Saturday, May 16, 2015

पानी की बोतल और लोठा

               पानी की बोतल और लोठा 

प्रिये तुम मिनरल वाटर की,स्लिम सी  मोहिनी बोतल ,
    मैं तो पब्लिक पियाउ का, बुझाता प्यास  लोठा हूँ
हमारी और तुम्हारी ना,कभी  जम पाएगी जोड़ी ,
    कनक की तुम छड़ी सी हो ,अखाड़े का मैं सोठा  हूँ
स्लिम तुम फोन एंड्रॉइड ,भरी कितने गुणों से हो,
      मैं काले फोन का चोगा,पर फिर भी काम आता हूँ
तुम्हारा पानी पी पीकर ,फेंक देते है तुमको सब ,
      मगर मैं रोज मंज मंज कर,चमकता  ,जगमगाता हूँ
नज़र तुम जब भी आती हो,मुझे कुछ कुछ सा होता है,
              और फिर तुमको पाने के,सपन मन में संजोता हूँ
प्रिये तुम मिनरल वाटर की, स्लिम सी मोहिनी बोतल,
             मैं तो पब्लिक पियाउ का,बुझाता प्यास लोठा  हूँ
कमरिया में तुम्हारी जब ,डाल कर हाथ है कोई,
           पास मुंह के है ले जाता ,और होठों से लगाता  है
लोटते सांप कितने ही,मेरे दीवाने इस दिल पर  ,
            बुझाता प्यास अपनी  वो, पर दिल मेरा जलाता है
दूर से धार पानी की,डालता ,ओक से पीयो ,
          किसी के मुंह नहीं लगता ,और ना जूंठा  होता हूँ
प्रिये तुम मिनरल वाटर की,स्लिम सी मोहिनी बोतल,
         मैं तो पब्लिक पियाउ का,बुझाता प्यास लोठा  हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुजारा करना पड़ता है

         गुजारा करना पड़ता है

आदमी मारता रहता है मुंह,इत उत ,जवानी में
          बुढ़ापे में मगर बीबी से अपनी प्यार करता  है
हसीनाएं बुढ़ापा देख कर के फेर लेती  मुंह,
           डालती घास बीबी है, बिचारा वो ही चरता  है
बहुत समझाया हमने कि ,चढ़ा सूरज तपाता है,
          मगर ढलते  हुए सूरज की अपनी आग होती है
चमकता चांदी जैसा है ,जब होता सर के ऊपर है,
        मगर जब ढलने लगता तब ,स्वर्ण की आब होती है
न देखो केश उजले और न देखो झुर्री चहरे की ,
        हमारा प्यार देखो और हमारा हौसला देखो
पके है पान खाने से,न खांसी ना जुकाम होगा,
      पास जो आओगे होगा ,तुम्हारा ही भला देखो
बहुत समझाया हमने पर,वो ना मानी,नहीं मानी,
     झटक के अपनी जुल्फों को,हमें ठुकराया और चल दी
कहा हमने न इतराओ ,जवानी के नशे में तुम ,
      चांदनी    चार   दिन की है,बुढ़ापा आएगा   जल्दी 
  उड़ाई उसने जब खिल्ली,तो हम ये बोले,हौले से ,
      तुम  उसका स्वाद क्या जानो,जिसे चाखा न  छुवा है
उम्र जब जायेगी ढल तो,करोगी याद बीते दिन ,
       जवानी बहती नदिया है,  बुढ़ापा गहरा कुवा   है
उसी का मीठा जल पीता ,आदमी है बुढ़ापे में,  
          उसी का पानी पी पी कर ,गुजारा करना पड़ता है
आदमी मारता रहता है मुंह ,इत उत जवानी में,
          बुढ़ापे में मगर बीबी से अपनी प्यार करता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नेता और व्यवस्था

       नेता और व्यवस्था

वो हम में से एक था
और बन्दा भी नेक था
करता सद्व्यवहार  था
सबको उससे  प्यार था
मीठा मीठा बोलता
सुख और दुःख में दौड़ता
सबसे उस का मेल था
पर वो आठंवी  फ़ैल था
बात बनाता सुन्दर था
सबमे वो  पॉपुलर था
थोड़ा चलता पुरजा था
घर मुश्किल से चलता था
उसके सेवा भाव  में
पाया टिकिट चुनाव में
उसने  खेल अजब खेले
चुना बन गया एम एल ए
उसकी जाति  विशेष थी
और किस्मत भी तेज थी
वो उस ग्रूप का बन नेता
शिक्षा मंत्री बन बैठा
कुर्सी मिली ,आगया ज्ञान
मेरा भारत देश महान
जिसे न पढ़ना आता है
शिक्षा नीति बनाता है
यही रो रहे थे रोना
किन्तु हुआ जो था होना
आया थोड़ा परिवर्तन
मंत्रिमंडल ,पुनर्गठन
किस्मत का है खेल अजब
वित्त मंत्री था वो अब
कैसा खेल विधाता है
जो घर चला न पाता  है
अब वो प्रान्त चलाएगा
वित्त की नीति बनाएगा
कुर्सी लाती सारे गुण
मूरख ग्यानी जाता बन
कल था शिक्षा का ज्ञाता
आज वित्त उसको आता
कैसी अजब व्यवस्था है
हाल देश का खस्ता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रिया-G

                       शुक्रिया-G

करें हम शुक्रिया उनका,बनाया जिनने ये गूगल
बटन के बस दबाते ही,समस्या सारी होती हल
बड़ी तहजीब बच्चों को,सिखाई है इस गूगल ने ,
संदेशा ,चिट्ठी कुछ भी हो ,लगाते पहले 'जी'केवल 
न ज्यादा बोलते  है और ,न ही बकवास करते है ,
चिपक कर अपने मोबाइल से,चेटिंग करते है हर पल
ये गूगल की मेहरबानी,कहीं तो इनका 'जी 'लगता ,
नहीं तो ये नयी पीढ़ी,बड़ी बन जाती उच्श्रंखल
औरतें सीख लेती झट ,उन्हें जो भी पकाना हो,
गृहस्थी को चलाने में,बड़ा ही मिलता है संबल
अब इनका मार्ग दर्शन भी ,सब GPS   करता है,
पहुँचते अपनी मंज़िल पर,सहारे 'जी'के ही केवल
हमेशा सर झुका रहते ,किया करते है बस दर्शन ,
पिता G और माता G ,सभी कुछ इनका है गूगल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिव्हा और नियंत्रण

         जिव्हा और नियंत्रण

दिन भर चलती ही रहती है,तरह तरह की बात बनाती 
झगडे भी करवा  देती है ,कितनी बार फिसल भी जाती
बड़ी चटोरी  इसकी आदत,इसको स्वाद सभी में आता
खट्टा,मीठा,तेज,चरपरा,सब कुछ इसको बहुत सुहाता
अस्थिविहीना,चंचल,चपला,मुश्किल इस पर काबू करना
कभी उगलती,जहर हलाहल,और कभी अमृत का झरना
मैं इतना इसके बस में हूँ,और बेबस हूँ इसके आगे
कोई उपाय बता दे ऐसा ,जो इस पर लगाम लगवा दे
मैंने धर्म गुरु से पूछा ,तो गुरुवरजी  हंस कर बोले
मुझ से पूछ रहे हो इस पर करूं नियंत्रण,तुम हो भोले
सदवचनों का ये निर्झर है,सरस्वती बहती है इस से
सारे भजन ,कीर्तन,प्रवचन,ये ही करवाती है मुझ से
मुझको है ,सदगुरू बनाया ,ये सब है इसकी ही माया
जीवन में इसने ही मुझको ,नवरस का है स्वाद छकाया
सब को बस में कर लेती है, इसको करना आता जादू
मेरे बस की बात नहीं है ,इस पर कोई लगाम लगा दूँ
पंडितजी से पूछा ,बोले,मैं भी कुछ ना कर पाउँगा
वरना भोग,प्रसाद ,चढ़ावा,और श्राद्ध कैसे खाऊंगा
इधरउधर भटका ,कितनो से पूछा ,पर असमर्थ सभी थे
तभी ख्याल आया कि क्यों ना जाकर पूछूँ मोदीजी से
मोदीजी ने बात जब सुनी,तो वो हल्का सा मुस्काये
बोले समझूँ पीर तुम्हारी, पर तुम गलत जगह पर आये
ये है सबसे बड़ी नियामत ,जो कि प्रभु ने है मुझको दी
और बदौलत इसकी ही तो,मोदी आज बना है मोदी 
इसने ही तो ,अच्छे दिन के ,सपने लोगों को दिखलाये
इसने देश विदेशों में जा,  भारत के  डंके  बजवाये
परम प्रिया मेरी,मैं कुछ ना,यदि ये मेरे साथ नहीं है
इस पर कोई नियंत्रण करना ,मेरे बस की बात नहीं है
मुझको देख निराश,हंसी वो,बोली अकल तुम्हारी  मोटी
पूछ उपाय रहे हो उनसे ,जिनकी हूँ मैं  रोजी,रोटी
इतनी चंचल और बातूनी,ईश्वर ने है मुझे बनाया
करने मेरी पहरेदारी, बत्तीस  दांतों को बैठाया
वो भी ना कर सके नियंत्रित ,यदि चाहते ,काबू मुझ पर
मैं खुद काबू में आउंगी ,यदि काबू कर लोगे  खुद पर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'