Thursday, August 4, 2011

ये सरकार अगर गिरती है

ये सरकार अगर गिरती है
गिरना ही इसकी नियति है
कुछ मंत्री थे,गिरे हुए है
अब मुश्किल में घिरे हुए है
कुछ आरोपों के घेरे में
साख बचाने के फेरे में
कुछ सत्ता के मद में अंधे
कुछ के गिरेबान है गंदे
कुछ गरूर से होकर पागल
दिखा रहे है अपना सब बल
कोई खिलाडी है पहुंचे,पर
खेती को क्रिकेट समझ कर
जनता के संग खेल रहे है
महंगाई हम झेल रहे है
जनता त्रस्त,भ्रष्ट है नेता
सेवक नहीं,बने विक्रेता
जनता करती त्राहि,त्राहि
सुरसा सी बढती मंहगाई
उधर बजाते अपना बाजा
भोंपू बने डुगडुगी राजा
इस भ्रष्टाचारी दलदल के
छींटे पड़े हुए है सबपे
इनके नेता मगर,मौन है
जनता की सुन रहा कौन है
बातें करते गोलमोल है
प्रजातंत्र का ये मखौल है
कोंग्रेस का ग्रेस गया सब
सबको है कुसी से मतलब
लेकिन अब जनता जागी है
लगे गूंजने स्वर बागी है
जनता जान गयी गलती है
ये सरकार अगर गिरती है
गिरना ही इसकी नियति है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैंने तुमसे जो भी माँगा,

मैंने तुमसे जो भी माँगा,
तुमने दूना कर दे डाला
अपनेपन से और समर्पण,
से मेरा संसार सवांरा
मैंने माँगा तुसे चुम्बन
तुमने मुझे दिया आलिंगन
मैंने पकड़ी एक बांह थी,
तुमने बाहुपाश दे डाला
मैंने चाहा प्यार मिलन का
तुमने देकर सुख जीवन का
फूल खिला मेरे आँगन को,
तुमने खुशबू से भर डाला
जब से आई परेशानियाँ
आगे बढ़ कर साथ है दिया
बन कर सच्चा जीवनसाथी,
गिरते गिरते मुझे  संभाला
मैंने तुमसे जो भी माँगा,
तुमने दूना  कर दे डाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मेरी प्यारी प्यारी बेटी

मेरी प्यारी प्यारी बेटी
मुझको सदा प्यार है देती
जबसे आई है जीवन में
फूल खिले मेरे आँगन में
चहका  करती थी घर भर में
सबको दोस्त बनाती पल में
मेरे सुख में सबसे आगे
मरे दुःख में सबसे आगे
खुश होती,हंसती,मुस्काती
दुःख होता आंसू ढलकाती
चेहरा आइना सा बन के
सारे भाव दिखाता मन के
मिलनसार,प्यारी,निश्छल है
जीवन को जीती हर पल है
उसके एक नहीं,दो दो घर
एक ससुराल,एक है पीहर
दो दो मम्मी,दो दो पापा
अंतर रखती नहीं जरासा
तालमेल सबसे बैठा कर
दोनों घर में खुशियाँ दी भर
बेटे बदले,करके शादी
लेकिन बदल न पाती
हुई परायी,पर अपनापन
महकाया है मेरा जीवन
मेरे जीवन की उपलब्धी
मेरी प्यारी प्यारी बेटी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आज घिरे है फिर से बादल,

आज घिरे है फिर से बादल,शायद बारिश हो सकती है
एसा जब जब भी होता है,आशाएं मन में जगती है
लेकिन कितनी बार हवाएं,भटका देती है बादल को,
अपने साथ बहा ले जाती,कुछ दीवानी सी  लगती है
श्यामल श्यामल,मनहर बादल,जब छाते है आसमान में,
कब बरसेंगे,प्यास बुझाने,आस लगा,धरती  तकती है
लेकिन बादल आवारा से,थोडा बरस,दूर जा भगते,
कुछ बूंदों से,बरस बरस की,लेकिन प्यास नहीं बुझती है
फिर से आयेंगे,फिर फिर के,और बरसेंगे फिर जी भर के,
पिया मिलन की आस संजोये,धरती विरहन सी लगती है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

शाख और पत्ते

शाख और पत्ते
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पत्ते रहते अगर शाख के संग जुड़े है
तेज धूप हो,फिर  भी रहते हरे भरे है
मगर शाख से टूट,अलग हो यदि गिर जाते
तो कुम्हलाते और सूख अस्तित्व गवांते
सदा शाख संग जुड़ रहने में हित तुम्हारा
क्योकि वृक्ष की नस नस में है जीवनधारा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'