Friday, July 2, 2021

भाई साहब आपकी याद आ रही है

 आज सुबह छोटे भाई का फोन आया, 
 बोला भाई साहब हम अल्फांजो आम खा रहे हैं 
 आप बहुत ज्यादा रहे हैं 
 कल जीजाजी का फोन आया था ,
आपकी बहन जी गरम गरम जलेबी बना रही है 
आपकी बहुत याद आ रही है
दो दिन पहले बहन जी का फोन आया था,
 आज शादी में दाल बाफले की रसोई थी खाई 
 आपकी बहुत याद आई 
 हद तो तब हो गई जब मायके गई बीबी का फोन आया उससे बताया 
 आज कल काले काले जामुन की बहार है 
 जब भी हम खाते हैं 
 आप बहुत याद आते हैं 
 जब इस तरह के फोन आते हैं 
 कि कुछ खाद्यपदार्थ, लोगों को मेरी याद दिलाते हैं
 तो मेरे मन में होती है एक चुभन 
 क्या इसीलिए याद किए जाते हैं हम 
 कोई मेरे प्यार को
 मेरे दुलार को 
 मेरी आत्मीयता के बंधन को
  मेरे अपनेपन को 
  मेरी अच्छाइयों बुराइयों को लेकर 
  मुझे क्यों नहीं करता है कोई याद 
  तेरी मन में भर जाता है अवसाद 
  क्या मेरी यादों के लिए खाली नहीं उनके दिल का कोइ कोना है 
  मैं सिर्फ़ खाने पीने की चीजों को देखकर याद किया जाता हूं 
  क्या मेरा मेरा व्यक्तित्व इतना बौना है?

मदन मोहन बाहेती घोटू
कन्यादान कबूल नहीं

शुभदिन था एक परी सी
तू मेरे अंगना उतरी थी
आँख खोल जब मुस्काई थी
घरभर में खुशियां छाई  थी
तेरी खुशबू महक रहा घर
तेरे कारण चहक रहा घर
तू है घर में चहलपहल है
शैतानियां और हलचल है
तेरी जिद और नखरे तेरे
रौनक रहती घर में मेरे
प्रीत तेरी सच्ची लगती है
तू सबको अच्छी लगती है
तू खुशियों का भरा खजाना
आता तुझको प्यार लुटाना
दोस्त मेरी तू सच्ची साथी
कामकाज में हाथ बंटाती
इस दुनिया में सबसे प्यारी
तू  मेरी पहचान  निराली  
निश्छल तेरा प्रेम ,हंसी है
तुझमे मेरी छवि बसी है
एक अनमोल सम्पदा है तू
तू न दान देने की वस्तू
तुझ पर तो अभिमान करूं मैं
कैसे तुझको  दान करूं  मैं
कन्यादान कबूल नहीं है
क्या ये सब की भूल नहीं है

 जग ने है ऐसा सिखलाया
बेटी होती धन है  पराया
कहते जिसे पराया हम धन
वो ही साथ निभाती हरदम
बेटी होती धन ,ये सच है
दो घर की उससे रौनक है
 वो दीपक है सबसे प्यारा
करता दो घर में उजियारा
ऐसी प्रेम भरी ज्योति  है
कभी  पराई  ना होती है
सचल सबल उत्साह से भरी
गुण और प्रतिभा की तू गठरी
तू है मेरी कोख की जाई
कैसे कह दूँ तू है पराई
तू है पुष्प प्यार का खिलता
तू टुकड़ा है मेरे दिल का
बेटा ,हो भी जाय पराया
नहीं पराई होती जाया
हम मूरख रखते है क्यों कर
बेटा और बेटी में अंतर
सोच संकुचित है समाज की
प्रगतिशील बेटी है आज की
तेरा तो सन्मान करूं मैं
कैसे तुझको  दान करूं मैं
 कन्यादान कबूल नहीं है
क्या ये सबकी भूल नहीं है

तू आई ,संवरा था जीवन
आज जारही बनकर दुल्हन
तुझे मिला एक जीवन साथी
उस संग जला, प्रेम की बाती
सुखमय हो जीवन मुस्काये
बस खुशियां ही खुशियां छाये
सास ससुर ,माँ बाप समझना
सबकी मन से इज्जत करना
वो घर खुशियों से महकाना  
इस घर में भी आना जाना
क्योंकि ये घर भी है तेरा
इतने वर्षों किया  बसेरा
यह सामजिक रीत ,ब्याहना
पड़ता है सबको निबाहना
बंधता तभी प्यार का बंधन
नयी जिंदगी को आमंत्रण
दुआ मांगते है ये हम सब
नयी जिंदगी तुझे मुबारक
ममता भरा हुआ तू बंधन
इतना तुझसे बंधा हुआ मन
तू हम सबके दिल पर छाई
तू तो है मेरी परछाई  
सब तुझ पर कुर्बान करूं मैं
कैसे तुझको दान करूं मैं
कन्यादान कबूल नहीं  है
क्या ये सबकी भूल नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '