Tuesday, December 31, 2013

नमस्कार


         नमस्कार

आगे पीछे 'नर'है जिसके ,और बीच में 'मस्का'है
नमस्कार की परिभाषा ये सबसे अच्छा चस्का है
दोनों हाथ जोड़ कर उनको ,सिर्फ यही बतलाना है,
अजी आप इन हाथों में ,सब काम हमारे बस का है

घोटू

मख्खन महिमा

             मख्खन महिमा

      नज़रें मत इधर उधर मारो
      यूं ही मत अपना  सर  मारो
       कुछ काम नहीं,ना झक मारो  
      या बैठे बैठे  गप्प मारो
       यदि जीवन सफल बनाना है
       कुछ लेना है ,कुछ पाना है
तो मेरी नेक सलाह सुनो,मुझ पर विश्वास करो यारों
यदि कुछ करके दिखलाना तो ,मख्खन मारो!मख्खन मारो!

है बड़े तपस्वी,सिद्ध,महान ,महिमा है मख्खन  भैया की
सारी गोपी दीवानी थी ,उस मख्खन मार कन्हैया की
जिस को मख्खनबाजी आती ,वो निज मंजिल को पायेगा
पंडितजी को मख्खन मारो तो स्वर्ग तुम्हे मिल जाएगा
गर 'बटरिंग'करना आता है और 'बटर 'तुम्हारा 'प्योर'है
प्रोफ़ेसर पर अप्लाय करो,तो फर्स्ट डिवीजन 'श्योर '  है
पत्नी  को जो मख्खन मारो,पकवान मिलेंगे खाने को
सम्पादक को मख्खन मारो,अपनी कविता छपवाने को
चाहे चमचा बन कर मारो,चाहे कड़छा बन कर मारो
यदि कुछ करके दिखलाना तो,मख्खन मारो!मख्खन मारो!

मख्खनबाजी सीखो साथी यदि जीवन में कुछ करना है
यदि बातें करना आती है तो मुख सोने का झरना है
मख्खन का रिश्ता है धन से,जलती जीवन की ज्योती है
मख्खन के पीछे खन,खन है ,खन खन रुपयों से होती है
जब जमा दूध हम मथते है तो उससे मख्खन आता है
और जब हम मख्खन मलते है ,तो फिर उससे धन आता है
जितना ज्यादा होगा मख्खन,उतनी ज्यादा होगी खन खन
जितनी ज्यादा होगी खन खन ,उतना अच्छा होगा जीवन
मैं झूंठ नहीं सच कहता हूँ,मुझ पर विश्वास करो यारों
यदि कुछ करके दिखलाना तो ,मख्खन मारो!मख्खन मारो!

अंगरेजी भाषा में मख्खन को 'बटर 'पुकारा जाता है
लगता है 'बटर' और 'बेटर ',इन शब्दों में कुछ नाता है
यदि 'बेटर 'बनना है तुमको ,तो 'बटर' काम में लाओ तुम
'बटरिंग'का असर निराला है,अपने सब काम बनाओ तुम  
मख्खन लगने से चेहरे पर ,कुछ ऐसी रौनक आती है
ऐसा चिकनापन छाता है, रंगत ही बदली जाती है
जैसे मख्खी याने कि'फ्लाय 'पर अगर 'बटर 'लग जाती है
तो 'बटर फ्लाय' हो जाती है,याने तितली बन जाती है
तो छोडो सारी खटर पटर ,अब 'बटर 'काम मे लो प्यारों
यदि कुछ करके दिखलाना तो,मख्खन मारो!मख्खन मारो!

यह बात सत्य है एक बार ,जिसको मस्खा लग जाता है
तो फिर मख्खन लगवाने का ,उसको चस्का लग जाता है
ये सेक्रेटरी या फिर पी ऐ ,कुछ लोग किसलिए रखते है
मख्खन की आदत होती है,ये उनसे मख्खन चखते है
'यस सर'यस सर'या जी हज़ूर 'का टॉनिक पिया करते है
जो मख्खन चिपका रह जाता ,खा चमचे जिया करते है
कितने ही लोग पनपते है ,यूं हंसी खुशी चमचे बन के
आजादी के बाद हो गए ,भाव दस गुने  मख्खन के
बढ़ रही खूब मख्खन बाजी ,स्पष्ट बात ये है प्यारों
यदि कुछ करके दिखलाना तो,'मख्खन मारो!मख्खन मारो!

यदि तुमने  मख्खन ना  मारा ,तो समझो जीवन फीका है
पर याद रखो कि मख्खन बाजी का भी एक तरीका  है
साहब को यदि खुश करना है ,खिदमत में उनके साथ रहो
यदि वो जो दिन को रात कहे तो तुम भी दिन को रात कहो
साहब को फिर सलाम करना,पहले टॉमी को सहलाओ
उनके घर के सब काम करो,बीबी बच्चों को टहलाओ
बस साहब खुश हो जायेंगे ,तो समझो फिर  बलिहारी है
शीघ्र प्रमोशन होने की ,पहली रिकमंड तुम्हारी है
सारे रस्ते खुल जायेंगे ,मत प्यारे तुम हिम्मत हारो
यदि कुछ करके दिखलाना तो मख्खन मारो!मख्खन मारो!

पहले दूध दही की नदियां बहती थी ,अब क्या कम है
अब दूध दही सबका मंथन,केवल मख्खन ही मख्खन है
दुनिया के चप्पे चप्पे में ,मख्खन की महिमा मोटी है
मख्खन मारा तो स्वाद अधिक ,हो जाती प्यारे रोटी है
मख्खन के चिकनेपन पर तो ,हर चीज फिसलने लगती है
बन जाते है सब काम,दाल तुम्हारी गलने लगती  है
तुम चमक जाओगे दुनिया में,यदि नित मख्खन की मालिश हो
सब काम सिद्ध हो जायेंगे,यदि मख्खन ,शुद्ध ,निखालिस हो
मैंने आजमा कर देखा है,मुझ पर विश्वास करो यारों
यदि कुछ करके दिखलाना तो,मख्खन मारो!मख्खन मारो!

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

२०१४ का चौहदवीं का चाँद

         २०१४ का चौहदवीं का चाँद
                         १

हमने पत्नी से कहा ,आया है नव वर्ष
बहुत बढ़ी मंहगाई है ,खाली मेरा  पर्स 
खाली मेरा पर्स ,तरस तुम इस पर खाओ
बंद करो फरमाइश ,ये लाओ ,वो लाओ
सन 'तेरह 'में ,तेरा तुझको किया समर्पित
अब जो मेरा ,वो तेरा  यदि  रखा  सुरक्षित
                           २ 
पत्नी बोली बदलते बरस, न बदले आप
तेरह बीता ,अब चलें ,हम चौदह के साथ
हम चौदह के साथ ,पुराणों की ये गाथा
निकले चौदह रत्न ,उदधि जब गया मथा था
मुझे दिलाना ,चौदह रत्नो वाला गहना
चाँद चौहदवीं का तुम मुझको हरदम कहना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

A VERY VERY HAPPY NEW YEAR TO YOU AND YOUR FAMILY

Monday, December 30, 2013

वादा -चाँद तारे तोड़ने का

        वादा -चाँद तारे तोड़ने का

बीबी बोली ,भरते थे दम ,मेरी चाहत के लिए,
आस्मां से चाँद तारे ,तोड़ कर ले आओगे
बड़ी बातें बनाते थे ,दिखाते थे हेकड़ी ,
मांग मेरी ,सितारों से भरोगे ,चमकाओगे
और अब मैं मांगूं कुछ तो,टालते हर मांग को,
और एक अखरोट तक भी,नहीं तुमसे टूटता
हमने बोला ,हमने जबसे ,शादी की है आपसे,
चाँद तारों की कवायत से न पीछा छूटता
शादी की थी ,तब भी तुमसे ,सात थे वादे किये,
निभाने को जिनके चक्कर में गुजारी ,जिंदगी
आदमी फंस जाता है जब ,गृहस्थी के जाल में,
बैल कोल्हू की तरह ,कटती बिचारी   जिंदगी
फंसता है वो ,चिंताओं के जाल में कुछ इसतरह ,
बाल उड़ते और सर पर, चाँद है आता उतर
इतनी बढ़ती जा रही है,आपकी फरमाइशें ,
आँखों आगे ,दिन में आने लगते है तारे नज़र

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, December 28, 2013

डाट का ठाठ

        डाट  का ठाठ

एटम के युग में तलवार नहीं चल सकती
लेकिन कमजोरों की दाल नहीं गल सकती
हमें नहीं तलवार ,छुरी ,कुछ और चाहिए
वह है केवल ,इस जुबान में, जोर चाहिए
जोर कि इतना जोर ,ज़माना हिम्मत हारे
अरे और तो और ,काँप जाए दीवारें
जग में आगे बढ़ने की तकनीक यही है
कमजोरों को ,डट कर डाटो ,ठीक यही है
अफसर आगे पर भीगी बिल्ली बन जाओ
मीठी बातें करो ,पोल्सन खूब लगाओ
जो समाज में तुम्हे बड़ा कहलाना है तो
मेरी मानो बात , दोस्तों अब भी    चेतो
चालू करो जुबान,मुंह से डाट हटाओ
बात बात पर सबको डट कर डाट लगाओ
ये दुनिया दब्बू है ,और दबा दो ,थोडा
पिचकेगी ,यदि तीर डाट का तुमने छोड़ा
एक डपट की लपट ,कपट को सपट करेगी
झंझट की सारी बातें ,झटपट  सुलझेगी
डबल बना देगी तुम्हारे ठाठ बाट  को
देवी समझो,डेली पूजो ,आप डाट को
करो डाट की सेवा ,डिप्टी बन जाओगे
रिश्वत के भी ,फिफ्टी फिफ्टी बन जाओगे
प्रोफ़ेसर हो ,तो शिष्यों पर,धोंस  पड़ेगी
ओफिसर हो ,तो तुम्हारी  पोस्ट बढ़ेगी
अगर पति हो तो पत्नी का प्यार मिलेगा
और ससुर के घर हो तो सत्कार मिलेगा
इसीलिये कहता हूँ सबको डट कर डाटो
लगे मार से डर तो पीछे हट कर   डाटो  
मगर डाटना ,एक मात्र कर्तव्य आपका
ये प्यार आदर्श निराला ,भव्य आपका
जैसे डाट लगा देते हैं ,हम बोतल पर
अंदर वाली चीज नहीं आ सकती बाहर
ठीक उस तरह डाट लगा लोगों के मुंह पर
हो निश्चिन्त,तान खूंटी ,सोवो जीवन भर
ऐसा डाटो ,कि बेचारा  चूं  न कर सके
ब्यूटी तब है,मरना चाहे,पर न मर सके
सुने आपकी डाट उसे आ जाए पसीना
रौब नहीं तो फिर दुनिया में कैसा जीना
डाट नहीं ,मिस्टर ये जादू का डंडा है
गरम बनो खुद ,तो ऊपर वाला ठंडा है
सुनो साथियों,यदि बच्चों के बाप है
उसे प्यार जतलाते तो कर रहे पाप है
क्योंकि उम्र भर ,उसे प्यार ना,डाट मिलेगी
और प्यार की आदत उसको आफत देगी
बना जूनियर ,ढीठपना ही काम करेगा
और सीनियर बनने पर वह डाट सकेगा
इसीलिये तुम उसे अभी से ठीक बनादो 
डट कर डाटो ,डाट डाट कर,ढीठ  बनादो
मुंह पर डाटो ,भले उसे तुम चाहो ,जी से
सुनो,डाटना चालू कर दो,आज ,अभी से  

ताबीज -गंडा

          ताबीज -गंडा
    (एक नुस्खा- सड़क छाप )

भाइयों और दोस्तों,ठहरो ज़रा ,बस मिनिट भर
मैं   न कोई वैद्य हूँ,ना हकीम ,ना ही डॉक्टर
आप जैसा बनाया ,भगवान का ,मैं  आदमी
हाथ थे ,दो पैर लेकिन एक थी मुझमे कमी
क्या बताऊँ ,दोस्तों ! मैं इश्क़ का बीमार था
लाख की  कोशिश भले ही,मैं मगर लाचार था
वैसे था शादीशुदा मैं , किन्तु फिर भी रोग था
मइके में पढ़ती थी बीबीजी ,उन्हें ये शौक था
हिज्र में हालत ये बिगड़ी ,हड्डी हड्डी मांस ना
जिंदगी क्या जिंदगी है ,जब तलक रोमांस ना
तो अजीजों ,बोअर होकर घूमने को हम चले
हिमालय की कन्दरा में ,एक बाबाजी मिले
बोले बेटा जानता हूँ, तेरे दिल की बात मैं
नहीं घबरा ,दौड़ कर ,आयेगी बीबी पास में
एक नुस्खा दिया,मेरी दूर  चिंता  हो गयी
बताता हूँ आप सबको, दाम कुछ लूंगा नहीं
याद घरवाली की अपनी ,जो सताये रात दिन
बांधलो अपने गले में ,अपनी बीबी का रिबिन
सरल नुस्खा है किसी चतुराई की जरुरत नहीं
रिबिन जो बाँधा गले में,टाई  की जरुरत नहीं
ट्राय करके देखिएगा ,कामयाबी  पाएंगे
कच्चे धागे से बंधे ,सरकार चले  आयेंगे
मगर मेरे दोस्तों जो अगर बीबी दूर   हो
आप उनका रिबिन पाने में अगर मजबूर हो
चिंता की जरुरत नहीं ,आशा रखो,धीरज धरो
अपनी बीबी का रिबिन मैं बेचता हूँ ,दिलवरों
साधू का वरदान है ये ,होगा बिजली सा असर
दाम सस्ता ,सिर्फ लागत ,रुपय्ये में वार भर 

डोनेशन तो बनता है

         डोनेशन तो बनता है

आसाराम और नारायण स्वामी
बाप और बेटे,संत,नामी गिरामी
अवांछित कर्मो के फेर में
दोनों बंद  है जेल में
टी वी पर उनके कारनामे आ रहे थे
और ये दोनों ,काफी फूटेज खा रहे थे
रोज रोज उनकी नयी पोल खुल रही थी
बचीखुची इज्जत भी मिटटी में मिल रही थी
ऐसे समय में बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा
और रोज की बदनामी से पीछा छूटा
क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव की घडी आगयी
और टी वी पर चुनाव की ख़बरें छागयी
और फिर कुछ  ऐसे बदले हाल
टी वी पर छागये आम पार्टी के केजरीवाल
अब टी वी वालों के पास थे इतने समाचार
कि टाइम ही नहीं था ,सुनाने को इनके हालचाल
इन दोनों तथाकथित संतो को,
कहना चाहिए ,केजरीवाल का शुक्रिया
रोज रोज होती बदनामी से बचा लिया
 इसके लिए ,वो अगर,
 केजरीवाल के अहसानजदा है
तो उनका,अपनी अकूत दौलत में से ,
आमपार्टी के लिए ,थोडा डोनेशन तो बनता है

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

Friday, December 27, 2013

दो छोटी कवितायें-पत्नीजी को समर्पित

      दो छोटी कवितायें-पत्नीजी को समर्पित
                             १
               भगवान का  प्रसाद
 
मिलता प्रसाद प्रभू का, हम हाथ में लिये
हम खा लेते चुपचाप,बिना चूं चपड़ किये
भगवान का परसाद,हमेशा ही स्वाद है
अमृत छुपा है उसमे और आशीर्वाद  है
भगवान के परसाद सी होती है बीबियाँ
जिसको भी जैसी मिल गयी,वैसा ग्रहण किया  
उसमे न कभी भी कोई तुम नुक्स निकालो
श्रद्धा से या मजबूरी से,जैसी हो ,निभालो
                       २
          जलने लगी है रोटियां
वैसे ही बड़ी प्यारी सी ,बीबी हमें मिली
दिन दूनी रात चौगुनी ,खूबसूरती खिली
सब कुढ़ने लगे ,हो गयी सुन्दर वो इस कदर
जलने लगी है रोटियां भी उनको देख कर
जादू ये उनके हुस्न का ,करता कमाल है
नित दूध की पतीली में ,आता उबाल है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैं खोखली सी हंसी हो गया हूँ

        मैं खोखली सी हंसी हो गया हूँ

बुढ़ापे में हालात ,हुए इतने बदतर
परेशान रहता हूँ,दुखी और परबस ,
नहीं चाहता हूँ ,मगर फिर भी बरबस ,
                   मैं गमजदां ,गमनशीं  हो गया हूँ
हजारों है दिक्कत,हजारों है  झंझट
जिधर देखता हूँ,परेशानी ,खटपट
टूटा मेरा दिल,बड़ा ही है आहत ,
                     विधवा की ज्यों,बेबसी हो गया हूँ
बदलते ये मौसम,सुहाते न पलभर
किया सर्दियों ने ,बहुत मुझको बेकल
नहीं छूटते  है ,रजाई और कम्बल
                     मैं  अब इस कदर ,आलसी हो गया हूँ
मुझे वक़्त ने है,सताया ,झिंजोड़ा
मेरे अपनों ने ही,मेरा दिल है तोड़ा
परेशानियों ने कहीं का न छोड़ा
                       मैं खोखली सी ,हँसी  हो गया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मालिश

          मालिश

हमने मालिश की बदन पर ,तेल से बादाम के
लगे हटने ,झुर्रियों के ,जाल थे जो चाम पे
और चेहरा भी हमारा ,बला का रोशन हुआ ,
थे निकम्मे अब तलक ,अब आदमी है काम के

घोटू

भागो भागो -शेर आया

          भागो भागो -शेर आया

शेर आया ,शेर आया,
भागो भागो ,भागो भागो,
 गीदड़ों के घरों में ,हड़कम्प हुआ व्याप्त है
दफतरों में जो थे चोर
चाहते थे मोर मोर
 होनी ऐसे लोगों की अब ,शीध्र ही शिनाख्त है 
फाइलें है फाड़ रहे
कागज़ निकाल रहे ,
पोस्टिंग मलाईदार ,जिन्हे अभी प्राप्त है 
इधर उधर भाग रहे
ट्रांसफर  मांग रहे
ऐसे भ्रष्टाचारियों को ,करना  समाप्त है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

Thursday, December 26, 2013

आयोग और योग

        आयोग और योग

कितने ही आयोग लाओ,योग पर यही ,
                     अबके नहीं सहयोग मिलेगा चुनाव में
ऐसे किये है जिंदगी भर आपने करम,
                       अनुराग नहीं,रोग  मिलेगा  चुनाव में
मुश्किल से ही ये कहीं ,कभी तैर सकेगी,
                         तुमको पता ना छेद कितने हुए नाव में
भोगा है तुमने राज सुख,जनता ने भोग दुःख,
                          सत्ता से भाग जाओगे ,अबके चुनाव में

घोटू

सात सौ लीटर पानी

       सात सौ लीटर पानी

पानी भरने के लिए ,लम्बी सी कतार
अपने अपने खाली डिब्बे लिए ,
लोग कर रहे थे ,अपनी बारी का इन्तजार
दो महिलायें,उम्र में थोड़ी बड़ी
बातें कर रही थी,भीड़ में खड़ी खड़ी
अब शायद कम हो जायेगी पानी की परेशानी
क्योंकि अब जीत गयी है 'झाड़ू',
हमको मिलेगा रोज सात सौ लीटर पानी
पास खड़ी एक बच्ची ,सोच रही थी ,परेशानी से
ये झाड़ू का क्या सम्बन्ध है पानी से ?
उसने पास खड़ी अम्मा से पूछा ,
माँ ,ये सात सौ लीटर पानी कितना होता है
अम्मा बोली,ये जो तेरी दस लीटर की पीपी है ना,
ऐसी सत्तर पीपी के बराबर होता है
लड़की ने घबरा कर कहा 'हाय राम,
तो क्या हम दिन भर पानी ही भरेंगे ?
घर में तो चार ही बर्तन है,
इतना पानी कहाँ धरेंगे ?
और फिर इतने पानी का हम क्या करेंगे ?
कितने अफ़सोस की बात है  ,
लोग आज शुद्ध पानी के लिए तरसते है
पानी बरसे या न बरसे ,
पानी के नाम पर वोट बरसते है
हम नहीं मुहैया करवा पाये ,शुद्ध पानी भी,
जनता को ,आजादी के अड़सठ साल के भी बाद
क्या नहीं है ये हमारे लिए,
चुल्लू भर पानी में डूब जाने की बात?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      कुछ  इंग्लिश -कुछ हिंदी

बन्दर जैसा उछला करता ,ऐसी हालत होती मन की
इसीलिये इंग्लिश भाषा में ,बन्दर को कहते है  मन्की
और उँगलियाँ तो औरत की ,होती है नाज़ुक और सुन्दर
तो फिर भिन्डी को इंग्लिश में ,क्यों कहते है 'लेडी फिंगर'
'बुल 'याने कि सांड होता है ,टकराते इंग्लिश के दो'बुल'
तो हिंदी में बन जाती है ,प्यारी और नाजुक सी 'बुलबुल'
होता है 'लव गेम'शून्य का,सदा खेल में बेडमिंटन के
पर हिंदी में 'खेल प्यार का',कितने फूल खिलाता मन के

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम आपके है कौन

           हम आपके है कौन

सत्ता में तुम आये हो हमारे ही सहारे ,
                  बैसाखी तो हमारी है ,फिर भी हम  गौण  है
हम गिराया ऐसा नीचे आसमान से ,
                   किस्मत ना साथ,मन मसोस ,चुप है ,मौन है
जनता को बरगलाते कर बातें बड़ी बड़ी ,
                   और हमको रहते कोसते हो तुम घड़ी घड़ी ,
ये प्यार के इजहार का कैसा है तरीका ,
                   हमको बता दोये कि 'हम आपके  कौन है'?    

