मुफ़्तख़ोर
हम बिना परिश्रम किए हुये करना चाहें सबकुछहासिल
और बड़े शौक़ से खाते है जो माल मुफ़्त का जाये मिल
एसा लालच का भूत चढ़ा जो छोड़े नहीं छूटता है
जब भी जिसको मौक़ा मिलता वो खुल्ले हाथ लूटता है
है फ़र्क़ यही कुछ बाहुबली , लूटा करते है सरेआम
कुछ चोरी छुपे आस्ते से , करते रहते है यही काम
इस लूट खसोट रोज़की में ,तू भी शामिल मैं भी शामिल
और बड़े शौक़ से खाते हैं जो माल मुफ़्त का जाये मिल
हम कैसे भी कुछ पाने को करते रहते है दंद फंद
है पास नहीं फूटी कोड़ी पर हमें चाहिये कलाकंद
रहते जुगाड़ के चक्कर में फोकट में सबकुछ मिल जाये
बिन हींग फिटकड़ी लगे हुये हम चाहें रंग चोखा आये
ना चलें थकें घर पर बैठे हम तक ख़ुद आजाये मंज़िल
और बड़े शौक़ से खाते है जो माल मुफ़्त का जाये मिल
सबकी इच्छा रहती,बहती गंगा में हाथ साफ़ कर लें
एसे वैसे या कैसे भी ,अपनी अपनी झोली भर लें
मिल जाये ख़ज़ाना गढ़ाहुआ,याखुले लाटरीकिसीदिवस
छप्पर चाहे फट जाये पर ऊपर से सोना जाय बरस
मिल जाये बीबी रम्भा सी ,ख़ुद हो या ना उसके क़ाबिल
और बड़े शौक़ से खाते है जो माल मुफ़्त का जाये मिल
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'