुछ खाया ना मुझको खाने को देती
मेरा बस कसूर था इतना ,सजा हूं जिसकी भुगत रहा
तुम सुन्दर हो आज लग रही ,मैंने उनको सुबह कहा
मेरा 'आज 'शब्द कहना ही ,मेरी बहुत बड़ी गलती
इसका मतलब बाकी दिन मैं ,सुन्दर तुम्हे नहीं लगती
ऐसा ही है तो क्यों मुझको लाये थे तुम शादी कर ,
जबसे आयी नयी पड़ोसन ,उस पर रहती गढ़ी नज़र
वो लगती है कनक छड़ी सी ,मैं तुमको तंदुरुस्त लगूं
वो लगती है चुस्त तुम्हे और मैं थोड़ी सी सुस्त लगूं
मैं भी दुबली और छरहरी ,शादी पहले ,थी होती
तुम्हारे ही लाड प्यार ने मुझको बना दिया मोटी
मैं बोला स्वादिष्ट भोज नित्य मुझको पका खिलाती हो
रोज प्रेम से खाता पर जब मटर पनीर बनाती हो
उस दिन तारीफ़ कर यदि कहता ,खाना बड़ा लजीज़ बना
कर मनुहार दुबारा देती ,मैं कर पाता नहीं मना
वैसी मटर पनीर की तरह ,नज़र आयी तुम आज मुझे
कहा इसलिए ही सुन्दर था ,ऐसा था अंदाज मुझे
अपनी रूप प्रशंसा सुन तुम बाग़बाग़ हो जाओगी
मटर पनीर की तरह दूना मुझ पर प्यार लुटाओगी
लेकिन मेरी मंशा को तुम समझ नहीं पायी डिअर
बात सुनी पत्नी ने मुझको ,लिया बांह में अपनी भर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
आज सुबह से ही पत्नीजी, मुंह फुलाये थी बैठी
ना खुद ने ही कुछ खाया ना मुझको खाने को देती
मेरा बस कसूर था इतना ,सजा हूं जिसकी भुगत रहा
तुम सुन्दर हो आज लग रही ,मैंने उनको सुबह कहा
मेरा 'आज 'शब्द कहना ही ,मेरी बहुत बड़ी गलती
इसका मतलब बाकी दिन मैं ,सुन्दर तुम्हे नहीं लगती
ऐसा ही है तो क्यों मुझको लाये थे तुम शादी कर ,
जबसे आयी नयी पड़ोसन ,उस पर रहती गढ़ी नज़र
वो लगती है कनक छड़ी सी ,मैं तुमको तंदुरुस्त लगूं
वो लगती है चुस्त तुम्हे और मैं थोड़ी सी सुस्त लगूं
मैं भी दुबली और छरहरी ,शादी पहले ,थी होती
तुम्हारे ही लाड प्यार ने मुझको बना दिया मोटी
मैं बोला स्वादिष्ट भोज नित्य मुझको पका खिलाती हो
रोज प्रेम से खाता पर जब मटर पनीर बनाती हो
उस दिन तारीफ़ कर यदि कहता ,खाना बड़ा लजीज़ बना
कर मनुहार दुबारा देती ,मैं कर पाता नहीं मना
वैसी मटर पनीर की तरह ,नज़र आयी तुम आज मुझे
कहा इसलिए ही सुन्दर था ,ऐसा था अंदाज मुझे
अपनी रूप प्रशंसा सुन तुम बाग़बाग़ हो जाओगी
मटर पनीर की तरह दूना मुझ पर प्यार लुटाओगी
लेकिन मेरी मंशा को तुम समझ नहीं पायी डिअर
बात सुनी पत्नी ने मुझको ,लिया बांह में अपनी भर
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
Subscribe to:
Posts (Atom)