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आम आदमी

          आम आदमी

कानो पे है गुलबंद ,सर पे टोपी है सफ़ेद ,
                है सीधा,सादा और खरा ,आम आदमी
ना सरकारी बँगला है ना सरकारी कार है,
              ना है दिखावट उसमे जरा ,आम आदमी  
कहता है भ्रष्टाचार हम ,जड़ से मिटायेंगे ,
              विश्वास से है कितना भरा , आम आदमी
आया है बन के केहरी ,अरविन्द केजरी ,
              है शेर,किसी से न डरा ,आम आदमी

           
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, December 23, 2013

दो


         दो

मेरे साथी दो मिनिट रुको ,
                           दो ध्यान जरा अपने मन में
कितना महत्त्व वाला है यह ,
                            दो का अक्षर जन जीवन में
दो के दो मतलब होते है,
                           एक गिनती का,एक अक्षर का
दो दिन की दुनिया में आये ,
                           जीवन पाया है दो पल का
दो हाथ दिए,दो पैर दिए,
                            दो आँखें दी,दो कान दिए
दो दो के जोड़े से हमको ,
                           तुमने सबकुछ ,भगवान दिए
दो हाथों से ताली बजती ,
                            दो मिल कर दोस्त कहाते है
दो हाथ नमस्ते करते हैं,
                            बोझा   दो  हाथ    उठाते है
जब दो दो हाथ मिलाने को,
                            हम प्रेम प्रतीक मानते है   
तो दो दो हाथ दिखाने को,
                             झगड़े की लीक मानते है
हर एक काम में जरुरत है ,
                              दो हाथ काम में लाने की
दो हाथों के ही पौरुष ने , 
                              बदली रफ़्तार जमाने की
दो बाहों से बढ़ कर जग में ,
                              क्या कोई सहारा  होता है
दो होठों की लाली से बढ़ ,
                              क्या कोई नज़ारा होता है
  दो आँखें जब मिल जाती है,
                               जग खोयी खोयी कहता है
दो   मोती  ढलका  देती  है,
                                जग  रोई   रोई कहता है
दो आँखे जब लड़ जाती है ,
                                तो जग कहता है प्यार हुआ
दो आँखों के झुक जाने से ,
                                कितनो का ही उद्धार  हुआ
उनने जब दो आँखे बदली ,
                              तो ह्रदय हमारा टूट  गया
दो आँखें  बंद हुई समझो ,
                              दुनिया से रिश्ता छूट  गया    
अच्छे अच्छे नाचा करते,
                               आँखों के एक इशारे पर
सारी दुनिया मरती ,है दो,
                                नज़रों के एक नज़ारे पर
इंसान अकेला होता है  तो,
                                 उसे  अधूरा  कहते है
पति पत्नी मिल  दो बनते है,
                                   तो उसको पूरा कहते है
इंसान,जानवर,इन दो में ,
                                 केवल अंतर है बस दो का
चौपाया चार पाँव का है ,
                               इंसान मगर दो पांवों का
दो पैर सहारा जीवन के ,
                                पैरों बिन जीवन झूंठा है
तो पैरों ने ही थिरक थिरक ,
                                कितनो का ही तप लूटा है
 दो  सलाई बुनती  स्वेटर ,
                                 कैंची  काटे दो टांगों से
बन जाते मिस्टर मेडम की,
                                  दो मीठी मीठी  बातों से
बीबी में दो 'बी'होते है ,
                               पापा में दो 'पा'  होते है
जो हरदम 'हाँ' करते हैं उन,
                                नाना में दो 'ना' होते है
और गणित का एक नियम,
                                  दो रिण मिल कर धन होते है
दो चोटी,उसमे दो मोती ,
                                  क्या प्यारे फेशन होते है 
उनके दो पैरों की शोभा ,
                                 दो बद्दी वाली चप्पल  है
दो पहियों से  गाडी चलती ,
                                   दो से चलते स्कूटर है     
जब दो पट हट जाते है तो ,
                                    दरवाजा  खुल जाता है
नीचे दो,ऊपर एक हुआ ,
                                 वो पाजामा कहलाता है
दो मिले अगर नौ साल बाद,
                                 दो,नौ दो ग्यारह होते है
दिन दूनी करे तरक्की जो ,
                                   उसके पौबारह होते है
धोका देना,दो,खा लेना ,
                                दौलत ये दो लत देती है
दो मीठी बात बना लेना ,
                                इज्जत ये आदत देती है
फरवरी दूसरा महीना जो,
                                 सब से कम दिन वाला होता
तनख्वाह पूरी मिलती हर दिन,
                                  ज्यादा कीमत वाला होता
कोई कहता है चन्दा दो,
                                 कोई कहता है धंधा  दो
   बढ़ गया भाव है राशन का ,
                                  जनता कहती ,कर मंदा दो
ये कहते हमें प्रमोशन दो ,
                                    वो कहते है प्रोडक्शन दो
नेताजी आओ भाषण दो ,
                                  हमको झूंठे आश्वासन दो
तो दो का चक्कर ऐसा है
                                 जो सबके मन को भाता है
इसीलिये दो बच्चों का,
                                 परिवार सुखी कहलाता है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, December 22, 2013

बाल

                बाल

हम जिनकी इज्जत करते है,माथे पर जिन्हे चढ़ाये है
पलकों के द्वार बिठाया है  ,जो रोम रोम में छायें है
पलटे साँसों के साये में ,चिपके रहते है गालों पर
सब नर नारी की शोभा जो ,है नाज़ हमें उन बालों पर
ये भले सुनहरी या काले,भूरे  घुंघराले होते है
रेशम से हों या बदली से ,पर सब मतवाले होते है
जब जुड़ा बन कर संवर गए ,तो गोरा आनन चमक उठा
जब बिखर गए तो बदली में ,जैसे चन्दा हो दमक उठा
जब बाल गुंथे चोंटी बनकर ,नागिन से आकर लटक गए 
बाला के बाल जाल में है ,कितने ही लोचन भटक गए
इन बालों की जंजीरों ने ,बाँधा कितने दिलवालों को
कितने शीरी फरहाद बने है बढ़ा बढ़ा कर बालों को
कितने ही दुःख की एक दवा ,होता है जुल्फों का साया
बालों में सिंदूरी रेखा, सॊभाग्य चिन्ह यह कहलाया
नारी में और पुरुष में भी,यह अंतर एक निराला है
है बाल विहीन गालवाली नारी,नर दाढ़ी वाला है
नारी बालों को बढ़ा रही,नर है बालों को कटा रहा
सर के ,गालों के झंझट को,कैंची ,रेज़र से हटा रहा
जिनके होते है बढे बाल ,वो बड़े मेहनती होते है
जिनके होते है झड़े बाल ,वो अक्सर रहते रोते है
है उड़े बाल तो अच्छा है ,खल्वाट क्वचित निर्धन होते
है बड़े बाल तो अच्छा है,सुन्दर सुन्दर फेशन होते
सर्दी की ऋतू में बड़े बाल ,मफलर का काम दिया करते
तकिया यदि  ना भी हो तो ,सोने में आराम दिया करते 
थोड़े से बाल बिखेरो तुम तो फिलासफर कहलाओगे
ठाड़े से बाल संवारो तो ,फ़िल्मी हीरो  बन जाओगे
थोड़े हो छोटे बाल अगर ,तो खुला  हुआ सर चमकेगा
चंदिया के बालों का उड़ना,तुमको अच्छी इज्जत देगा
बढ़ती ज्यों उमर ,बाल का भी ,त्यों त्यों होता उजला रंग है
कोई की उमर जानने का ,ये कितना अच्छा सा ढंग है
कुछ बातें घने राज वाली ,भी है ये खोल दिया करते
बिखरें हो सुबह,रात का सब,अफसाना बोल दिया करते
देरी से घर आने वाले ,पति के कपड़ों पर पड़े बाल
बतला देते है पत्नी को ,उसकी सांझों का हालचाल
इतिहास साक्षी है इसका ,बालों ने क्या क्या कर डाला
बिखरे जब बाल केकैयी के ,वनवास राम को दे डाला
बीज महाभारत का भी  इन बालों ने ही बोया था
दुशासन के खूं से द्रोपदी ने निज बालों को धोया था
गंगा ने भी आ शंकरजी के बालों में था वास किया
जब बिखर गए चाणक्य बाल ,तो नंदवंश का नाश किया
सेमसन की सारी ताकत थी,उसके बालों में छुपी हुई
हजरत के बाल आजतक भी,पूजे जाते है कहीं कहीं
 सन्यासी होता घुटा मुटा ,ऋषियो के बाल बढे रहते
बीटल के बाल लटकते है ,तो हिप्पी के बिखरे रहते
क्या एक बाल से होता है ,पर इनमे बड़ा संगठन है
ताकत का अरे एकता की ,कितना अच्छा उदाहरण है
 बालों का पर्दा आँखों पर ,ये पहरेदार आँख के है
जो सच्चे मित्र हुआ करते ,कहलाते बाल  नाक के है
नाई और ब्लेड उस्तरे वाले,बालों के बल  पलते  है
बालों से ही विग बनता है ,बालों से कपडे बनते है
सुनते है कुछ लोग बाल की खाल निकाला करते है
कुछ लोग बाल के पिंजरे में ,जूँवो को पाला  करते है
उड़ गए बाल मंहगाई में ,गंजे अच्छे अच्छे  होते
हम बाल बाल ही बचे नहीं तो कई बाल बच्चे होते
बालों में नाइट्रोजन है ,खेती की उपज बढ़ाने  को
ये कितना अच्छा साधन है,फॉरेन एक्सचेंज लाने को
है कितनी मांग विदेशों में,भारत के काले बालों की
हम यदि चाहें तो कर सकते ,आमदनी कई हज़ारों की
तो एक्सपोर्ट को क्यों न बाल का प्रोडक्शन चालू कर दें
अधिक बाल  उपजाओ वाला ,आंदोलन चालू कर दें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

