Monday, May 18, 2020

कंवारे का लोक डाउन

मैं डरता नहीं करोने से
जितना कड़छी और भगोने से
ले सुबह दूध और ब्रेड ,लंच ,ऑफिस में जाकर खाता था
संध्या को होटल जाता था या घर पर टिफिन  मंगाता  था
संडे को कंटाला आता ,कपडे और बर्तन धोने से
मैं  डरता नहीं करोने से
बरमूडा और बनियान पहन ,सब काम करो अब ऑन लाइन
ना चहल पहल ,ना यार दोस्त ,मुश्किल से ही कटता  टाइम
जब भूख लगे ,खुद कुकिंग करो ,उठना ही पड़े बिछोने से
मैं डरता नहीं करोने से
कुछ काम चलाया मेग्गी से ,कुछ केले ,फल से काम चला
जब पड़ा पकाना हाथों से ,तो गरम तवे से हाथ जला
पहले सोने को समय न था ,अब तंग आ गया सोने से
मैं डरता नहीं करोने से  
सीखा कैसे  आटा सनता ,रोटी पर गोल नहीं बिलती
गूगल गुरु से सीखा कैसे ,खिचड़ी और बिरयानी बनती
मम्मी कहती ,शादी करले ,क्या होगा यूं ही रोने से
मैं डरने लगा करोने से  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
लॉक डाउन -4

पहला भी गया ,दूजा  बीता ,मुश्किल से तीन गया काटा
अब चार आगया लॉकडाउन ,हर तरफ फिर वही सन्नाटा
है बड़ा विकट ,सारा संकट ,ये कोरोना का ,फ़ैल रहा
कर दिया सभी को आतंकित ,हर देश दंश ये झेल रहा
सारी दुनिया में घबराहट ,कितनो के ही हर लिए प्राण
सब सहमे से ,घर में दुबके ,है बहुत दुखी और परेशान
दो चार ,चार से कर लेंगे ,लड़ना है और निपटना है
ये नहीं पांचवां रूप धरे ,प्रभु से  बस  यही   प्रार्थना है

मदनमोहन बाहेती ;घोटू '
प्रवासी मजदूर -आत्मकथ्य

आये थे शहर ,करने को गुजर ,
लेकिन अब हम पछताते  है
ये चमक दमक, सारी  रौनक ,
कुछ दिन तो बहुत सुहाते है
 आफत  मारे ,हम बेचारे ,
तकलीफ हजारों पाते है
अब  कोरोना ,का ये रोना ,
घर बंद ,निकल ना पाते है
ये बिमारी ,मुश्किल भारी ,
कुछ भी तो कमा ना पाते है
खा गए बचत, टूटी हिम्मत ,
अब पेट नहीं भर पाते है
रेलें न बसें ,हम कहाँ फंसे ,
पैदल निकले ,दुःख पाते है
रोटी के लिए घर छोड़ा था ,
रोटी के लिए घर जाते है

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '