Sunday, March 11, 2012

ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ

ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ

ये न समझना की मै तुमसे डरता हूँ

मै तो तुमसे प्यार ढेर सा करता हूँ
  बात मानता हूँ मै जब भी तुम्हारी
तुम होती हो मुदित,निखरती छवि प्यारी
वही विजय मुस्कान देखने  चेहरे पर,
जो तुम कहती हो  बस वो ही करता हूँ
ये  न समझना कि मै तुमसे डरता  हूँ
तुम जो कुछ भी,कच्चा पका खिलाती हो
मै तारीफ़ करूं,तो तुम सुख पाती हो
'वह मज़ा आ गया'इसलिए कहता हूँ,
खिली तुम्हारी बाँछों पर मै मरता हूँ
ये न समझना कि मै तुमसे डरता हूँ
कभी सामने आती जब तुम सज धज कर
और पूछती'लगती हूँ ना मै  सुन्दर'
मै तुम्हारे गालों पर चुम्बन देकर,
तुम्हारा सौन्दर्य चोगुना  करता हूँ
ये न समझना  कि मै तुमसे डरता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मै तुम्हारा प्रीतम हूँ

मै तुम्हारा प्रीतम हूँ

तुम तो मेरी प्रेम सुधा हो,मै तुम्हारा प्रीतम हूँ


तुम मधुबाला ,मै मधु प्रेमी,तुम रसवंती,मै प्याला

मै हूँ भ्रमर ,कली तुम खिलती,प्रेमभरी मै मधुशाला
तुम वीणा के तार बजाती,मै तुम्हारी सरगम हूँ
तुम तो मेरी प्रेमसुधा हो, मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
तुम गंगा सी कल कल करती,उज्जवल,चंचल,जलधारा
लहरें उठा बुलाता तुमको,मै तो हूँ सागर खारा
हम तुम खोते इक दूजे में,मै तो वो ही संगम हूँ
तुम तो मेरी प्रेमसुधा हो,मै तुम्हारा प्रीतम हूँ
मै हूँ धूप भरी दोपहरी,शीतल ,मधुर,चांदनी तुम
तुम्हारी धुन पर मै नाचूं,ऐसी मधुर  रागिनी तुम
तुम सुख देता मधुर मिलन हो,मै प्यारा आलिंगन हूँ
तुम तो मेरी  प्रेमसुधा हूँ,मै तुम्हारा प्रीतम  हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तुम बदली पर प्यार न बदला

तुम बदली पर प्यार न बदला

घटाओं से बाल काले आज  श्वेताम्बर  हुए  है

गाल चिकने गुलाबी पर झुर्रियां,सल पड़ गए है
हिरणी से नयन तुम्हारे, कभी  बिजली गिराते
चमक  धुंधली पड़ी ऐसी,छुप रहे ,चश्मा चढाते
और ये गर्दन तुम्हारी,जो कभी थी मोरनी सी
आक्रमण से उम्र के अब ,हुई द्विमांसल घनी सी
मोतियों सी दन्त लड़ी के,टूट कुछ मोती गये है
क्षीरसर में खिले थे जो वो कमल  कुम्हला गये है
कमर जो कमनीय सी थी,बन गयी है आज कमरा
पेट भी अब फूल कर के,लटकता है बना  दोहरा
पैर  थे स्तम्भ कदली के हुए अब हस्ती पग है
अब मटकती चाल का,अंदाज भी थोडा अलग है
शरबती काया तुम्हारी,सलवती अब हो गयी है
प्यार का लेकिन खजाना,लबालब वो का वही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दिल्ली -वाणी

दिल्ली -वाणी

गया मौसम चुनावों का,सर्दियाँ हो गयी कम है

कट गया माया का पत्ता, हुई सत्ता मुलायम है
चैन की ली सांस सबने,लोग थोडा मुस्कराये
फाग आया,जिंदगी में,रंग होली ने  लगाये
देख लोगों को विहँसता, केंद्र से आवाज़ आई
पांच रूपया ,पेट्रोल के ,दाम बढ़ने को है भाई
झेल भी लोगे  इसे तुम,भूल कर के मुस्कराना
याद रखना ,पांच दिन में,बजट भी है हमें लाना
बोझ मंहगाई का इतना,हम सभी पर लाद देंगे
किया तुमने दुखी हमको,दुखी हम तुमको  करेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'