धरम की बात

           धरम की बात 
(एक नास्तिक प्रोफ़ेसर को उसकी
आस्तिक पत्नी का धर्मोपदेश)

सुनो श्रीमान जी ,       बात है ये ज्ञान की
भले करम कीजिये  ,  दान धरम कीजिये      

दान बड़ी चीज है ,       मुक्ति  का ये बीज है
लिखा है पुराण में ,      कलयुगी  जहान  में
मोक्ष प्राप्ति वास्ते ,      दान     धरम  रास्ते 
और एक आप हो ,       जो दान के खिलाफ हो
दान करूं  ,टोकते          मेरी राह रोकते
प्रोफ़ेसर साहब ओ !       तुम बड़े खराब हो
कुछ तो शरम कीजिये    दान धरम कीजिये

कितने हो कंजूस तुम      बड़े मक्खीचूस तुम
मोटी सी पगार है             बेंक में हज़ार   है
खर्च करते डरते पर           दान से मुकरते पर
मेरी कुछ न मानते           अपनी ही हो तानते
सूना सूना घर पड़ा             अखरता है मुझे बड़ा
हम अकेले जीव दो             रह सकेंगे अब न यों
मुझपे  रहम कीजिये        दान धरम  कीजिये

अब तलाक बहुत सहा        कितनी बार है कहा
गंगा स्नान कीजिये           पुण्य दान   कीजिये
विश्वनाथ ही चलें                साथ साथ ही चलें
तुमने पर मना किया          बहाना  बना दिया 
मीटिंग में जाना है              लेक्चर  बनाना है
मीटिंग और लेक्चर            बीत जायेगी  उमर
इनको तो कम कीजिये        दान धरम  कीजिये

मेरी बात मानिये                खरी खरी जानिये
पैसा कुछ न जाएगा            चोखा रंग आयेगा
एक बात है पिया                 जांचते हो कापियां
करते लड़के फ़ैल हो             जैसे कोई खेल हो
तो एक काम कीजिये            मार्क्स  दान दीजिये
एक भी न काटिये                 खुल्ले हाथ बांटिये
परीक्षा में गर नहीं                  तो सेशनल में ही सही
फ़ैल ख़तम कीजिये               दान   धरम  कीजिये

आरजू हुजूर से              छात्र आते दूर से
उनको पास कीजिये        मत निराश कीजिये
दिल किसी का ना दुखे        ये ही बड़ा धर्म है
सबकी दुआ लीजिये         छह के साठ  कीजिये   
अब के लूंगी देख भी          किया जो फ़ैल एक भी
ये बात है खरी डीयर          मै जाउंगी  चली पीहर
दिल को नरम  कीजिए       दान धरम   कीजिये

आम आदमी -ख़ास आदमी

      आम आदमी -ख़ास आदमी

इस बार ,देश की राजनीति में ,
एक क्रांतिकारी इत्तेफाक  हो गया
एक आम आदमी ,अचानक ख़ास हो गया
उसकी सादगी और इरादों ने ,
त्रस्त और दुखी जनता  के मन में आस जगा दी
कि चुनाव में,ख़ास आदमी को ,जनता ने धूल चटा दी
पर बदकिस्मती से ,वो इतना भी ख़ास न हुआ ,
कि अपने खुद के बूते,सत्ता की कुर्सी पर चढ़े
तो वो ख़ास आदमी,जो थोड़े ही ख़ास रह गए थे ,
उसकी तरफ सहयोग देने को बढे
यही सोच कर कि आम आदमी अनुभवहीन है,
वादे पूरे  नहीं कर पायेगा
और शीध्र ही 'एक्सपोज 'हो जाएगा
आम आदमी इनके इरादों को अच्छी तरह समझता था
इसलिये फूंक फूंक कर कदम रखता था
वो अच्छी तरह जानता था ये बात
इनका कोई भरोसा नहीं,कब खींच ले हाथ
पर इस चक्कर में ,अच्छा खासा बवाल होगया
अब क्या होगा ,सब के मन में ये सवाल हो गया
लोग कहने लगे ,आम आदमी ये क्या कर रहा है
जिम्मेदारी से डर रहा है  ,वादों से मुकर रहा है
आम आदमी को राजनीति करना नहीं आता है
इसलिए सत्ता में आने से घबराता है
पर एक दिन ,जनता की राय लेकर ,
आम आदमी बैठ गया कुर्सी पर
और वो जैसे अपना घर चलाता था ,
उसी किफायत और अनुशासन से ,
सरकार चलाने लगा   
उसका ये तरीका ,लोगों को पसंद आने लगा
और उसकी सरकार जब ठीक से चलने लगी
पुराने ख़ास लोगों को ये बात खलने लगी
सोचा कि लोगों को अगर,
 सुशासन की आदत पड़ जायेगी
तो हमारी तो लुटिया ही डूब जायेगी
और एक दिन बौखला कर ख़ास आदमियों ने ,
सरकार से अपना सहयोग हटा लिया
और आम आदमी को सत्ता से गिरा दिया
और इससे जनता के आगे ,
ख़ास आदमियों की पोल खुल गयी
और अगले आम  चुनाव में ,सरकार ही बदल गयी

मदन मोहन बाहेती  'घोटू'

Saturday, December 21, 2013

कैंची

          कैंची

बहुत दिनों के बाद ,मूड लिखने का आया
चलो  बतादूँ सबको दो टांगों  की     माया
टांगें दोनों तेज मगर वो कतराती है
बिना हाथ का साथ लिए ना चल पाती है
इससे ये न समझ लेना वो चौपाया है
नहीं खुदा ने रचा,हमी ने बनवाया है
उंगली और अंगूठे की शौक़ीन बहुत है
सुन्दर है,कुछ मोटी है कुछ क्षीण बहुत है
लेकिन ये है जब भी साथ हाथ का पाया
तब दोनों मिल गयी ,बीच में जो भी आया
कट जाता है बेचारा ,बिन खेंचा खेंची
हाँ जनाब हैम सब उसको कहते है कैंची
यह दो टांगों का कातिल ,कितना उपयोगी
इससे अच्छी ,शायद कोई चीज न होगी
इसने चल कर ,मानव जीवन ,बहुत संवारा  
ये जब चलती है ,कितनो को मिले सहारा
खुद चल कर ,कितनो का ही है काम चलाती
अरे  कई  कामो  में है       यह कैंची आती
दरजी की दूकान चल रही कैची के बल
नाई का सब काम चलाती ,कैंची केवल
हम सब यूं जो चलते फिरते ,बने ठने है
 आदिम युग ,हमें यहाँ लाया किसने है
किस से हमने आज सभ्यता ,ये जानी है
मित्रों ये सब कैंची की मेहरबानी है
हमको 'अप टु डेट' बनाया  है कैंची ने
सचमुच इतना ग्रेट बनाया है कैची ने
आती काम ऑपरेशन के ,अस्पताल में
कितने बीमारों को लाती ठीक हाल में
परिवार नियोजन में ये बड़ी सहायक है
मैं कहता ,यह राष्ट्र चिन्ह के लायक है
बढे हुए नाखून,काट लो , तुम कैंची से
मूंछों के भी बाल ,छाँटलो ,तुम कैची से
कैंची वाला दांव ,जिताता पहलवान को
कैंची चला रही है कपडे की दूकान को
पनवाड़ी के सड़े पान ,सब छांटे कैंची
बागीचे कि बढ़ी पत्तियां,छांटे कैंची
कागज़ काटो,फूल पत्तियां खूब बनाओ
नाड़ा नहीं खुल रहा ,काटो,कैंची लाओ
कैंची हाथों में हो,बंधन हट जाता है
लोहे की कैंची से लोहा कट जाता है
उदघाटन करने वाला औजार यही है
जेब काटने वालों का हथियार यही है
भली भलों के  ,बुरों के लिए बुरी है
अच्छी है तो जीवन दाता ,बुरी छुरी  है
बड़े बड़ों का बिगड़ा हाल बना देती है
ये साड़ी तक को रूमाल बना देती है
कवि लेखक या आलोचक यदि जो बनना हो
मेरी मानो बात दोस्तों ,कैंची लाओ
कटिंग इधर से ,थोड़ी कटिंग उधर से काटो
चिपका कागज़ पर ,अपने नामो छपवा दो
बन बैठे है ,कितने ही लेखक कैंची से
बनी साधना ,काट 'साधना कट 'कैंची से
कैंची केश सँवारे ,फेशन की ये जननी
ब्लाउज बाहें,'लोअर नेक 'इसी ने करनी
सबसे बड़ा पाठ ये सिखलाती है कैंची
नहीं अकेला ,कोई कर सकता है कुछ भी
एक एक मिल ,यदि उलटे भी चल जाते है
तो दुनिया के कितने झंझट  कट जाते है
ये गुण दो टांगों की कैची में पाओगे
एक टांग की कैंची देखो,चकराओगे
क्योंकि नहीं है केवल इसका काम काटना
बल्कि बना कर,तरह तरह की बात ,बांटना
है इतनी उस्ताद,दिमाग चाट लेती है
बड़े बड़ों के भी ये कान काट लेती   है
ये जब चलती ,कोई नहीं रोक पाता  है
और रोकने वाला कट कर रह जाता है
हाथ ,पाँव या बिन बिजली के चलनेवाली
एक टांग की कैंची है ये बड़ी निराली
नारी इसे चलाने में ,पूरी माहिर है
जी हाँ ,यह कैची जुबान है,जग जाहिर है
कैंची सी जुबान चलती है,सब डरते है
लेकिन फिर भी प्यार उसी से सब करते है
कैंची बड़ी महान,चीज बेकार नहीं है
कैंची अगर नहीं ,कुछ भी संसार नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

दर्द - दिल्ली का

           दर्द - दिल्ली  का

शादी हम पांच बहनो की थी  हुई एक साथ
उनमे से चार ने तो मना  ली  सुहागरात
मैं  सबसे छोटी ,दुलारी ,प्यारी और हसीं
दुल्हे का मेरे अभी तक कोई पता  नहीं
बाकी सभी के दुल्हे तो थे खूब अनुभवी
मेरा था नौसिखिया ,कंवारा,ये कमी रही
सोचा  था नव जवान है और जोश से भरा
कर देगा मेरी गोद  को जल्दी हरा भरा
पर वो तो मेरे पास ही आने में सहमता
लोगों  से फिर से पूछ के आउंगा,ये कहता  ,
अब मेरे मन में होने लगा दर्द है यही  
क्या मेरा ये दूल्हा कहीं   नामर्द तो नहीं
दुल्हन बनी दिल्ली के कहा ,भर के ठंडी आह
लगता है अब तो करना पडेगा पुनर्विवाह

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, December 19, 2013

काला- गोरा

           काला- गोरा

काली आँखे मुख की शोभा बढ़ा रही है ,
                          काले केश हमेशा मस्तक पर रहते है
काला ही तो गोर की शोभा होता है ,
                           काले रंग को लोग बुरा फिर क्यों कहते है
गोरा रंग कहाँ रहता है,पगथलियों में,
                            नग्न बिचरता है गलियों में आवारा
या फिर छुपा हुआ रहता जूते के अंदर,
                             सूरत दिखलाने में डरता  बेचारा
नारी तक भी नहीं चाहती गोरा रंग ,
                               गोरे  हाथों को मेंहदी से रंग लेती है
गोरे  मस्तक से उसको कोई लगाव नहीं ,
                                 इसीलिये माथे पर बिंदिया देती है
बुरी चीज को सभी छुपाया करते है,
                                  इसीलिये गौरी मुख घूंघट होता है
गोरा गात भले हो रोम रोम में पर,
                                   काले काले रूऑ  का जमघट होता है
 गोरे  सूरज की प्रखर तेज किरणो से तो,
                                   काला दाग लिए चन्दा ही शीतल है
काले बादल ही तो सुख बरसाते है,
                                   शोभा आँखों की होता काला काजल है
गोरा रंग भी क्या कोई रंग में रंग है ,
                                    जिसका अपने खुद पर कुछ अधिकार नहीं
भरतपुरी लोटे सा बिन पेंदे वाला,
                                     जिस रंग में चाहो रंगलो ,इंकार     नहीं
युगों युगों से काला रंग स्वाभिमानी ,
                                       खुद को बहकावे में ना आने देता है
अपने सिद्धांतों पर अटल सदा रहता ,
                                       और रंगों को निज रंग में रंग लेता है
काला रंग सदा गम्भीर हुआ करता ,
                                       टुच्चेपन की गोरा रंग निशानी है
गहरा पानी काला रहता ,गम्भीर सदा ,
                                        जो उजला रहता वो छिछला पानी है
कृष्ण कन्हैया का वो काला रंग ही था,
                                        कई गोपियाँ जिसके हित दीवानी थी
गोरे रंग की करतूत शहीदों से पूछो,
                                         अंग्रेजों से क्यों लड़ी लक्ष्मी रानी थी
गोरा रंग जुल्मी बेरहम हुआ करता,
                                         गोरी तलवार हमेशा खून बहाती है    
काला रंग शांति का द्योतक होता है ,
                                          काली म्यान मिली ठंडी हो जाती है
जो हरदम सुखदुख में साथ रहा करता ,
                                          वो अपना साया भी काला होता है
काला तिल 'ब्यूटी स्पॉट 'कहाता है,
                                         तिल से चेहरा कितना मतवाला होता है
काला रंग प्रतीक जवानी यौवन का,
                                          काले केश ,जवां मस्तक पर छाते है
काले का महत्त्व उनसे पूछो जो निज ,
                                           उजले बालों पर रोज खिजाब लगाते है 
पुरुषों के गोर मुख पर काली दाढ़ी है,
                                           दांतों पर काली मूंछों का साया है
काली कोयल ही  मीठे गाने गाती है ,
                                           काली जुल्फों ने किसको नहीं लुभाया है
काला धुंवा हरदम ऊंचा उठता है ,
                                         साधी सादी होती काली घरवाली  है
इसिलिये मै काले के गुण गाता हूँ,
                                            मैं काला हूँ,मेरी  बीबी  काली है                  

ये आदत निगोड़ी नहीं जाती

         ये आदत निगोड़ी नहीं जाती

प्रीत तो दो दिलों का बंधन है ,
हर किसी से ये जोड़ी नहीं जाती
 जुड़ी तो,रिश्ता जन्मजन्म का है,
कच्चे धागे सी  ,तोड़ी नहीं जाती 
कोई कोशिश  लाखों ही करले,
राह किस्मत की मोड़ी नहीं जाती
कशिश कुछ न कुछ तो है समंदर में,
वर्ना नदियां वहाँ दौड़ी नहीं जाती
जब तलक बहुत ना हो मजबूरी ,
बच्चों की गुल्लक,फोड़ी नहीं जाती
जबसे बहुत गुस्ताख हुई है सर्दी ,
रजाई है कि ये  छोड़ी नहीं जाती
दूसरों की जिंदगी में दखल देने की,
हमारी ये आदत ,निगोड़ी नहीं जाती
'घोटू'तो जिंदादिल है ,जीता मौजमस्ती में,
ऐसी लत पड़  गयी,छोड़ी नहीं जाती  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

'आप'ने

                 'आप'ने

 

दर्देदिल,दर्दे जिगर ,दिल में जगाया आप ने

हम कहीं के ना रहे ,ऐसा   हराया   आप ने

खुद तो अट्ठाइस सीटें ,जीत कर गर्वित हुए ,

और हमको , आठ सीटों ,पर जिताया आपने

हमने  सोचा ,मिले हम तुम,और ये घर बसायें,

पर न गुण मिलते हमारे ,ये बताया  आप ने

आठ अट्ठाइस मिले,छत्तीस गुण सब मिल गए ,

फिर भी शादी करने का ना मन बनाया ,आप ने

हम तो 'लिविंग इन रिलेशनशिप'को भी तैयार थे,

मांग अट्ठारह वचन , चक्कर चलाया  आप ने

आपकी वो सारी शर्तें,हमने  झट से मान ली,

लोगों से पूछेंगे कह ,पीछा छुड़ाया    आप  ने

आप की मर्दानगी पे जनता शक करने लगी ,

छह माह में बच्चे देंगे  ,बरगलाया  आप ने

अपनी जिम्मेदारियों से ,ऐसे पल्ला झाड़ कर,

पात्र खुद को ही हंसी का,है बनाया  आप ने

 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, December 18, 2013

दाढ़ी


              दाढ़ी
दाढ़ी इतनी बढ़ी,ढेर से बाल आ गये  
चिकने चिकने गालों पर जंजाल छा गये
सोलह वर्षों तक हमने सींचा था ऑइल
तब कहीं बनी है ,गाल भूमि यह फर्टाइल
रोज काटता ,फसल रोज  बढ़ जाती है
व्यर्थ फेंकता ,काम नहीं कुछ आती  है
डेली नयी फसल को मैं करता  काटा
फिर भी तो इस धंधे में पड़ता  घाटा
ना काटूं ,क्या करू,व्यर्थ की आफत है
और बिना काटे आ जाती शामत है
कहती बीबी है नाज़ जिसे निज बालों पर
'ये झाड़ फूंस क्यों बढ़ा रखे है गालों पर
पैसा कितना दाढ़ी बढ़ा बचा लोगे
क्या कोई नयी चिड़िया तुम इसमें पालोगे'?
कोई कहता मैं बेकारी का मारा हूँ
तो कोई बतलाता मैं आवारा  हूँ
कोई कहता कैसा फेशन का भूत चढ़ा
नहीं कटाता ,दाढ़ी इसने  रखी   बढ़ा
तो फिर कोई कहता है बीमार मुझे
जाने क्या क्या कहता है संसार मुझे
घरवाले भी क्या क्या सोचा करते है
बच्चे गोदी चढ़ ,दाढ़ी नोचा करते  है
देख बढ़ी दाढ़ी नाई भी जलता है
बिन मुंड़वाये ,काम नहीं  कुछ चलता है
एक दिवस की बीबीजी से यह चर्चा
सहा न जाता साठ रूपये मासिक खर्चा  
जितने रूपये बलिदान किये इस दाढ़ी पर
यदि खर्च किये होते बीबी की साड़ी पर
दो चार दर्जन साडी अब तक ले ही आते
सुनते पत्नी की प्रेम भरी मीठी बातें
हालांकि बात यह थी बीबीजी के मन की
फिर भी हो नाराज़ वो हम पर थी तुनकी  
क्योंकि बीबीजी है राष्ट्रीय विचारों की
सुलझाती रहे समस्या वह बेकारों की
बोली कितने परिवार कि इस पर जीते है
सभी नाई इसके बल खाते पीते है
उस्तरे साबुन वाले इसकी खाते है
ब्लेड वाले इससे ही अरे कमाते है
दाढी ने कम करी बहुत बेकारी है
देशोन्नती में सहयोग कि इसका भारी है
'काश अगर औरत के दाढ़ी आ जाती
तो समझो बेकारी सारी मिट जाती
हो जाती खर्च मुंडाई में आधी कमाई
जितने है बेकार सभी बन जाते नाई
सर पर तो है,जब गालों पर दाढ़ी बढ़ती
दो चोंटी फिर आगे भी गुंथवानी पड़ती
गोरे  गालों पर हरी झांई छा जाती फिर
चार चोटियों की नारी हो जाती फिर
और समस्या फिर यह अति ही टेढ़ी होती
क्या लेडी के लिए नाई भी लेडी  होती
सिर्फ पुरुष को दी दाढ़ी की आफत है
क्या भगवान तुम्हारी यही शराफत है ?




















मेचिंग का मेच

            मेचिंग का मेच   
                       १
शादी को अपने हुए ,अब पूरे दस साल
बोलो क्या प्रेजेंट तुम ,दोगे  अबकी बार
दोगे  अबकी बार ,कहा जब पत्नी  जी ने
हम बोले, लो प्यार ,आये जितना भी जी में
'प्यार,प्यार तो अजी आपका मिलता अक्सर
अबकी बार  चाहिए हमको साडी  सुन्दर
                        २
साडी  लेने  हम गए ,पत्नी   जी के संग
भड़कीला सा प्रिंट हो, चटकीला सा रंग
चटकीला सा रंग ,दुकाने काफी छानी
दो हज़ार में  साड़ी ,सुन्दर मिली सुहानी
'घोटू'एक सूती  साड़ी भी मन को भायी
लेने एक गए थे ,पर दो  साड़ी आयी
                       ३
अब हमको दिलवाइए ,मांग हुई तत्काल
मेचिंग ब्लाउज पीस और मेचिंग साड़ी फाल
मेचिंग साड़ी फाल ,और कुछ नोट चाहिए
सिलसिलाया मेचिंग पेटीकोट  चाहिए
कह घोटू कविराय आयी फिर मांग निगोड़ी
दिलवा दो ना ,एक मेचिंग चप्पल की जोड़ी
                       ४
पत्नी जी कहने लगी ,होकर ज़रा उदास
मेचिंग रंग की चूड़ियाँ ,नहीं हमारे पास
नहीं हमारे पास ,चाहिए बिंदिया मेचिंग
मिलता जुलता हो लोकिट ,साड़ी पिन ,इयरिंग
हमको मेचिंग एक पर्स सुन्दर ला दो ना 
सर्दी है,मेचिंग कार्डिगन  दिलवा दो ना
                         ५
देखो अब पूरी हुई ,मेरी मेचिंग ड्रेस
कमी सिर्फ बस चाहिए ,मेचिंग वाच स्ट्रेप
मेचिंग वाच स्ट्रेप ,तभी निकलूं बन ठन के
लगा लिपस्टिक,नेलपॉलिश मेचिंग फेशन के
कह घोटू कवि  मेच चला मेचिंग का ऐसा
खर्च हो गया ,साड़ी से भी दूना पैसा 

मजबूरी

        मजबूरी
             १
पत्नी से कहने लगे ,भोलू पति कर जोड़
आप हमी को डांटती ,है क्यों सबको छोड़
है क्यों सबको छोड़ ,पलट कर बीबी बोली
मैं क्या  करू, तेज  तीखी  है  मेरी  बोली
नौकर चाकर वाले घर में बड़ी हुई हूँ
बड़े नाज़ और नखरों से मैं  पली हुई हूँ
              २
पत्नीजी कहने लगी ,जाकर पति के पास
बतलाओ फिर निकालूँ ,मन की कहाँ भड़ास
मन की कहाँ  भड़ास ,अगर डाँटू नौकर को  
दो घंटे में छोड़ ,भाग जाएगा घर को
सुनूं एक की चार ,ननद  से जो कुछ बोलूं
तुम्ही बताओ ,बैठे ठाले ,झगड़ा क्यों लूं
              ३
सास ससुर है सयाने ,करते मुझको प्यार
उनसे मैं तीखा नहीं ,कर सकती व्यवहार
कर सकती व्यवहार ,मम्मी बच्चों की होकर
अपने नन्हे मासूमो को,डांटूं क्यों कर
एक तुम्ही तो बचते हो जो,सहते सबको
तुम्ही बताओ ,तुम्हे छोड़ कर डाटूं  किसको?

Tuesday, December 17, 2013

भाग्य भरोसे मत बैठा रह

        भाग्य भरोसे मत बैठा रह

 तू ये मत कर,तू वो मत कर
कुछ करने की जहमत मत कर
 ऊपर वाले से डर  थोड़ा ,
कर यकीन उसकी रहमत पर
तुझे मिल रहा ,फल कर्मो का ,
क्यों रोता ,अपनी किस्मत पर
तेरी मंजिल ,तुझे मिलेगी,
कर प्रयास,थोड़ी हिम्मत कर
भाग्य भरोसे बैठा मत रह,
आवश्यक है,तू मेहनत  कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

बीबीजी की दुनिया की सैर

    बीबीजी की दुनिया की सैर

किया था मैंने ये वादा ,तुम्हे  दुनिया  दिखाऊंगा
मगर अब तुमसे कहने में ,ज़रा ना हिचकिचाऊंगा
सिमट कर रह गयी दुनिया ,मेरी तुम्हारी बाँहों में,
दिखाती तुम मुझे दुनिया ,मै  तुमको क्या घुमाऊंगा

घोटू

चुनाव में हार के फल

          चुनाव में हार के फल

'आम' ने ऐसा निचोड़ा 'आम' सा,
                    अब तो हम बस गुठली बन कर रह गए
'संतरे'का सूख सारा रस गया ,
                        थे तने 'केले',अकेले रह गए
बेबसी ने हाल ऐसा कर दिया ,
                         बहलाते मन बेटी से 'अंगूर'की ,
'चीकू'चाहा था मगर आलू मिला ,
                          दिल के अरमाँ  आंसूओ में बह गए

घोटू

Monday, December 16, 2013

फ्लेट संस्कृती

           फ्लेट संस्कृती

कोई को किसी की नहीं परवाह यहाँ पर ,
वो खुश हैं अपने फ्लेट में ,तुम अपने फ्लेट  में
होती है 'हाई 'हल्लो'जब मिल जाते लिफ्ट में ,
पर दोस्ती होती नहीं ,पल भर की भेट में
कल्चर गया ,गली का,मोहल्ले ,पड़ोस का,
रहते है व्यस्त टी वी में और इंटरनेट  में
सब अपनी अपनी खा रहे,मस्ती में जी रहे ,
किसको पडी है झाँके जो,औरों की प्लेट में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी में -सवेरे सवेरे

 सर्दी में -सवेरे सवेरे

कहा बीबी ने ये डीयर ,
बड़ी ही सर्दी है बाहर ,
रहो दुबके यूं ही अंदर ,रजाई ये सुहाती है
ये मौसम सर्द है आया
बड़ा कोहरा ,घना छाया
कि बाहर  देखो बर्फानी ,हवायें सनसनाती है
कहा मन ने यूं भर आलस
आज सोये रहो तुम बस
नहीं उठने का जी करता ,आँख भी खुल न पाती है
भले मन कितना ही चाहे ,
मगर हम रुक नहीं पाये
भली सेहत की चाहत ही,सवेरे नित  जगाती  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोंग्रेस -कथा

    कोंग्रेस  -कथा

पहले थी 'जोड़ी बैल की'फिर ' गाय और बछड़ा',
फिर 'हाथ',बदले रंग कितने कांग्रेस  ने
नाना से नातियों के युग में आते आते ही ,
थी जो रईस ,अब है भिखारी के भेस में
आयी अर्श से फर्श तक ,इस अंतराल में,
बेडा किया है गर्क,मचा लूट देश में
खा खा के मोटी हो गयी है दौड़ ना पाती ,
कितने ही दल निकल गए है आगे रेस में

घोटू

शादी -दो प्रतिक्रियायें

       शादी -दो प्रतिक्रियायें

                     १
था पाला पोसा प्यार से और बेटे को बड़ा किया
की शादी उसकी ,बहू लाये,उसका घर बसा दिया
अपना घर उजाड़ने की ये तो शुरुवात थी ,
चार दिन की इस खुशी में ,हमने या भुला दिया
                    २
वो कल तलक थी जो बहू ,अब सास बन बदल गयी
 ये खेल चूहे बिल्ली का है, जिंदगी  निकल  गयी
ये सास क्या ये बहू क्या ,है सिर्फ इतना फर्क कि,
जमाये रौब ,सास वो,और वो बहू ,जो डर गयी

घोटू

Sunday, December 15, 2013

आप का कनफफ्यूजन

   आप का कनफफ्यूजन

किसी भूखे के आगे जो ,तुम छप्पन भोग गर रखदो ,
देख कर इतनी मिठाई ,बड़ा पगला वो है जाता
मै ये खाऊं या वो खाऊं ,उसे होजाता कन्फ्यूजन ,
इसी चक्कर में बेचारा ,नहीं कुछ भी है खा पाता
किसी मुफलिस की कोई दिन ,अगर जो लॉटरी खुलती,
करे क्या इतनी दौलत का ,समझ में है नहीं आता
यही है हाल अरविंद का,आप पार्टी का बहुमत है,
दे रही साथ कोंग्रेस पर ,राज करने में घबराता

घोटू

Saturday, December 14, 2013

बेचारा आदमी

         बेचारा आदमी

कितना भला ,मासूम सा है प्यारा आदमी
कहता है कौन ,होता है बेचारा    आदमी
उसको दुधारू जीव समझ बड़े प्यार से ,
डाले है बीबी ,और  खाता ,चारा आदमी
उसकी कदर होती है घर में सिर्फ इसलिए ,
पैसा कमाके लाता ,ढेर सारा  आदमी
करती है ऐश बीबियाँ ,और काम में जुटा ,
बन कोल्हू  बैल,घूमता ,दिन सारा आदमी
ऐसा क्या लॉलीपॉप चुसाती है बीबियाँ ,
लालच में जिसके फिरता मारा मारा आदमी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, December 13, 2013

लेट लतीफ़

        लेट लतीफ़

बचपन के कच्चे दांत तो होते है दूध के ,
                    जो बाद में आते है वो टिकाते बहुत है
आते उभार कुछ है जब आती है जवानी ,
                     सीने पे सज के सब पे सितम ढाते बहुत है
कुछ लोगों की आदत है कि वो देर से आते ,
                      सबको ही इन्तजार वो कराते  बहुत है
खाने में सबके बाद में आती है'स्वीट डिश',
                       मीठे के प्रेमी 'घोटू'है,वो खाते बहुत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जोरू का गुलाम

   जोरू का गुलाम

लक्ष्मीपति है विष्णु और शंकर उमापति ,
और गणपति को पहले ,प्रणाम किया जाता
है राष्ट्रपति ,राष्ट्र का ,सर्वोच्च नागरिक ,
और सभापति को बहुत सन्मान दिया जाता
पूंजीपति है वो कि जो है पूंजी का मालिक ,
उद्योग पति वो है कि  जो उद्योग चलाता  
तो फिर विपत्ति रहती है क्यों सिर्फ पति पर ,
उसको ही क्यों है 'जोरू का गुलाम'कहा जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बीबीजी या सुप्रीम कोर्ट

       बीबीजी या सुप्रीम कोर्ट

गरदन झुका पेश आते है हम उनके सामने,
              कहते है 'माय लार्ड 'हरेक बात के पहले 
जजमेन्ट जो वे करते है ,होता है फ़ाइनल ,
           अपनी मज़ाल क्या जो उनसे ,कुछ कभी ,कह लें
गाउन पहन के जाते है हम उनके 'कोर्ट'में,
                           थोड़े से सहमे सहमे से ,थोड़े डरे डरे 
हम अपना पक्ष रखते है ,ये उनके हाथ है,
                         तारीख बढ़ा दे या फिर वो 'कोर्टशिप' करे
हम बार बार जाते पर मिलती न हरेक बार ,
                           मदिरा की है धारायें बहुत ,उनके 'बार 'में
बीबीजी नहीं वो तो बस 'सुप्रीम कोर्ट'है,
                           बन कर वकील रह गए ,हम उनके प्यार में

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Thursday, December 12, 2013

हिम्मते मर्दा

       हिम्मते मर्दा

हमने दुनिया की लड़ाई ,खुद ही लड़ली , देखलो
तरक्की की सभी सीढ़ी ,खुद ही चढ़ ली ,देख लो
कहते है कि हिम्मते मर्दा है तो मददे खुदा ,
हमने मेहनत करके किस्मत ,खुद ही गढ़ ली ,देखलो 
घोटू

झगड़ा

               झगड़ा

आजकल खटास इतनी आ गयी ,
                       हमारे और बीबीजी के मेल में
लाख उनको मनाओ ना मानती ,
                       टाल देती ,बातें सारी ,खेल में
बड़ी मुश्किल ,गृहस्थी की पढाई,
                        ऐसा लगता हो गया हूँ फ़ैल मैं
उनने मीठी पूरी हमको खिलाई,
                       मगर वो भी तल के कड़वे तैल में

घोटू 

तेरे आगोश में

      तेरे  आगोश में

भीग कर तेरे लबों की ओस में
कोई रह सकता है कैसे होंश में
इस तरह छा जाती है दीवानगी ,
खून रग में,उबलता है जोश में
मन यही करता है कि बस पीते रहें ,
मधु संचित जितना है मधुकोश में
आरजू है ,काट दें ये जिंदगी ,
बस यूं ही बंध कर तेरे आगोश में
इस तरह हम डूब जाये  प्यार में,
बावरी सी रहो तुम ,मदहोश मै

घोटू

कढ़ी-चाँवल

          कढ़ी-चाँवल 

ऐसी चढ़ी है उन पे जवानी की रौनके ,
                            उनका शबाब हम पे सितम ढाया करे है
कहते हैं चिकने चेहरे पे ,नज़रें है फिसलती ,
                             अपनी नज़र तो उन पे जा ,टिक जाया करे है
वो देख हमारा बुढ़ापा ,मुंह सिकोड़ते  ,
                              हम   देख उनकी जवानी ,ललचाया करे है
खिलते हुए चांवल सा उजला रूप देख कर ,
                              बासी कढ़ी भी फिर से  उबल  जाया करे है

घोटू

कांग्रेस का आत्मचिंतन

        कांग्रेस का आत्मचिंतन

आरती उतारते थे जो कभी ,
                        उनने इज्जत देखलो उतार ली
उनके हक़ को हमने मारा था बहुत ,
                        मिला मौका ,उनने डंडी  मार ली
मेट्रो और फ्लाई ओवर बनाये ,
                          दिल्ली की सूरत बड़ी निखार ली
अर्श से हम फर्श पर है आ गिरे ,
                           हमने सारी ज़हमतें बेकार ली
नब्ज ना पहचानी हमने वक़्त की ,
                            सीख ना कुछ समय के अनुसार ली
झगड़ते हम यूं ही आपस में रहे,
                             और देखो,उनने बाज़ी   मार ली
हम तो फंस के रह गए मंझधार में,
                              और उनने लगा नैया   पार ली
समझा था ,अदना बहुत अरविन्द को ,
                              झाड़ू ने सीटें  सभी बुहार ली

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Wednesday, December 11, 2013

दूल्हे से


                  दूल्हे से  

सजा सेहरा ,चेहरे पर,अकड़ कर घोड़ी चढ़ा ,
                    शेरवानी पहन कर के शेर बन इतरा रहा
आज के ही दिन दिखाले ,अपनी सारी हेकड़ी ,
                    जिंदगी भर,बनके गीदड़ ,करेगा हूहां हूहां

  घोटू

जनता मारती है वोटों से

        जनता मारती है  वोटों से

पोलिस मारती है सोठों से
रईस     मारते  है नोटों से
बड़ी अदा से मुस्करा कर के ,
हसीन ,मारते है होठों  से
बड़ी जालिम ये मार होती है ,
मज़ा आता है इनकी चोंटों से
 राजनीति ये एक जुआ है,
शकुनी मारते है गोटों से
रोज ही चेहरा बदलते है ,
चाहिए बचना इन मुखोटों से
चुनाव हार बोले नेताजी ,
जनता मारती है वोटों से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, December 9, 2013

hansee

   ये हँसी ,कितनी हसीन है 

जब होता है खुशी  मन ये ,हंसी आती है 
बड़ी आनंद दायक होती ,गुदगुदाती है 
कोई चुपके से  दबी  दबी  हँसी हँसता है 
कोई जब झेंपता ,खिसियानी हँसी हँसता है 
कोई होते है लोटपोट जब वो हँसते है 
कोई के पेट में हंसने से भी बल पड़ते है 
कोई की मुस्कराहट होती है बड़ी धाँसू 
कोई की आँख में हंसने से आ जाते आंसू 
कोई जब हँसता,उसकी हँसी ख़ास होती है 
कभी ठहाका,कभी अट्ठहास होती है 
हसीनो की भी हँसी ,कितनी है  हसीन  होती 
कभी गालों पे पड़ते है डिंपल और  टपकते मोती 
गिराती बिजलियाँ है,उनकी हंसी है कातिल 
हंसी हंसी में लिया उनने चुरा  मेरा दिल 
हम तो बस उनकी हंसी के लिए तरसते है 
क्योंकि वो हँसते है तो फूल बस बरसते है 
कोई जब बड़ी बड़ी डींग मारा करता  है 
उसकी बातों पे ज़माना बहुत ही हँसता है 
होती है जब किसी पे व्यंग या कि तानाकशी 
उड़ाई जाती सबके सामने है उसकी हंसी 
ये हंसी मन में कड़वा जहर भरवा देती है 
और वो महाभारत तक भी करवा देती है 
हम किसी बात पर जब ध्यान नहीं है देते  
 हंसी हंसी  में ही सब बातों को उड़ा देते 
ये भी आदत बड़ी नुकसानदायक होती है 
कितनी ही बातें क्योंकि लाभदायक होती है 
हंसी उड़ाये कोई ,हंसी में उडा देना 
बात ना बढे,समझदारी इसी में है ना 
इससे जीवन ये हंसीखुशी में कट जाता है 
 वर्ना ये ज़माना बड़ी हंसी उड़ाता है 
हंसी पे कोई,किसी का न पहरा होता है 
कोई हँसता है तो हंस हंस के दोहरा होता है 
अलग अंदाज हंसी का,हुआ करता  सब में 
कोई हंसने के जाता है लाफिंग क्लब में 
हंसी सेहत के लिए होती लाभदायक है 
हँसी  होती है हसीं ,इसमें ही  बसता रब है 
बड़े जंजाल है जीवन में,नहीं  उनमे फंसो 
चैन से मै भी हंसू,वो भी हँसे,तुम भी हंसो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

Friday, December 6, 2013

खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी


   खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी

चार राज्य में हार ,सभी को कोसेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
कई करोड़ों रुपिया जनता का लूटा
हुई जागरूक जनता ,जब भाण्डा फूटा
अपनी छवि साफ़ दिखलाने जनता को,
पड़ विपक्ष के पीछे ,उसे  दबोचेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
कर कितने ही घोटाले ,बदनाम हुए
पांच साल में कितने काले काम हुए
काला मुंह है और हाथ भी काले है,
इतनी कालिख लगी ,कहाँ तक पोंछेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
दूध मलाई खाई,हजम किया सबको
नौ सौ चूहे मार चली है अब हज़ को
या फिर ये है नाटक उसका कोई नया ,
फिर से मोटा चूहा कोई दबोचेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
भ्रष्टाचारी भांडा सदा  फूटता है
बार बार तो छींका नहीं टूटता है
बदकिस्मत थी,अबके छींका ना टूटा ,
जोड़ तोड़ कर क्या छींके तक पहुंचेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नाचेगी
खेल पुराना है ये चूहे बिल्ली का
कौन बनेगा अब के राजा दिल्ली का
आदत बिगड़ी  दूध ,मलाई खाने  की ,
खाने का कुछ नया तरीका खोजेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, December 5, 2013

