Saturday, April 25, 2015

बुजुर्गों की पीड़ा

         बुजुर्गों की पीड़ा

हमारे एक बुजुर्ग मित्र,जो कभी हँसमुखी थे
अपने बच्चों के व्यवहार से,काफी दुखी थे
हमने समझाया,आपको रखना पडेगा थोड़ा सबर
क्योंकि ये जनरेशन गेप है याने पीढ़ियों का अंतर
इसलिए 'एडजस्ट 'करने में ही है समझदारी
खोल दो अपने दिल की बंद खिड़कियां सारी
इससे आपके नज़रिये में बदलाव आएगा
आपका दुखी जीवन संवर जाएगा
हमारी बात सुन कर ,वो गए बिफर
और बोले ये सब खिड़कियां खोलने का ही है असर
जब तक खिड़कियां बंद थी ,सुख था ,शांति थी,
घर में हमारी ही चलती थी
और खिड़कियां खोलना ही हमारी,
सब से बड़ी गलती थी
जब से बाहर की हवा के झोंके ,
खिड़कियों से अंदर आये है
ये अपने साथ धूल और गंदगी लाये है
मच्छर भिनभिनाते है ,
मख्खियां मंडराने लगी है
हमारी व्यवस्थित गृहस्थी ,
तितर बितर होकर,डगमगाने  लगी है
ये हमारे खिड़कीखोलने का ही है नतीजा
अब मक्की की रोटी नहीं बनती ,
हमारे घर आता है'पीज़ा'
इन बाहरी ताक़तों ने ,मेरे बच्चों पर ,
अपना कब्जा जमा लिया है
और धीरे धीरे मुझे बेबस बना दिया है
मेरा वजूद घटता जा रहा है ,
और मैं एक पुराने किले सा ढह गया हूँ
सिर्फ वार त्योंहार के अवसर   पर,
पाँव छूने की चीज बन कर रह गया हूँ
मेरे मन में यही बात खट रही है
जैसे जैसे मेरी उमर बढ़ रही है
मेरी  कदर घट   रही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

हंसी हंसी में

                   हंसी हंसी में

चलो गम के जमाने में,हंसी की बात करते है
हंसी ही बस हंसी में हम,हंसी की बात करते है
हसीनो की हंसी हरदम ,बड़ी ही है हसीं  होती
वो हँसते है तो लगता है ,बिखरते जैसे हो मोती
डाल कर जब नज़र तिरछी,अदा से मुस्कराते है
लोग घायल,कई होते,बिजलियाँ वो गिराते है
हंसी नन्हे से बच्चे की,बड़ी प्यारी,बड़ी निश्छल
बड़ा दुलार आता है, बरसता लाड है प्रतिपल
हंसी बूढ़े बुजुर्गों की ,अधिकतर रहती है गायब
कभी वो हंस लिया करते ,पुरानी याद आती जब
मुंह पर दूल्हा दुल्हन के ,छिपी मुस्कान होती है
मिलन के मीठे सपनो की,यही पहचान होती है 
होंठ जब फूल से खिलते ,हंसी वो खिलखिलाहट है
फ़ैल मुस्कान गालों पर,हंसी की देती  आहट  है
निपोरे दांत कोई तो ,कोई बत्तीसी  दिखलाता
पोपले मुंह से दादी माँ ,जब हंसती है ,मज़ा आता
हंसी होती दबी भी है,हंसी खुल कर भी है आती
ठहाके मारती है जो,हंसी  अट्टहास  कहलाती
जबरजस्ती कोई हँसता ,हंसी होती है खिसयानी
बहुत ज्यादा हंसी आती,आँख में भरता है पानी  
कोई बदमाश,खलनायक,कुटिल सी है हंसी हँसता
कोई अपनी ही हरकत से ,हंसी का पात्र है बनता
हंसी कोई की खनखन सी,रुपय्यों जैसी खनकाती
कोई मुंह फाड़ कर हँसता ,छवि रावण की आ जाती
मनोवांछित कोई जब काम होता,चीज मिलती  है 
तोमन ही मन ख़ुशी होती,हमारी बांछें खिलती   है
अगर बचकानी हरकत पर ,तुम्हारी जो हंसी लड़की
गलत ये सोच होता है,हंसी तो फिर  फँसी लड़की 
 हंसाती हास्य कवितायें,चुटकुले गुदगुदाते है
कभी हंस हंस के पागल तो,कभी हम मुस्कराते है
विदूषक हो या हो जोकर ,सभी को जो हंसाता है
है उसके मन में क्या पीड़ा ,कोई क्या जान पाता है
आज के व्यस्त जीवन में ,हंसी सब की हुई है गुम
तभी 'लाफिंग क्लबों 'में जा,हंसी को ढूंढते है हम
हंसी के गोलगप्पे है ,तो हंसगुल्ले  रसीले है
हंसा करते है जिंदादिल ,हंसा करते रंगीले है
कभी खुशियां कभी गम है,नहीं बैठे रहो गुमसुम
भूल जाओगे सारे गम,कभी हंस कर तो देखो तुम
हमेशा खुश रहो हँसते ,हंसी से अच्छी सेहत है
हंसी खुशियों की दौलत है,हंसी जीवन का अमृत है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'