अलग अलग धर्मस्थल
चर्च में प्रार्थना करने ,ईसाई जाते सारे है
इबादत यीशु की करते,बिना जूते उतारे है
और मस्जिद में भी जब लोग जा नमाज पढ़ते है
उतारा करते है चप्पल पर, अपने पास रखते है
और मंदिर में दर्शन करने जाते लोग रोजाना
मगर जूते उतारे बिन ,मना है मंदिर में जाना
प्रार्थना प्रभु की करते ,ध्यान चप्पल में रहता है
चुरा ना कोई ले चप्पल ,यही डर मन में रहता है
नहीं होता कोई बुत मस्जिदों में,खुदा ,अल्ला का
मगर चर्चों में होता बुत यीशु और मरियम माँ का
और मंदिर में कितने देवता की मूर्तियां होती
रोज श्रृंगार होता ,दो समय है आरती होती
अन्य पूजागृहों में सिर्फ आशीर्वाद मिलता है
मगर मंदिर में आशीर्वाद संग परशाद मिलता है
चर्च में मौन सब चुपचाप रहते ,शांति रहती है
कहीं प्रवचन ,कहीं उपदेश की बरसात बहती है
मज़ा पर मंदिरों में कीर्तन का,नाच गाने का
यहीं पर मिलता है मौका,नयी चप्पल चुराने का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'