शब्दों का जमावड़ा

      शब्दों का जमावड़ा

भावों को प्रकट करता ,शब्दों का जमावड़ा
कविता के रूप में है सबके  सामने  खड़ा
कह देता गहरी बात ये थोड़े से शब्द में ,
लगता सुहाना है ये अलंकार से जड़ा
दो पंक्तियों के दोहे में रहीम ने कहा ,
रसखान ने रस से है भरा ,अपने छंद में
मीरा ने भजन,सूर ने पद में इसे कहा , ,
तुलसी ने समेटा इसे ,मानस के ग्रन्थ में
ग़ालिब ने ग़ज़ल,मीर  ने शेरों  में उकेरा ,
बिलकुल सपाट शब्दों में बोला कबीर ने
केशव ने गहरी बात कही अपने ढंग से,
बिहारी ने सतसैया के ,नाविक के तीर में
वेदों में संजोया था इसे वेद  व्यास ने,
 गीता में बात ज्ञान की है श्लोक में कही,
 कोई ने यमक में कहा ,कोई ने श्लेष में ,
हर रूप में पर ज्ञान की गंगा सदा बही
कोई ने विरह गीत में आंसू से भिगोया,
कोई ने इसे रंग दिया होली के रंग में
कोई ने इसे व्यंग के तीरों सा चुभोया ,
कोई ने भरा वीर रस ,मैदाने जंग में 
भावों का झरना जब झरा ,शब्दों में स्वर बहे,
प्रेमी का प्रेम उभरा है गीतों में प्यार के
कुछ हास और परिहास में ,कुछ लोकगीत में,
कुछ सज के सुरों में किसी नगमा निगार के
गीतों का रूप धर के जब भी गाया  गया है ,
लोगों के मन को भाया है,जुबान पर चढ़ा
जिस पर भी ,जब भी ,सरस्वती जी कृपा हुई,
शब्दों की माला गूंथ कर,माता पे दी चढ़ा
  भावों को प्रकट करता ,शब्दों का जमावड़ा
कविता के रूप में है सबके सामने खड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुफतखोर

    मुफतखोर

कुदरत ने है बिगाड़ दी,इंसां की आदतें
फ़ोकट में बाँट बाँट कर,सारी इनायतें
सूरज ने खुल्ले हाथ से बांटी है रोशनी
चन्दा ने लुटा रातों को ,जी भर के चांदनी
सर्दी में गरम धूप हमको मुफ्त में मिली
गर्मी में ठंडी हवाओं से ताज़गी मिली
नदियों से,तालाबों से है पीने को जल मिला
कितना ही कुछ जो हमको मिला,मुफ्त में मिला
हम मुफतखोर बन गये और बिगड़ी आदतें
फ़ोकट में थी जो हमको मिली ,ये इनायतें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, December 4, 2013

गोरों की कदर

   गोरों की कदर

देखो जिधर ,उधर दुनिया में,श्वेत रंग की बहुत कदर  है
गौर करोगे तो पाओगे  ,गोरेपन में  बहुत असर   है
 सूरज श्वेत ,श्वेत है चन्दा ,करते जो दुनिया को रोशन
चन्दा का टुकड़ा कहलाता है गौरी का गोरा  आनन
दूध,दही,घी और शर्करा ,होता सबका श्वेत रंग है
सदा चढ़ाये जाते प्रभु को,पंचामृत के चार अंग है
पूजन हो या हवन सभी में ,आता काम,श्वेत है चांवल
मस्तक पर रोली के टीके में भी शोभा पाता  चांवल
चांवल जैसी कदर न पाता ,गेंहू भी तो है अक्षत अन्न 
 दीपक तले बिछाया जाता, उसको जब होता है पूजन 
गोरों का ही राज चल रहा ,छाये गोरे  दुनिया भर है
देखो जिधर उधर दुनिया में ,श्वेत रंग की बहुत कदर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दलिया बना दिया

        दलिया बना दिया

मै गेहुआं सा ,गेंहूं के दाने की तरह था,
                 तुम चांवलों  सी गौरवर्णी और छरहरी
देखा जो तुमको ,मुझको ,तुमसे प्यार हो गया ,
                  ऐसा लगा कि मिल गई है सपनो की परी
तुम तो उमर के साथ ,उबल कर बड़ी हुई ,
                  आया निखार ऐसा कि रंगत बदल गयी
खुशबू  से भरा,नर्म प्यारा , जिस्म जब खिला ,
                   मुझको लगा कि मेरी तो किस्मत बदल गयी
कह कह के निठल्ला और पीछे पड़ के रात दिन,
                    तुमने बदल के मेरा क्या हुलिया बना दिया
पुचकार कर के प्यार से पीसा है इस तरह ,
                    आटा बना दिया कभी  दलिया  बना दिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'            

घोटू का ओपिनियन पोल

      घोटू का ओपिनियन पोल

 

                देहली

अरविन्द आपका है ,कमल हर्ष बढ़ाता ,

                 शीला पुरानी हो गयी पर शीलवान है

लुटियन की इस दिल्ली को तो लूटा है कई ने ,

                  अब देखो किसके हाथ में आती कमान है

आया जो अगर फैसला,जनता का लटकता ,

                   अरविन्द तो कमल है,कमल साथ रहेगा ,

क्या होगी जोड़ तोड़ सियासत के खेल में,

                    ये सोच सोच करके ,जनता परेशान है

 

              अन्य राज्य

एम पी में महाकाल है और ओंकार है,

                            शिव का रहा है,शिवजी का ही राज रहेगा

छत्तीसगढ़ में फिर से रमन करेंगे रमन,

                            और मेघालय के सर पे सदा हाथ रहेगा

मुश्किल है फिर से लौटना ,गहलोत जी का है,

                             हालत ऐसे दिख रहे है,राजस्थान में ,

लगता है इस वसुंधरा में ,कमल खिलेंगे,

                             जादू नमो का ,लगता है,आबाद रहेगा

 

घोटू   

Monday, December 2, 2013

सूखे पत्ते - अंगूठी और दस्ताने

         सूखे पत्ते

रिश्ता हमारा बहुत पुराना है पेड़ से ,
               कोंपल से फूटे,धीरे धीरे  पूरे खिल गये
नाचे हवा के संग बहुत ,जब जवान थे ,
                आया बुढ़ापा ,पीले पड़े,और गिर गये
हम सूखे हुए पत्ते है अब इतना समझ लो ,
                 ढंग से जो लोगे काम तो हम खाद बनेंगे
हमको जलाया गलती से भी तुमने जो अगर ,
                   जंगल को जला देने वाली आग बनेंगे

              अंगूठी और दस्ताने
 
जबसे चढ़ी है उँगली पे हीरे की अंगूठी,
                        इतरा रही नसीब पर है सारी उँगलियाँ
दस्ताना मुस्कराया ,बोला जब मै चढूंगा ,
                        ना तो दिखेगी अंगूठी और ना ही उँगलियाँ 

घोटू     

Sunday, December 1, 2013

गाँव का घर

         गाँव का घर

जिसमे जीवन हँसता गाता था,जिसमे परिवार बढ़ा है
बसा हुआ माँ की यादों में,वह घर अब वीरान पड़ा  है
बरसों पूर्व खरीदा इसको ,बाबूजी ने बड़े जतन  से
अपना घर था,सब ही खुश थे,कच्चे,लिपे पुते आँगन से
एक एक रुपया जोड़ा और धीरे धीरे इसे सुधारा
आँगन में पत्थर लगवाए,कंक्रीट से छत को ढाला
हम सब भाई और बहनो ने,इस घर में ही जनम लिया था
पढ़े,लिखे और बड़े हुए फिर,इस घर से ही ब्याह किया था
बहने सब जा बसी सासरे,भाई निकल गए सर्विस में
बूढी माता और पिताजी ,केवल बचे रह गए इस में
वो खुश थे पर जब से बाबूजी ने है ये दुनिया छोड़ी
तब से छाया है सूनापन,मौन पडी है घर की ड्योढ़ी
जहाँ कभी रौनक बसती थी ,बाबूजी का अटटहास था
खुशियों की खन खन होती थी,गूंजा करता मधुर हास्य था
बूढ़ी माँ रह गयी अकेली,इतने लम्बे चोड़े  घर में
बेटे अपने घर ले आये ,माँ को बीमारी के डर   में
तब से ये वीरान पड़ा है,इसकी हालत जीर्ण शीर्ण है
ना लक्ष्मी सी माँ,न पिताजी ,इस घर की हालत विदीर्ण है
चूना पुती दिवारों पर है,कितनी ही पड़  गयी झुर्रियां 
 जगह जगह गिर रहा पलस्तर ,उखड़ी आँगन जड़ी पट्टियां
छत पर लगी चादरे टिन की ,कितनी जगह चुआ करती है
बूढा  होने पर हर एक की,हालत बुरी हुआ करती है
माँ कहती उसकी सुध ले लो,पर सारे बेटों का कहना
व्यर्थ करें क्यों उस पर खर्चा ,जब कि नहीं किसी को रहना
बेटे वहाँ नहीं रह सकते ,अलग अलग है सबके कारण
सब शहरों में बसे ,गाँव में,लगता नहीं किसी का भी मन
बात बेचने की करते तो,माँ स्पष्ट मना कर देती
उस घर के संग जुडी भावनाओं का है सदा वास्ता देती
निज हालत पर अश्रु बहाता ,वह घर अब चुपचाप खड़ा है
बसा हुआ माँ की यादों में ,अब वह घर वीरान पड़ा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जैसे उसके दिन फिरे ....

           जैसे उसके दिन फिरे ....

     पहले अस्त व्यस्त था रहता
     खुश,बिंदास मस्त था  रहता
     किन्तु हुई है जबसे शादी,
      बिलकुल अनुशासन में रहता
          जैसे उसके दिन फिरे ,सबके ही फिर जाय 
     जब से डाली है वरमाला
     बना किसी का है घरवाला
     पत्नीजी ने ठोक ठाक कर,
     पूरा उसे बदल ही डाला
            जैसे उसके दिन फिरे ,सबके ही फिर जाय
    बड़े चाव से दूल्हा बनकर
    काटे सात ,अग्नी के चक्कर
    पत्नीजी के आस पास ही  ,
    वो काटा करता है चक्कर
               जैसे उसके दिन फिरे ,सबके ही फिर जाय
    पति पत्नी में मेल हुआ जब
    और शादी का खेल हुआ जब
     ऐसा बंधा गृहस्थी बंधन ,
     वो कोल्हू का बेल हुआ अब
                 जैसे उसके दिन फिरे,सबके ही फिर जाय
    पहले मस्ती थी,अल्हड़पन
    ना श्रद्धा ना भजन कीर्तन
    भक्तिभाव जागा शादी कर,
     करता है नित पत्नी पूजन
                  जैसे उसके दिन फिरे ,सबके ही फिर जाय  
         
    मदन मोहन बाहेती'घोटू'